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भारतीय संस्कृति पर निबंध – Essay on Indian Culture in Hindi

Essay on Indian Culture in Hindi

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन एवं महान संस्कृति है जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है। भारतीय संस्कृति सार्वधिक संपन्न और समृद्ध है और अनेकता में एकता ही इसकी मूल पहचान है।

भारत ही एक ऐसा देश हैं जहां एक से ज्यादा जाति, धर्म, समुदाय, लिंग, पंथ आदि के लोग मिलजुल कर रहते हैं और सभी अपनी-अपनी परंपरा और रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए स्वतंत्र हैं।

भारत संस्कृति का विज्ञान, राजनीति, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में हमेशा ही एक अलग स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति में मानवीय मूल्यों, नैतिक मूल्यों, शिष्टाचार, आदर, गुरुओं का सम्मान, अतिथियों का सम्मान, राजनीति, दर्शन, धर्म, समाज, परंपराएं, रीति-रिवाज, सौंदर्य़ बोध, आध्यात्मिकता, आदि का बेहद खूबसूरत तरीके से समावेश किया गया है।

भारतीय संस्कृति के महत्व को आज की पीढ़ी को समझाने के लिए कई बार स्कूल-कॉलेजों में आयोजित परीक्षाएं अथवा निबंध लेखन प्रतियोगताओं में भारतीय संस्कृति के विषय पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता है, इसलिए आज हम आपको अपने इस पोस्ट में भारतीय संस्कृति पर हैडिंग के साथ निबंध उपलब्ध करवा रहे हैं, जिसका चयन आप अपनी जरूरत के मुताबिक कर सकते हैं –

Essay on Indian Culture in Hindi

प्रस्तावना –

भारत विविधताओं का देश है, जहां अलग-अलग धर्म, जाति, पंथ, लिंग के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की मूल पहचान है। भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति होने के बाबजूद भी आज अपने नैतिक मूल्यों और परंपराओं को बनाए हुए है।

प्रेम, धर्म, राजनीति, दर्शन, भाईचारा, सम्मान, आदर, परोपकार, भलाई, मानवीयता, आदि भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषताएं हैं। भारत में रहने वाले सभी लोग सभी अपनी संस्कृति का आदर करते हैं और इसकी गरिमा को बनाए रखने में अपना सहयोग करते हैं।

संस्कृति की परिभाषा एवं संस्कृति शब्द का अर्थ – Meaning of Culture

किसी देश, जाति, समुदाय आदि की पहचान उसकी संस्कृति से ही होती है। संस्कृति, देश के सभी जाति, धर्म, समुदाय को उसके संस्कारों का बोध करवाती है।

जिससे उन्हें अपने जीवन के आदर्शों और नैतिक मूल्यों पर चलने की प्रेरणा मिलती है और अच्छी भावनाओं का विकास होता है। विरासत में मिले विचार, कला, शिल्प, वस्तु आदि ही किसी देश की मूल संस्कृति कहलती है।

संस्कृति शब्द का मुख्य रुप से संस्कार से बना हुआ है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है सुधारने अथवा शुद्धि करने वाली या फिर परिष्कार करने वाली। वहीं चार वेदो में से एक यजुर्वेद में संस्कृति को सृष्टि माना गया है, जो समस्त विश्व में वरण करने योग्य होती है।

जीवन को सम्पन्न करने के लिए मूल्यों, मान्यताओं एवं स्थापनाओं का समूह ही संस्कृति कहलाता है, सीधे शब्दों में संस्कृति का सीधा संबंध मनुष्य के जीवन के मूल्यों से होता है।

सभ्यता एवं संस्कृति:

सभ्यता और संस्कृति को भले ही आज एक-दूसरे का पर्याय कहा जाता हो, लेकिन दोनों एक-दूसरे से काफी अलग-अलग होती हैं। सभ्यता का सबंध मानव जीवन के बाहरी ढंग अथवा भौतिक विकास से होता है, जैसे उसका रहन-सहन, खान-पान, भाषा आदि। संस्कृति का सीधा अभिप्राय मनुष्य की सोच, चिंतन, अध्यात्म, विचारधारा आदि से होता है।

संस्कृति का क्षेत्र काफी व्यापक और गहन होता है। इसके तहत आन्तरिक गुण जैसे विन्रमता, सुशीलता, सहानुभूति, सहृदयता, एवं सज्जनता आदि आते हैं जो इसके मूल्य व आदर्श होते हैं।

हालांकि, सभ्यता एवं संस्कृति का आपस में काफी घनिष्ठ संबंध होता है, क्योंकि मनुष्य अपने विचारों से ही किसी वस्तु को बनाता है।

विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति के रुप में भारतीय संस्कृति:

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है, लेकिन आधुनिकता और पाश्चात्य शैली अपनाने के बाबजूद आज भी भारतीय संस्कृति ने अपने मूल्यों और सांस्कृतिक विरासत को बना कर रखा है।

इतिहासकारों के मुताबिक भारतीय संस्कृति के सबसे प्राचीनतम होने का प्रमाण मध्यप्रदेश के भीमबेटका में मिले शैलचित्र एवं नृवंशीय व पुरातत्वीय अवशेषों और नर्मदा घाटी में की गई खुदाई से सिद्ध हुआ है।

इसके अलावा सिंधु घाटी की सभ्यता में किए गए कुछ उल्लेखों से यह ज्ञात होता है कि आज से करीब 5 हजार साल पहले भारतीय संस्कृति का उदगम हो चुका था। यह नहीं वेदों में भारतीय संस्कृति का उल्लेख भी इसकी प्राचीनता का एक बड़ा प्रमाण है।

भारतीय संस्कृति क्यों हैं विश्व की समृद्ध संस्कृति और इसकी विशिष्टताएं:

भारतीय संस्कृति में कई अलग-अलग धर्म, समुदाय, जाति पंथ आदि के लोगों के रहने के बाद भी इसमें विविधता में एकता है। भारतीय संस्कृति के आदर्श एवं मूल्य ही इसे विश्व में एक अलग सम्मान दिलवाती है और समृद्ध बनाती है। भारतीय संस्कृति की कुछ प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई हैं –

भारतीय संस्कृति आज भी अपने मूल रुप-स्वरूप में जीवित है:

भारतीय संस्कृति की निरंतरता ही इसकी प्रमुख विशेषता है, विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति होने के बाबजूद आज भी यह अपने मूल रुप में जीवित है। वहीं आधुनिकता के इस युग में आज भी कई धार्मिक परंपराएं, रीति-रिवाज, धार्मिक अनुष्ठान कई हजार सालों के बाद भी वैसे ही चले आ रहे हैं। धर्मों और वेदों में लोगों की अनूठी आस्था आज भी भारतीय संस्कृति की पहचान को बरकरार रखे हुए है।

सहनशीलता एवं सहिष्णुता:

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत सहिष्णुता और सहनशीलता है। भारतीयों के साथ अंग्रजी शासकों एवं आक्रमणकारियों द्धारा काफी क्रूर व्यवहार किया गया और उन पर असहनीय जुर्म ढाह गए, लेकिन भारतीयों ने देश में शांति बनाए रखने के लिए कई हमलावरों के अत्याचारों को सहन किया।

वहीं सहनशीलता का गुण भारतीयों को उसकी संस्कृति से विरासत में मिला है। वहीं कई महापुरुषों ने भी सहिष्णुता की शिक्षा दी है।

आध्यात्मिकता, भारतीय संस्कृति की मुख्य विशेषता:

भारतीय संस्कृति, का मूल आधार आध्यात्मिकता है, जो कि मूल रुप से धर्म, कर्म एवं ईश्वरीय विश्वास से जुड़ी हुई है। भारतीय संस्कृति में रह रहे अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को अपने परमेश्वर पर अटूट आस्था एवं विश्वास है।

भारतीय संस्कृति में कर्म करने की महत्वता:

भारतीय संस्कृति में कर्म करने पर बल दिया गया है। यहां कर्म को ही पूजा माना गया है। वहीं कर्म करने वाला पुरुष ही अपने लक्ष्यों को आसानी से हासिल कर पाता है और अपने जीवन में सफल होता है।

आपसी प्रेम एवं भाईचारा:

भारतीय संस्कृति में लोगों के अंदर एक-दूसरे के प्रति प्रेम, परोपकार, सद्भाव एवं भलाई की भावना निहित है, जो इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है।

अनेकता में एकता – Anekta Mein Ekta

भारत में अलग-अलग जाति, धर्म, लिंग, पंथ, समुदाय आदि के लोग रहते हैं, जिनके रहन-सहन, बोल-चाल एवं खान-पान में काफी विविधता है, लेकिन फिर भी सभी भारतीय आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहते हैं, इसलिए अनेकता में एकता ही भारतीय संस्कृति की मूल पहचान है।

नैतिक एवं मानवीय मूल्यों का महत्व:

भारत संस्कृति के तहत नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता दी गई है। जिसमें विचार, शिष्टाचार, आदर्श, दर्शन, राजनीति, धर्म आदि शामिल हैं।

भारतीयों के संस्कार हैं इसकी विशेषता:

भारतीय मूल के व्यक्ति की शिष्टता एवं अच्छे संस्कार जैसे बड़ों का आदर करना, अनुशासन में रहना, परोपकार एवं भलाई करना, जीवों के प्रति दया का भाव रखना एवं अच्छे कर्म करना ही भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी खासियत है।

शिक्षा का महत्व – Shiksha Ka Mahatva

भारतीय संस्कृति में शिक्षा को खास महत्व दिया गया है। यहां शिक्षित व्यक्ति को ही सम्मान दिया जाता है, जबकि अशिक्षित व्यक्ति का सही रुप से मानसिक, नैतिक एवं शारीरिक विकास नहीं होने की वजह से उसे समाज में उपेक्षित किया जाता है वहीं अशिक्षित व्यक्ति अपने जीवन में दर-दर की ठोकरें खाता है।

राष्ट्रीयता की भावना:

भारतीय संस्कृति में लोगों के अंदर राष्ट्रीय एकता की भावना निहित है। राष्ट्र पर जब भी कोई संकट आया है, तब-तब भारतीयों ने एक होकर इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी है।

अतिथियों का सम्मान:

भारतीय संस्कृति में अतिथियों को भगवान का रुप माना गया है। हमारे देश में आने वाले मेहमानों का खास तरीके से स्वागत कर उनको सम्मान दिया जाता है। वहीं अगर कोई दुश्मन भी मेहमान बनकर आता है तो उसका स्वागत सत्कार करना प्रत्येक भारतीय अपना फर्ज समझता है।

गुरुओं का विशिष्ट स्थान:

भारतीय संस्कृति में प्राचीन समय से ही गुरुओं को भगवान से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है, क्योंकि गुरु ही मनुष्य को सही कर्तव्यपथ पर चलने के योग्य बनाता है और उसे समस्त संसार का बोध करवाता है।

मनुष्य के अंदर जो भी गुण समाहित होते हैं, वो उसे उसकी संस्कृति से विरासत में मिलते हैं और उसे एक सामाजिक एवं आदर्श प्राणी बनाने में मद्द करते हैं। वहीं मानव कल्याण एवं विकास के लिए सभी सहायक संपूर्ण ज्ञानात्मक, विचारात्मक, एवं क्रियात्मक गुण उसकी संस्कृति कहलाते हैं।

भारतीय संस्कृति इसके नैतिक मूल्यों, आदर्शों एवं अपनी तमाम विशिष्टताओं की वजह से पूरी दुनिया में विख्यात है और दुनिया की सबसे समृद्ध संस्कृति का उत्कृष्ट उदाहरण है जहां सभी लोग एक परिवार की तरह रहते हैं।

  • Essay in Hindi

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3 thoughts on “भारतीय संस्कृति पर निबंध – Essay on Indian Culture in Hindi”

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Thanks for the help and I hope it helps others also and they can understand it easily….for their exams

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thank you so much this essay is very useful for me I score 30/30 in my exam

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boht sundar essay thank you

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Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध

Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध: भारत में एक समृद्ध संस्कृति है और यह हमारी पहचान बन गई है। धर्म, कला, बौद्धिक उपलब्धियों या प्रदर्शनकारी कला में हो, इसने हमें एक रंगीन, समृद्ध और विविध राष्ट्र बना दिया है। भारतीय संस्कृति और परंपरा निबंध भारत में पीछा जीवंत संस्कृति और परंपराओं को एक दिशानिर्देश है।

भारत कई आक्रमणों का घर था और इस तरह यह केवल वर्तमान विविधता में जुड़ गया। आज, भारत एक शक्तिशाली और बहु-सुसंस्कृत समाज के रूप में खड़ा है क्योंकि इसने कई संस्कृतियों को अवशोषित किया है और आगे बढ़ा है। यहां के लोगों ने विभिन्न धर्मों , परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन किया है।

