युद्‌ध: कारण व परिणति पर निबंध | Essay on War in Hindi

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युद्‌ध: कारण व परिणति पर निबंध | Essay on War : Causes and Consequences in Hindi!

युद्‌ध का इतिहास मानव सभ्यता के उदय के साथ ही प्रारंभ हो गया । युद्‌ध पहले भी होते थे और आज भी हो रहे हैं । यह सत्य है कि समय-समय पर कारक परिवर्तित होते रहे हैं । आदिकाल में जहाँ युद्‌ध जानवरों अथवा जमीन के लिए लड़े जाते थे वहीं आज के युग में युद्‌ध के तीन प्रमुख कारक पैसा, स्त्री एवं जमीन हैं ।

भारत में अंग्रेजी शासन से पूर्व देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था । सभी राजा अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहते थे । युद्‌ध के द्‌वारा विजय से संपन्नता प्राप्त करना उनका प्रमुख उद्‌देश्य होत । था तथा साथ ही साथ पडोसी राज्यों में उनका वर्चस्व बढ़ता था जिसके परिणामस्वरूप छोटे राज्य स्वयं ही उनकी सत्ता स्वीकार कर लेते थे ।

नारी भी इतिहास के अनेक प्रमुख युद्‌धों का कारण बनी। उस समय में युद्‌ध द्‌वारा सुंदर स्त्री व राजकुमारी को विजयश्री में प्राप्त करना राजाओं की आन और शान समझा जाता था । आज के समय में युद्‌ध के स्वरूप में अनेक परिवर्तन आए हैं । राज्यों के मध्य छोटे-छोटे आपसी विवाद भी विशाल रूप ले लेते हैं । पूर्व में हुए दो विश्व युद्‌धों का यदि आकलन करें तो हम देखते हैं कि ऐसा नहीं था कि उन युद्‌धों को नहीं टाला जा सकता था । फिर भी ये युद्‌ध लड़े गए तथा इसके पश्चात् इसकी तांडव लीला को हम आज भी महसूस कर सकते हैं ।

प्राचीनकाल के युद्‌ध हों या फिर आधुनिक विश्व युद्‌ध, सभी छोटे कारणों से प्रारंभ होते हैं और बढ़ते-बढ़ते विशाल रूप ले लेते हैं । आज युद्‌ध केवल सेनाओं के बीच तक ही सीमित नहीं रह गए हैं अपितु ये पूर्ण मानव सभ्यता के लिए खतरा बन जाते हैं।

ADVERTISEMENTS:

इतिहास साक्षी है कि युद्‌धों में अनेक राज्यों ने न केवल जान-माल की क्षति उठायी है अपितु वहाँ की कला, संस्कृति व सभ्यता सभी नष्ट हो गए हैं । आधुनिक युद्‌धों में सैनिक ही नहीं अपितु अनेक बच्चे, औरतें, बूढ़े, जवान, नागरिक युद्‌ध का शिकार बनते हैं जिनका युद्‌ध से कोई लेना-देना नहीं होता है ।

आतंकवाद इन युद्‌धों का एक अन्य रूप है । कुछ स्वार्थी व असामाजिक तत्व असहाय बच्चों व नागरिकों को मारकर अपनी अनैतिक माँगों को पूरा करना चाहते हैं । भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद से निरंतर जूझ रहा है । अब तक न जाने कितने लोग इस आतंकवाद के शिकार हो चुके हैं । आतंकवाद को काबू में रखने के लिए सरकार को सुरक्षा के मद में काफी व्यय करना पड़ता है ।

इस तरह देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होती है । सन् 2001 में अमेरिका पर हुआ जबरदस्त हमला इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें पल भर मैं हजारों लोग असमय काल के शिकार हो गए और सारे विश्व की अर्थव्यवस्था की नींव हिल गई थी ।

युद्‌ध के कारण कुछ भी हों परंतु परिणाम सदैव एक-सा ही होता है । हजारों की संख्या में लोगों की जानें जाती हैं । कितने ही घर नष्ट हो जाते हैं । कितनी ही माताओं की गोद सूनी हो जाती है तथा कितनी ही नारियाँ विधवा का जीवन जीने के लिए बाध्य होती हैं । युद्‌ध राष्ट्रों को वर्षो पीछे धकेल देते हैं, उन्हें फिर नए सिरे से विकास के लिए संघर्ष करना पड़ता है ।

विश्व के राजनीतिज्ञों को इनका आकलन करना आवश्यक है । यदि वे इसके परिणामों को ध्यान में रखें तथा निजी स्वार्थपरता से ऊपर उठें तो संभव है कि युद्‌ध की विभीषिका से बचा जा सके । आपसी विवादों को यदि वे बातचीत से सुलझाने का प्रयास करें तो कितने ही बच्चे अनाथ होने से बच सकते हैं, साथ ही कितने ही घरों को नष्ट होने से बचाया जा सकता है ।

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War and peace essay in hindi युद्ध और शांति पर निबंध.

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War and Peace Essay in Hindi

War and Peace Essay in Hindi 800 Words

मनुष्य को गुण, कर्म और स्वभाव से शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है; यद्यपि हर आदमी के भीतरी कोने में अज्ञान रूप से एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहा करता है। प्रायः मनुष्य भरसक चेष्टा कर के भी उसे जागने नहीं देता। जब किसी कारणवश वह जाग ही पड़ता है, तभी तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं और प्रतिक्रियाओं का भी जन्म हुआ करता है। उन्हीं के घर्षण-प्रत्याघर्षण से उत्पन्न हुआ करती है युद्धों की ज्वाला। यह घर्षण-प्रयाघर्षण जब व्यक्ति या व्यक्तियों के बीच हुआ करता है, तब तो इस सामान्य लड़ाई, गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े जैसे नाम दे दिये जाते हैं। लेकिन जब इस प्रकार की बातें दो देशों के बीच हो जाया करती हैं, तब उसे नाम दिया जाता है-युद्ध! इस प्रकार युद्ध और शान्ति आपस में विलोम कहे और माने जाते हैं। एक के रहते दूसरे का रह पाना कतई संभव नहीं हुआ करता।

सामान्य जीवन जीने के लिए, जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना बहुत आवश्यक हुआ करता है। संस्कृति, साहित्य तथा अन्य सभी तरह की ललित एवं उपयोगी कलाएँ भी तभी विकास पा सकती हैं, जब चारों ओर का वातावरण शान्त एवं सामान्य रूप से सुखद हो। हर प्रकार के व्यापार की उन्नति भी शान्त वातावरण में ही संभव हुआ करती है। इन सभी की उन्नति और विकास कोई एक-दो दिन में ही नहीं हो जाया करता। हजारों वर्षों की निरन्तर साधना और प्रयत्न के बाद ही ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला और संस्कृति आदि का कोई स्वरूप बन पाया करता है। लेकिन युद्ध का एक ही झटका युग-युगों की इस साधना को देखते-ही-देखते मटिया-मेट कर दिया करता है। कला-संस्कृति के सभी रूप खण्डहर बन कर रह जाया करते हैं। युद्ध के समय तो विनाश हुआ ही करता है, उसके समाप्त हो जाने के बाद भी वर्षों तक उसका प्रभाव बना रहता है। इसी कारण युद्ध का मनुष्य हमेशा विरोध करता रहता है। शान्ति हमेशा मानव-जाति का इच्छित विषय रहा और आज भी है।

आरम्भ से मनुष्य युद्धों का विरोध करता आ रहा है। युद्ध न होने देने की मानव-जाति ने सदा भरसक चेष्टाएँ भी की हैं, फिर भी तो युद्धों को सदा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रख पाने में मानव कभी पूर्ण काम नहीं हुआ। महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति-दूत बनकर कौरव-सभा में गए थे। उन्होंने पाँच पाण्डव भाइयों के लिए मात्र पाँच गाँव की मांग रखकर महायुद्ध को टालने का प्रयास किया था; लेकिन दुर्योधन जैसे दुवृत्तों ने उन का प्रयास सफल नहीं होने दिया। खैर, वह तो बीते युगों की बात है। आधुनिक काल में भी प्रथम विश्व युद्ध के बाद ‘लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन युद्धों की विभीषिका हमेशा के लिए समाप्त कर शान्ति बनाए रखने और उसके क्षेत्र का अनवरत विकास करते रहने के लिए किया गया था। पर कहाँ रहने दी शान्ति युद्ध-पिपासुओं ने! दूसरा विश्व युद्ध हुआ और पहले से कहीं बढ़ कर विनाशकारी प्रमाणित हुआ। उसके बाद फिर ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ (United Nations Organisation) जैसी, संस्था का गठन युद्ध से छुटकारा पाकर शान्ति-कामना से ही किया गया; पर क्या युद्धों का अन्त और शान्ति की स्थापना संभव हो पाई है? वह तो क्या होती थी, आज उसी की आड में छोटे राष्ट्रों पर युद्ध तो थोपे ही जा रहे हैं, दादा-राष्ट्रों द्वारा तरह-तरह की धमकियाँ भी दी जा रही हैं। छोटे-छोटे तो कई युद्ध हो भी चुके हैं। तीन-चार बार तो भारत जैसे स्वभाव से शान्ति प्रेमी देश को युद्ध के लिए बाध्य होना पड़ चुका है। अभी भी सीमाओं पर हमेशा भयावह युद्ध के बादल मण्डराते रहते हैं।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति बनाए रखने के लाख प्रयत्न करते रहने पर भी राष्ट्रों को अपनी अस्मिता, सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को और आज के युग में कई बार भारत को लड़ने पड़े हैं। इस प्रकार शान्ति यदि मान का स्वभाव एवं काम्य विषय है, तो युद्ध परीस्थितिजन्य अनिवार्यता बन जाया करती है। यानि न चाहते हुए भी व्यक्तियों-राष्ट्रों को युद्ध करना ही पड़ता है। फिर भी इतना तो निश्चत है कि किसी भी हाल में युद्ध अच्छी बात नहीं। पराजित और विजेता दोनों को इसके दुष्परिणामों से अनिवार्यतः दो-चार होना पड़ता है। फिर भी मानव का प्रयत्न इसी दिशा में रहना चाहिए कि युद्ध न हों, शान्ति बनी रह सके।

यह एक तथ्य है कि सत्य, अहिंसा, प्रेम, भाईचारा, मानवता, विश्व बन्धुत्व जैसे शब्दों का आविष्कार भावना के स्तर पर शान्ति-प्रेमियों द्वारा शान्ति बनाए रखने के लिए ही किया गया है। असत्य, हिंसा, घृणा आदि का विरोध वास्तव में सभी तरह के लड़ाई-झगड़े और युद्ध भी समाप्त करने के लिए किया गया है। धर्म, उदारता, मानवीयता जैसी कल्पनाएँ भी शान्ति की स्थापना और विस्तार के लिए ही की गई हैं। फिर भी युद्ध समाप्त नहीं, किए जा सके। शान्ति स्थापित नहीं हो सकी। दो विलोम परस्पर नीचा दिखाने को कार्यरत हैं और सदा रहेगे – यह एक चरम सत्य हैं।

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युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi

युद्ध एक अभिशाप अथवा वरदान पर निबंध। Essay on War in Hindi! प्राचीनकाल में भी राजाओं में युद्ध होते थे, परन्तु उन युद्धों और आज के युद्ध में पृथ्वी और आकाश का अन्तर है। आमने-सामने की लड़ाई और मल्ल युद्धों का समय जा चुका है। युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी बढ़ गई है कि वर्णन नहीं किया जा सकता कि कब क्या हो जाये? आज के युद्ध केवल भूमि पर ही नहीं लड़े जाते, अपितु आकाश और परिवार का प्रांगण भी समरांगण बन गया है। जल, थल और नभ–तीनों प्रकार की युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध-कशल में आमूल परिवर्तन उपस्थित कर दिया है। युद्ध के समय जो कुछ उत्पादन होता है उसका बड़ा भाग सेना के प्रयोग के लिए चला जाता है, चाहे वह अन्न हो, वस्त्र हो, दूध हो या अन्य उपयोगी वस्तुयें। जनता पर युद्ध-कालीन कर बढ़ा दिये जाते हैं। अतः युद्ध-कालीन तथा युद्धोत्तर दोनों ही स्थितियाँ जनता के लिये अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

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युद्ध और शांति पर निबंध War and Peace OR Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

हेलो दोस्तों आज फिर मै आपके लिए लाया हु Yudh Aur Shanti Essay in Hindi पर पुरा आर्टिकल। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता।इसलिए हम आपके लिए लाये है आइये पढ़ते है युद्ध और शांति पर निबंध

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  • युद्ध और शांति पर निबंध

प्रस्तावना :

प्रत्येक मनुष्य स्वभाव, कर्म एवं गुणों से शान्त प्रकृति वाला  होता है, परन्तु उसके शान्त हृदय के भीतर कहीं न कहीं एक अशान्त प्राणी भी छिपा रहता है, जो थोड़ा सा भी भड़काने पर हिंसक रूप धारण कर लेता है। वैसे तो हर मनुष्य हृदय से यही चाहता है कि वह हमेशा शान्त व्यवहार  करे लेकिन परिस्थितियां उसे हिंसक बना देती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति ही अनेक युद्धों को जन्म देती है।

युद्ध का अभिप्राय :

जब लड़ाई-झगड़े घर के सदस्यों के बीच होते हैं तो वे घरेलू झगड़े कहलाते हैं तथा अधिक हानिकारक नहीं होते क्योंकि घर का ही कोई समझदार व्यक्ति दोनों पक्षों में सुलह करवा देता है और मामला वही शान्त हो जाता है। जब युद्ध कुछ व्यक्तियों के मध्य होते हैं | तो वे जातीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं, जो कभी-कभी तो आसानी से काबू में आ जाते हैं, लेकिन कभी-कभी विकराल रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन जब यही युद्ध दो देशों अथवा अनेक देशों के बीच हो जाते हैं, तो वे ‘युद्ध’ अथवा ‘महायुद्ध’ कहलाते हैं।

युद्ध के परिणाम :

युद्ध के परिणाम निःसन्देह बहुत जानलेवा होते हैं, जिनसे हर तरफ हाहाकार मच जाता है। हजारों वर्षों के अथक प्रयासों व साधनों से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास कार्य युद्ध के एक झटके से ही तहस-नहस हो जाता है। बसे-बसाए घर तो क्या, गाँव के गाँव नष्ट हो जाते हैं, उनका नामोनिशान भी नहीं दिखता। युद्ध के इन्हीं विकराल कारणों एवं दुष्परिणामों के कारण ही एक सभ्य मनुष्य युद्ध से दूर ही रहना चाहता है, लेकिन कुछ पशु-प्रवृत्ति के लोग युद्ध की आग को भड़काकर ही शान्त होते हैं।

प्राचीन काल से ही युद्ध अपना भयंकर रूप दिखाते आए हैं तथा महापुरुषों ने इन युद्धों को रोकने की भरसक कोशिश की है। तभी तो महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण स्वयं शान्तिदूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे। लेकिन कभी कभी शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी स्वतन्त्रता तथा स्वाभिमान की रक्षा हेतु मजबूरीवश युद्ध लड़ने पड़ते हैं। इसका एक उदाहरण द्वापर युग में पाण्डवों द्वारा, त्रेता युग में श्रीराम द्वारा तथा आज के आधुनिक भारतवर्ष में अंग्रेजों तथा आतंकवादियों के खिलाफ लड़े गए युद्ध हैं।

शान्ति की स्थापना :

खुशहाल तथा शान्त जीवन जीने के लिए प्रगति तथा विकास के पथ पर आगे बढ़ने के लिए तथा देश की उन्नति के लिए शान्त वातावरण अति आवश्यक है। देश की संस्कृति, कला, विज्ञान, साहित्य तभी विकसित हो पाते है, जब चहुमुंखी शान्ति का वातावरण है। अशान्त मन से तो कोई भी कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न होना असम्भव ही है।