Indian Culture and Tradition Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति निबंध

हालांकि लोग आज आधुनिक हो रहे हैं, नैतिक मूल्यों पर पकड़ रखते हैं और रीति-रिवाजों के अनुसार त्योहार मनाते हैं। इसलिए, हम अभी भी रामायण और महाभारत से महाकाव्य सीख रहे हैं और सीख रहे हैं। इसके अलावा, लोग अभी भी गुरुद्वारों, मंदिरों, चर्चों, और मस्जिदों में घूमते हैं।

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भारत में संस्कृति लोगों के रहन-सहन, संस्कारों, मूल्यों, मान्यताओं, आदतों, देखभाल, ज्ञान आदि से सब कुछ है। इसके अलावा, भारत को सबसे पुरानी सभ्यता माना जाता है जहां लोग अभी भी देखभाल और मानवता की अपनी पुरानी आदतों का पालन करते हैं।

इसके अतिरिक्त, संस्कृति एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, हम कितनी आसानी से विभिन्न चीजों पर प्रतिक्रिया करते हैं, नैतिकता, मूल्यों और विश्वासों के बारे में हमारी समझ।

पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी मान्यताओं और संस्कृतियों को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाते हैं। इस प्रकार, हर बच्चा जो दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, वह पहले से ही दादा-दादी और माता-पिता से उनकी संस्कृति के बारे में जान चुका होता है।

इसके अलावा, यहां हम फैशन , संगीत , नृत्य , सामाजिक मानदंड, खाद्य पदार्थ आदि जैसे हर चीज में संस्कृति देख सकते हैं । इस प्रकार, भारत व्यवहार और विश्वास रखने के लिए एक बड़ा पिघलने वाला बर्तन है जिसने विभिन्न संस्कृतियों को जन्म दिया।

भारतीय संस्कृति और धर्म

ऐसे कई धर्म हैं जिन्होंने अपनी उत्पत्ति सदियों पुरानी पद्धतियों में पाई है जो पाँच हज़ार साल पुराने हैं। इसके अलावा, यह माना जाता है क्योंकि हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई थी।

इस प्रकार, पवित्र माने जाने वाले सभी हिंदू शास्त्रों को संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इसके अलावा, यह माना जाता है कि सिंधु घाटी में जैन धर्म की प्राचीन उत्पत्ति और अस्तित्व है। बौद्ध धर्म दूसरा धर्म है जो गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के माध्यम से देश में उत्पन्न हुआ था।

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कई अलग-अलग युग हैं जो आए हैं और चले गए हैं लेकिन वास्तविक संस्कृति के प्रभाव को बदलने के लिए कोई भी युग बहुत शक्तिशाली नहीं था। तो, युवा पीढ़ियों की संस्कृति अभी भी पुरानी पीढ़ियों से जुड़ी हुई है। साथ ही, हमारी जातीय संस्कृति हमें हमेशा बड़ों का सम्मान करना, अच्छा व्यवहार करना, असहाय लोगों की देखभाल करना और जरूरतमंद और गरीब लोगों की मदद करना सिखाती है।

इसके अतिरिक्त, हमारे देश में एक महान संस्कृति है कि हमें हमेशा देवताओं की तरह अतिथि का स्वागत करना चाहिए। यही कारण है कि हमारे पास ‘अति देवो भव’ जैसी प्रसिद्ध कहावत है। तो, हमारी संस्कृति में मूल जड़ें आध्यात्मिक अभ्यास और मानवता हैं।

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भारतीय संस्कृति पर निबंध 10 lines (Indian Culture Essay in Hindi) 100, 200, 300, 500, शब्दों मे

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Indian Culture Essay in Hindi –  भारत अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह कई अलग-अलग संस्कृतियों और परंपराओं वाला देश है। इस देश में विश्व की प्राचीन सभ्यताएं पाई जा सकती हैं। Indian Culture Essay अच्छे शिष्टाचार, शिष्टाचार, सभ्य संवाद, रीति-रिवाज, विश्वास, मूल्य आदि भारतीय संस्कृति के आवश्यक तत्व हैं। भारत एक विशेष देश है क्योंकि इसके नागरिक कई संस्कृतियों और परंपराओं के साथ सद्भाव से एक साथ रहने की क्षमता रखते हैं। यहां ‘भारतीय संस्कृति’ पर कुछ नमूना निबंध दिए गए हैं।

भारतीय संस्कृति पर 10 पंक्तियाँ (10 Lines On ‘Indian Culture in Hindi)

  • किसी भी देश की संस्कृति उसकी सामाजिक संरचना, विश्वासों, मूल्यों, धार्मिक भावनाओं और मूल दर्शन को प्रदर्शित करती है।
  • भारत एक सांस्कृतिक रूप से विविध राष्ट्र है जहां हर समुदाय सौहार्दपूर्वक रहता है।
  • संस्कृति में अंतर बोली, पहनावे और धार्मिक और सामाजिक मान्यताओं में परिलक्षित होता है।
  • भारत की विविधता दुनिया भर में जानी जाती है।
  • ये संस्कृतियां और परंपराएं भारत के गौरवशाली अतीत को उजागर करती हैं।
  • संगीत, नृत्य, भाषा आदि सहित हर क्षेत्र में भारत का एक अलग सांस्कृतिक दृष्टिकोण है।
  • भारत की संस्कृति और परंपराएं मानवता, सहिष्णुता, एकता और सामाजिक बंधन को दर्शाती हैं।
  • परंपरागत रूप से, हम नमस्कार, नमस्कारम, आदि कहकर लोगों का अभिवादन करते हैं।
  • देश के कई क्षेत्रों में युवा पीढ़ी सम्मान दिखाने के लिए बड़ों के पैर छूती है।
  • भारत की खान-पान की आदतों में सांस्कृतिक और पारंपरिक विविधताएं भी देखी जा सकती हैं।

भारतीय संस्कृति पर 100 शब्दों का निबंध (100 Words Essay on Indian Culture in Hindi)

भारत की संस्कृति दुनिया में सबसे पुरानी है और 5,000 साल से भी पुरानी है। दुनिया की पहली और सबसे बड़ी संस्कृति भारत की ही मानी जाती है। वाक्यांश “विविधता में एकता” भारत को एक विविध राष्ट्र के रूप में संदर्भित करता है जहां कई धर्मों के लोग अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों को बनाए रखते हुए सह-अस्तित्व रखते हैं। अलग-अलग धर्मों के लोगों की अलग-अलग भाषाएं, पाक रीति-रिवाज, समारोह आदि हैं और फिर भी वे सभी सद्भाव में रहते हैं।

हिन्दी भारत की राजभाषा है। हालाँकि, देश की लगभग 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं के अलावा, भारत के कई राज्यों और क्षेत्रों में नियमित रूप से 400 अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं। इतिहास ने भारत को एक ऐसे देश के रूप में स्थापित किया है जहां बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म जैसे धर्म सबसे पहले उभरे।

भारतीय संस्कृति पर 200 शब्दों का निबंध (200 Words Essay on Indian Culture in Hindi)

भारत विविध संस्कृतियों, धर्मों, भाषाओं और परंपराओं का देश है। भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इसके लंबे इतिहास और देश में हुए विभिन्न आक्रमणों और बस्तियों का परिणाम है। भारतीय संस्कृति विभिन्न रीति-रिवाजों और परंपराओं का एक पिघलने वाला बर्तन है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है।

धर्म | भारतीय संस्कृति में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत में प्रचलित प्रमुख धर्म हिंदू धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म हैं। प्रत्येक धर्म की अपनी मान्यताएं, रीति-रिवाज और प्रथाएं होती हैं। हिंदू धर्म, भारत का सबसे पुराना धर्म, प्रमुख धर्म है और इसमें देवी-देवताओं की एक विशाल श्रृंखला है। इस्लाम, बौद्ध धर्म, सिख धर्म और जैन धर्म भी व्यापक रूप से प्रचलित हैं और देश में उनके बड़ी संख्या में अनुयायी हैं।

खाना | भारतीय व्यंजन अपने विविध प्रकार के स्वादों और मसालों के लिए जाने जाते हैं। भारत में प्रत्येक क्षेत्र की खाना पकाने की अपनी अनूठी शैली और विशिष्ट व्यंजन हैं। भारतीय व्यंजन मसालों, जड़ी-बूटियों और विभिन्न प्रकार की खाना पकाने की तकनीकों के उपयोग के लिए जाने जाते हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध भारतीय व्यंजनों में बिरयानी, करी, तंदूरी चिकन और दाल मखनी शामिल हैं। भारतीय व्यंजन अपने स्ट्रीट फूड के लिए भी प्रसिद्ध है, जो कि भारतीय भोजन के विविध प्रकार के स्वादों का अनुभव करने का एक लोकप्रिय और किफायती तरीका है।

भारतीय संस्कृति पर 300 शब्दों का निबंध (300 Words Essay on Indian Culture in Hindi)

भारत समृद्ध संस्कृति और विरासत का देश है जहां लोगों में मानवता, सहिष्णुता, एकता, धर्मनिरपेक्षता, मजबूत सामाजिक बंधन और अन्य अच्छे गुण हैं। अन्य धर्मों के लोगों द्वारा बहुत सारी आक्रामक गतिविधियों के बावजूद, भारतीय हमेशा अपने सौम्य और सौम्य व्यवहार के लिए प्रसिद्ध हैं। अपने सिद्धांतों और आदर्शों में बिना किसी बदलाव के भारतीय लोगों की देखभाल और शांत स्वभाव के लिए हमेशा प्रशंसा की जाती है। भारत महान महापुरूषों का देश है जहां महान लोगों ने जन्म लिया और ढेर सारे सामाजिक कार्य किए। वे अभी भी हमारे लिए प्रेरक व्यक्तित्व हैं।

भारत वह भूमि है जहां महात्मा गांधी ने जन्म लिया और अहिंसा की एक महान संस्कृति दी। वह हमेशा हमें दूसरों से लड़ने के लिए नहीं कहते थे। इसके बजाय, यदि आप वास्तव में किसी चीज़ में बदलाव लाना चाहते हैं, तो उनसे विनम्रता से बात करें। उन्होंने हमें बताया कि इस धरती पर सभी लोग प्यार, सम्मान, देखभाल और सम्मान के भूखे हैं; यदि आप उन्हें सब कुछ देते हैं, तो वे निश्चित रूप से आपका अनुसरण करेंगे।

गांधी जी हमेशा अहिंसा में विश्वास करते थे और वास्तव में वे एक दिन ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी दिलाने में सफल हुए। उन्होंने भारतीयों से कहा कि वे अपनी एकता और सज्जनता की शक्ति दिखाएं और फिर बदलाव देखें। भारत पुरुषों और महिलाओं, जातियों और धर्मों आदि का अलग-अलग देश नहीं है। हालाँकि, यह एकता का देश है जहाँ सभी जातियों और पंथों के लोग एक साथ मिलकर रहते हैं।

भारत में लोग आधुनिक हैं और आधुनिक युग के अनुसार सभी परिवर्तनों का पालन करते हैं; हालाँकि, वे अभी भी अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों के संपर्क में हैं। भारत एक आध्यात्मिक देश है जहाँ लोग आध्यात्मिकता में विश्वास करते हैं। यहां के लोग योग, ध्यान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में विश्वास करते हैं। भारत की सामाजिक व्यवस्था महान है; लोग अभी भी एक बड़े संयुक्त परिवार में दादा-दादी, चाचा, चाची, चाचा, ताऊ, चचेरे भाई, भाई, बहन आदि के साथ रहते हैं। इसलिए, यहां के लोग जन्म से ही अपनी संस्कृति और परंपरा के बारे में सीखते हैं।

भारतीय संस्कृति पर 500 शब्दों का निबंध (500 Words Essay on Indian Culture in Hindi)

भारत एक समृद्ध संस्कृति का दावा करने वाला देश है। भारत की संस्कृति छोटी अनूठी संस्कृतियों के संग्रह को संदर्भित करती है। भारत की संस्कृति में भारत में कपड़े, त्योहार, भाषाएं, धर्म, संगीत, नृत्य, वास्तुकला, भोजन और कला शामिल हैं। सबसे उल्लेखनीय, भारतीय संस्कृति अपने पूरे इतिहास में कई विदेशी संस्कृतियों से प्रभावित रही है। साथ ही, भारत की संस्कृति का इतिहास कई सहस्राब्दी पुराना है।