खेल, मनोरंजन, मस्ती, हंगामा भी तो सुखी तथा शान्तचित्त में ही पसन्द आते हैं। इसके अतिरिक्त देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही सम्भव है अर्थात् सर्वांगीण विकास के लिए शान्ति एवं सौहार्द ही आवश्यक है।

शान्ति स्थापना :

इस बात से तो कोई भी इंकान नहीं कर सकता कि युद्ध किसी के भी हित में नहीं होता। युद्ध केवल नाश तथा नष्ट कर सकता है, किसी की भलाई कभी भी नहीं कर सकता। इसीलिए शान्ति स्थापना के लिए अनेक प्रयास किए गए। सर्वप्रथम, प्रथम विश्वयुद्ध समाप्त होने पर लीग नेशन्स’ नामक संस्था गठित की गई। लेकिन कुछ समय की शान्ति के बाद द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ। इसकी समाप्ति पर संयुक्त राष्ट्र संघ’ नामक संस्था गठित की गई।

मनुष्य की प्रवृत्ति ही ऐसी है वह बहुत जल्दी भूल जाता है तभी तो आज संसार तीसरे विश्वयुद्ध की तैयारी में है। आजकल तो खुले आम मानव दूसरों के लिए टाइमबमों का निर्माण कर रहा है। आज अनेक देश जैसे पाकिस्तान अमेरिका, ईरान इत्यादि लड़ने के लिए तैयार है और अपने आतंकवादी भेज रहे हैं। परन्तु यह बात सदा स्मरण रहनी चाहिए कि युद्ध में हानि तो विजेता तथा पराजित पक्ष दोनों की ही होती है।

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  • Yudh Aur Shanti Essay in Hindi

मनुष्य को स्वभाव, कर्म व गुणों के आधार पर शान्त प्रकृति वाला प्राणी माना जाता है। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य के हृदय के भीतरी भाग में कहीं-न-कहीं एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहता है। परन्तु मनुष्य का भरसक प्रयत्न रहता है कि वह भीतर का हिंसक प्राणी किसी प्रकार भी जागे नहीं। यदि किसी कारणवश वह जाग पड़ता है तो तरह-तरह की संघर्षात्मक क्रिया-प्रक्रियाओं तथा प्रतिक्रियाओं का जन्म होने  लगता है, तब उनके घर्षण तथा प्रत्याघर्षण से युद्धों की ज्वाला धधक उठती है।

इस प्रकार के युद्ध यदि व्यक्ति या व्यक्तियों के मध्य होते हैं तो वे गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े कहलाते हैं। परन्तु जब इस प्रकार के युद्ध दो देशों के मध्य हो जाते हैं तो वे कहलाते हैं – युद्ध।

सामान्य जीवन जीने के लिए तथा जीवन में स्वाभाविक गति से प्रगति एवं विकास करने के लिए शान्ति का बना रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। देश में संस्कृति, साहित्य तथा अन्य उपयोगी कलाएँ तभी विकास पा सकती हैं जब चारों ओर शान्त वातावरण हो। देश में व्यापार की उन्नति व आर्थिक विकास भी शान्त वातावरण में ही संभव हो पाता है। सहस्त्र वर्षों के अथक प्रयत्न व साधन से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य-कला आदि का किया गया विकास युद्ध के एक ही झटके से मटिया-मेट हो जाता है।

युद्ध के इस विकराल रूप को देखकर तथा इसके परिणामों से परिचित होने के कारण मनुष्य सदैव से इसका विरोध करता रहा है। युद्ध न होने देने के लिए मानव ने सदैव से प्रयत्न किए हैं। महाभारत का युद्ध होने से पहले श्रीकृष्ण भगवान् स्वयं शान्ति दूत बनकर कौरव सभा में गए थे।

आधुनिक युग में भी प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद लीग आफ नेशन्स’ जैसी संस्था का गठन किया गया। परन्तु मानव की युद्ध-पिपासा भला शान्त हुई क्या? अर्थात् फिर दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद शान्ति की स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ (UN.O.) जैसी संस्था का गठन हुआ। परन्तु फिर भी युद्ध कभी रोके नहीं जा सके।

एक सत्य यह भी है कि कई बार शान्ति चाहते हुए भी राष्ट्रों को अपनी सार्वभौमिकता, स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने पड़ते हैं। जैसे द्वापर युग में पाण्डवों को, त्रेता युग में श्रीराम को तथा आज के युग में भारत को लड़ने पड़े हैं। परन्तु यह तो निश्चित ही है कि किसी भी स्थिति में युद्ध अच्छी बात नहीं।

इसके दुष्परिणाम पराजित व विजेता दोनों को भुगतने पड़ते हैं। अतः मानव का प्रयत्न सदैव बना रहना चाहिए कि युद्ध न हों तथा शान्ति बनी रहे।

  • Essay on War and Peace in Hindi

मानव और शक्ति-संचय-वर्तमान में मनुष्य ने देवताओं के समान शक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न प्रारंभ किया है। उसने देवता कहलाने वाले चाँद पर भी विजय प्राप्त कर ली है, किंतु वह प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है। आज मनुष्य अधिक-से-अधिक शक्तिशाली एवं सुदृढ़ बनने के लिए प्रयत्नशील है, जिससे वह समस्त विश्व पर शासन कर सके। शक्ति एवं धन के लिए मानव आज इतना अधिक व्याकुल है कि वह अपने कर्तव्यों तक को भूल गया है। सर्वत्र भय और घृणा का वातावरण व्याप्त है, जिससे युद्ध को बल मिलता है।

मानव और स्वार्थ-मानव स्वार्थ-प्रवृत्ति से युक्त है। वह कब चाहता है कि उसका पड़ोसी देश फूले-फले? यही ईर्ष्या की आग एक-दूसरे को नष्ट करने के लिए अपनी जीभ लपलपाती रहती है। एक राष्ट्र अपने सिद्धांत और विचारधारा को दूसरे राष्ट्र पर थोपना चाहता है। एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से अपने सभी उचित-अनुचित कार्यों में समर्थन चाहता है। आज संसार में अस्त्र-शस्त्र के निर्माण तथा उन्हें एकत्रित करने की होड़ लगी हुई है, आखिर क्यों? केवल अपनी दानवी आसुरी पिपासा को युद्ध के रक्त से शांत करने के लिए। धन की प्राप्ति तथा क्षेत्र विस्तार की कामना भी युद्ध के मूल में है।

अनेक धनलिप्सुओं ने इस पावन धरती को पदाक्रांत कर रक्तरंजित किया है। आरंभ में अनेक मुस्लिम आक्रांता भारत के धन की लूटमार के लिए ही यहाँ आए। सिकंदर के हृदय में विश्व-विजय की लालसा अत्यंत बलवती थी। इससे प्रेरित होकर अनेक देशों को युद्धों की लपटों से झुलसाता हुआ वह भारत तक आ पहुँचा था।

प्राचीन और आधुनिक युद्ध में अंतर- प्राचीनकाल में भी शक्तिशाली व्यक्तियों ने अशक्तों पर आक्रमण एवं अत्याचार किए हैं। परंतु उन युद्धों एवं आधुनिक युद्धों में आकाश-पाताल का अंतर है। आज युद्ध-साधनों की व्यापकता इतनी अधिक बढ़ गई कि कब क्या हो जाए, इस विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता। आज युद्ध केवल पृथ्वी तक ही सीमित नहीं, अपितु आकाश भी रणक्षेत्र बना हुआ है। जल, थल और नभ तीनों प्रकार के युद्धकला के नवीन आविष्कारों ने युद्ध के प्रकार में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया है।

युद्ध मानव-जाति के मस्तक पर कलंक है, ईश्वरीय सृष्टि के प्रति पाप है। प्राचीनकाल में मुख्यतः युद्ध अपनी क्षमता, साहस तथा चरित्र के उत्थान के लिए किए जाते थे। आदर एवं यश का एकमात्र साधन युद्ध ही था। महान् ‘शूरवीर ईश्वर की तरह पूजे जाते थे। भारतवर्ष में यह विश्वास किया जाता था कि युद्ध-क्षेत्र में जो वीरगति को प्राप्त करते हैं, वे सीधे स्वर्ग को जाते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को उपदेश दिया है-

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय: 2/371

युद्ध की विनाश-लीला-लेकिन युद्ध का कल्पनातीत नरसंहार कितनी माताओं की गोद के इकलौते लाड़लों को, कितनी प्रेयसियों के जीवनाधार अमर स्वरों को, कितनी सधवाओं के सौभाग्य-बिंदुओं को, कितनी बहिनों की राखियां को अपने क्रूर हाथों से क्षणभर में ही छीन लेता है। चारों ओर करुण-क्रंदन और चीत्कार सुनाई पड़ता है। कितने बच्चे अनाथ होकर दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं, कितनी विधवाएँ अपने जीवन को सारहीन समझकर आत्महत्या कर लेती हैं, कितने परिवारों का दीपक हमेशा के लिए बुझ जाता है। युवकों के अभाव में देश का उत्पादन बंद हो जाता है।

बचे हुए वृद्ध न खेती कर सकते हैं और न कल-कारखानों में काम। परिणाम यह होता है कि युद्ध के बाद न कोई किसी कला का दक्ष बच पाता है और न वीर। देश में सर्वत्र गरीबी अपना विकराल मुँह फाडकर उसे डसने को तैयार रहती है। विस्फोटों के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है, उत्पादन कम होता है,

कल-कारखाने बंद हो जाते हैं। बम-विस्फोट से भव्य भवन धराशायी हो जाते हैं। सर्वत्र अशांति का राज्य छा जाता है। उत्पादन के अभाव में मूल्य इतने बढ़ जाते हैं कि किसी भी वस्तु को खरीदना संभव नहीं रहता। देश में अकाल की स्थिति आ जाती है। देश की जनता का नैतिक चरित्र गिर जाता है- ‘वुभुक्षितः किं न करोति पापम्।’ अतः युद्ध तथा युद्धोत्तर दोनों ही परिस्थितियाँ जनता के लिए अभिशाप बनकर सामने आती हैं।

युद्ध की आवश्यकता- यह युद्ध का एक पहलू है। यदि हम युद्ध के। | दूसरे पक्ष की ओर दृष्टिपात करें तो हम देखते हैं कि युद्ध हमारे लिए वरदान भी सिद्ध हो सकता है। इसका प्रमाण हमें उस समय मिला, जब पड़ोसी देश चीन ने भारत पर आक्रमण किया। पं. नेहरू की एक पुकार पर ही सारा देश सोना लिए खड़ा था। इसी प्रकार पाकिस्तान के आक्रमण के समय समस्त देश अपने सुख-वैभव को छोड़कर देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गया। यहाँ तक कि बंगला देश की लड़ाई में कितनी माताओं ने अपने वात्सल्य की परवाह न करके अपने गोद को सूना कर लिया।

कितनी बहिनों ने अपने स्नेह की परवाह न करके अपने भाइयों को देश की रक्षा के लिए प्रेषित किया एवं कितनी ही महिलाओं ने अपने सिंदूर की परवाह न करके अपने सुहाग को देश की रक्षा के लिए स्वेच्छा से अर्पित कर दिया। तात्पर्य यह है कि युद्ध से जन-जागरण एवं भावात्मक एकता की स्थापना में सहयोग मिलता है। युद्ध से देश की जनसंख्या कम होती है, युद्ध के समय बेकारी दूर हो जाती है, मनुष्यों

में आत्मबल का उदय होता है। यदि धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पापियों, अधर्मियों एवं भ्रष्टाचारियों के विनाश के लिए युद्ध एक वरदान बन जाता है। निःशस्त्रीकरण अनिवार्य-जो भी हो, युद्ध मानव-कल्याण के लिए नहीं वरन् विनाश के लिए है। यदि विश्व में मानवता की रक्षा करनी है तो इसके लिए अनिवार्य है- शांति। नि:शस्त्रीकरण आज के युग में विश्व-शांति के लिए अनिवार्य है। वस्तुत: मानव का जीवन शांति से प्रारंभ होता है। देश में शांति की स्थापना दार्शनिकों का स्वप्न है। विश्व-प्रगति शांति पर ही निर्भर है।

इतिहास में स्वर्ण-युग की कल्पना शांति, प्रगति एवं समृद्धि के युग की ही कल्पना है। विज्ञान एवं कलाओं की उन्नति तभी संभव है, जब मानव मस्तक शांत हो। अतः देश के चतुर्मुख विकास के लिए शांति आवश्यक है।

विश्वशांति की माँग-आज का युद्ध संपूर्ण मानव-सभ्यता और समाज का विनाश कर देगा। इसीलिए विश्व के समस्त राष्ट्र एक स्वर से विश्व-शांति की माँग कर रहे हैं। महात्मा गांधी ने भारत में अहिंसा का प्रयोग किया। वे अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। देश में शांति स्थापित करने के लिए हमारे प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने पंचशील को जन्म दिया। अहिंसा एवं शांति के अभाव में युद्ध आज विश्व का वरण करने के लिए तैयार है। घर में, पुर में, प्रदेश में ।

सर्वत्र शांति की आवश्यकता है। यदि कलह का बीज पनप गया, द्वेष की अग्नि भड़क उठी तो सभ्यता का गगनचुंबी प्रासाद क्षण-भर में धराशायी हो जाएगा। इस विनाशकारी परिस्थिति से विश्व की रक्षा का एकमात्र उपाय है- शांति।

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प्राचीन काल में बर्बर जनजातियों के लोग जिन गाँवों से होकर गुजरते थे वहाँ खूब लूटपाट और बर्बादी मचाते थे। किन्तु वे सभ्य नहीं होते थे। किन्तु आज हम शिक्षित हैं ,लेखकों और चिंतकों ने हमें जीने का सही मार्ग दिखाया है। यदि दुनिया के देश शान्ति और सौहार्द्र के साथ नहीं रह सकते हैं तो हम हिंसक जानवरों के समान माने जायेंगे और हमें सभ्य नहीं कहा जा सकता है। 

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प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध Essay World War 1, 2, 3 in Hindi

प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध Essay World War 1, 2, 3 in Hindi

प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध (World War 1, 2, and 3 in Hindi) का इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इन वैश्विक संघर्षों ने दुनिया भर के देशों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को आकार दिया है।

यह निबंध युद्धों के कारणों, प्रभावों, परिणामों और महत्व की पड़ताल करता है, जिसका उद्देश्य इन विश्व-परिवर्तनकारी घटनाओं के आसपास की जटिलताओं के बारे में हमारी समझ को गहरा करना है।

Table of Content

प्रथम विश्व युद्ध की जानकारी World War 1 Information in Hindi

प्रथम विश्व युद्ध की जानकारी World War 1 Information in Hindi

प्रथम विश्व युद्ध, जिसे महान युद्ध के रूप में भी जाना जाता है, 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला। इस युद्ध में कई देश शामिल थे, जिनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी जैसी प्रमुख शक्तियां और एक तरफ ओटोमन साम्राज्य (केंद्रीय शक्तियों के रूप में जाना जाता है) शामिल थे, और दूसरी ओर फ्रांस, ब्रिटेन और रूस (मित्र राष्ट्रों के रूप में जाने जाते हैं)।

युद्ध मुख्य रूप से सैन्यवाद, साम्राज्यवाद, राष्ट्रवाद और ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या सहित कारकों के एक जटिल जाल के कारण हुआ था।

युद्ध समाप्त होने के बाद, कई देशों और क्षेत्रों को विभाजित किया गया या नए सिरे से बनाया गया। ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य को भंग कर दिया गया, जिससे ऑस्ट्रिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया और यूगोस्लाविया जैसे नए राष्ट्रों का निर्माण हुआ।

ओटोमन साम्राज्य को भी नष्ट कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक तुर्की और विभिन्न मध्य पूर्वी देशों की स्थापना हुई। इसके अतिरिक्त, जर्मनी को महत्वपूर्ण क्षेत्रीय नुकसान का सामना करना पड़ा और वर्साय की संधि के तहत युद्ध के लिए पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करनी पड़ी।

वर्साय की संधि के परिणाम दूरगामी थे। इसने जर्मनी पर भारी मुआवज़ा लगाया और उसकी सैन्य क्षमताओं को सीमित कर दिया। इससे जर्मनी में आर्थिक अस्थिरता पैदा हुई और राजनीतिक अशांति पैदा हुई जिसने अंततः द्वितीय विश्व युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया।

प्रथम विश्व युद्ध का कारण Causes of World War 1 in Hindi

जानें प्रथम विश्व युद्ध के प्रमुख कारण:

  • राष्ट्रवाद: अपने राष्ट्र के प्रति गहन गौरव और निष्ठा ने देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और प्रतिस्पर्धा को जन्म दिया, तनाव और संघर्ष को बढ़ावा दिया।
  • साम्राज्यवाद: उपनिवेशों और संसाधनों के लिए संघर्ष ने यूरोपीय शक्तियों के बीच एक दौड़ पैदा कर दी, जिससे क्षेत्रीय विवाद और सत्ता संघर्ष शुरू हो गए।
  • सैन्यवाद: सैन्य शक्ति के महत्व में विश्वास से प्रेरित राष्ट्रों के बीच हथियारों की होड़ ने तनाव बढ़ा दिया और एक अस्थिर माहौल बनाया।
  • गठबंधन प्रणाली: ट्रिपल एंटेंटे और केंद्रीय शक्तियों जैसे देशों के बीच बने गठबंधनों के जटिल जाल ने एक नाजुक संतुलन बनाया, जिसे आसानी से तोड़ा जा सकता था।
  • आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या: 1914 में एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा ऑस्ट्रो-हंगेरियन सिंहासन के उत्तराधिकारी की हत्या ने राजनयिक संकटों की एक श्रृंखला शुरू कर दी जो अंततः युद्ध में बदल गई।
  • बाल्कन युद्ध: 1912-1913 में दो बाल्कन युद्धों ने क्षेत्र में जातीय तनाव को बढ़ा दिया, जिससे यूरोप और अधिक अस्थिर हो गया और बड़े संघर्षों के लिए मंच तैयार हो गया।
  • आर्थिक प्रतिद्वंद्विता: राष्ट्रों के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा, विशेष रूप से बाजारों और संसाधनों पर, मौजूदा प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई और युद्ध के लिए आर्थिक प्रेरणाएँ जुड़ गईं।
  • कूटनीति की विफलता: संघर्षों को हल करने के राजनयिक प्रयास अक्सर अप्रभावी या अपर्याप्त थे, जिसके कारण वार्ता विफल हो गई और शत्रुता में वृद्धि हुई।
  • राष्ट्रवादी प्रचार: सरकारों ने जनमत में हेरफेर करने और राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा देने के लिए प्रचार का इस्तेमाल किया, जिससे उनकी आबादी के बीच युद्ध के लिए समर्थन जुटाना आसान हो गया।
  • गठबंधन की प्रणाली: गठबंधन की कठोर प्रणाली का मतलब था कि इन समझौतों के तहत अपने दायित्वों के कारण दो देशों के बीच कोई भी संघर्ष तेजी से बड़े पैमाने पर युद्ध में बदल सकता है, जिसमें कई देश शामिल होंगे।

प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव Effects of World War 1 in Hindi

जानें प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव:

  • आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या: 1914 में आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या से घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई जिसके कारण प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया, जो 1918 तक चला।
  • कई शक्तियों के बीच युद्ध: युद्ध में प्रमुख वैश्विक शक्तियाँ शामिल थीं, जिनमें मित्र राष्ट्र (जैसे ब्रिटेन, फ्रांस और रूस) और केंद्रीय शक्तियाँ (जैसे जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और ओटोमन साम्राज्य) शामिल थीं।
  • सैनिकों की कठोर परिस्थितियाँ:   ट्रेंच युद्ध प्रथम विश्व युद्ध की एक निर्णायक विशेषता बन गई, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिकों को कठोर परिस्थितियों और भारी हताहतों का सामना करना पड़ा।
  • नई नए हथियारों के विकास: इस अवधि के दौरान मशीन गन, जहरीली गैस, टैंक और विमान जैसी तकनीकी प्रगति ने युद्ध में क्रांति ला दी।
  • मुख्य युद्ध: युद्ध में कई महत्वपूर्ण लड़ाइयाँ और आक्रमण हुए, जैसे सोम्मे की लड़ाई (1916) और वर्दुन की लड़ाई (1916), जिसके परिणामस्वरूप भारी जानमाल की हानि हुई।
  • जर्मनी और रूस के बीच युद्ध: रूसी क्रांति के कारण हुए आंतरिक संघर्षों के कारण रूस के पीछे हटने से पहले पूर्वी मोर्चे पर 1914 से 1917 तक जर्मनी और रूस के बीच तीव्र लड़ाई देखी गई।
  • अमेरिका भी युद्ध में शामिल: 1917 में अमेरिकी जहाजों पर जर्मन पनडुब्बी के हमलों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने युद्ध में प्रवेश किया और मित्र राष्ट्रों के पक्ष में संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सामाजिक परिवर्तन: प्रथम विश्व युद्ध ने महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन लाए, जिनमें कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि और मताधिकार आंदोलनों का गति प्राप्त करना शामिल है।
  • वर्साय की संधि: 1919 में हस्ताक्षरित वर्साय की संधि ने आधिकारिक तौर पर प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त कर दिया, लेकिन जर्मनी पर कठोर शर्तें लगा दीं, जो बाद में द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बढ़ते तनाव में योगदान देंगी।
  • कई साम्राज्यों का विनाश: युद्ध ने ऑस्ट्रो-हंगेरियन, ओटोमन, रूसी और जर्मन उपनिवेशों जैसे साम्राज्यों को नष्ट कर दिया, जबकि यूरोप भर में सीमाओं को फिर से परिभाषित किया और राष्ट्रवादी आंदोलनों को जन्म दिया।

प्रथम विश्व युद्ध का परिणाम व अंत Result and End of World War 1 in Hindi

जानें प्रथम विश्व युद्ध के अंतिम परिणाम:

  • वर्साय की संधि और प्रथम विश्व युद्ध का अंत: 28 जून, 1919 को वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर, जिसने आधिकारिक तौर पर युद्ध को समाप्त कर दिया और जर्मनी पर कठोर शर्तें लगा दीं।
  • नए राष्ट्रों का उदय: चार प्रमुख साम्राज्यों – जर्मन, ऑस्ट्रो-हंगेरियन, रूसी और ओटोमन साम्राज्य – के विघटन से नए राष्ट्रों और सीमाओं का उदय हुआ।
  • राष्ट्र संघ की स्थापना: राष्ट्र संघ की स्थापना जनवरी 1920 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य शांति बनाए रखना और भविष्य के संघर्षों को रोकना था।
  • लाखों लोगों की मृत्यु: युद्ध के परिणामस्वरूप भारी जनहानि हुई, लाखों सैनिक और नागरिक मारे गए, जिससे दुनिया भर के समाजों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  • युद्धग्रस्त देशों में आर्थिक तंगी: आर्थिक रूप से, युद्धग्रस्त देशों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा क्योंकि वे अपने बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और संघर्ष के विनाशकारी प्रभावों से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
  • महिलाओं की भूमिकाओं में सकारात्मक बदलाव: सामाजिक रूप से, महिलाओं की भूमिकाएँ महत्वपूर्ण रूप से बदलने लगीं क्योंकि उन्होंने युद्ध प्रयासों के दौरान अधिक जिम्मेदारियाँ संभालीं, जिससे महिला अधिकार आंदोलनों में प्रगति हुई।
  • नई तकनीकों में प्रगति: युद्ध के दौरान हुई तकनीकी प्रगति, जैसे बेहतर संचार प्रणाली और हथियार नवाचार, ने सैन्य रणनीतियों और नागरिक जीवन को आकार देना जारी रखा।
  • राजनीतिक क्षेत्र में कई बदलाव: युद्ध ने कई देशों में राजनीतिक उथल-पुथल भी मचाई, जिसमें रूस (1917) और जर्मनी (1918-1919) की क्रांतियां भी शामिल थीं, जिससे सत्ता की गतिशीलता में महत्वपूर्ण बदलाव आया।
  • नए स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण: आत्मनिर्णय की अवधारणा को प्रमुखता मिली क्योंकि राष्ट्रों ने औपनिवेशिक शक्तियों से स्वतंत्रता की मांग की या जातीय या सांस्कृतिक पहचान के आधार पर राष्ट्रीय सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की मांग की।
  • द्वितीय विश्व युद्ध होने की संभावनाएं: प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम ने असंतोष और अनसुलझे तनाव के बीज बोकर भविष्य के संघर्षों के लिए मंच तैयार किया जो अंततः दो दशक बाद द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।

द्वितीय विश्व युद्ध की जानकारी World War 2 Information in Hindi

द्वितीय विश्व युद्ध की जानकारी World War 2 Information in Hindi

द्वितीय विश्व युद्ध, एक वैश्विक संघर्ष था जो 1939 से 1945 तक चला। इसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएं और लड़ाइयाँ शामिल थीं जिन्होंने इतिहास के पाठ्यक्रम को आकार दिया।

युद्ध सितंबर 1939 में पोलैंड पर जर्मन आक्रमण के साथ शुरू हुआ, जिसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।

जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ता गया, सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी अन्य प्रमुख शक्तियाँ इसमें शामिल हो गईं।

द्वितीय विश्व युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक 1942-1943 में स्टेलिनग्राद की लड़ाई थी। नाज़ी जर्मनी और सोवियत संघ के बीच इस क्रूर टकराव के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ लेकिन अंततः मित्र राष्ट्रों के पक्ष में एक निर्णायक मोड़ आया।

एक और महत्वपूर्ण घटना डी-डे थी, जो 6 जून, 1944 को हुई थी। नॉर्मंडी के समुद्र तटों पर मित्र देशों की सेनाओं के इस विशाल जलथलचर आक्रमण ने पश्चिमी यूरोप को जर्मन कब्जे से मुक्त कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, होलोकॉस्ट जैसी उल्लेखनीय घटनाएँ भी हुईं, जहाँ लाखों यहूदियों और अन्य अल्पसंख्यक समूहों को नाज़ी जर्मनी द्वारा व्यवस्थित रूप से सताया गया और मार दिया गया।

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर विनाशकारी बमबारी के बाद जर्मनी और जापान के बिना शर्त आत्मसमर्पण के साथ 1945 में युद्ध समाप्त हो गया।

द्वितीय विश्व युद्ध के दूरगामी परिणाम हुए जिसने राजनीतिक सीमाओं को नया आकार दिया, प्रौद्योगिकी और चिकित्सा में प्रगति हुई और संयुक्त राष्ट्र जैसे नए अंतर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित हुए।

द्वितीय विश्व युद्ध का कारण Causes of World War 2 in Hindi

जानें द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारण:

  • वर्साय की संधि: प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर लगाई गई कठोर शर्तें, जिनमें बड़े पैमाने पर क्षतिपूर्ति और क्षेत्रीय नुकसान शामिल थे, ने असंतोष और आर्थिक अस्थिरता की भावना पैदा की, जिसने भविष्य के संघर्षों की नींव रखी।
  • फासीवाद का उदय: बेनिटो मुसोलिनी के तहत इटली में और एडॉल्फ हिटलर के तहत जर्मनी में फासीवादी शासन के उद्भव ने आक्रामक विस्तारवादी नीतियों और विचारधाराओं को बढ़ावा दिया जो अन्य देशों पर हावी होने की कोशिश कर रहे थे।-
  • तुष्टिकरण की नीति: नाजी जर्मनी जैसी आक्रामक शक्तियों की मांगों को मानकर संघर्ष से बचने के लिए पश्चिमी शक्तियों, विशेष रूप से ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा अपनाई गई नीति ने केवल उनकी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाया और अंततः शांति बनाए रखने में विफल रही।
  • राष्ट्र संघ की विफलता: प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति बनाए रखने और संघर्षों को रोकने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में स्थापित राष्ट्र संघ की जापान, इटली और जर्मनी की आक्रामकता को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में असमर्थता ने इसकी विश्वसनीयता को कम कर दिया।
  • आर्थिक मंदी: 1930 के दशक में आई महामंदी के कारण वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर बेरोजगारी , गरीबी और सामाजिक अशांति फैल गई। इन गंभीर आर्थिक परिस्थितियों ने चरमपंथी विचारधाराओं को समर्थन हासिल करने के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान की।
  • जापानी विस्तारवाद: प्राकृतिक संसाधनों और क्षेत्र के लिए जापान की इच्छा के कारण 1931 में मंचूरिया पर आक्रमण हुआ और उसके बाद चीन में आक्रामकता हुई, जिससे क्षेत्रीय तनाव पैदा हुआ जो अंततः एक वैश्विक संघर्ष में बदल गया।
  • सामूहिक सुरक्षा की विफलता: आक्रामक कृत्यों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की एकीकृत प्रतिक्रिया की कमी ने जापान, इटली और जर्मनी जैसे देशों को अपनी विस्तारवादी नीतियों को अनियंत्रित रूप से जारी रखने की अनुमति दी।
  • यहूदी विरोधी भावना और प्रलय: हिटलर की यहूदी विरोधी मान्यताओं ने जर्मनी के भीतर यहूदियों पर उसके उत्पीड़न को बढ़ावा दिया, जो अंततः व्यवस्थित नरसंहार में बदल गया, जिसे होलोकॉस्ट के रूप में जाना जाता है, जिससे अत्यधिक पीड़ा हुई और वैश्विक तनाव और गहरा हो गया।
  • ऑस्ट्रिया का एंस्क्लस (एनेक्सेशन): 1938 में ऑस्ट्रिया पर हिटलर के कब्जे ने अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन किया, लेकिन अन्य देशों से न्यूनतम विरोध का सामना करना पड़ा, जिससे क्षेत्रीय विजय के लिए उसकी महत्वाकांक्षाएं बढ़ गईं।
  • कूटनीति की विफलता: संघर्षों को सुलझाने और युद्ध को रोकने के कूटनीतिक प्रयास, जैसे कि 1938 में म्यूनिख समझौता, अप्रभावी साबित हुए क्योंकि हिटलर ने अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीतियों को जारी रखा, जिससे अंततः द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया।

द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव Effects of World War 2 in Hindi

जानें द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभाव:

  • वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण हुई तबाही का वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हुई। इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन का उद्देश्य राष्ट्रों के बीच कूटनीति और सहयोग के माध्यम से भविष्य के संघर्षों को रोकना था।
  • पश्चिमी यूरोप में नाज़ियों से मुक्ति: यूरोप युद्ध के दौरान प्रमुख लड़ाइयों का केंद्र था, जिसमें स्टेलिनग्राद की लड़ाई (1942-1943) सहित प्रमुख संघर्ष शामिल थे, जो मित्र राष्ट्रों के पक्ष में एक निर्णायक मोड़ था, और डी-डे आक्रमण (1944), जिसके कारण पश्चिमी यूरोप को नाज़ी नियंत्रण से मुक्त कराने के लिए।
  • जर्मनी का भारी विनाश: युद्ध का जर्मनी पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, क्योंकि उसे भारी विनाश का सामना करना पड़ा और अंततः पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी में विभाजित हो गया। 1945-1946 में आयोजित नूर्नबर्ग परीक्षणों में नाजी युद्ध अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने की मांग की गई थी।
  • पर्ल हार्बर और जापान पर नूक्लीअर अटैक: एशिया में, जापान के आक्रामक विस्तारवाद के कारण कई संघर्ष हुए, जैसे 1941 में पर्ल हार्बर पर कुख्यात हमला। प्रशांत क्षेत्र में मिडवे की लड़ाई (1942) और ओकिनावा की लड़ाई (1945) जैसी प्रमुख लड़ाइयाँ देखी गईं, जिनकी परिणति जापान में हुई हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमबारी के बाद आत्मसमर्पण।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका का निर्माण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका एक महाशक्ति के रूप में उभरा, जिसने संयुक्त राष्ट्र और नाटो जैसी युद्धोत्तर संस्थाओं को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • भू-राजनीतिक विभजान: युद्ध के परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक परिवर्तन भी हुए, जैसे शीत युद्ध के दौरान यूरोप का पूर्वी और पश्चिमी गुटों में विभाजन।
  • आर्थिक विकास में तेजी: आर्थिक परिणाम दुनिया भर में महसूस किए गए, ब्रिटेन जैसे देशों को युद्ध के बाद गंभीर मितव्ययिता उपायों का सामना करना पड़ा, जबकि अन्य देशों ने तेजी से पुनर्निर्माण और आर्थिक विकास का अनुभव किया।
  • उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन: द्वितीय विश्व युद्ध ने अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों का मार्ग प्रशस्त किया क्योंकि युद्ध में शामिल होने के कारण यूरोपीय शक्तियां कमजोर हो गईं।
  • हिटलर के तानाशाही का अंत:   नाजी जर्मनी द्वारा किए गए नरसंहार अत्याचारों के कारण मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में जागरूकता बढ़ी और नरसंहार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय कानूनों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जर्मनी में तानाशाह हिटलर के आत्मसमर्पण के पश्चात द्वितीय विश्वयुद्ध का मुख्य रूप से अंत माना गया था।
  • विनाश का लंबा असर: द्वितीय विश्व युद्ध के दीर्घकालिक प्रभाव आज भी वैश्विक राजनीति को आकार दे रहे हैं, जो हमें विनाश के लिए मानवता की क्षमता और पुनर्निर्माण और सहयोग की क्षमता दोनों की याद दिलाते हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम व अंत Result and End of World War 2 in Hindi