भारतीय संस्कृति के घटक

सबसे पहले, भारतीय मूल के धर्म हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म हैं। ये सभी धर्म कर्म और धर्म पर आधारित हैं। इसके अलावा, इन चारों को भारतीय धर्म कहा जाता है। भारतीय धर्म अब्राहमिक धर्मों के साथ-साथ विश्व धर्मों की एक प्रमुख श्रेणी है।

साथ ही भारत में भी कई विदेशी धर्म मौजूद हैं। इन विदेशी धर्मों में अब्राहमिक धर्म भी शामिल हैं। भारत में अब्राहमिक धर्म निश्चित रूप से यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम हैं। इब्राहीमी धर्मों के अलावा, पारसी धर्म और बहाई धर्म अन्य विदेशी धर्म हैं जो भारत में मौजूद हैं। नतीजतन, इतने सारे विविध धर्मों की उपस्थिति ने भारतीय संस्कृति में सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता को जन्म दिया है।

संयुक्त परिवार प्रणाली भारतीय संस्कृति की प्रचलित व्यवस्था है। सबसे उल्लेखनीय, परिवार के सदस्यों में माता-पिता, बच्चे, बच्चों के जीवनसाथी और संतान शामिल हैं। परिवार के ये सभी सदस्य एक साथ रहते हैं। इसके अलावा, सबसे बड़ा पुरुष सदस्य परिवार का मुखिया होता है।

भारतीय संस्कृति में अरेंज मैरिज का चलन है। संभवत: अधिकांश भारतीयों की शादियां उनके माता-पिता द्वारा नियोजित होती हैं। लगभग सभी भारतीय शादियों में दुल्हन का परिवार दूल्हे को दहेज देता है। भारतीय संस्कृति में विवाह निश्चित रूप से उत्सव का अवसर होता है। भारतीय शादियों में हड़ताली सजावट, कपड़े, संगीत, नृत्य, अनुष्ठानों की भागीदारी होती है। सबसे उल्लेखनीय, भारत में तलाक की दर बहुत कम है।

भारत बड़ी संख्या में त्योहार मनाता है। बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज के कारण ये त्यौहार बहुत विविध हैं। भारतीय उत्सव के अवसरों को बहुत महत्व देते हैं। इन सबसे ऊपर, मतभेदों के बावजूद पूरा देश उत्सव में शामिल होता है।

विभिन्न क्षेत्रों में पारंपरिक भारतीय भोजन, कला, संगीत, खेल , कपड़े और वास्तुकला में काफी भिन्नता है। ये घटक विभिन्न कारकों से प्रभावित होते हैं। इन सबसे ऊपर, ये कारक भूगोल, जलवायु, संस्कृति और ग्रामीण/शहरी सेटिंग हैं।

भारतीय संस्कृति की धारणा

भारतीय संस्कृति अनेक लेखकों की प्रेरणा रही है। भारत निश्चित रूप से दुनिया भर में एकता का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति निश्चित रूप से बहुत जटिल है। इसके अलावा, भारतीय पहचान की अवधारणा में कुछ कठिनाइयाँ हैं। हालाँकि, इसके बावजूद, एक विशिष्ट भारतीय संस्कृति मौजूद है। इस विशिष्ट भारतीय संस्कृति का निर्माण कुछ आंतरिक शक्तियों का परिणाम है। इन सबसे ऊपर, ये ताकतें एक मजबूत संविधान, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, धर्मनिरपेक्ष नीति, लचीला संघीय ढांचा आदि हैं।

भारतीय संस्कृति एक सख्त सामाजिक पदानुक्रम की विशेषता है। इसके अलावा, भारतीय बच्चों को कम उम्र से ही समाज में उनकी भूमिका और स्थान के बारे में सिखाया जाता है। शायद, कई भारतीय मानते हैं कि उनके जीवन को निर्धारित करने में देवताओं और आत्माओं की भूमिका होती है। इससे पहले, पारंपरिक हिंदुओं को प्रदूषणकारी और गैर-प्रदूषणकारी व्यवसायों में विभाजित किया गया था। अब यह अंतर कम हो रहा है।

भारतीय संस्कृति निश्चित रूप से बहुत विविध है। इसके अलावा, भारतीय बच्चे मतभेदों को सीखते और आत्मसात करते हैं। हाल के दशकों में भारतीय संस्कृति में भारी परिवर्तन हुए हैं। इन सबसे ऊपर, ये परिवर्तन महिला सशक्तिकरण, पश्चिमीकरण, अंधविश्वास में गिरावट, उच्च साक्षरता, बेहतर शिक्षा आदि हैं।

इसे योग करने के लिए, भारत की संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है। इन सबसे ऊपर, कई भारतीय तेजी से पश्चिमीकरण के बावजूद पारंपरिक भारतीय संस्कृति से जुड़े हुए हैं। भारतीयों ने अपने बीच विविधता के बावजूद मजबूत एकता का प्रदर्शन किया है। अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति का परम मंत्र है।

भारतीय संस्कृति पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

Q1 भारतीय धर्म कौन से हैं.

A1 भारतीय धर्म धर्म की एक प्रमुख श्रेणी का उल्लेख करते हैं। सबसे उल्लेखनीय, इन धर्मों की उत्पत्ति भारत में हुई है। इसके अलावा, प्रमुख भारतीय धर्म हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म हैं।

Q2 हाल के दशकों में भारतीय संस्कृति में क्या परिवर्तन हुए हैं?

A2 निश्चित रूप से हाल के दशकों में भारतीय संस्कृति में कई परिवर्तन हुए हैं। इन सबसे ऊपर, ये परिवर्तन महिला सशक्तिकरण, पश्चिमीकरण, अंधविश्वास में गिरावट, उच्च साक्षरता, बेहतर शिक्षा आदि हैं।

दा इंडियन वायर

भारतीय संस्कृति पर निबंध

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By विकास सिंह

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विषय-सूचि

भारतीय संस्कृति पर निबंध, essay on indian culture in hindi (100 शब्द)

भारत अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए दुनिया भर में एक प्रसिद्ध देश है। यह विभिन्न संस्कृति और परंपरा की भूमि है। यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं का देश है। भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण घटक अच्छे शिष्टाचार, शिष्टाचार, सभ्य संचार, संस्कार, विश्वास, मूल्य आदि हैं।

सभी की जीवन शैली आधुनिक होने के बाद भी, भारतीय लोगों ने अपनी परंपराओं और मूल्यों को नहीं बदला है। विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के लोगों के बीच एकजुटता की संपत्ति ने भारत को एक अनूठा देश बना दिया है। यहां के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन करते हुए भारत में शांति से रहते हैं।

भारतीय संस्कृति पर निबंध, essay on indian culture in hindi (150 शब्द)

indian culture essay in hindi

भारत की संस्कृति 5,000 वर्षों के आसपास दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति है। भारतीय संस्कृति को दुनिया की पहली और सर्वोच्च संस्कृति माना जाता है। भारत के बारे में एक आम कहावत है कि “अनेकता में एकता” का अर्थ है भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ कई धर्मों के लोग अपनी अलग संस्कृतियों के साथ शांति से रहते हैं। विभिन्न धर्मों के लोग अपनी भाषा, भोजन परंपरा, अनुष्ठान आदि में भिन्न होते हैं, हालांकि वे एकता के साथ रहते हैं।

भारत की राष्ट्रीय भाषा हिंदी है, हालांकि इसकी विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों में भारत में लगभग 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं और 400 अन्य भाषाएँ दैनिक बोली जाती हैं। इतिहास के अनुसार, भारत को हिंदू और बौद्ध धर्म जैसे धर्मों के जन्मस्थान के रूप में मान्यता दी गई है। भारत की विशाल जनसंख्या हिंदू धर्म से संबंधित है। हिंदू धर्म के अन्य रूप हैं शैव, शाक्त, वैष्णव आदि।

भारतीय संस्कृति पर निबंध, Indian culture essay in hindi (200 शब्द)

भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर में बहुत लोकप्रियता हासिल की है। भारतीय संस्कृति को दुनिया की सबसे पुरानी और बहुत ही रोचक संस्कृति माना जाता है। यहां रहने वाले लोग विभिन्न धर्मों, परंपराओं, खाद्य पदार्थों, पहनावे आदि से संबंधित हैं। यहां रहने वाले विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं के लोग सामाजिक रूप से अन्योन्याश्रित हैं कि क्यों धर्मों की विविधता में मजबूत बंधन एकता का अस्तित्व है।

लोग विभिन्न परिवारों में जन्म लेते हैं, जातियां, उपजातियां और धार्मिक समुदाय एक समूह में शांति और संयम से रहते हैं। यहां के लोगों के सामाजिक बंधन लंबे समय तक चलने वाले हैं। सभी को अपनी पदानुक्रम और एक-दूसरे के प्रति सम्मान, सम्मान और अधिकारों की भावना के बारे में अच्छी भावना है।

भारत में लोग अपनी संस्कृति के प्रति अत्यधिक समर्पित हैं और सामाजिक संबंधों को बनाए रखने के लिए अच्छे शिष्टाचार जानते हैं। भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों की अपनी संस्कृति और परंपरा है। उनका अपना त्योहार और मेला है और वे अपने अपने अनुष्ठानों के अनुसार मनाते हैं।

लोग विभिन्न प्रकार की खाद्य संस्कृति का पालन करते हैं जैसे पीटा चावल, बोंडा, ब्रेड ओले, केले के चिप्स, पोहा, आलू पापड़, फूला हुआ चावल, उपमा, डोसा, इडली, चीनी, इत्यादि। अन्य धर्मों के लोगों में सेवइयां, बिरयानी, जैसे कुछ अलग भोजन होते हैं जैसे तंदूरी, मैथी, आदि।

भारतीय संस्कृति पर अनुच्छेद, paragraph on indian culture in hindi (250 शब्द)

indian culture

भारत संस्कृतियों का एक समृद्ध देश है जहाँ लोग अपनी अपनी संस्कृति में रहते हैं। हम अपनी भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं। संस्कृति सब कुछ है, अन्य विचारों, रीति-रिवाजों के साथ व्यवहार करने का तरीका, कला, हस्तशिल्प, धर्म, भोजन की आदतें, मेले, त्योहार, संगीत और नृत्य संस्कृति के अंग हैं।

भारत उच्च जनसंख्या वाला एक बड़ा देश है जहाँ विभिन्न संस्कृति के लोग अद्वितीय संस्कृति के साथ रहते हैं। देश के कुछ प्रमुख धर्म हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, शेखवाद और पारसी धर्म हैं। भारत एक ऐसा देश है जहाँ देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। यहां के लोग आमतौर पर वेशभूषा, सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों और खाद्य-आदतों में किस्मों का उपयोग करते हैं।

लोग अपने-अपने धर्मों के अनुसार विभिन्न रिवाजों और परंपराओं को मानते हैं और उनका पालन करते हैं। हम अपने त्योहार अपने-अपने अनुष्ठानों के अनुसार मनाते हैं, उपवास रखते हैं, गंगे के पवित्र जल में स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं, अनुष्ठान के गीत गाते हैं, नाचते हैं, स्वादिष्ट रात का भोजन करते हैं, रंगीन कपड़े पहनते हैं और बहुत सारी गतिविधियाँ करते हैं।

हम गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती जैसे विभिन्न सामाजिक आयोजनों को मिलाकर कुछ राष्ट्रीय त्योहार भी मनाते हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न धर्मों के लोग अपने त्योहारों को बड़े उत्साह और उत्साह के साथ मनाते हैं और एक-दूसरे को मनाए बिना।

गौतम बुद्ध (बुद्ध पूर्णिमा), भगवान महावीर जन्मदिन (महावीर जयंती), गुरु नानक जयंती (गुरुपर्व), इत्यादि जैसे कुछ कार्यक्रम कई धर्मों के लोगों द्वारा संयुक्त रूप से मनाया जाता है। भारत अपने विभिन्न सांस्कृतिक नृत्यों जैसे शास्त्रीय (भारत नाट्यम, कथक, कथकली, कुचिपुड़ी) और क्षेत्रों के अनुसार लोकगीतों के लिए प्रसिद्ध देश है।

पंजाबियों ने भांगड़ा का आनंद लिया, गुगराती ने गरबा करने का आनंद लिया, राजस्थानियों ने घूमर का आनंद लिया, असमिया ने बिहू का आनंद लिया, जबकि महाराष्ट्रियन ने लावोनी का आनंद लिया।

भारतीय संस्कृति पर लेख, article on indian culture in hindi (300 शब्द)

भारत समृद्ध संस्कृति और विरासत का देश है जहां लोगों में मानवता, सहिष्णुता, एकता, धर्मनिरपेक्षता, मजबूत सामाजिक बंधन और अन्य अच्छे गुण हैं। भारतीय हमेशा अपने सौम्य और सौम्य व्यवहार के लिए प्रसिद्ध होते हैं।