जानें द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम क्या हुए:

  • संयुक्त राष्ट्र की स्थापना: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 1945 में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के रूप में की गई थी जिसका उद्देश्य राष्ट्रों के बीच शांति, सहयोग और कूटनीति को बढ़ावा देना था। इसने असफल राष्ट्र संघ का स्थान ले लिया और वैश्विक संवाद और संघर्षों के समाधान के लिए एक मंच बन गया।
  • जर्मनी का विभाजन: द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप जर्मनी दो अलग-अलग देशों में विभाजित हो गया – पश्चिमी जर्मनी (जर्मनी का संघीय गणराज्य) और पूर्वी जर्मनी (जर्मन लोकतांत्रिक गणराज्य)। यह विभाजन मुख्य रूप से पश्चिमी सहयोगियों (यूएसए, यूके, फ्रांस) और सोवियत संघ के बीच वैचारिक मतभेदों से प्रेरित था, जिसके कारण बर्लिन भी विभाजित हो गया।
  • शीत युद्ध का युग: द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों और दूसरी तरफ सोवियत संघ और उसके सहयोगियों के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई। इस वैचारिक गतिरोध के कारण हथियारों की होड़, विभिन्न क्षेत्रों में छद्म युद्ध और वैश्विक शक्ति संघर्ष शुरू हुआ जिसने दशकों तक अंतरराष्ट्रीय संबंधों को आकार दिया।
  • विउपनिवेशीकरण आंदोलन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरे अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व में विउपनिवेशीकरण आंदोलनों में वृद्धि देखी गई। पूर्व उपनिवेशों ने ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम और पुर्तगाल जैसी यूरोपीय शक्तियों से स्वतंत्रता की मांग की। उपनिवेशीकरण की इस लहर ने वैश्विक राजनीति को नया आकार दिया और नए राष्ट्र-राज्यों को जन्म दिया।
  • मार्शल योजना: 1948 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूरोप के युद्ध के बाद के पुनर्निर्माण प्रयासों में सहायता के लिए मार्शल योजना शुरू की। इस विशाल आर्थिक सहायता कार्यक्रम ने युद्धग्रस्त देशों को उनके बुनियादी ढांचे, उद्योगों और अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की। इसने यूरोप को तबाही से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • नाटो की स्थापना: 1949 में, पश्चिमी यूरोपीय देशों ने संभावित सोवियत आक्रमण के खिलाफ एक सामूहिक रक्षा गठबंधन के रूप में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का गठन किया। इस सैन्य गठबंधन का उद्देश्य सामूहिक रक्षा उपायों के माध्यम से सदस्य देशों के बीच पारस्परिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था।
  • इज़राइल का निर्माण: 1948 में, इज़राइल राज्य की स्थापना की गई, जिसने प्रलय के बाद यहूदी लोगों को एक मातृभूमि प्रदान की। इस घटना के महत्वपूर्ण भूराजनीतिक निहितार्थ थे, जिससे मध्य पूर्व में चल रहे संघर्ष और आज तक क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार मिल रहा है।
  • परमाणु युग का उदय: द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बमों का विस्फोट देखा गया। इसने मानवता के लिए विनाशकारी परिणामों के साथ परमाणु युग की शुरुआत को चिह्नित किया। परमाणु हथियारों का विकास और प्रसार वैश्विक सुरक्षा के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया।
  • आर्थिक गठबंधनों का गठन: आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य के संघर्षों को रोकने के प्रयास में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद क्षेत्रीय आर्थिक गठबंधनों का गठन किया गया। उदाहरणों में यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय (यूरोपीय संघ का पूर्ववर्ती) शामिल है, जिसका उद्देश्य यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं और दक्षिण पूर्व एशिया में आसियान जैसे संगठनों को एकीकृत करना था।
  • तकनीकी प्रगति: द्वितीय विश्व युद्ध ने विमानन, चिकित्सा, संचार और कंप्यूटिंग जैसे विभिन्न क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति को गति दी। इस अवधि के दौरान जेट इंजन, पेनिसिलिन, रडार सिस्टम और प्रारंभिक कंप्यूटर जैसे नवाचार उभरे, जिन्होंने समाज को बदल दिया और भविष्य की वैज्ञानिक सफलताओं का मार्ग प्रशस्त किया।

तृतीय विश्व युद्ध की जानकारी World War 3 Information in Hindi

तृतीय विश्व युद्ध कब हो सकता है when will world war 3 happen.

तीसरे विश्व युद्ध के सटीक समय की भविष्यवाणी करना असंभव है क्योंकि यह भू-राजनीतिक तनाव, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और अप्रत्याशित घटनाओं जैसे कई जटिल कारकों पर निर्भर करता है। 

हालाँकि हमें सतर्क रहना चाहिए और वैश्विक शांति की दिशा में काम करना चाहिए, लेकिन ऐसी विनाशकारी घटना को होने से रोकने के लिए कूटनीति और संघर्ष समाधान पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।

तृतीय विश्व युद्ध के क्या कारण हो सकते हैं? What Could Be the Reasons for the Third World War? In Hindi

तीसरे विश्व युद्ध के संभावित कारण बहुआयामी और परस्पर जुड़े हुए हैं, जिनमें चल रहे संघर्ष, परमाणु प्रसार, जैविक युद्ध संबंधी चिंताएँ और भू-राजनीतिक तनाव जैसे विभिन्न कारक शामिल हैं।

गठबंधनों या निहित स्वार्थों के कारण विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे युद्धों के बढ़ने और प्रमुख वैश्विक शक्तियों को इसमें शामिल करने की क्षमता है। 

इसके अतिरिक्त, परमाणु हथियारों का खतरा बड़ा है, क्योंकि कई देशों द्वारा ऐसे हथियारों के कब्जे और विकास से भविष्य के संघर्ष में उनके उपयोग का खतरा बढ़ जाता है।

इसके अलावा, जैविक युद्ध क्षमताओं का उद्भव चिंता का एक नया आयाम प्रस्तुत करता है, क्योंकि जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति संभावित रूप से वैश्विक स्तर पर विनाशकारी हमलों को सक्षम कर सकती है।

अंत में, क्षेत्रीय विवादों, संसाधन प्रतिस्पर्धा या वैचारिक मतभेदों से उत्पन्न होने वाले भू-राजनीतिक तनाव मौजूदा संघर्षों को बढ़ा सकते हैं और यदि प्रभावी ढंग से प्रबंधित नहीं किया गया तो संभावित रूप से व्यापक वैश्विक संघर्ष शुरू हो सकता है।

तृतीय विश्व युद्ध के क्या परिणाम हो सकते हैं? What Could Be the Results of World War 3?

यदि ऐसा हुआ, तो विश्व युद्ध 3 के निस्संदेह वैश्विक स्तर पर दूरगामी परिणाम होंगे। हालांकि सटीक परिणामों की भविष्यवाणी करना चुनौतीपूर्ण है, प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के प्रभावों का विश्लेषण कुछ अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकता है।

अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में, प्रौद्योगिकी और हथियार में प्रगति के कारण तीसरे विश्व युद्ध के संभावित रूप से और भी अधिक विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए, परमाणु हथियारों के उपयोग से अद्वितीय विनाश और जीवन की हानि हो सकती है। इस तरह के संघर्ष के परिणाम में संभवतः गंभीर पर्यावरणीय क्षति, लंबे समय तक चलने वाले विकिरण प्रभाव और महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक व्यवधान शामिल होंगे।

इसके अतिरिक्त, पिछले दो विश्व युद्धों की तुलना में, तीसरे विश्व युद्ध में अभूतपूर्व वैश्विक अंतर्संबंध देखने को मिलेगा।

इंटरनेट और सोशल मीडिया के आगमन से सूचना का प्रसार त्वरित और व्यापक होगा। इससे संघर्ष के दौरान जनता में घबराहट और भय बढ़ सकता है, जिससे इसके परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं।

इसके अलावा, आज मौजूद अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों और निर्भरताओं के जटिल जाल को देखते हुए, तीसरे विश्व युद्ध के परिणामस्वरूप व्यापक भू-राजनीतिक पुनर्गठन होने की संभावना है।

जैसे ही नए गठबंधन बनते हैं या मौजूदा गठबंधन टूटते हैं, राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन नाटकीय रूप से बदल सकता है। व्यापार मार्ग बाधित होने और देशों द्वारा संसाधनों को सैन्य प्रयासों की ओर मोड़ने से वैश्विक अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा।

निष्कर्ष (Conclusion)

यदि तीसरा विश्व युद्ध होता है, तो तकनीकी प्रगति और बढ़ती वैश्विक अंतरसंबद्धता के कारण इसके परिणाम प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध की तुलना में कहीं अधिक विनाशकारी होंगे।

गंभीर पर्यावरणीय क्षति के साथ परमाणु हथियारों का संभावित उपयोग मानवता पर स्थायी प्रभाव छोड़ेगा। इसके अलावा, भू-राजनीतिक परिदृश्य और वैश्विक अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण परिवर्तनों से गुजरेगी क्योंकि राष्ट्र ऐसे विनाशकारी संघर्ष के परिणामों से जूझ रहे हैं।

1 thought on “प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व युद्ध Essay World War 1, 2, 3 in Hindi”

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Impact of the First World War | Hindi | History

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Read this article in Hindi to learn about the impact of first world war.

परिणाम की दृष्टि से प्रथम विश्वयुद्ध विश्व-इतिहास का एक वर्तन-बिन्दु था । इसमें जन और धन की जो हानि हुई, वह तो विस्मयकारी थी ही; इसने एक ही साथ कई साम्राज्यों और राजवंशों को ध्वस्त कर दिया । आस्ट्रिया-हंगरी का साम्राज्य बिखर गया और हैप्सबर्ग राजवंश का अन्त हो गया ।

1917 ई॰ में ही रूस की क्रांति ने रोमोनोव राजवंश को समाप्त कर वहाँ गणराज्य की स्थापना कर दी थी और अधिकृत प्रदेशों को स्वतन्त्र कर दिया था । जर्मनी और तुर्की की भी यही दुर्गति हुई । इन तात्कालिक परिणामों के अतिरिक्त प्रथम विश्वयुद्ध के कुछ ऐतिहासिक परिणाम भी निकले, जिनका महत्व अत्यन्त दूरगामी था ।

इस युद्ध में धन-जन का अपार विनाश हुआ । चालीस से कम उम्र के लगभग एक करोड़ लोग मारे गए और लगभग दो करोड़ लोग घायल हुए । 1790 से 1913 ई॰ तक संसार के विभिन्न भागो में होनेवाले सभी प्रमुख युद्धों में जितने सैनिक मारे गए, उससे दुगुने से भी अधिक संख्या में लोग प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए ।

ADVERTISEMENTS:

जनसंख्या की इस भारी क्षति का असर लिंग और उम्र पर भी हुआ । युद्ध में मरनेवालों में औरतों की संख्या बहुत कम थी । इसलिए युद्ध के कारण मर्द और औरत के अनुपात में भारी अंतर आया । इंग्लैण्ड, में 1911 ई॰ में प्रत्येक 1,000 मर्द पर 1067 औरतें थीं । 1921 ई॰ में वहाँ 1,000 मर्द पर 1,093 औरतें थीं । इस असंतुलन के कारण युद्ध के बाद ‘अतिरिक्त महिलाओं’ की समस्या पर बहस हुई ।

यूरोप की जन्मदर जो 1914 ई॰ के पहले ही पतनोन्मुख थी, युद्ध के दौरान तेजी से गिर गयी । इसका कारण यह था कि युद्ध के दौरान पारिवारिक जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था । लेकिन, युद्ध के तुरंत बाद जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई । इस तथ्य का अंदाज 1930 ई॰ में यूरोपीय स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चों के कड़े से लगता है ।

1930 ई॰ में स्कूलों में ग्यारह से पन्द्रह साल की उम्र के बच्चों की संख्या काफी कम थी, जबकि पाँच से दस वर्ष के बच्चों की संख्या काफी अधिक थी । इस ‘उम्र उभार’ की समस्या का असर 1960 ई॰ तक दिखाई पड़ता है ।

संपत्ति के विनाश की दृष्टि से भी यह युद्ध अभूतपूर्व था । युद्ध में सम्मिलित सभी पक्षों को लगभग 18 करोड़ 60 लाख डॉलर खर्च करने पड़े । इसके अतिरिक्त, युद्ध में लगभग 39 अरब डॉलर मूल्य की संतति नष्ट हुई । कुल मिलाकर विभिन्न राष्ट्रों को युद्ध के कारण लगभग 337 करोड़ डॉलर का आर्थिक बोझ उठाना पड़ा । लगभग सभी सरकारों को अपनी वित्तीय स्थिति को नियंत्रित करने के लिए अधिकाधिक संख्या में नोट छापने पड़े जिसके फलस्वरूप मुद्रास्फीति की भयंकर समस्या उठ खड़ी ।

मुद्रास्फीति का तीखा फल सभी वर्ग के लोगों को चखना पड़ा । विशेषकर निश्चित आमदनीवाले लोग तो तबाह हो गए उनकी सामाजिक स्थिति, मान-मर्यादा तथा रहन-सहन के स्तर पर इस वित्तीय स्थिति का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा । युद्ध के समय सभी देशों की सरकारों ने अपार धनराशि ऋण ली थी । इन कर्जों को चुकाने के लिए देश की जनता को वर्षों तक अधिक-से-अधिक कर देना पड़ा ।

प्रथम विश्वयुद्ध ने महिलाओं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया । अधिकांश स्वस्थ पुरुष सेना या सैनिक कार्य में शामिल हो गए थे । अत: कारखानों और दुकानों में, अस्पतालों और स्कूलों में, कार्यालयों और स्वयंसेवी संस्थाओं में महिलाओं की बाढ़ आ गयी यह घटनाक्रम अस्थायी नहीं, बल्कि स्थायी साबित हुआ ।

औरतों ने अब वह काम करना शुरू किया जो पहले केवल पुरुष करते थे । अत: समाज में महिलाओं के स्थान में क्रांतिकारी परिवर्तन आया । पति और पत्नी के सम्बन्ध और विवाह के स्वरूप में क्रांतिकारी परिवर्तन आया । लाखों महिलाओं की विचारधारा बहिर्मुखी हो गयी । महिलाओं ने अब पुरुषों के बराबर अधिकारों का दावा किया । प्रथम महायुद्ध के बाद ही यूरोपीय देशों में औरतों को मताधिकार मिला । 1918 ई॰ में पहली बार ग्रेट ब्रिटेन में ओरतों को मताधिकार मिला ।