भारतीय लोग हमेशा अपने सिद्धांतों और आदर्शों में बदलाव के बिना उनकी देखभाल और शांत स्वभाव के लिए प्रशंसा करते हैं। भारत महान किंवदंतियों का देश है जहां महान लोगों ने जन्म लिया और बहुत सारे सामाजिक कार्य किए। वे अभी भी हमारे लिए प्रेरक व्यक्तित्व हैं।

भारत एक ऐसी भूमि है जहाँ महात्मा गांधी ने जन्म लिया था और अहिंसा की एक महान संस्कृति दी थी। उन्होंने हमेशा हमें बताया कि अगर आप वास्तव में किसी चीज में बदलाव लाना चाहते हैं तो उनसे विनम्रता से बात करें। उन्होंने हमें बताया कि इस धरती पर हर लोग प्यार, सम्मान, देखभाल और सम्मान के भूखे हैं; यदि आप उन सभी को देते हैं, तो निश्चित रूप से वे आपका अनुसरण करेंगे।

गांधी जी हमेशा अहिंसा में विश्वास करते थे और वास्तव में वे ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी दिलाने में एक दिन सफल हुए। उन्होंने भारतीयों से कहा कि एकता और सौम्यता की अपनी शक्ति दिखाएं और फिर परिवर्तन देखें। भारत अलग-अलग पुरुषों और महिलाओं, जातियों और धर्मों का देश नहीं है, लेकिन यह एकता का देश है जहां सभी जातियों और पंथों के लोग एक साथ रहते हैं।

भारत में लोग आधुनिक हैं और आधुनिक युग के अनुसार सभी परिवर्तनों का पालन करते हैं लेकिन वे अभी भी अपने पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों के संपर्क में हैं। भारत एक आध्यात्मिक देश है जहाँ लोग आध्यात्मिकता में विश्वास करते हैं। यहां के लोग योग, ध्यान और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में विश्वास करते हैं। भारत की सामाजिक प्रणाली महान है जहां लोग अभी भी दादा-दादी, चाचा, चाची, चाचा, ताऊ, चचेरे भाई, बहन, आदि के साथ बड़े संयुक्त परिवार में छोड़ते हैं, इसलिए, यहां के लोग जन्म से अपनी संस्कृति और परंपरा के बारे में सीखते हैं।

भारतीय संस्कृति पर निबंध, essay on indian culture in hindi (400 शब्द)

indian culture

भारत में संस्कृति सब कुछ है जैसे विरासत में मिले विचार, लोगों के रहन-सहन का तरीका, विश्वास, संस्कार, मूल्य, आदतें, देखभाल, सौम्यता, ज्ञान, आदि। भारत दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता है जहाँ लोग अभी भी मानवता की अपनी पुरानी संस्कृति का पालन करते हैं।

संस्कृति वह तरीका है जिससे हम दूसरों के साथ व्यवहार करते हैं, चीजों के प्रति कितनी नरम प्रतिक्रिया देते हैं, मूल्यों, नैतिकता, सिद्धांतों और विश्वासों के प्रति हमारी समझ होती है। पुरानी पीढ़ियों के लोग अपनी अगली पीढ़ियों के लिए अपनी संस्कृतियों और मान्यताओं को पारित करते हैं, इसलिए, यहां हर बच्चा दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करता है, क्योंकि वह पहले से ही माता-पिता और दादा-दादी से संस्कृति के बारे में जानता था।

हम यहां नृत्य, फैशन, कलात्मकता, संगीत, व्यवहार, सामाजिक मानदंड, भोजन, वास्तुकला, ड्रेसिंग सेंस आदि सभी चीजों में संस्कृति को देख सकते हैं। भारत विभिन्न मान्यताओं और व्यवहारों वाला एक बड़ा पिघलने वाला बर्तन है जिसने यहां विभिन्न संस्कृतियों को जन्म दिया।

यहाँ के विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति लगभग पाँच हज़ार वर्ष से बहुत पुरानी है। यह माना जाता है कि हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई थी। सभी पवित्र हिंदू शास्त्रों को पवित्र संस्कृत भाषा में लिखा गया है। यह भी माना जाता है कि जैन धर्म की प्राचीन उत्पत्ति है और उनका अस्तित्व सिंधु घाटी में था।

बौद्ध धर्म एक और धर्म है जो देश में भगवान गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के बाद उत्पन्न हुआ था। ईसाई धर्म बाद में लगभग दो शताब्दियों तक लंबे समय तक शासन करने वाले फ्रांसीसी और ब्रिटिश लोगों द्वारा यहां लाया गया था। इस तरह विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति प्राचीन समय में हुई थी या किसी भी तरह से इस देश में लाई गई थी। हालाँकि, प्रत्येक धर्म के लोग अपने अनुष्ठानों और मान्यताओं को प्रभावित किए बिना शांति से यहाँ रहते हैं।

युगों की विविधता आई और चली गई लेकिन हमारी वास्तविक संस्कृति के प्रभाव को बदलने के लिए कोई भी इतना शक्तिशाली नहीं था। युवा पीढ़ी की संस्कृति अभी भी गर्भनाल के माध्यम से पुरानी पीढ़ियों से जुड़ी हुई है। हमारी जातीय संस्कृति हमेशा हमें अच्छा व्यवहार करने, बड़ों का सम्मान करने, असहाय लोगों की देखभाल करने और हमेशा जरूरतमंद और गरीब लोगों की मदद करने की सीख देती है।

यह हमारी धार्मिक संस्कृति है कि हम उपवास रखें, पूजा करें, गंगाजल चढ़ाएं, सूर्य नमस्कार करें, परिवार में बड़े लोगों के चरण स्पर्श करें, दैनिक रूप से योग और ध्यान करें, भूखे और विकलांग लोगों को भोजन और पानी दें। हमारे राष्ट्र की महान संस्कृति है कि हमें हमेशा अपने मेहमानों का स्वागत एक भगवान की तरह करना चाहिए, बहुत खुशी के साथ, यही कारण है कि भारत “अतीथि देवो भव” जैसे एक आम कहावत के लिए प्रसिद्ध है। हमारी महान संस्कृति की मूल जड़ें मानवता और आध्यात्मिक अभ्यास हैं।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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Indian culture essay in hindi भारतीय संस्कृति पर निबंध.

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hindiinhindi Essay on Indian Culture in Hindi

 Essay on Indian Culture In Hindi 300 Words

भारत की संस्कृति बहुत सारी चीजों से मिल जुलकर बनी है जैसे की विरासत के विचार, लोगों की जीवन शैली, मान्यताएँ, रीति-रिवाज़, मूल्य, आदतें अदि। भारत की संस्कृति, भारत का महान इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान आगे बढ़ी और चलते-चलते वैदिक युग में विकसित हुई। भारत विश्व के उन प्राचीन देशो में से एक है जिसमे बौद्ध धर्म और स्वर्ण युग की शुरुआत हुई, जिसमे खुद की एक अलग प्राचीन विश्व विरासत शामिल है।

संस्कृति दूसरों से व्यवहार करने का, प्रतिक्रिया, मूल्यों को समझना, मान्यताओं को मानने का एक तरीका है। दुनिआ भर के अलग अलग देशो की अपनी भिन-भिन संस्कृति है, और सभी को अपनी संस्कृति पर नाज़ है। भारत की संस्कृति में पड़ोसी देशों के रीति-रिवाज, परंपरा और विचारों का अभी बहुत समावेश है। भारत हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे अन्य कई धर्मों का जनक है। दिन भर के सभी कार्यो में अपने देश के संस्कृति के झलक मिल जाती है जैसे कि नृत्य, संगीत, कला, व्यवहार, सामाजिक नियम, भोजन, हस्तशिल्प, वेशभूषा आदि।

विश्व कि प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक होने के कारन भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में बहुत महत्व रखती है। भारत कि संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता और तीसरी जगद्गुरु होना है।

पुराणी पीढ़ी के लोग नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति और मान्यताओं को सौंपते है, जो खुद बूढ़े होने पर आने वाली पीढ़ी को सौंप देते है। इसी तरह ये संस्कृति आगे बढ़ती जाती है और विशाल रूप धारण कर लेती है। इसी संस्कृति की वजह से ही सभी बच्चे अच्छे वे व्यवहार करते ही क्योकि ये संस्कृति उन्हें उनके दादा-दादी और नाना-नानी से मिली। ये हमारे भारत देश कि ही संस्कृति है जहा घर ए मेहमान कि सेवा की जाती है और मेहमान को भगवन का दर्जा दिया जाता है। इसी वजह से भारत में “अतिथि देवो भव:” का कथन बेहद प्रसिद्ध है।

Essay on Indian Culture In Hindi 1000 Words

संस्कृति-सामाजिक संस्कारों का दूसरा नाम है जिसे कोई समाज विरासत के रूप में प्राप्त करता है। दूसरे शब्दों में संस्कृति एक विशिष्ट जीवन शैली है, एक ऐसी सामाजिक विरासत है जिसके पीछे एक लम्बी परम्परा होती है।

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम तथा महत्त्वपूर्ण संस्कृतियों में से एक है, किंतु यह कब और कैसे विकसित हुई, यह कहना कठिन है। प्राचीन ग्रंथों के आधार पर इसकी प्राचीनता का अनुमान लगाया जा सकता है। वेद संसार के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। भारतीय संस्कृति के मूलरूप का परिचय हमें वेदों से मिलता है। वेदों की रचना ईसा से कई हजार वर्ष पूर्व हुई थी। सिंधु घाटी की सभ्यता का विवरण भी भारतीय संस्कृति की प्राचीनता पर प्रकाश डालता है। इसका इतना लंबा और अखंड इतिहास इसे महत्त्वपूर्ण बनाता है। मिस्र, यूनान और रोम आदि देशों की संस्कृतियां आज केवल इतिहास बन कर सामने हैं, जबकि भारतीय संस्कृति एक लम्बी ऐतिहासिक परम्परा के साथ आज भी निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। महाकवि इकबाल के शब्दों में -
यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहाँ से। 
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।।

आखिर यह बात क्या है ? भारत में समय-समय पर ईरानी, यूनानी, शक, कुषाण, हूण, अरब, तुर्क, मंगोल आदि जातियाँ आईं लेकिन भारतीय संस्कृति ने अपने विकास की प्रक्रिया में इन सभी को आत्मसात कर लिया और उनके अच्छे गुणों को ग्रहण करके उन्हें अपने रंग-रूप में ऐसा ढाला कि वे आज भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। भारत ने वे सभी विचार, आचार-व्यवहार स्वीकार कर लिए जो उसकी दृष्टि में समाज के लिए उपयोगी थे। अच्छे विचारों को ग्रहण करने में भारतीय संस्कृति ने कभी परहेज नहीं किया। विविध संस्कृतियों को पचाकर उन्हें एक सामाजिक स्वरूप दे देना ही भारतीय संस्कृति के कालजयी होने का कारण है।’ अनेकता में एकता’ ही भारतीय संस्कृति की विशिष्टता रही है। कवि गुरु रवींद्रनाथ ठाकुर ने भारत को ‘महामानवता का सागर’ कहा है। यह सचमुच महासागर है। यह – जाति, धर्म, भाषा-साहित्य, कला-कौशल आदि की अनेक सरिताओं द्वारा समृद्ध महामानवता का महासागर है। संसार के सभी प्रमुख धर्म भारत में प्रचलित हैं। सनातन धर्म (हिंदू), जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, इस्लाम, सिख सभी धर्मों को मानने वाले लोग यहां रहते हैं। भाषा की दृष्टि से यहां लगभग 150 भाषाएं बोली जाती हैं। यहाँ ‘ढाई कोस पर बोली बदले’ वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है। संसार के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद के रूप में साहित्य की जो प्रथम धारा यहीं फूटी थी, वही समय के साथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिंदी, गुजराती, बंगला, तथा तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि के माध्यमों से विकसित हुई और फ़ारसी तथा अंग्रेजी साहित्य ने भी उसे ग्रहण किया।

नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी यही समन्वय देखने को मिलता है। भारत नाट्यम, ओडिसी, कुच्चिपुड़ि, कथकली, मणिपुरी, कत्थक नृत्य शैली में मुगल दरबार की संस्कृति का बड़ा सुंदर रूप देखने को मिलता है। भारतीय संगीत में भी हमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। सामगान से उत्पन्न भारतीय संगीत के विकास के पीछे भी समन्वय की एक लम्बी परम्परा है। यह लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत दोनों को अपने में समेटे हुए है। हिन्दुस्तानी तथा कर्नाटक शास्त्रीय संगीत दोनों में ही अनेक लोकधुनों ने राग-रागिनियों के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कर ली है। ईरानी संगीत का प्रभाव आज भी अनेक राग-रागिनियों और वाद्य यंत्रों पर स्पष्ट दिखाई देता है। हिन्दुस्तानी संगीत की समद्धि में तो अनेक मुस्लिम संगीतकारों का योगदान रहा है।