खाई की सहभागिता और समान राष्ट्रीय खतरा और मेहनत के कारण उत्पन्न सामाजिक भाईचारे ने वर्ग और संपत्ति के घेरे को अगर पूर्ण रूप से नहीं तोड़ा तो कम-से-कम कमजोर अवश्य किया सामाजिक मान्यताएँ महत्त्वपूर्ण रूप से बदलीं । अमीर और गरीब सबने समान रूप से युद्ध के संकट को झेला ।

मुनाफाखोर और चोरबाजारी करनेवाले घृणा और तिरस्कार के पात्र बने । युद्ध ने आर्थिक समानता के आदर्श को नया प्रोत्साहन प्रदान किया । ”खतरा हम सबको समाजवादी बनाता है ।” यही कारण हे कि प्रथम महायुद्ध के दौरान और उसके बाद समाजवाद का तेजी से विस्तार हुआ ।

प्रथम विश्वयुद्ध का सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक परिणाम था पूँजीवाद के स्वरूप में मौलिक परिवर्तन । पुराना या शास्त्रीय पूँजीवाद उन्मुक्त व्यापार के सिद्धांत पर आधारित था । युद्ध के आरंभ होने के पहले ही सरकारों ने सीमा- शुल्क लगाना, राष्ट्रीय उद्योगों को संरक्षण देना, साम्राज्यवादी विस्तार द्वारा बाजार और कच्चे माल की तलाश करना, श्रमजीवी वर्ग के हित में सुरक्षात्मक सामाजिक कानून बनाना शुरू कर दिया था ।

युद्ध के दौरान सभी युद्धरत देशों की सरकारों ने और अधिक सूक्ष्म रूप से अर्थव्यवस्था को नियंत्रित किया । सचमुच प्रथम विश्वयुद्ध की अवधि में ही नियोजित अर्थव्यवस्था लागू की गई पहली बार एक निश्चित उद्देश्य के लिए राज्य ने सारी संपत्ति, स्रोतों और समाज के नैतिक उद्देश्यों को संचालित करने का प्रयास किया ।

चूँकि किसी को इतनी लम्बी लड़ाई का अन्दाज नहीं था, इसलिए किसी ने भी युद्ध की आवश्यकताओं को पूरा करने की कोई पूर्व-योजना नहीं बनायी थी । इसलिए हर चीज का तत्काल प्रबन्ध किया जाना था । 1916 ई॰ तक युद्ध प्रयासों को समन्वित करने के लिए हर सरकार ने बोर्ड, ब्योरों, कौन्सिल और कमीशन की स्थापना की ।

आवश्यकता इस बात की थी कि कैसे सभी मानव संसाधनों, कच्चे माल और आयातित वस्तुओं का कारगर उपयोग युद्ध के लिए किया जाय । युद्ध की विपत्ति में उत्सुक्त प्रतिस्पर्द्धा की पद्धति को खर्चीला पाया गया और निर्देशनहीन व्यक्तिगत उद्यम को अत्यन्त धीमा और डाँवाँडोल मुनाफे की प्रकृति बदनाम हो गयी । जो व्यापारी वस्तुओं की कमी का फायदा उठाकर मुनाफा कमा रहे थे, उनकी ‘मुनाफाखोर’ कहकर निन्दा की गयी इच्छानुसार व्यवसायियों को कारखाना खोलने और बन्द करने का अधिकार नहीं दिया गया ।

सरकार की अनुमति के बिना कोई नया व्यवसाय शुरू करना असम्भव हो गया, क्योंकि स्टॉक और बॉण्ड का प्रवर्तन नियंत्रित किया गया और सरकार की इच्छानुसार कच्चामाल उपलब्ध कराया गया युद्धोपयोगी वस्तुओं के उत्पादन से सम्बन्धित उद्योगों को बन्द करना असम्भव हो गया । अगर इस तरह के कारखाने घाटे में चल रहे थे या चलने में असमर्थ थे तो सरकार ने घाटा सहकर या आर्थिक सहायता देकर उन्हें चलाया ।

यहाँ भी प्रतिस्पर्द्धा और मुनाफे का आधार त्यागा गया अब नया लक्ष्य था सारे देश के हित में उत्पादन का समन्वय या वैक्तिकीकरण करना मजदूरों को काम के घंटे या मजदूरी के लिए विरोध करने से रोका गया और बड़े-बड़े मजदूर संघों ने हड़ताल से दूर रहने की सहमति दी । उच्च और मध्यमवर्ग के लिए अपनी सुविधाओं को प्रदर्शित करना लज्जाजनक बात हो गयी ।

कम खाना और पुराने कपड़े पहनना देशभक्ति का सूचक था । युद्ध ने समान संकट में धनी और गरीब सबका समर्थन प्राप्त करने के लिए आर्थिक समानता के विचार को नया प्रोत्साहन दिया । पुरुषशक्ति के विनियोजन के लिए सेनिक भरती पहला कदम था सभी सरकारों के समक्ष यह प्रश्न था कि उपलब्ध पुरुष आबादी को सेनिक और असैनिक कार्यों के लिए किस प्रकार वितरित किया जाय, ताकि कोई कठिनाई उसब्र न हो ।

सैनिक आवश्यकता की दृष्टि से पुरुष आबादी के अधिकतम उपयोग के लिए सरकार ने उन उद्योग-धंधों को बन्द कर दिया अथवा उनकी संख्या बहुत घटा दी, जिनका सैनिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं था । सरकार ने न तो लोगों को जबरदस्ती सेना में भरती किया और न किसी व्यवसाय में शामिल होने या उसे छोड़ने के लिए बाध्य किया ।

लेकिन, मजदूरी की दर तय करके, कुछ लोगों को सैनिक भरती से मुक्त कर देने, कुछ उद्योगों को बढ़ाने और कुछ को सीमित करने का आदेश करके और इस विचार का प्रचार करके कि आयुध कारखानों में काम करना देशभक्ति है, सरकार ने काफी संख्या में लोगों को आयुध उद्योगों में जाने की प्रेरणा दी प्रथम महायुद्ध में बँधुआ मजदूरी का प्रयोग नहीं हुआ और न ही युद्धबंदियों से मजदूरी ली गई । लेकिन, जर्मनी ने कहीं-कहीं इस मामले में अंतर्राष्टीय कानून का उल्लंघन अवश्य किया ।

सरकार ने सारे विदेशी व्यापार को नियंत्रित किया । यह असहनीय था कि लोग अपनी इच्छा से राष्ट्रीय संसाधनों का निर्यात विदेशों में करें । नागरिकों द्वारा अनावश्यक वस्तुओं का आयात कर विदेशी मुद्रा का दुरुपयोग करना या प्रतिस्पर्धा द्वारा मूल्य में वृद्धि करना भी सरकार के लिए उतना ही असहनीय था । विदेशी व्यापार पर राज्य का एकाधिकार स्थापित हो गया । प्राइवेट फर्म सज लाइसेंस और कोटा के अंदर चलाए जाने लगे । तटस्थ देश भी इससे प्रभावित हुए ।

उदाहरण के लिए नीदरलैंड की सरकार ने आयात-निर्यात को नियंत्रित करने के लिए नीदरलैंड ओवरसिज ट्रस्ट की स्थापना की । अमेरिका की सरकार ने भी 1917 ई॰ में कानून द्वारा खाद्यान्न और औद्योगिक माल की कीमत को नियंत्रित किया । हर सरकार को एक जहाजरानी बोर्ड की स्थापना करनी पड़ी, ताकि सैनिकों के आवागमन और माल की बुलाई व्यवस्थित रूप से हो सके ।

नियंत्रण और विनियोजन ने अंतत: अंतर्राष्ट्रीय रूप धारण कर लिया । युद्ध के दौरान एक अंतर-मित्रराष्ट्र जहाजरानी कौंसिल जिसका सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका भी था, का गठन किया गया । इंग्लैण्ड और फ्रांस में जहाँ सारे उत्पादक आयात पर निर्भर थे, सरकारी नियंत्रण में आ गये और इस तरह सारी अर्थव्यवस्था सरकार के अधीन आ गयी ।

यहाँ तक कि रूस और पश्चिमी यूरोप की पहुँच से वंचित जर्मनी को अप्रत्याशित रूप से आर्थिक आत्मनिर्भरता की नीति अपनानी पड़ी । युद्ध के अंतिम दिनों में रोमानिया से प्राप्त तेल और यूक्रेन से प्राप्त गेहूँ जर्मनी की आवश्यकताओं के लिए बहुत कम पड़ रहा था । अन्य युद्धरत देशों से जर्मनी अधिक भूखा था अत: जर्मनी को और पक्का और सक्षम सरकारी नियंत्रण स्थापित करना पड़ा जिसे युद्ध-समाजवाद कहा जाता है ।

जर्मनी को वाल्टर रैथनो के रूप में एक प्रतिभावान आयोजक मिल गया । वह एक उद्योगपति था, एक जर्मन विद्युत-ट्रस्ट के मालिक का बेटा था और एक निर्भीक तथा अग्रसोची व्यक्ति था । वह कुछ उन लोगों में एक था जिन्होंने एक लंबी लड़ाई का अनुमान लगाया था । उसे युद्ध के दौरान कच्चे माल के संघटन का प्रभारी बनाया गया था ।

युद्ध के आरंभ में ऐसा लगा कि बारूद बनाने के लिए आवश्यक नाइट्रोजन के अभाव में जर्मनी हार जाएगा । रैथनो ने बहुत तेजी से हर कल्पनीय प्राकृतिक स्रोत यहाँ तक कि किसानों के बीनयार्ड से प्राप्त खाद को भी जमा किया । जर्मन रासायनिक उद्योग में कई और वैकल्पिक वस्तुएँ विकसित की गईं, जैसे सिंथेटिक रबर । रैथनो ने हर उद्योग के लिए एक युद्ध कंपनी का निर्माण करके जर्मन उत्पादन को संघटित किया ।

ये कंपनी एक तरह के ट्रस्ट होते थे जो एक उद्योग से सम्बन्धित विभिन्न व्यावसायिक फर्मों का प्रतिनिधित्व करते थे । सरकारी नियंत्रण में हर कंपनी ने उत्पादन को अधिक-से-अधिक बढ़ाया, कीमतों को नियंत्रित किया, सदस्य फर्मों और प्रतिष्ठानों को कच्चे माल का आबंटन किया और यह निर्धारित किया कि कैसे प्रत्येक खान और कारखाने को उत्पादन करना चाहिए । युद्ध कंपनी प्रतिस्पर्द्धा के निषेध का प्रतीक था और 1890 ई॰ से यूरोप और अमेरिका में ट्रस्ट और एकाधिकार की बढ़ती हुई प्रवृति का विजय था ।

रैथनो सोचता था कि उसकी युद्ध कंपनियाँ प्राइवेट कॉरपोरेशन और सरकारी ब्यूरो के बीच का एक अच्छा रास्ता है और ऐसा विश्वास करता था कि युद्ध के बाद स्थायी तौर पर इसी तरह की व्यवस्था की जाएगी । Of Things to Come नामक अपनी पुस्तक में उसने एक ऐसे औद्योगिक समाज का चित्रांकन किया जिसमें प्रतिस्पर्द्धा और मुनाफाखोरी समाप्त कर दी जाएगी, व्यवस्थापक और मजदूर मिलकर उद्योगों को चलाएँगे, योजना बनाएंगे, आपस में दायित्वों को बाँटेगे और ईमानदारी स लाभ का बँटवारा करेंगे ।

उसके विचारों का प्रभाव युद्ध के बाद जर्मनी और जर्मनी के बाहर अन्य देशों में दिखायी पड़ता है । इसमें हमें रूसी साम्यवाद, जर्मन नाजीवाद और इटालियन फासीवाद की झलक दिखायी देती है । जर्मनी में तो युद्ध ने स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा के प्रति लोगों का विश्वास ही खत्म कर दिया ।

अन्य युद्धरत सरकारों ने भी स्वतंत्र फर्मों और कारखानों के बीच की प्रतिस्पर्द्धा के बदले समन्वय स्थापित किया । फ्रांस में उद्योगपतियों के कान्सॉर्टियम ने विभिन्न उद्योगों के बीच कच्चे माल का आवंटन किया । संयुक्त राज्य अमेरिका में बर्नार्ड ब्रूच के नेतृत्व में युद्ध उद्योग बोर्ड ने भी यही काम किया । ब्रिटेन में भी यह प्रणाली बहुत सफल रही ।

कोई भी सरकार कितना भी कर लगाकर युद्ध के लिए अपेक्षित खर्च नहीं जुटा सकती थी । अत: हर युद्धरत देश को कागजी मुद्रा छापनी पड़ी, भारी बॉण्ड जारी करना पड़ा और बेंको को अधिक-से-अधिक धन मुहैथ्या करने के लिए बाध्य करना पड़ा । वस्तुओं की कमी और मुद्रा के अधिक प्रचलन के कारण मुद्रास्फीति पैदा हुई ।

कीमत और मजदूरी को नियमित किया गया, लेकिन 1914 ई॰ के पहलीवाली कीमत नहीं स्थापित हो सकी । मुद्रास्फीति का सबसे बड़ा भुक्तभोगी वेतनभोगी वर्ग बना जिसकी आमदनी आसानी से नहीं बढ़ सकती थी । वेतनभोगी कर्मचारी और निश्चित आयवाले लोग युद्ध के पहले यूरोपीय समाज में स्थायित्व प्रदान करनेवाला वर्ग था ।

हर जगह युद्ध ने उनकी प्रतिष्ठा, उनके रहन-सहन के स्तर और उनके महत्त्व के लिए खतरा पैदा किया । बढ़ते हुए राष्ट्रीय कर्ज का मतलब था आनेवाले वर्षों में अधिक-से-अधिक करारोपण । दूसरे देशों से लिए गए कर्ज के कारण कर्ज की समस्या और भी गंभीर हो गई । युद्ध के दौरान यूरोपीय देशों ने ब्रिटेन से कर्ज लिया और उन दोनों ने मिलकर संयुक्त राज्य अमेरिका से कर्ज लिया ।

इस प्रकार, उन्होंने अपने भविष्य को बंधक बना दिया । कर्ज चुकाने के लिए उन्हें वर्षों तक आयात की अपेक्षा अधिक निर्यात करने के लिए बाध्य होना पड़ा । यहाँ यह याद रखना चाहिए कि 1914 ई॰ में प्रत्येक विकसित यूरोपीय देश आदतन निर्यात की अपेक्षा आयात अधिक करता था ।

सभी युद्धरत सरकारी ने आर्थिक उत्पादन की तरह विचारों पर भी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया । विचारो की वह स्वतंत्रता, जो लगभग पचास साल से यूरोप में प्रतिष्ठित थी, अब एक तरह से फेंक दी गई । प्रचार और सेसरशिप अधिक कारगर बनाये गए । सरकारी नियंत्रण को चुनौती देने की आदत को नापसंद किया जाने लगा । विरोधी देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हुआ । लंबे संघर्ष, व्यर्थ लड़ाई, अपरिवर्तनीय युद्ध-प्रश्न और भारी क्षति के कारण लोगों का हौसला टूट रहा था ।

सामान्य स्वतंत्रताओं से वंचित अधिक मेहनत करते हुए, साधारण भोजन करते हुए और विजय का कोई लक्षण नहीं देखनेवाले लोगों के हौसले को भावोत्तेजक रूप में बढ़ाये रखना था । पोस्टर, इश्तहार, श्वेत-दस्तावेज, स्कूली किताबों, सार्वजनिक भाषणों, औपचारिक संपादकीय लेखों, समाचारपत्र की रिपोर्टों आदि के द्वारा लोगों का हौसला बढ़ाये रखने की कोशिश की गई । विश्वव्यापी साक्षरता, समाचारपत्रों की भारी संख्या, गतिशील तस्वीरों के द्वारा जनमत को प्रभावित करने का प्रयास किया गया ।

विद्वानों और प्राध्यापकों ने जटिल ऐतिहासिक तर्कों के द्वारा विरोधी देशों की हार की अनिवार्यता की भविष्यवाणी की मित्र देशों में जर्मन कैजर को उग्र आँखो और आवश्यकता से अधिक खड़ी मूँछोंवाले राक्षस के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो सारी दुनिया को जीतने के लिए पागल हो रहा था जर्मन लोगों को उस दिन से डरने के लिए कहा गया जिस दिन कोजेक और सेनेगल के नीग्रो जर्मन महिलाओं पर बलात्कार करेंगे जर्मनी में इंग्लैण्ड को एक ऐसे कट्टर दुश्मन के रूप में चित्रित किया गया, जो नाकेबदी के द्वारा मासूम बच्चों को भूखे मार रहा था ।

हर देश ने अपने पक्ष को सही बताया और दूसरे को गलत, दुष्ट और बर्बर के रूप में प्रस्तुत किया । इस भयावह संघर्ष में उत्तेजित जनमत ने पुरुष और महिलाओं को ढ़ाढ़स बँधाया । लेकिन, जब शांति स्थापित करने का समय आया तो इन्हीं पूर्वाग्रहों, दृढ़ विचारों, गहरी धृणा, भय और उदासीनता के कारण स्थायी शांति स्थापित करना मुश्किल साबित हुआ ।

लेकिन, प्रथम विश्वयुद्ध का इससे भी महत्त्वपूर्ण और दूरगामी परिणाम था विश्व- राजनीति पर से यूरोपीय प्रभुत्व के समाप्त होने के युग का प्रारम्भ । अभी तक सारे विश्व में यूरोप की तूती बोलती थी । यूरोपीय देश सारे विश्व को कठपुतली की तरह नचाया करते थे और उनका विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी । प्रथम विश्वयुद्ध ने उन प्रक्रियाओं को आरम्भ कर दिया, जिनके फलस्वरूप यूरोपीय प्राधान्य के इस युग के अन्त की शुरुआत हो गयी ।

युद्ध की समाप्ति के तुरत बाद यूरोप के पतन के सभी लक्षण एक ही साथ देखने को मिले । विश्वयुद्ध के बाद पेरिस में शान्ति-सम्मेलन शुरू हुआ । इससम्मेलन में केवल यूरोप के राष्ट्र ही नहीं, वरन् एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के राष्ट्र भी सम्मिलित हुए थे और सम्मेलन में लिये गये निर्णयों में उनका प्रमुख हाथ था पच्चीस-तीस वर्ष पहले इस तरह की घटना की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी ।

युद्धोत्तर काल में संसार का सबसे महान् व्यक्ति कोई यूरोपीय राजनेता नहीं, वरन् संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति वुडरो विल्सन था, जिसकी खुशामद में विजित और विजेता दोनों पक्ष लगे हुए थे । गैर-यूरोपीय महादेशो के राजनेताओं की जो भूमिका पेरिस शान्ति-सम्मेलन में रही, उसने इस बात को प्रमाणित कर दिया कि वह समय गुजर चुका हे, जिसमें यूरोपीय नेता आपस में ही संपूर्ण विश्व के मामलों को तय कर लिया करते थे ।

इस शान्ति-सम्मेलन ने राष्ट्रसंघ की भी स्थापना की । राष्ट्रसंघ की स्थापना विश्व के यूरोपीय तथा गैर-यूरोपीय भागो के बीच बदलते हुए सम्बन्ध का सर्वाधिक स्पष्ट लक्षण था । यह 1815 ई० के यूरोपीय कन्सर्ट से भिन्न था, क्योंकि इसके सदस्य राज्य केवल यूरोप के देश ही नहीं, वरन् संसार भर के देश थे । युद्ध के पहले चूरोपीय शक्तियों के निर्णयों को गैर-यूरोपीय विश्व द्वारा कभी चुनौती नहीं दी गयी थी ।

लेकिन, अब राष्ट्रसंघ की स्थापना के साथ उनकी नीति और आचरण को भी नियमित और नियन्त्रित किया जा सकता था तथा उन्हें छोटी-छोटी शक्तियों के समुख जवाब देने को बाध्य किया जा सकता था ।

बदली हुइ आर्थिक परिस्थिति ने यूरोप के पतनोन्मुख होने का एहसास कारगर ढंग से कराया । यह युद्ध बड़ा ही व्ययसाध्य और खर्चीला था । अपार खर्चों की पूर्ति करारोपण से नहीं हो सकती थी । अत: सभी सरकारो को ऋण लेना पड़ा और यह ऋण एकमात्र संयुत्त राज्य अमेरिका से ही मिल सकता था । इस कारण अमेरका की तुलना में यूरोप की अर्थिक स्थिति में स्पष्ट गिरावट आयी ।

यूरोपीय शक्तियाँ कर्ज देनेवाली शक्तियों की जगह कर्ज लेनेवाली शक्तियों की कोटि में आ गयीं । अमेरिका से कर्ज लेकर यूरोपीय राष्ट्रों ने अपने भविष्य को बंधक रख दिया । वर्षों तक उन्हें अपने आयात से अधिक निर्यात करने को बाध्य होना पड़ा ।

प्रथम विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप गैर-यूरोपीय राष्ट्रों में लगायी जानेवाली पूँजी में भारी कमी आयी तथा दूसरे महादेश में होनेवाले आर्थिक विकास को यूरोपीय राष्ट्रों द्वारा प्रभावित करने के अवसर कम होने लगे । युद्ध के दिनों में यूरोपीय राष्ट्रों ने अपने औद्योगिक उत्पादनों को युद्धोन्मुखी कर दिया था । इस कारण उनका आयात-व्यापार पूरी तरह ठप्प पड़ गया ।

फलत: गैर-यूरोपीय देशों को अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपने आर्थिक जीवन को पुनर्व्यवस्थित करना पड़ा । यूरोप चार वर्षों तक युद्ध में फँसा रहा इसी बीच शेष दुनिया ने अपने औद्योगीकरण की गति बढ़ा दी । अमेरिका की उत्पादन-क्षमता बहुत ही बढ़ गयी । जापानियों ने एशिया और दक्षिणी अमेरिका के देशों को अपना बाजार बना लिया जहाँ पहले यूरोपीय देशों का एकाधिकार था अर्जेण्टीना और ब्राजील ने रेलवे इंजनों के पुर्जे तथा खनन-सम्बन्धी यन्त्रों को इंग्लैण्ड से प्राप्त करने में असमर्थ होकर इनका उत्पादन स्वयं प्रारम्भ कर दिया । पहले के अविकसित देश नयी परिस्थिति में अब औद्योगीकरण के पथ पर बढ़ चलने को तैयार बैठे थे और 1920 ई॰ के दशक में इन्होंने उल्लेखनीय प्रगति भी की ।

इसी तरह का आर्थिक विकास भारत में भी हुआ । पश्चिमी एशिया के युद्ध-स्थलों पर सामान पहुँचाने के लिए यह आवश्यक हो गया कि भारत के ओद्योगीक विकास को प्रोत्साहन दिया जाय । युद्ध की आवश्यकता ने ब्रिटिश सरकार को बाध्य कर दिया कि वह भारत के औद्योगिक विकास पर लगाये गये बंधनों को हटाये ।

इसी समय धनी पारसियों का टाटा परिवार सामने आया । उसने असंख्य औद्योगिक प्रतिष्ठान विकसित किये । इनमें से एक बिहार का टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी ब्रिटिश साम्राज्य का सबसे बड़ा इस्पात का कारखाना बन गया । विश्व बाजार से जर्मनी के पूर्णत: बाहर हो जाने, ब्रिटेन और फ्रांस के मुश्किल से महज अपने लिए उत्पादन कर पाने तथा विश्व जहाजरानी के पूर्णत: युद्ध-सम्बन्धी कार्यों में लग जाने के कारण विश्व के कारखाने के रूप में पश्चिम यूरोप का स्थान अब गौण पड़ गया । आर्थिक क्षेत्र में यूरोप के कई नये और तगड़े प्रतिद्वन्द्वी पैदा हो गये । स्पष्ट था कि यह विश्व पर यूरोपीय प्रभुत्व के युग की गोधूलि की बेला थी ।

राजनीतिक क्षेत्र में भी यूरोप को गैर-यूरोपीय उपनिवेशों से भारी चुनौती मिलने लगी तथा यूरोपीय शासकों और औपनिवेशिक गुलाम जनता के बीच के सम्बन्धों में एक नया परिवर्तन परिलक्षित हुआ । युद्ध के समय मित्र और सहयोगी राष्टों ने बड़े- बड़े और लुभावने नारे लगाये थे । संसार को प्रजातन्त्र के लिए सुरक्षित करने की बातें कही गयी थीं और आत्मनिर्णय के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया था । इससे पराधीन लोगों के मन में एक नयी आशा का संचार हुआ था और वे उम्मीद करने लगे थे कि युद्धोपरान्त उन्हें भी स्वशासन का अधिकार मिलेगा ।

लेकिन, युद्ध खत्म होते ही साम्राज्यवादी राज्यों का उपनिवेशों के साथ वही पुराना व्यवहार शुरू हो गया, जिसके फलस्वरूप उपनिवेशों में घोर निराशा का वातावरण छा गया । अत: अब उपनिवेशों में साम्राज्यवादी शासन का सशक्त विरोध शुरू हुआ । सोया हुआ राष्ट्रवाद जग गया और यूरोपीय देशों को अपने उपनिवेशों में जबरदस्त राष्ट्रीय आन्दोलनों का मुकाबला करना पड़ा और पराधीन लोगों ने विश्व-राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना शुरू किया ।

उपनिवेश और राष्ट्रवाद के मुकाबले में राष्ट्रवादियों को बोल्शेविक रूस से मदद मिलने लगी । क्रांति के पूर्व रूस स्वयं एक साम्राज्यवादी देश था, लेकिन क्रांति के बाद उसने पराधीन जातियों का पक्ष लेना शुरू कर दिया । रूस में कामिण्टर्न की स्थापना हुई और इस क्रांतिकारी संगठन ने उपनिवेशवासियों को साम्राज्यवाद के विरुद्ध भड़काना शुरू किया ।

विश्व पर यूरोपीय नियन्त्रण के विरुद्ध किए जानेवाले सभी आन्दोलनों को रूस द्वारा समर्थन मिलने के कारण विश्व पर यूरोपीय प्रभुत्व के युग का अन्त दृष्टिगोचर होने लगा । इस प्रकार, प्रथम ‘विश्वयुद्ध’ अपने परिणामों के साथ एक युग-प्रवर्तक घटना प्रमाणित हुआ, क्योंकि इसने विश्व के नक्शे पर यूरोपीय प्रभुत्व के समाप्त होने के युग को प्रारम्भ किया ।

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युद्ध के लाभ और हानियां, Advantages & Disadvantages of War Essay in Hindi

Advantages-Disadvantages-of-War-Essay-in-Hindi, युद्ध के लाभ और हानियां

युद्ध का अवसर को कम करने और शांति को बढ़ाने के लिए, समाज में शिक्षा , साक्षरता , और सामाजिक सचेतनता को बढ़ाने का प्रयास कर सकते हैं। साथ ही, संघर्षों और विवादों को निपटाने के लिए विपक्षियों के बीच संवाद और बातचीत को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

एक व्यक्ति, समाज, या राष्ट्र को शांति की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि सभी एक साथ मिलकर काम करें और समस्याओं का समाधान ढूंढें।

युद्ध और विवादों को अधिकतम सीमा तक कम करने के लिए, व्यक्ति, समाज, और राष्ट्रों को एक और दूसरे के साथ सहयोग करना होगा। यह उदार दृष्टिकोण और बातचीत कौशल की महत्वपूर्णता को समझाता है।

यह समय लग सकता है, लेकिन इस प्रकार के अभियान से युद्धों का अवसर कम हो सकता है और शांति की दिशा में समृद्धि हो सकती है। आखिरकार, यह व्यक्ति, समाज, और राष्ट्र की सामर्थ्य और सामर्थ्य का परिणाम होता है कि युद्धों का अवसर कम हो और शांति बनी रहे।

युद्ध का किसी को लाभ नहीं होता

यह युद्ध एक अत्यधिक गंभीर और नुकसानकारी प्रक्रिया है, जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष आमने-सामने होते हैं और विभिन्न तरह के हथियारों का उपयोग करते हैं। यह आमतौर पर राष्ट्रों या देशों के बीच विवादों या विवादों के कारण उत्पन्न होता है। युद्ध के दौरान लोगों की जान, संपत्ति और सामाजिक संरचनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

युद्ध से लोगों के बीच विश्वास, समझौता और सद्भावना की भावना गायब हो सकती है। यह विभिन्न समाजों और समुदायों के बीच भी विभाजन और असमंजस को उत्पन्न कर सकता है।

युद्ध से बचने के लिए, लोगों को सामाजिक समझौते, विभाजन और विवादों को सुलझाने के लिए विभिन्न तरह के संवादित और विपक्षियों के बीच बातचीत को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।

शांति और सद्भावना के माहौल को बढ़ाने के लिए, समाज और राष्ट्रों को साथियों के रूप में काम करने और एक और दूसरे की भलाई के लिए प्रतिबद्ध रहने की जरूरत है। इस प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक संरचनाओं के माध्यम से हम युद्ध के अवसरों को कम कर सकते हैं और विश्व भर में शांति और सद्भावना को बढ़ा सकते हैं।

युद्ध किसी समस्या का स्थायी हल नहीं इससे देश को आर्थिक नुकसान होता है

देखा जाये तो युद्ध किसी समस्या का स्थायी हल नहीं है और उसके परिणामस्वरूप देशों को विभिन्न रूपों में आर्थिक, सामाजिक और मानसिक नुकसान हो सकता है।

युद्ध के दौरान लोगों की जान, ज्यादातर निर्दोष लोगों की, जाती है और संपत्ति का नुकसान होता है। यह आर्थिक नुकसान का कारण बनता है और देश की विकास गतिविधियों को विफल कर सकता है। युद्ध के बाद, रिसोर्सेज और संसाधनों को पुनः निर्माण करने में समय और पूंजी की खपत होती है।

साथ ही, युद्ध आर्थिक अस्थिरता को बढ़ा सकता है, और बाजारों, उद्योगों और लोगों के आपसी विश्वास में कमी आ सकती है। युद्ध के परिणामस्वरूप समाजों में विश्वास और समझौते की भावना घट सकती है, जो दोबारा सामाजिक और आर्थिक विकास की मार्गदर्शक को हार जनक बना सकता है।

इसलिए, युद्ध को एक अंतिम विकल्प के रूप में नहीं देखा जाता चाहिए, बल्कि उसे ऐकांतिक समस्या को सुलझाने के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए। शांति और विश्वास के माहौल को बढ़ाने के लिए साक्षरता, शिक्षा, विपक्षियों के साथ बातचीत और अन्य सामाजिक उपायों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

युद्ध का दीर्घकालिक प्रभाव

युद्ध का दीर्घकालिक प्रभाव विभिन्न रूपों में देशों और समाजों के जीवन पर बहुत गहरा पड़ता है। यहाँ कुछ दीर्घकालिक प्रभावों की उल्लेखनीय की जा रही है:

  • आर्थिक नुकसान: युद्ध के दौरान और उसके बाद अधिकांश मामूली लोगों को आर्थिक नुकसान होता है। उद्योग, कृषि, व्यापार और अन्य आर्थिक गतिविधियों का विकास रुक सकता है और अस्थिरता बढ़ सकती है।
  • सामाजिक परिवर्तन: युद्ध समाज की संरचनाओं और सामाजिक तंत्रों को परिवर्तित कर सकता है। व्यक्तियों की सोच और व्यवहार में बदलाव हो सकता है और उनके बीच विश्वास और समझौते की भावना कम हो सकती है।
  • मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: युद्ध के दौरान और उसके बाद लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दुर्भाव डाल सकता है। चिंता, डिप्रेशन, पोस्ट-ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • विकास का रुकावट: युद्ध विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गति को धीमा कर सकता है, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाएं। इसके परिणामस्वरूप उदाहरण क्षेत्रों में जनसंख्या की सेवाओं को प्रभावित किया जा सकता है।
  • जीवन की गुणवत्ता: युद्ध के बाद लोगों की जीवन की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। शिक्षा, स्वास्थ्य , और अन्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता पर दुर्भाव हो सकता है।