साहित्य और संगीत के समान भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला में भी विविधता में एकता दिखाई देती है। इससे भारत में आई विभिन्न जातियों की कलाशैलियों के पूरे इतिहास की झलक देखने को मिलती है। इसमें एक ओर तो शक, कुषाण, गांधार, ईरानी, यूनानी शैलियों से प्रभावित धाराएँ आ जुड़ी हैं तो दूसरी ओर इस्लामी और ईसाई सभ्यता से प्रभावित धाराएँ, किंतु ये सब धाराएँ मिलकर भारतीय कला को एक विशिष्ट रूप प्रदान करती हैं।

भारत पर्वो एवं उत्सवों का देश है। हमारे पर्व एवं त्योहार अनेकता में हमारी सांस्कृतिक एकता को दर्शाते हैं। दीपावली, दशहरा, बैशाखी, पोंगल, ओणम, मकर संक्रांति, गुरुपर्व, बिहू, ईद-उल-फ़ितर, ईद-उल-जुहा, क्रिसमस, नवरोज आदि में भारतीय संस्कृति की इसी एकात्मकता के दर्शन होते हैं। इन सभी पर्यों एवं त्योहारों ने हमारे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया हुआ है। ये सभी भारतीय संस्कृति की एकता जीवंत रूप में प्रस्तुत करते हैं और हमें ये बार-बार अनुभव कराते हैं कि हमारी परम्परा और हमारी संस्कृति मूलत: एक है।
देश के विभिन्न भागों में बसे लोग भाषा, धर्म, वेशभूषा, खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज़ आदि की दृष्टि से भले ही ऊपरी तौर पर एक दूसरे से भिन्न दिखाई देते हैं, किंतु इन विभिन्नताओं के बावजूद भारत एक सांस्कृतिक इकाई है।

वस्तुत: अनेकरूपता ही किसी राष्ट्र की जीवंतता, संपन्नता तथा समृद्धि का द्योतक है। भारतीय संस्कृति की समृद्धि तथा गरिमा इसी अनेकता का परिणाम है। इस अनेकता ने ही धर्म, जाति, वर्ग, काल की सीमाओं से ऊपर उठकर भारतीय संस्कृति को एकात्मकता प्रदान की है और महामानवता के एक सागर के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

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India Culture Essay In Hindi

भारतीय संस्कृति निबंध – India Culture Essay In Hindi

भारतीय संस्कृति पर छोटे तथा बड़े निबंध (essay on india culture in hindi), उपभोक्तावाद और भारत की संस्कृति – consumerism and culture of india.

  • प्रस्तावना,
  • भारत की संस्कृति,
  • पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव,
  • उपभोक्तावाद,
  • उदारवाद और आर्थिक सुधार,

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।

प्रस्तावना– संसार में अपने लिए तो सभी जीते हैं, किन्तु क्या इसको जीवन कहा जा सकता है? जो दूसरों के हितार्थ अपना सुख–चैन त्याग सकता है, वास्तविक जीवन तो वही जी रहा है। व्यक्ति के हित से सामाजिक तथा राष्ट्रीय हित को ऊपर मानना ही समाजवाद है। समाजवाद में संग्रह नहीं त्याग–बलिदान को ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। ‘महाभारत’ में समाजवाद की धारणा को इस प्रकार व्यक्त किया गया है–

त्यजेत् एकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामम् जनपदस्यार्थे , आत्मार्थे पृथ्वीं त्यजेत्।।

कुल के हित के लिए एक व्यक्ति, ग्राम के हितार्थ एक कुटुम्ब, जनपद के हित के लिए ग्राम के हितों को तथा आत्म– हित के लिए पृथ्वी को ही छोड़ देना उचित बताया गया है।

भारत की संस्कृति– भारतीय संस्कृति संग्रह नहीं त्याग की शिक्षा देती है। सत्य, अहिंसा, शान्ति, जीव रक्षा, क्षमा उसके आदर्श हैं। सभी प्राणियों को अपने समान देखने वाले को ही भारत में पण्डित माना गया है-

आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पण्डितः।

विद्या सभी को सुशिक्षित और ज्ञानी बनाने तथा धन दूसरों को दान देने के लिए होता है। इस प्रकार परमार्थ ही भारतीय संस्कृति का लक्ष्य है। यहाँ व्यापार धन कमाकर धनवान बनने के लिए नहीं किया जाता, समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। भारतीय संस्कृति में शक्ति दूसरों की रक्षा के लिए होती है, उत्पीड़न के लिए नहीं।

पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव– भारतीय संस्कृति आज अपना मूल स्वरूप खोती जा रही है। पाश्चात्य संस्कृति ने उसको दूषित कर दिया है। उसने त्याग–बलिदान, परमार्थ के आदर्श से हटकर स्वार्थ को अपना लिया है। भारत में भी अब खाओ, पीओ और मौज करो का आदर्श घर करता जा रहा है।

अपना हित अपना सुख ही महत्त्वपूर्ण है। सुख के लिए धन आवश्यक है। ‘धनात् धर्मः ततः सुखम्’ के उपदेश में से ‘धर्मः’ गायब हो गया है। अब तो धन से सुख मिलता है। धर्म की आवश्यकता नहीं। अतः किसी भी तरीके, भ्रष्टाचार, परशोषण, ठगी, लूट आदि से धन कमाना आज बुरा नहीं माना जाता।

उपभोक्तावाद– उपभोक्तावाद क्या है? आज विश्व की अर्थव्यवस्था पूँजी’ केन्द्रित है। उद्योग–व्यापार का लक्ष्य अधिक से अधिक धनोपार्जन है। इस धनोपार्जन का जोर माध्यम पर नहीं है, साधन उचित या अनुचित कोई भी हो सकता है, बस, वह धन कमाने में सहायक होना चाहिए।

उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो उद्योग में हुए उत्पादन का प्रयोग करता है। उसको अधिक से अधिक उत्पादन खरीदने को प्रोत्साहित किया जाता है। पुराने आदर्श आवश्यकताएँ कम से कम रखने के स्थान पर आज अधिक–से–अधिक आवश्यकताएँ रखना और उनकी पूर्ति करना सुखी होने के लिए जरूरी है। ऐसी स्थिति में इन्द्रिय दमन और मन के नियन्त्रण की बात ही बेमानी है।

उपभोक्तावाद का आधार बाजार है, अत: इसको बाजारवाद भी कहा जा सकता है। उद्योगों के विशाल मात्रा में हुए उत्पादन के लिए बाजार खोजना उत्पादक का लक्ष्य है। इसके लिए खरीददार की जेब में पैसा होना जरूरी है तथा उस पैसे को उन वस्तुओं के क्रय में खर्च होना भी जरूरी है जिनको उत्पादक ने बाजार में उतारा है। इसके लिए उत्पादक कम्पनियाँ तथा बैंकें ऋण भी देती हैं। इस प्रकार साधारण जन (उपभोक्ता) का दोहरा शोषण हो रहा है।

उदारवाद और आर्थिक सुधार– उदारवाद या आर्थिक सुधार पूँजीवाद का नया स्वरूप है। सरकार की यह आर्थिक नीति ऊपर से बडी जन हितकारी और सन्दर लगती है। हम किसके प्रति उदारता दिखा रहे हैं और किस अर्थनीति में सुधार कर रहे हैं? क्या इससे पूर्व प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की आर्थिक नीति दोषपूर्ण थी? वास्तविकता यह है कि हम देश के गरीबों, किसानों, मजदूरों को आर्थिक सुधार का लालीपाप दे रहे हैं।

हम प्रत्येक क्षेत्र में, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य में निजीकरण को बढ़ावा देकर जनता के शोषण का मार्ग खोल रहे हैं। इस नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र को जानबूझकर कमजोर तथा अनुपयोगी बनाया जा रहा है तथा उसके समानान्तर निजीकरण के नाम पर शोषण का मजबूत दुर्ग बनाया जा रहा है।

निजीकरण के अन्तर्गत चलने वाले शिक्षालयों में गरीबों के बच्चे पढ़ ही नहीं सकते, अस्पतालों में गरीब रोगी इलाज करा नहीं सकते। अतः इस दोहरी व्यवस्था से लाभ पैसे वालों को ही होने वाला है। सरकार कम से कम 100 दिन के रोजगार की गारन्टी देती है। यह कौन बतायेगा कि गरीब आदमी अपने परिवार को शेष 265 दिन क्या खिलायेगा?

इस तरह आर्थिक सुधार तथा उदारवाद के नाम पर पूँजीपतियों को और अधिक सम्पन्न तथा गरीब को और अधिक गरीब बनाया जा रहा है। अब तो कृषि क्षेत्र को भी सरकार ने विदेशी पूँजी निवेश के लिए खोल दिया है। किसान द्वारा अपने ही खेत पर दसरों के इशारे पर मजदूरी करने के लिए सरकार ने व्यवस्था कर दी है। सरकार ने खाद के दाम बढ़ा दिये हैं।

भारत के लोगों को सहायता (सब्सिडी) देने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं, किन्तु बजट में विदेशी कम्पनियों को शुल्क में तथा टैक्स में रियायत देने के लिए अपार धनराशि की व्यवस्था है। कोई दुर्घटना होने पर इन विदेशी कम्पनियों के लोगों को बचाने का काम भी सरकार करती है जैसा कि भोपाल गैस त्रासदी में हो चुका है।

यह नई पँजीवादी अर्थव्यवस्था भारतीय जनता (90 प्रतिशत) के शोषण का कारण है। इससे भारतीय समाज में आर्थिक असन्तुलन बढ़ेगा। गरीब और अधिक गरीब तथा अमीर और ज्यादा अमीर होगा। यह नीति शत–प्रतिशत अभारतीय है तथा भारत की संस्कृति के भी विपरीत है। ‘तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृध कस्विद्धनम्’ की भारतीय नीति के यह पूर्णत: विरुद्ध है।

उपसंहार– भारत एक जनतांत्रिक देश है। जनतंत्र में जनता का हित ही सर्वोपरि होता है। जनता किसी भी देश की जनसंख्या के 90–95 प्रतिशत लोगों को कहते हैं। इनमें किसान, मजदूर, नौकरीपेशा, छोटे व्यापारी आदि लोग होते हैं। जब तक इनके हित को महत्व नहीं मिलेगा, तब तक कोई आर्थिक नीति कारगर नहीं हो सकती। विदेशी कर्ज से सम्पन्नता का सपना देखना बुद्धिमानी नहीं है। गांधीजी पागल नहीं थे जो स्वदेशी उद्योगों के पक्षधर थे। गांधीजी के अनुयायी नेताओं को कम से कम इस बात का ध्यान तो रखना ही चाहिए।

भारत की संस्कृति पर निबंध

Essay on Indian Culture in Hindi: भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में काफी पसंद की जाती हैं। भारत की कला और संस्कृति देखने के लिए लोग दूसरे देशों से आते हैं।

Essay on Indian Culture in Hindi

हम यहां पर अलग-अलग शब्द सीमा में भारत की संस्कृति पर निबंध (Essay on Indian Culture in Hindi) शेयर कर रहे हैं। यह निबन्ध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होंगे।

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भारत की संस्कृति पर निबंध | Essay on Indian Culture in Hindi

भारत की संस्कृति पर निबंध (250 शब्द) .