इन प्रभावों के साथ-साथ, युद्ध का दीर्घकालिक प्रभाव विभिन्न तरीकों से दिख सकता है और यह विविधता की शक्ति, समृद्धि और स्थितिक अधिकारों के परिणामस्वरूप भी हो सकता है।

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उदाहरण के तौर पर युद्ध का दीर्घकालिक प्रभाव

यूरोप में तीस साल की युद्ध के दौरान, उदाहरण के रूप में, जर्मन राज्यों की जनसंख्या लगभग 30% घट गई थी। स्वीडिश सेनाओं ने अकेले जर्मन में लगभग 2000 किले, 18,000 गांव और 1500 शहरों को नष्ट किया हो सकता है, जिसमें से एक-तिहाई हिस्सा जर्मन शहरों का था।

1860 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर, अमेरिकी गृह-युद्ध में 13 से 50 वर्षीय सभी सफेद अमेरिकी पुरुषों का 8% नुकसान हुआ था। पहले विश्व युद्ध में उत्सर्गीकृत 60 मिलियन यूरोपीय सैनिकों में से 8 मिलियन की मौके पर मौत हुई, 7 मिलियन को स्थायी रूप से अक्षम किया गया, और 15 मिलियन को गंभीर चोटें आईं।

द्वितीय विश्व युद्ध के लाभों के लिए कुल युद्ध-हत्याओं का अनुमान विभिन्न है, लेकिन अधिकांश यह सुझाव देते हैं कि युद्ध में लगभग 60 मिलियन लोगों की मौत हुई, जिसमें लगभग 20 मिलियन सैनिक और 40 मिलियन नागरिक शामिल थे। सोवियत संघ ने युद्ध के दौरान लगभग 27 मिलियन लोगों को खो दिया था, जिसमें से युद्ध के कुल हत्याओं का लगभग आधा हिस्सा था। एक अकेले शहर के नागरिक मृत्युओं की सबसे बड़ी संख्या लेनिंग्राड के 872 दिनों के लंबे घेरे के दौरान 12 लाख नागरिकों की थी।

युद्ध के लाभ

युद्ध के लाभ कुछ विशेष परिस्थितियों में प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन यह नकारात्मक समस्याओं और नुकसानों के साथ आते हैं। यहाँ कुछ स्थितियों में युद्ध के लाभों का उल्लेख किया गया है:

  • आर्थिक उत्थान: कुछ विश्वास करते हैं कि युद्ध एक देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकता है, विशेष रूप से युद्ध उत्सर्ग उत्थान क्षेत्रों में। युद्ध उत्सर्ग समय में रोजगार की वृद्धि कर सकते हैं और उत्पादन को बढ़ा सकते हैं।
  • सामर्थ्य और विजय: युद्ध एक देश की सामर्थ्य और जीत की भावना को बढ़ा सकता है। विजयी युद्ध परिणामस्वरूप राष्ट्र को आत्म-विश्वास मिलता है और उसका स्थान विश्व में मजबूत होता है।
  • राष्ट्रीय एकता: युद्ध के दौरान राष्ट्र की एकता और सैमरिटी की भावना बढ़ सकती है। लोग अपने राष्ट्र के लिए साथीपन का भाव रखते हैं और एकजुट होते हैं।
  • तकनीकी उन्नति: युद्ध और संघर्ष विज्ञान, तकनीक और उत्पादन में नई तकनीकों और उन्नतियों की विकास को बढ़ा सकते हैं।
  • आत्म-प्रागतिपूर्ति: कुछ लोग युद्ध को अपने राष्ट्र या जाति की स्वार्थ के लिए आत्म-प्रागतिपूर्ति का माध्यम मानते हैं।

हालांकि, यह जरूरी है कि युद्ध के प्रभावों को देखते हुए यह निर्णय लिया जाए कि विभिन्न सामर्थ्य और विचारधाराओं का सम्मान किया जाना चाहिए, ताकि शांति और सौहार्द की दिशा में काम किया जा सके।

युद्ध से हानियां

एक युद्ध से विभिन्न प्रकार की हानियाँ हो सकती हैं, जो व्यक्तियों, समुदायों, और राष्ट्रों को प्रभावित कर सकती हैं। यहाँ कुछ आम हानियों के उदाहरण दिए जा रहे हैं:

  • मानव जीवन की हानि: युद्ध के दौरान और उसके बाद, लोगों की जान, स्वास्थ्य, और सुरक्षा को खतरे में डाला जाता है। युद्धीन अन्याय, अत्याचार, और जनसंख्या की उत्पीड़न जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • आर्थिक नुकसान: युद्ध आर्थिक विसंगतियों का कारण बन सकता है, जिससे लोगों का रोजगार खो जाता है, उद्यमिता धीमी हो जाती है और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
  • सामाजिक और सांस्कृतिक नुकसान: युद्ध समाज की संरचनाओं और सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट कर सकता है। समुदायों और जातियों के बीच विवाद और विभाजन भी हो सकते हैं।
  • वातावरणीय अस्थिरता: युद्ध से पर्यावरण में अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। विनाशकारी वस्तुएं, अपशिष्ट, और प्रदूषण के प्रवाह के कारण पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
  • मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: युद्ध के दौरान और बाद में लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दुर्भाव हो सकता है। चिंता, डिप्रेशन, और पोस्ट-ट्रौमेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर (PTSD) जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

युद्ध के दीर्घकालिक प्रभावों को देखते हुए, शांति, समझौता, और विवादों के सुलझाव के लिए साक्षरता, बातचीत, और औद्योगिक उपायों को बढ़ावा देना आवश्यक है।

युद्ध का निष्कर्ष यह है कि यह एक अंतिम विकल्प नहीं होना चाहिए। युद्ध से होने वाले नुकसानों और हानियों को देखते हुए, हमें विभिन्न उपायों और सामर्थ्यों का सम्मान करना चाहिए जो शांति, समझौता, और सुलझाव की दिशा में काम करें। युद्ध के विकल्पों से पहले, हमें साक्षरता, विद्या, और बातचीत के माध्यम से विवादों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए व्यक्तिगत, सामाजिक, और राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। इससे समाजों और राष्ट्रों के बीच विश्वास और समझौते की भावना बढ़ सकती है, जो दोबारा सामाजिक और आर्थिक विकास की मार्गदर्शिका को सहयोगी बना सकता है।

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युद्ध और शांति पर निबंध

War and Peace Essay in Hindi

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युद्ध और शांति पर निबंध | War and Peace Essay in Hindi

वर्तमान में मनुष्य पृथ्वी का सबसे शक्तिशाली प्राणी है जिसने पृथ्वी के समस्त प्राणियों पर अपना दबदबा कायम किया है। मनुष्य आज इतना शक्तिशाली हो चुका है कि वह पृथ्वी के बाहर अन्य ग्रहों में भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने में लगा हुआ है। लेकिन इतनी शक्ति अर्जित कर लेने के बाद मनुष्य में एक तरह का अहंकार पनप चुका है। अपने अहंकार में वह इतना अंधा हो चुका है कि वह खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के लिए कई जिंदगियां तबाह करने से पीछे नहीं हटता। मनुष्य के मन में आज अधिक से अधिक शक्तियां हासिल कर खुद को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की होड़ लगी हुई है। वह चाहता है कि वह पूरे विश्व में शासन कर सके। उसकी इसी लालसा ने युद्ध को जन्म दिया।

युद्ध तबाही का दूसरा नाम है आज तक कोई भी युद्ध ऐसा नहीं हुआ है जिसने रक्त की बलि न ली हो। युद्ध से कभी किसी का फायदा नहीं हुआ। इसने हारने वाले पक्ष के साथ-साथ जीतने वाले पक्ष को भी बराबर प्रभावित किया है। युद्ध की वजह से देश में एक अशांत वातावरण का जन्म होता है जिससे देश का विकास संभव नहीं हो पाता। ऐसे में शांति की स्थापना जरूरी है।

युद्ध का अर्थ क्या है?

युद्ध मुख्यतः घर के सदस्यों के बीच होने वाले आपसी लड़ाई झगड़ों से अलग होता है क्योंकि घर में होने वाले झगड़े अल्पकालिक होते हैं तथा इससे ज्यादा हानि नहीं होती। इसमें जल्द ही स्थिति काबू में आ जाती है और शांति की स्थापना होती है। वहीं दूसरी ओर युद्ध इसी लड़ाई झगड़े की चरम स्थिति है। एक तरफ घरेलू लड़ाई झगड़े जहां अल्पकालिक होते हैं वही युद्ध दीर्घकालिक होता है। इसमें विभिन्न देशों के बीच हथियारों समेत एक आक्रामक लड़ाई होती है और यही लड़ाई आगे जाकर महायुद्ध में तब्दील हो जाती है।

युद्ध के पीछे क्या कारण होते हैं?

कोई भी युद्ध बिना किसी कारण के नहीं होता युद्ध में दो पक्षों के बीच में कोई न कोई ऐसा कारण जरूर होता है जो उन्हें युद्ध के लिए तैयार करता है। नीचे कुछ ऐसे ही कारणों का जिक्र किया जा रहा है जो कि निम्नलिखित है:-

  • साम्राज्यवाद

साम्राज्यवाद युद्ध के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है। मनुष्य ज्यादा से ज्यादा शक्तियां हासिल करने के लिए ज्यादा क्षेत्र में अपना अधिकार करना चाहता है। उसकी विस्तारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप साम्राज्यवाद का जन्म होता है। अपनी शक्ति के विस्तार के लिए मनुष्य सत्ता और साम्राज्य हासिल करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है जिनमें से युद्ध एक है। साम्राज्यवाद की वजह से कई देशों को गुलामी की दास्तां से गुजरना पड़ा है।

यह युद्ध होने के सबसे बड़े कारणों से एक है। कई देशों के आर्थिक हित एक ही जगह से संबंधित होते हैं। इन आर्थिक हितों में टकराव के चलते दो देशों के बीच में तनाव की स्थिति बनती है।

  • धार्मिक, सांस्कृतिक कारण

युद्ध होने के पीछे कई धार्मिक व सांस्कृतिक कारण होते हैं। यदि इतिहास पर गौर फरमाएं तो तब भी कई धर्म युद्ध हो चुके हैं। कई देश यह चाहते है कि उसकी संस्कृति को अन्य देश जाने और पहचाने। कभी-कभी वह अपनी संस्कृतियों को दूसरे देशों पर थोपने का भी प्रयास करता है। जो युद्ध का कारण बनता है।

युद्ध का परिणाम

हमेशा देखा गया है युद्ध का परिणाम कभी सकारात्मक नहीं हुआ है। युद्ध हमेशा ही तबाही लेकर आया है जिससे देश में हाहाकार मच जाता है। युद्ध की वजह से हजारों वर्षों से संचित साहित्य, संस्कृति, ज्ञान विज्ञान पर बुरा असर पड़ता है। युद्ध का परिणाम देश के विकास में भी बाधा डालता है। यह कभी भी लोगों के लिए भलाई नहीं लेकर आया है क्योंकि इससे न जाने कितने बसे-बसाए घर उजड़ जाते हैं। कितनी महिलाएं अपना सुहाग खो देती हैं तो कितनी माताएं अपने बेटों को खो देती हैं।

युद्ध की आवश्यकता

यदि प्राचीन भारत पर गौर फरमाएं तो आप जान सकेंगे कि हमारे देश के कई महापुरुषों ने युद्ध को रोकने की भरसक कोशिशें की हैं। महाभारत में ही भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर आए। उन्होंने कौरवों की सभा में जाकर युद्ध रोकने के प्रयास किए।

यह था युद्ध का पहला पक्ष अब हम युद्ध के दूसरे पहलू को उठा कर देखेंगे। कई बार युद्ध किसी देश के लिए वरदान भी साबित होता है तथा यह शांति स्थापित करने के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है। जहां युद्ध किसी देश में अशांति का कारण बनता है वही यह कई बार किसी देश में शांति स्थापित भी करता है क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि ना चाहते हुए भी मजबूरी में किसी देश को युद्ध में कूदना पड़ता है, जिससे वे अपने देश के स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा कर सकें। इसका ताजा उदाहरण है चीन का भारत पर आक्रमण जिसके जवाब में भारत को चीन के सामने सीना चौड़ा कर खड़ा होना पड़ा जिससे वह अपने देश की रक्षा कर सकें।

युद्ध से किसी देश में विद्यमान पापी, अधर्मी और भ्रष्टाचारी लोगों की समाप्ति की जा सकती है इसीलिए ऐसे लोगों के विनाश में युद्ध एक वरदान साबित होता है।

शांति की स्थापना है जरूरी

कहा जाता है कि एक अशांत मन से किया गया कोई भी कार्य सफल नहीं होता। उसी तरह से एक अशांत देश कभी भी विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता। ऐसा कौन सा शख्स है जो अपने जीवन में शांतिपूर्ण तरीके से रहना नहीं चाहता। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि वह शांति से अपना जीवन काटे। यही वजह है कि युद्ध की स्थिति से बचने और देश में शांति की स्थापना के लिए समझौते किए जाते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध में म्यूनिख समझौता किया गया था। यह समझौता ब्रिटेन के द्वारा किया गया था इसका कारण था कि ब्रिटेन हिटलर से लड़ने में सक्षम नहीं था। इसीलिए यह समझौता किया गया था। अतः कहा जा सकता है कि विनाशकारी स्थितियों से बचने के लिए शांति की स्थापना एकमात्र उपाय है।

स्थाई शांति

जिस तरह युद्ध के दो पक्ष होते हैं उसी तरह शांति के भी दो पक्ष होते हैं। स्थाई शांति, शांति के उस प्रकार को कहते हैं जो युद्ध में अर्जित की गई शांति के बराबर होती है। इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। भारत और पाकिस्तान के बीच कभी भी संबंध अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि रोजाना दोनों के मध्य युद्ध होते रहते हैं। इसका कारण है कि भारत ने पाकिस्तान में डर पैदा किया है कि वह उसके प्रत्येक आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब देगा। इसलिए पाकिस्तान ने अपने कदम खींच रखे हैं और आज देश में शांतिपूर्ण माहौल बना हुआ है तथा हम युद्ध की विभीषिका से बचे हुए हैं।

विश्व शांति की जरूरत

समस्त मानव जाति को विनाश से बचाने के लिए विश्व के कई कोनों से विश्व शांति की मांग उठाई जा रही है। हमारे देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं अहिंसा का सिद्धांत दिया उनका कहना था शांति स्थापित करने के लिए कभी भी हिंसा का सहारा नहीं लिया जा सकता। महात्मा गांधी ही नहीं बल्कि हमारे देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी पंचशील को जन्म दिया था। विश्व भर में युद्ध की स्थिति से बचने के लिए कई संगठन बनाए गए हैं जो इस पर अपनी आवाज उठाते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि युद्ध विनाश का दूसरा नाम है। युद्ध मनुष्य की तबाही का कारण बनता है इसीलिए हमेशा युद्ध को रोकने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए। लेकिन कई बार देखा गया है कि युद्ध शांति की राह भी अख्तियार करता है। भारत जैसा देश अपने दुश्मन पड़ोसी देशों से घिरा हुआ है। भविष्य को लेकर वह निश्चित नहीं है कि कब कौन सा देश भारत में आक्रमण कर दे। इसीलिए भारत में शांति की स्थापना करने के लिए जरूरी है कि भारत को शक्ति संतुलन में भागीदारी लेना चाहिए। उसके पास कम से कम इतनी शक्ति तो होनी चाहिए कि यदि उस पर कोई आक्रमण कर देता है तो वह उसका मुंह तोड़ जवाब दे सके।