जिस तरह से हमारा भारत महान हैं, उसी तरह हमारे देश की संस्कृति भी महान हैं और विश्व में इस संस्कृति को काफी पसंद किया जाता हैं। हमारे देश की संस्कृति आज की नहीं वरन काफी पुरानी हैं। लगभग 5000 हजार से भी अधिक पुरानी हैं हमारे देश की संस्कृति। विविधता में एकता यह कथन हमारी संस्कृति के लिए काफी आम हैं। इस कथन को हम काफी बोलते, सुनते हैं।

हमारे देश में विभिन्न धर्म और जाति के लोग रहते हैं, उसके बावजूद हामारी देश की संस्कृति एक है और यहां पर सभी धर्मो के त्यौहार सब धूम-धाम से मनाते हैं। भारत में हम सब हमारी देश की संस्कृति का सम्मान करते हैं।

भारत की संस्कृति का गुणगान तो सात समुन्द्र पार विदेशों में भी किया जाता हैं। वहां के लोग हमारी संस्कृति, वेशभूषा इत्यादि काफी पसंद करते हैं। विदेशों में लोग हमारे यहां के कपड़े विशेषतौर पर हमारे देश की साड़ी को भी विदेश में काफी पसंद करते हैं।

हमारे देश में घूमने और भारत की संस्कृति को देखने के लिए लोग विदेशों से आते हैं। मुख्यतौर पर अमेरिका, कनाडा इत्यादि देश। भारत में कई देशों से पर्यटक आते हैं।

भारत की संस्कृति पर निबंध (800 शब्द) 

भारत की संस्कृति पुरे विश्व में मशहूर हैं। हमारे देश की संस्कृति, यहां की वेशभूषा और रहन- सहन काफी अच्छे हैं, जिसे देश के लोग और विदेश से आने वाले लोग भी काफी पसंद करते हैं। भारतीय संस्कृति के बारे में इतना ही कहना काफी नहीं हैं कि यह केवल एक संस्कृति हैं। यह एक संस्कृति मात्र नहीं हैं बल्कि यह भारत की एक विशेष पहचान हैं।

भारत की संस्कृति में यहां का लोक संगीत, देश भर में फैली खूबसूरत वादियाँ और यहां के लोगों का रहन-सहन ही हमारे देश की संकृति की पहचान हैं। हमें एक भारतीय होने के नाते हमारे देश की इस संस्कृति पर हमें गर्व हैं। हम हमारे देश की संस्कृति पर गर्व करते हैं। हमारे देश की संस्कृति को बनाये रखने के लिए यहां के लोगों ने आजादी से पूर्व काफी संगर्ष किये है। हम आज भी प्रयासरत हैं कि हमारे देश की संस्कृति की दुनिया में और भी पहचान बने।

भारत की संस्कृति की विदेश में हैं विशेष पहचान

भारत की संस्कृति के बारे में यह कहना सही नहीं हैं, यह केवल भारत की ही संस्कृति हैं। भारत की संस्कृति को विदेश में भी लोग काफी पसंद करते हैं। भारत की संस्कृति की पहचान तो विदेश में भी हैं। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश के लोग भारत में भारत की संस्कृति देखने आते हैं।

भारत की संस्कृति विदेशों में काफी पसंद की जाती हैं। विदेश में महिलाएँ भारतीय साड़ी पहनती हैं तो लोग भारतीय पोषक विशेष राजस्थानी विशेष पहन कर भारत की संस्कृति के प्रति प्यार दिखाते हैं।

भारत की संस्कृति प्राचीन समय से ही जानी जाती हैं। भारत की संस्कृति कृषि प्रधान देश हैं। विश्व में जब प्राचीन संस्कृतियों की खोज चल रही थी, उस समय और उससे पहले भी भारत की संस्कृति विद्यमान थे।

कई मेलों और त्योहारों का संगम हैं हमारा देश

भारतीय संस्कृति की सबसे खूबसूरत बात तो हमें इस बात में देखने को मिलती हैं कि हमारे देश में कई त्यौहार बड़े धूम धाम से और एकता के साथ मनाये जाते हैं। ईद, दिवाली, क्रिशमस, लोहड़ी, पोंगल इत्यादि और भी कई त्यौहार हम एक साथ और सामाजिक सद्भावना के साथ मानते हैं। होली के दिन हम सभी एक साथ रंगों से खेलते हैं और हमारे साथ देश का हर एक नागरिक होली खेलता हैं फिर चाहे वो किसी भी धर्म से हो। इन सब के साथ और भी कई त्योहारों को हम साथ-साथ मानते हैं।

दिसम्बर के महीने में हम क्रिश्मस भी सब के साथ मानते हैं और साल की अंतिम रात नए साल का इन्तजार भी बड़ी बेसब्री से करते हैं। हिन्दुस्तान में कई त्यौहार और पर्व एक साथ मानते हैं। साथ खाते हैं और जीवन का आनंद लेते हैं। यही हमारे देश की संस्कृति की ख़ूबसूरती हैं।

कला और नृत्य के लिए विश्व प्रशिद्ध

हमारे देश में कला और संस्कृति के कलाकारों की कमी नहीं हैं। हम जिस देश में निवास करते हैं, उसे भारत कहते हैं। भारत यानी भरत का देश। हमारे राष्ट्र में कलाकरों को काफी सम्मान दिया जाता हैं। देश में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अपनी स्किल से अपनी पहचान विदेश तक बनाई हैं।

देश के कलाकार विश्व के अन्य देशों में जाकर अपनी कला और कृति की जलख दिखाते हैं। भारत देश के नागरिक जो भी बाहर जाते है या दूसरे देशों में व्यापर करते हैं वो अपनी संस्कृति को कभी नहीं भूलते हैं। विदेश में भी अपनी संस्कृति की कला के बारे में लोगों को अवगत करते हैं।

हिन्दुस्तान की कला और संस्कृति देखने के लिए लोग काफी दूर विदेशों से आते हैं। विदेश से आने वाले पर्यटक भी हमारा देश की संस्कृति में इस कदर घूल जाते हैं जैसे की मानो वो यही के निवासी हो। यहां आने के बाद वे यहा की संस्कृति को जानने और समझने का प्रयास तो करते हैं, इसके साथ ही वे यहां का रंगढंग और वेशभूषा को भी काफी पसंद करते हैं।

हमारे देश की संस्कृति पुरे विश्व में प्रशिद्ध हैं। विश्व में काफी देशों में से लोग भारत में भारत की संस्कृति देखने के लिए यहा आते हैं। भारत की संस्कृति में मुख्यरूप से भारत का रहन-सहन और खान-पीन मुख्य हैं। भारत की संस्कृति को काफी देशों में अपनाया भी जा रहा हैं, जो हमारे लिए गर्व की बात है।

अंतिम शब्द  

हमने यहां पर “भारत की संस्कृति पर निबंध (Essay on Indian Culture in Hindi)” शेयर किया है। उम्मीद करते हैं कि आपको यह निबंध पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह निबन्ध कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

  • नैतिकता पर निबंध
  • ईमानदारी पर निबंध
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Rahul Singh Tanwar

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भारतीय संस्कृति और परंपरा पर निबंध | Indian Culture and Tradition Essay in Hindi | Essay on Indian Culture and Tradition in Hindi

admin

Indian Culture and Tradition Essay in Hindi  :   इस लेख में हमने भारतीय संस्कृति और परंपरा पर निबंध के बारे में जानकारी प्रदान की है। यहाँ पर दी गई जानकारी बच्चों से लेकर प्रतियोगी परीक्षाओं के तैयारी करने वाले छात्रों के लिए उपयोगी साबित होगी।

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर  निबंध:  भारतीय संस्कृति और परंपराएं दुनिया भर में अद्वितीय हैं। भारतीय संस्कृति और परंपरा निबंध भारत में लोगों द्वारा अनुसरण की जाने वाली परंपराओं और संस्कृतियों की विविधता पर विस्तार से बताता है। भारत कई संस्कृतियों, परंपराओं और धर्मों का देश है जिसने लोगों को एक शांतिपूर्ण, रंगीन, समृद्ध और विविध राष्ट्र में रहने के लिए प्रेरित किया। यह अविश्वसनीय है कि भारत की विभिन्न दिशाओं जैसे उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम की अपनी संस्कृतियां और परंपराएं हैं।

भारत में सभी दिशाओं में 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं। भारत में 22 भाषाएं हैं और ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन धर्म, हिंदू धर्म आदि जैसे कई धर्म मौजूद हैं। जबकि हिंदी भारत की राजभाषा है। हालाँकि, भारत सबसे पुरानी सभ्यता है जहाँ लोग अभी भी देखभाल और मानवता की अपनी पुरानी संस्कृतियों का पालन करते हैं। आज की दुनिया में भले ही लोग आधुनिक हो गए, फिर भी वे रीति-रिवाजों के अनुसार त्योहार मनाते हैं।

भारतीय संस्कृति संगीत, कला, नृत्य, भाषा, व्यंजन, पोशाक, दर्शन और साहित्य में अपनी विविधता के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषताएं सभ्य संचार, विश्वास, मूल्य, शिष्टाचार और अनुष्ठान हैं। भारत दुनिया भर में अपनी ‘ विविधता में एकता’ के लिए जाना जाता है। इसका मतलब है कि भारत एक विविध राष्ट्र है जहां कई धार्मिक लोग अपनी अलग संस्कृतियों के साथ शांतिपूर्वक एक साथ रहते हैं। इसलिए, हम भारत में विभिन्न भाषाओं, पहनावे, खान-पान और रीति-रिवाजों के लोगों को एकता के साथ रहते हुए देख सकते हैं।

आप विभिन्न विषयों पर  निबंध  पढ़ सकते हैं।

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर लंबा निबंध(500 शब्द)

भारतीय संस्कृति और धर्म

भारतीय धर्म का भारत की संस्कृति और परंपराओं को आकार देने पर बहुत प्रभाव पड़ता है। भारत में कई धर्म हैं जिनकी उत्पत्ति पांच हजार साल पहले हुई थी। हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों से हुई है, इसलिए सभी हिंदू शास्त्र संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं। लोगों का मानना ​​है कि जैन धर्म की उत्पत्ति प्राचीन है और सिंधु घाटी में मौजूद है। जबकि एक अन्य धर्म, बौद्ध धर्म की उत्पत्ति देश में गौतम बुद्ध की शिक्षाओं से हुई। ऐसे कई युग हैं जो आए और चले गए लेकिन वास्तविक संस्कृति के प्रभाव को नहीं बदला। यही कारण है कि युवा पीढ़ी अभी भी पुरानी पीढ़ी की संस्कृति का पालन करती है।

हालाँकि, भारतीय जातीय संस्कृति लोगों को असहायों की देखभाल करना, गरीब लोगों की मदद करना और बड़ों का सम्मान करना सिखाती है। किसी का भी अभिवादन करने का भारत का पारंपरिक पहलू ‘नमस्ते’ कहना और बड़े के पैर छूना है। भारत में पारंपरिक पारिवारिक संरचना एक संयुक्त परिवार है, जहाँ कई पीढ़ियाँ एक घर में एक साथ रहती हैं। भारत में लोग अभी भी ‘अरेंज मैरिज’ की पारंपरिक शादी की अवधारणा का पालन करते हैं, जहां एक बच्चे का जीवनसाथी उसके माता-पिता द्वारा चुना जाएगा।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध | Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Biography of Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद पर निबंध | Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Biography of Swami Vivekananda in Hindi

कला भी भारत की विशिष्ट संस्कृतियों में से एक है। भारत के प्रत्येक राज्य में कथकली, भरतनाट्यम, कथक, मोहिनीअट्टम, ओडिसी, आदि जैसे नृत्य और गायन का अपना रूप है। इसके अलावा, भारतीय लोग महान भारतीय संस्कृति का पालन करके अपने मेहमानों का भगवान की तरह स्वागत करते हैं। लोग लोकप्रिय कहावत को मानते हैं कि ‘अतिथि देवो भव’। इसलिए मानवता और आध्यात्मिक साधनाएं भारतीय संस्कृति की जड़ें हैं।

भारतीय त्यौहार

त्यौहार भारतीय संस्कृति और परंपरा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में अलग-अलग धर्म के लोग अलग-अलग त्योहार मनाते हैं। दिवाली, दशहरा, नवरात्रि, जन्माष्टमी, शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी आदि जैसे लोकप्रिय त्योहार भारत में हिंदू लोगों द्वारा मनाए जाते हैं। जबकि ईद-उल-फितर, बकरीद, मुहर्रम आदि त्योहार भारत में इस्लामिक लोगों द्वारा मनाए जाते हैं। इसके अलावा, कई फसल त्योहार जैसे मकर संक्रांति, चापचर कुट, पोंगल, सोहराई, आदि किसानों द्वारा मनाए जाते हैं।

हालाँकि, ईसाई भारत में क्रिसमस, गुड फ्राइडे आदि त्योहार भी मनाते हैं। भारत के प्रत्येक राज्य में तीज, ओणम, उगादी, सरस्वती पूजा, पन्ना संक्रांति, छठ पूजा, पोंगल, लोहड़ी, आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रीय त्योहार भी मौजूद हैं।

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भारतीय व्यंजन

भारतीय व्यंजन भी भारत में त्योहारों और धर्मों की तरह समान रूप से विविध हैं। भारतीय भोजन और खाने की आदतें जगह-जगह भिन्न होती हैं क्योंकि प्रत्येक राज्य का अपना विशेष भोजन और खाने की आदतें होती हैं। दूसरे शब्दों में, देश के विभिन्न भागों से संबंधित लोगों का अपना भोजन, रहन-सहन, पर्यावरण और वस्तुओं की उपलब्धता होती है। भारतीय व्यंजन सबसे प्रेरणादायक है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग व्यंजन हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों में बहुत सारी सामग्रियां शामिल हैं और दुनिया भर में अधिक प्रभावशाली हैं। भारतीय भोजन मुख्य रूप से लोगों की विविधता से प्रभावित होता है, इसलिए इसमें विभिन्न प्रकार के समृद्ध व्यंजन हैं। उत्तर भारतीय भोजन में सब्जियां, रोटी, दाल, चावल, मछली करी, परांठे आदि शामिल हैं। दक्षिण भारतीय भोजन में डोसा, सांबर, इडली, वड़ा, उपमा, उत्तपम आदि शामिल हैं। सामान्य तौर पर, दक्षिण भारतीय लोग सरसों या सूरजमुखी के तेल के बजाय नारियल के तेल का उपयोग करके खाना बनाते हैं।

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर लघु निबंध (300 शब्द)

भारतीय वेशभूषा भारत के विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग हैं। यह जगह की उत्पत्ति, जलवायु और विरासत के आधार पर भिन्न होता है। भारतीय संस्कृति अभी भी पारंपरिक वेशभूषा का पालन करती है। पूर्वी राज्यों जैसे ओडिशा, पश्चिम बंगाल और दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु और कर्नाटक में महिलाएं प्रामाणिक कपड़ों के रूप में साड़ी पहनती हैं। यह शरीर के चारों ओर लिपटा एक एकल और लंबा कपड़ा टुकड़ा है।

इसी तरह, पूर्वी राज्यों में पुरुष धोती-कुर्ता या कुर्ता-पायजामा को प्रामाणिक कपड़ों के रूप में पहनते हैं। पंजाब जैसे उत्तरी राज्यों में, महिलाएं पारंपरिक कपड़ों के रूप में सलवार कमीज और कुर्ती पहनती हैं। जबकि पुरुष पारंपरिक कपड़ों के रूप में दस्तार के नाम से जाने जाने वाले हेडगियर या पगड़ी पहनते हैं। भारत में, सभी विवाहित महिलाएं अपने बालों के विभाजन में सिंदूर लगाती हैं। वे अपनी पोशाक के हिस्से के रूप में बिंदी, मेहंदी, चूड़ियाँ और झुमके भी पहनते हैं।

भारतीय साहित्य

19वीं शताब्दी में भारत में प्रथम साहित्य ऋग्वेद की रचना हुई। यह संस्कृत में लिखा गया था और बाद में कई धार्मिक ग्रंथों और साहित्यिक कार्यों की नींव बन गया। इसके अलावा, यजुर्वेद और अथर्ववेद आर्यों द्वारा लिखित भारतीयों द्वारा पीछा किया गया। अन्य प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियाँ ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण और भारत में ऋषि व्यास द्वारा लिखित महाभारत हैं।

मुगल साम्राज्य, बाबरनामा और अकबरनामा जैसे राजाओं की आत्मकथाएँ भी अनमोल साहित्य हैं जिनके द्वारा हम युग के बारे में जान सकते हैं। इसके अलावा, विदेशी यात्रियों ने फा हेन और हुसैन त्सुंग जैसे कुछ ग्रंथ लिखे हैं जो भारतीय लोगों की परंपराओं और जीवन शैली के बारे में ज्ञान प्रदान करते हैं।

भारतीय संस्कृति और परंपरा निबंध पर निष्कर्ष

भारत समृद्ध संस्कृति और परंपरा की भूमि है जो लोगों को दया, उदारता और सहिष्णुता सिखाती है। भारतीय संस्कृति एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न है क्योंकि यह एक बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक और बहु-जातीय समाज है। भारतीय संस्कृति आधुनिक पश्चिमी संस्कृति और ऐतिहासिक परंपराओं का अनूठा मिश्रण है। भारत महान किंवदंतियों का देश है जहां कई महान लोगों का जन्म हुआ और राष्ट्र के लिए उनके बलिदान के कारण उन्हें हमेशा याद किया गया। दुनिया भर में लोग भारत की संस्कृति और परंपरा का आनंद लेने और महसूस करने आते हैं।

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर निबंध | Indian Culture and Tradition Essay in Hindi | Essay on Indian Culture and Tradition in Hindi

भारतीय संस्कृति और परंपरा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

प्रश्न 1. परंपरा और संस्कृति क्या हैं?

उत्तर: परंपरा वे रीति-रिवाज और मान्यताएं हैं जिनका पालन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लोग करते हैं। जबकि संस्कृति एक समूह या समाज के भीतर के रीति-रिवाज, मूल्य और सामाजिक व्यवहार है।

प्रश्न 2. भारतीय संस्कृति का क्या महत्व है?

उत्तर: भारतीय संस्कृति दुनिया भर में अद्वितीय है। भारत दुनिया भर में अपनी ‘विविधता में एकता’ के लिए जाना जाता है। इसका मतलब है कि भारत एक विविध राष्ट्र है जहां कई धार्मिक लोग अपनी अलग संस्कृतियों के साथ शांतिपूर्वक एक साथ रहते हैं। इसलिए, हम भारत में विभिन्न भाषाओं, पहनावे, खान-पान और रीति-रिवाजों के लोगों को एकता के साथ रहते हुए देख सकते हैं। भारतीय संस्कृति संगीत, कला, नृत्य, भाषा, व्यंजन, पोशाक, दर्शन और साहित्य में अपनी विविधता के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3. भारतीय परंपरा क्या है?

उत्तर: भारत का पारंपरिक पहलू है किसी को भी ‘नमस्ते’ कहकर और बड़े के पैर छूकर अभिवादन करना। भारत में पारंपरिक पारिवारिक संरचना एक संयुक्त परिवार है, जहाँ कई पीढ़ियाँ एक घर में एक साथ रहती हैं। भारत में लोग अभी भी ‘अरेंज मैरिज’ की पारंपरिक शादी की अवधारणा का पालन करते हैं, जहां एक बच्चे का जीवनसाथी उसके माता-पिता द्वारा चुना जाएगा।

प्रश्न 4. भारत की खाद्य संस्कृति क्या है?

उत्तर: भारतीय खाद्य संस्कृति अलग-अलग जगहों पर भिन्न होती है क्योंकि प्रत्येक राज्य का अपना विशेष भोजन और खाने की आदतें होती हैं। भारतीय खाद्य पदार्थों में बहुत सारी सामग्रियां शामिल हैं और दुनिया भर में अधिक प्रभावशाली हैं। उत्तर भारतीय भोजन में सब्जियां, रोटी, दाल, चावल, फिश करी, परांठे आदि शामिल हैं। दक्षिण भारतीय भोजन में डोसा, सांबर, इडली, वड़ा, उपमा, उत्तपम आदि शामिल हैं। सामान्य तौर पर, दक्षिण भारतीय लोग नारियल के तेल का उपयोग करके खाना बनाते हैं।

प्रश्न 5. भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषताएं क्या हैं?

उत्तर: भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विशेषताएं सभ्य संचार, विश्वास, मूल्य, शिष्टाचार और अनुष्ठान हैं।

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Indian Culture Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति पर निबंध

October 16, 2017 by essaykiduniya

Here you will get Paragraph, Short Essay on Indian Culture in Hindi Language. Indian Culture Essay in Hindi Language for students of all Classes in 150, 300, 500 and 1500 words. यहां आपको सभी कक्षाओं के छात्रों के लिए हिंदी भाषा में भारतीय संस्कृति पर निबंध मिलेगा।

Indian Culture Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति पर निबंध (150 Words) : भारत में एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है| यद्यपि इसे सांस्कृतिक आक्रमणों की एक श्रृंखला के अधीन किया गया है, लेकिन बाहरी प्रभावों का सर्वश्रेष्ठ अवशोषित करने के बाद भी अपनी मौलिकता और पारंपरिक चरित्र को बनाए रखा है। भारत विश्व के सबसे पुराने सभ्यताओं में से एक है- सिंधु घाटी सभ्यता। सभी धर्मों की सहनशीलता हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है। बहुत से धर्मों के सह-अस्तित्व एक दूसरे से अलग दिखते हैं जो हमारी संस्कृति के संवर्धन में योगदान करते हैं।

भारतीय चित्रकारी और मूर्तियां विभिन्न सभ्यताओं पर अपनी छाप छोड़ी हैं हमारे पूर्वजों ने न केवल दर्शन में बल्कि विज्ञान में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया भारतीय साहित्यिक विरासत विश्व में सबसे पुराना है। भारतीय संगीत और नृत्य ने सांस्कृतिक परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ी है। इसमें कई भारतीय भाषाओं में लिखी गई विभिन्न कलाओं और विज्ञानों पर कविता, नाटक और कामों का एक बड़ा निकाय शामिल है।

Indian Culture Essay in Hindi Language

Indian Culture Essay in Hindi Language – भारतीय संस्कृति पर निबंध ( 300 words )

भारत देश अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। भारत की सभ्यता विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता है जो कि लगभग 5000 साल पुरानी है। भारत में विभिन्न धर्म और विभिन्न संस्कृति के लोग एक साथ मिल जुलकर रहते हैं। विभिन्न, पर्व, कला, साहित्य, नृत्य, संगीत मिलकर भारतीय संस्कृति का निर्माण करते हैं। भारत में सभी त्योहार मिल जुलकर मनाए जाते हैं। हमारे संस्कार, बड़ो का सम्मान, छोटो से प्यार, हमारा रहन सहन, दुसरों के साथ आचरण हमारी संस्कृति को दर्शाते हैं। भारत की संस्कृति बच्चों में बचपन से ही देखने को मिलती है।

आज के आधुनिक युग में लोग आधुनिकरण को अपनाते जा रहे हैं लेकिन वह अपनी संस्कृति को कभी नहीं भूलते हैं। बहुत से युगों में भी भारतीय संस्कृति ऐसे ही बरकरार रही है। आज भी लोग पुरी परंपरा के साथ सभी धर्मों के त्योहारों को एक साथ मिल जुलकर मनाते हैं। हमारी संस्कृति हमें अतिथि का सत्कार करना सिखाती है और आज भी यह हमारे समाज में विराजमान है। जब भी किसी के घर अतिथि आता है तो इन्हें पूर्ण सम्मान दिया जाता है। हमारी संस्कृति हमें साथ मिल जुलकर रहना सिखाती है। हमारी संस्कृति आज भी बरकरार है। आज भी लोग संयुक्त परिवारों में रहते हैं और सभी त्योहार पूरा परिवार और मोहल्ला एक साथ मनाते हैं। हमारे देश एक धार्मिक संस्कृति वाला देश है जहाँ पर लोग पूजा पाठ, गंगा स्नान वर्त आदि में विश्वास रखते हैं। यहाँ के लोगों की संस्कृति में बुजुर्गों का सम्मान करना लिखा है।

हम सब भारतीय संस्कृति का बहुत सम्मान करते हैं और भारतीय संस्कृति की मिसाल पूरी दुनिया देती है। आज की युवा पीढ़ी को चाहिए कि वह भारतीय संस्कृति को बरकरार रखे । भारतीय संस्कृति समृद्ध देश है और हमें इसे समृद्ध बनाए रखना होगा।

Indian Culture Essay in Hindi Language – भारतीय संस्कृति पर निबंध (500 Words)

भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी और बहुत समृद्ध संस्कृतियों में से एक है, जो लगभग 5000 वर्षों तक की है !!!