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Bharti

भारती, मैं पत्रकारिता की छात्रा हूँ, मुझे लिखना पसंद है क्योंकि शब्दों के ज़रिए मैं खुदको बयां कर सकती हूं।

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1 Essay on War International Problem | युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर निबंध

हैल्लो दोस्तों कैसे है आप सब आपका बहुत स्वागत है इस ब्लॉग पर। हमने इस आर्टिकल में Essay on War International Problem in Hindi पर 2 निबंध लिखे है जो कक्षा 5 से लेकर Higher Level के बच्चो के लिए लाभदायी होगा। आप इस ब्लॉग पर लिखे गए Essay को अपने Exams या परीक्षा में लिख सकते हैं ।

क्या आप खुद से अच्छा निबंध लिखना चाहते है – Essay Writing in Hindi

युद्ध अन्तर्राष्ट्रीय समस्या पर निबंध – Essay on War International Problem (850 Words)

यद्यपि विचारको ने मानव-जीवन को युद्ध का मैदान कहा है। डॉ. चन्द्रशेखर भटट ने कहा कि जिसमें वे ही जीवित रहने के अधिकारी हैं जो इस संघर्ष में पार उतरते हैं। फिर युद्ध की पुरातन समस्या है। जहाँ यह कहने वाले लोग होते हैं कि ‘मेरा पक्ष सत्य है’ वहाँ युद्ध सम्भावी हो जाता है। ऐसी प्रवत्ति वाले लोग कर और रहेंगे भी।

ऐसी स्थिति में युद्ध की सम्भावना सदैव रही है और रहेगी। महाभारत के यद्ध में यद से मिलाकर श्री कृष्ण ने यही समझाया कि अपने धर्म को देखते हुए तुझे युद्ध-रूप कर्म से विचलित नहीं होना चाशित युद्ध पुरातन है, इसका पूर्णतः समाधान नहीं है। यह मनीषियों की चिन्ता का विषय रहा है।

युद्धों में जन और धनहानि

कोई भी देश निरन्तर युद्ध में संलग्न रहता है तो दुर्बल हो जाता है। युद्ध में महापुरुषों के स्वाहा हो जाने पर उनका अभाव तब जब खटकता है जब गौरवमयी परम्परा पर प्रश्न-चिह्न लग जाता है। जो देश निरन्तर युद्ध में लगे रहे वे प्रगति के पथ से हटकर प्रतिस्पर्दा की दौड मै वर्षों पीछे रहकर हीन और ग्लानि के बोझ से दबते चले गए। ऐसे बहुत से देश ऐश्वर्य के चरम शिखर पर थे वे युद्ध के बाद पतन के गर्त में जा गिरे।

द्वितीय-विश्वयुद्ध के समय अमेरिका द्वारा गिराए जापान में अणुबम जन-और धन हानि की कहानी कहता है जिसमें नागासाकी और हिरोशिमा सर्वथा धूल में मिल गए। भारत और पाकिस्तान के युद्धों के बाद यही पता चलता है कि चाहे कोई हारे, कोई जीते, हानि दोनों की होती है। अपार जन और धन हानि देशों की अनिवार्य नियति होती है। कितनी ही माताओं की गोद सूनी हो जाती है, कितनी ही स्त्रियों के सिन्दूर पुछ जाते हैं, कितने ही बहनों के भाई स्वाहा हो जाते हैं। देश का आर्थिक ढाँचा पंगु हो जाता है।

मानव-सभ्यता का विनाश

युद्ध विशारद मनीषी ने कहा है कि युद्ध की भयानकता को जिन व्यक्तियों ने देखा है, भुगता है वे कभी नहीं चाहते हैं कि युद्ध हो। फिर भी युद्ध में संलग्न होना पड़ता है। युद्ध की भयनकता का अनुमान केवल कल्पनाओं से नहीं किया जा सकता है। युद्ध की पैशाचिक प्रवृत्ति, सभ्यता को युद्ध के क्रूर चक्र में समेट लेती है। प्रत्येक युद्ध मानवीय सभ्यता और संस्कृति के प्राचीन स्थलों को अपनी आग में भस्म कर देता है।

पुरानी और प्राचीन सभ्यता, संस्कृति में परिवर्तन आने लगता है। युद्धों की सम्भावना के कारण जो आण्विक शस्त्र इकट्ठे किए जा रहे हैं उसे देखकर ऐसा लगता है कि एक दिन अवश्य ही समूची मानवता युद्ध की चिनगारी में झुलस कर रह जाएगी। ऐसा लगता है सम्पूर्ण मानवता उधार की जिन्दगी जी रही है। अतः यह यथार्थ है कि युद्धों की कल्पना मात्र ही अति भय उत्पादक होती है। युद्धों में सदियों से निर्मित सभ्यताओं और संस्कृतियाँ का विनाश होता रहा है।

मानवीय मूल्यों का ह्रास

यह सत्य है कि परिवर्तन एक अविराम प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में युद्धों से तीव्रता आ जाती है। इस तरह युद्ध मनुष्य के स्वभाव और विचारों को प्रभावित करते हैं। हम अपने देश की बात करते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि स्वतन्त्र भारतवर्ष के रूप में हमें जो मिला वह अतीत के गौरव का कंकाल मात्र था। नयी पीढ़ी के नवयुवकों को पुराना सब कुछ हास्यास्पद लगने लगा। अपनी सम्पूर्ण परम्पराओं को छोडकर नई संस्कृति के निर्माण में लग गया।

इस प्रकार युद्ध की विभीषिका सहन कर दशा में नवीन जीवन-दर्शन का विकास होता है। नवीन धारणाओं और मान्यताओं का जन्म होता है। प्रेम करुणा दया, सेवा आदि के स्थान पर घणा, द्वेष पनपते हैं। आदिम प्रवृत्ति पनपने लगती है। परस्पर विश्वास की भावना नष्ट होने लगती है। नैतिकता के सारे मापदण्ड धराशायी हो जाते हैं।

विश्व-शान्ति में रुकावट

जब दो देशों में युद्ध होता है तो यही आशंका बनी रहती है कि कहीं बड़े युद्ध में न बदल जाए। ऐसे समय में परस्पर विद्वेष की भावना लिए बाहरी रूप से मित्रता का नाटक करते हैं और आन्तरिक रूप से तनाव की ओर बढ़ते जाते हैं। वर्तमान में शस्त्रों का ढेर देशों के पास इतना पर्याप्त है कि उसका कुछ अंश ही सम्पूर्ण मानवता को राख में बदलने में समर्थ है। इनके रहते विश्व शान्ति की बातें करना हास्पास्पद ही लगती हैं।

सामरिक शक्ति के रहते शान्ति जैसी कल्पनाका अन्त हो गया है। इसके विपरीत देशों में पारस्परिक विश्वास जैसा कोई विचार नहीं रह गया है। यह बहुत दूर तक भावष्य में सम्भव भी नहीं दिखाई देता है। छोटे देशो को बड़े देश अपने मातहत रखना चाहते हैं। इस कारण छोटे देशों की विचार धारा में विश्वास रहा ही नहीं है।

निष्कर्ष में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि एक ओर देशों की बढ़ती हुई सामरिक शक्ति से सत्ताधीश सम्पूर्ण मानवता के भविष्य के प्रतिचिन्तित है तो वही देश दूसरी ओर निरन्तर सामरिक शक्ति और बढ़ा रहे हैं।

अतः दो देशों के बीच सामान्य सी युद्ध की चिनगारी भय उत्पन्न करती है। सभी जानते हैं कि युद्ध विनाशकारी होता है फिर भी आदिम प्रवत्ति मनुष्य से अलग नहीं होती है और देश युद्ध की ओर चल पड़ते है। इस तरह बढ़ते हुए शस्त्रो और देशोंकी महत्त्वांकाक्षा से युद्ध अन्तर राष्ट्रीय समस्या है जिसका अन्त नहीं दिखाई देता है।

तो दोस्तों आपको यह Essay on War International Problem in Hindi पर यह निबंध कैसा लगा। कमेंट करके जरूर बताये। अगर आपको इस निबंध में कोई गलती नजर आये या आप कुछ सलाह देना चाहे तो कमेंट करके बता सकते है।

जीवनी पढ़ें अंग्रेजी भाषा में – Bollywoodbiofacts

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Essay on War and Its Effects

Students are often asked to write an essay on War and Its Effects in their schools and colleges. And if you’re also looking for the same, we have created 100-word, 250-word, and 500-word essays on the topic.

Let’s take a look…

100 Words Essay on War and Its Effects

Introduction.

War is a state of armed conflict between different countries or groups within a country. It’s a destructive event that causes loss of life and property.

The Devastation of War

Wars cause immense destruction. Buildings, homes, and infrastructure are often destroyed, leaving people homeless. The loss of resources makes it hard to rebuild.

The human cost of war is huge. Many people lose their lives or get injured. Families are torn apart, and children often lose their parents.

Psychological Impact

War can cause severe psychological trauma. Soldiers and civilians may suffer from post-traumatic stress disorder.

War has devastating effects on people and societies. It’s important to promote peace and understanding to prevent wars.

250 Words Essay on War and Its Effects

War, a term that evokes immediate images of destruction and death, has been a persistent feature of human history. The consequences are multifaceted, influencing not only the immediate physical realm but also the socio-economic and psychological aspects of society.

Physical Impact

The most direct and visible impact of war is the physical destruction. Infrastructure, homes, and natural resources are often destroyed, leading to a significant decline in the quality of life. Moreover, the loss of human lives is immeasurable, creating a vacuum in societies that is hard to fill.

Socio-Economic Consequences

War also has profound socio-economic effects. Economies are crippled as resources are diverted towards war efforts, leading to inflation, unemployment, and poverty. Social structures are disrupted, with families torn apart and communities displaced.

Psychological Effects

Perhaps the most enduring impact of war is psychological. The trauma of violence and loss can have long-term effects on mental health, leading to conditions like post-traumatic stress disorder. Society at large also suffers, with the collective psyche marked by fear and mistrust.

In conclusion, war leaves an indelible mark on individuals and societies. Its effects are far-reaching and long-lasting, extending beyond the immediate physical destruction to touch every aspect of life. As we continue to study and understand these impacts, it underscores the importance of pursuing peace and conflict resolution.

500 Words Essay on War and Its Effects

War, an organized conflict between two or more groups, has been a part of human history for millennia. Its effects are profound and far-reaching, influencing political, social, and economic aspects of societies. Understanding the impact of war is crucial to comprehend the intricacies of global politics and human behavior.

The Political Impact of War

War significantly alters the political landscape of nations. It often leads to changes in leadership, shifts in power dynamics, and amendments in legal systems. For instance, World War II resulted in the downfall of fascist regimes in Germany and Italy, giving rise to democratic governments. However, war can also destabilize nations, creating power vacuums that may lead to further conflicts, as seen in the aftermath of the Iraq War.

Social Consequences of War

Societies bear the brunt of war’s destructive nature. The loss of life, displacement of people, and the psychological trauma inflicted upon populations are some of the direct social effects. Indirectly, war also affects societal structures and relationships. It can lead to changes in gender roles, as seen during World War I and II where women took on roles traditionally held by men, leading to significant shifts in gender dynamics.

Economic Ramifications of War

Economically, war can have both destructive and stimulating effects. On one hand, it leads to the destruction of infrastructure, depletion of resources, and interruption of trade. On the other, it can stimulate economic growth through increased production and technological advancements. The economic boom in the United States during and after World War II is an example of war-induced economic stimulation.

The Psychological Impact of War

War leaves a deep psychological imprint on those directly and indirectly involved. Soldiers and civilians alike suffer from conditions like Post-Traumatic Stress Disorder (PTSD). Moreover, societies as a whole can experience collective trauma, impacting future generations. The psychological scars of the Hiroshima and Nagasaki bombings continue to affect Japanese society today.

In conclusion, war is a complex and multifaceted phenomenon with profound effects that can shape nations and societies in significant ways. Its impacts are not confined to the battlefield but reach deep into the political, social, economic, and psychological fabric of societies. Therefore, understanding its effects is not only essential for historians and political scientists but also for anyone interested in the complexities of human societies and their evolution.

That’s it! I hope the essay helped you.

If you’re looking for more, here are essays on other interesting topics:

  • Essay on Kargil War
  • Essay on Disadvantages of War
  • Essay on Consequences of War

Apart from these, you can look at all the essays by clicking here .

Happy studying!

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Impact of War on Society Essay | War and its Effects

The present generation read about fights and wars in stories and books only but with the proclamation of the Russia and Ukraine war, the impact of war on the modern world is clearly visible to all of us. War has always left the world with death and destruction. Let’s write down an essay on war and its effects on people and countries.

Why you should read this essay –

The world knows about The Russia-Ukraine War. Are you ready for war? Hold on…hold on…don’t take me literally. You might not be aware that the Writing Section in your language paper is guided by current affairs. Last year our newspapers were flooded with the news of the ongoing war between Russia and Ukraine and now it is Israel vs Hamas War. So, you have to have knowledge of Essays and Paragraphs on War and learn new words associated with war, weapons and soldiers. Let’s start reading… Hoping the war stops soon! 

essay on war and its effects in hindi

Impact of War on the Modern World

Outline for an Essay on War

  • History of wars
  • thoughts associated with wars
  • Negative effects of war
  • Why do countries resort to wars
  • any recent example
  • Conclusion – how to avoid wars
“Peace is the virtue of civilization. War is its crime.” -Victor Hugo.

War is a war, it cannot be stated ‘correct’ under any given circumstance. The world had been through two world wars, enough for humanity to learn its lessons. But it seems that the world would rather be a fool and repeat it. Man’s insatiable hunger for power, unquenchable thirst for money and unsatisfiable greed to acquire has resulted in a world of dominance, mistrust, lack of faith, selfishness, self-centeredness and intolerance effectuating conflict and war. Who gains from war? A clamant question not figured out yet.

Jonathan Maberry’s words express the real impact of war, “They won the war but lost the peace”. 

Essay on Effects of War Class 6 -12 (500 words)

War leaves unrest among people, both on the winning and losing sides. The victims are not only those who die in the war but also those who survive. The aftermath of war is so horrendous that many have to live with disabilities, not only physical but emotional, mental and even social.

The use of precision weapons, nuclear and chemical weapons in war causes destruction on a large scale, having long-term effects. The everyday agony of dealing with personal loss aggravates with the economic crisis a country has to cope with. The modern world is not an isolated place, it is a global village, thanks to technology. In the present times, the effects of war are not restricted to a particular country but have a far-reaching impact on the whole world. 

Citing preparedness and uncertainty as reasons, nations tend to allocate a large chunk of money to the army and for the development of war weapons. As a consequence, the country suffers on the front of health and education. It may not be a cause of concern for a developed country but once caught in this vicious circle, the economy of a developing nation deteriorates further impacting every aspect of modern life. 

To deal with such a crisis, many rights of the citizens are taken away and taxes are imposed furthering uproar and uprising. After a war, it takes years for a country to recover and who can guarantee no another? The recent Russia-Ukraine war has taken a toll on the whole world. All countries are suffering from the brunt directly or indirectly.

On one hand when the whole world is fighting a war against climate change, increasing population and pandemics like COVID-19, these political wars or wars of revenge or subjugation, whatever you may call them, seem too extraneous. A misstep of one can result in a disaster for the whole world. Then, why not take responsibility and address the problem of global warming, overuse of resources, overpopulation, poverty etc? 

The modern world needs to achieve the ‘exotic moment’ recommended by Pablo Neruda in his poem ‘Keeping quiet’-

  ‘and we will all keep still’.

During this stillness, as suggested by him, the world will better itself by introspection. 

“It’s time for us to turn to each other, not on each other.”

– Jesse Jackson.

Online Gaming Essay | Advantages and Disadvantages How to Reduce Global Warming Essay on life after lockdown in India Women Empowerment Essay Essay on Effects of Population on Environment Essay on Why is Education Important

Difficult word meanings for Effects of War Essay

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