भारत की संस्कृति बहुत समृद्ध और विविध है और इसलिए यह अपने तरीके से बहुत विशिष्ट है।

भारत एक ऐसा देश है जिसमें विभिन्न भाषाओं, धर्मों, विश्वासों, खाद्य स्वाद आदि शामिल हैं, जो कि दुनिया के किसी भी दूसरे देश की तुलना में इसकी एक पूरी तरह से भिन्न और खड़ी संस्कृति है। हालांकि, भारत ने आधुनिकीकरण स्वीकार किया है, हमारे विश्वास और मूल्य अभी भी अपरिवर्तित रहते हैं।

भारत की संस्कृति विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से एक संयोजन है। लगभग 29 राज्यों और सात संघ शासित प्रदेश हैं जो विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, आदतों और धर्मों में योगदान करते हैं जो भारतीय संस्कृति को सबसे अलग और लायक बनाते हैं। विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की ताकत है।

इनके अलावा, भारत में कुछ प्राचीन सभ्यताओं का घर है, जिसमें हिंदू धर्म, जैन धर्म, सिख और बौद्ध धर्म शामिल हैं, जिसने भारत की संस्कृति को भी योगदान दिया और समृद्ध किया। विभिन्न कारकों ने भारत की संस्कृति के गठन को प्रभावित किया है। यह समझना वास्तव में बहुत ही दिलचस्प है कि भारत में किस तरह की जटिल संस्कृतियां, आश्चर्यजनक विरोधाभास और अद्भुत सुंदरता है, जो कि भारत की महान संस्कृति के गठन के लिए सभी को एक साथ लाती है।

भारतीय संस्कृति भारतीयों को कई महान मूल्यों को मानती है, खासकर संबंधों और आतिथ्य में मूल्य। भारत में, यह आमतौर पर कहा जाता है और यह ज्ञात होता है कि मेहमानों को महान आतिथ्य के साथ व्यवहार किया जाता है कि किसी भी व्यक्ति को उस विशेष स्थान के सर्वश्रेष्ठ भोजन के बिना घर छोड़ दिया जाता है। ‘आदर’ एक और बड़ा सबक है कि भारतीय संस्कृति की किताबें एक को सिखाती हैं। अठठी देवा भव अतिथि को दिव्य माना जाता है।

भारतीय संस्कृति को ‘मातृ संस्कृति’ के रूप में भी जाना जाता है संगीत, जीवित, विज्ञान की कला, सभी क्षेत्रों का सदियों पहले एक गहरी ज्ञान और जड़ है। भारत एक ऐसा देश है जो युवाओं को संस्कृति के महत्व और मूल्य को सिखाता है, जिससे कि वे इन संस्कृतियों के साथ बढ़ते हैं और उनके मूल्यों में गहराई से घटी होती है और चाहे वे कहीं भी हों, वे हमेशा परंपरा, संस्कृति और मूल्य कि वे में खरीदा गया है।

आज, भारत की संस्कृति ने दुनिया भर में भौगोलिक सीमाओं और लोगों को पार कर लिया है, भारत की महान संस्कृति पर गौर करें जो कि सदियों से भारत की है और बनाए रखा है। भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति को एक गेट का रास्ता है।

Indian Culture Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति पर निबंध (1500 Words)

भारत को प्रकृति के सभी उपहार मिल चुके हैं प्रकृति ने पर्याप्त भोजन मुहैया कराया और मनुष्य को बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत मेहनत करने की ज़रूरत नहीं थी। भारत को पश्चिमी संस्कृति के दुष्प्रभावों का शिकार नहीं करना चाहिए मन को खिलने के लिए सोचने के लिए, कला और विज्ञान के विकास के लिए, प्राथमिक स्थिति एक सुरक्षित और सुरक्षित समाज है। एक समृद्ध संस्कृति उन्मादी समुदाय के लोगों में असंभव है ‘जहां लोग जीवन के लिए संघर्ष करते हैं|

इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, हम समझें कि संस्कृति क्या है संस्कृति एक सामाजिक प्रणाली से जुड़े प्रतीकों, विचारों और सामग्री के भंडार है। भारत में, अति प्राचीन काल से महान सभ्यताओं और संस्कृतियों का विकास हुआ है। भारत की विविधता जबरदस्त है| यह कई भाषाओं का देश है| यह कई जातीय समूहों का घर है लेकिन कुछ सामान्य लिंक हैं|

जो विविधता के बीच धागे और प्रभाव एकता के रूप में कार्य करते हैं। भारत में कई महान परंपराएं हैं सांस्कृतिक विरासत उन चीजों के लिए होती है जो पहले की पीढ़ियों से वर्तमान पीढ़ी तक पारित हो चुकी हैं। विशेष महत्व का साहित्य, संगीत और कला अपने सभी रूपों और रंगों में है भारत में एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है यह विभिन्न संस्कृतियों का एक स्वस्थ मिश्रण है| सिंधु घाटी सभ्यता सबसे पुराने (लगभग 6000 वर्ष की उम्र) और दुनिया के सबसे विकसित सभ्यताओं में से एक है।

लोगों को काफी उन्नत किया गया था और सार्वजनिक स्नान, स्वच्छ और साफ घरों, चौड़ी सड़कों और अन्य सुविधाओं के साथ अच्छे कस्बे का उपयोग किया गया था। उनके पास एक स्क्रिप्ट भी थी, जो द्रुतशी द्रविड़ भाषाओं की तरह दिखती थी। वेद ही मानव मस्तिष्क के सबसे पुराने दस्तावेज हैं जो दुनिया के पास है। वेद हमें प्रचुर मात्रा में जानकारी देते हैं चार वेद हैं: रिग, यजूर, सम और अथर्व उनमें, हमें ताजगी, सादगी और आकर्षण और दुनिया के रहस्यों को समझने की एक कोशिश मिलती है। प्राचीन भारतीय महाकाव्यों, अर्थात् रामायण और महाभारत में बुराई पर अच्छाई की जीत का शाश्वत- सबक है।

भगवद् गीता एक दार्शनिक सिद्धांतों से भरा किताब है। भगवान बुद्ध (563-483 बीसी) ने उपदेश किया कि अगर कोई अपने जुनूनों पर नियंत्रण रखता है तो वह सही सुख प्राप्त कर सकते हैं। हिंदू धर्म में दस अवतारों के अतिरिक्त, देवताओं और देवी की बड़ी संख्या है? भगवान विष्णु की यह उसके अनुयायियों को वे किसी भी रूप में भगवान की पूजा करने की अनुमति देता है। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव (1469-1539) ने सच्चे विश्वास, सादगी और जीवन की शुद्धता और धार्मिक सहिष्णुता पर सर्वोच्च बल दिया। हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम प्रमुख धर्मों में से एक है भारत में पीछा किया परंपरागत रूप से, सभी धर्मों की सहिष्णुता हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है।

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और राज्य सभी धर्मों को समान रूप से मानता है। भारत में हिंदू, इस्लाम, ईसाई धर्म और सिख धर्म के चार प्रमुख धर्म एक-दूसरे के रास्ते में आने के बिना भारत में मौजूद हैं; बल्कि एक दूसरे का पूरक। जबकि हिंदू धर्म का मुख्य जोर सत्य और अहिंसा के संरक्षण पर है, इस्लाम ईमानदारी पर ज़ोर देता है मुसलमानों को उच्च ईमानदारी के लोग माना जाता है जो कभी भी किसी भी दुर्भावनापूर्ण स्रोत से अनुचित धन स्वीकार नहीं करते हैं; वास्तव में, अपने स्वयं के पैसे के साथ लगाव एक पाप है ईसाईयत ‘खूनी’ को भी क्षमा का उपदेश देती है जबकि सिख धर्म प्रेम की शुद्धता पर पूरी दुनिया को शामिल करने और बिरादरी और भाईचारे के संदेश को फैलाने पर जोर देता है। भारतीय चित्रकारी और मूर्तिकला ने विभिन्न सभ्यताओं पर गहरा असर डाला। होशंगाबाद, मिर्जापुर और भीमबेटका में रॉक गुफा आदिम पुरुषों के चित्रों के साक्षी हैं।

अजिंठा गुफाओं की पेंटिंग काम का एक दुर्लभ टुकड़ा है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान कई चित्रकार उभरे अमृता शेरगिल, जमीनी रॉय और रबींद्रनाथ टैगोर मॉडेम पेंटिंग के अग्रदूत थे। अशोक स्तंभ, सांची स्तूप, कोनार्क, खजुराहो और महाबलीपुरम में स्थित मंदिर भारतीय मूर्तिकला के अनोखे काम हैं। जामा मस्जिद, लाल किला , ताजमहल और हुमायूं का मकबरा भारतीय और मुगल वास्तुकला का मिश्रण दिखाते हैं। इन सभी चमत्कार भारतीय इतिहास के मुगल काल के दौरान बनाए गए थे।

प्राचीन भारत में ज्योतिष और खगोलशास्त्र काफी लोकप्रिय थे। आर्यभट्ट ने दो हज़ार साल पहले सौर ग्रहण के समय की गणना की थी। ‘ज़ीरो’ की अवधारणा का आविष्कार भारत में किया गया था। भारतीय मूल के भारतीय वैज्ञानिक, जैसे सी॰ वी॰ रामन , सुब्रमण्यम चंद्रशेखर, हरगोबिंद खोराणा और वेंकटरमन रामकृष्णन ने विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार जीता है। संगीत मानव विचारों और भावनाओं की अभिव्यक्ति के सबसे पुराना रूपों में से एक है| भारतीय संगीत रागा और तालक की अवधारणा पर आधारित है। शास्त्रीय संगीत के दो प्रमुख विद्यालय- कर्नाटिक और हिंदुस्तानी हैं|

भारतीय संगीतकार भीमसेन जोशी, एम.एस. सुभलक्ष्रनी, किशोरी आमोनकर, पं। जसराज, उस्ताद अमजद अली खान, उस्ताद बिस्मिल्ला खान, उस्ताद जाकिर हुसैन, पं। रवि शंकर और अन्य ने भारत और विदेशों में हमारे संगीत को लोकप्रिय बना दिया है। भारत में नृत्य में 2,000 से अधिक वर्षों की एक अप्रभावी परंपरा है। इसका विषय पौराणिक कथा, किंवदंतियों और शास्त्रीय साहित्य से प्राप्त होता है। भारत में दो मुख्य प्रकार के नृत्य हैं ये लोक नृत्य और शास्त्रीय नृत्य हैं।

भारतीय शैली का नृत्य रास, भव और अभिन्न पर आधारित है। वे सिर्फ पैरों और हथियारों के आंदोलन नहीं हैं, लेकिन पूरे शरीर की। मंदिरों में ज्यादातर शास्त्रीय नृत्यों की कल्पना की गई और उनका पालन-पोषण किया गया। उन्होंने वहां अपना पूर्ण कद प्राप्त किया शास्त्रीय नृत्य रूप प्राचीन नृत्य अनुशासन पर आधारित होते हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों में से अधिकांश प्रसिद्ध भारतीय मंदिरों की दीवारों और खंभे पर चित्रित हैं। पांच प्रमुख शास्त्रीय नृत्य रूप हैं, अर्थात् भरतनाट्यम, कथकली, मणिपुरी, कथक और ओडिसी। अन्य प्रमुख नृत्य कुचीपुड़ी और मोहिनीअट्टम हैं।

कुछ प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक संजक्त पाणिगढ़ी, सोनल मान सिंह, बिरजू महाराज, गोपी कृष्ण, गुरु बिपिन सिन्हा, जवेरी बहनों, केलूचरण महापात्रा आदि हैं। भारत में एक समृद्ध साहित्यिक विरासत है जिसमें क्षेत्रीय साहित्य शामिल हैं। क्षेत्रीय साहित्य, वास्तव में, अक्सर राष्ट्रीय पहचान और एक राष्ट्रीय संस्कृति को बढ़ावा देने में योगदान दिया है। भारत हमेशा भाषावैज्ञानिक रूप से विविध समुदाय रहा है प्राचीन काल में भी, कोई भी सामान्य भाषा नहीं थी जो सभी भारतीयों द्वारा बोली जाती थी।

संस्कृत भाषा अभिजात वर्ग की भाषा थी, जबकि आम तौर पर प्राकृत और अर्ध माधधि की व्याख्या आम जनता ने की थी। मुगल शासन के दौरान, फारसी ने अदालत की भाषा के रूप में संस्कृत का स्थान ले लिया जबकि उर्दू और हिंदुस्तानी उत्तर भारत में आम जनता की भाषाएं थीं। हालांकि, दक्षिण में द्रविड़ भाषाएं बढ़ती रहीं कालिदास के अभिज्ञानम शकुन्तलाम और मेघदूत, विशाखदत्त की मृच्छक्तकाम, और जयदेव की गीत गोविंदम को उनके साहित्यिक उत्कृष्टता के लिए बहुत ही उच्च दर्जा दिया गया है।

14 वीं शताब्दी से लेकर 17 वीं शताब्दी तक की अवधि में भक्ति कविता या भक्ति कविता का प्रभुत्व था। कबीर, सूरदास और तुलसीदास इस युग के प्रसिद्ध कवि थे। भर्तेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी की आधुनिक काल की शुरुआत की थी मैथिली शरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा नंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी मुन्शी प्रेमचंद और महादेवी वर्मा जैसे कवियों ने आधुनिक हिंदी साहित्य में अमीर योगदान दिया है। भारत ने अंग्रेजी में कई साहित्यिक चमत्कार भी बनाये हैं ये तोरू दीट, निसिम एजेकेली, सरोजिनी नायडू, माइकल मधुसूदन दत्त थे, कुछ ही नाम हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने कविताओं के अपने संग्रह ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार जीता यह सच है कि भारत का एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है और भारतीयों ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है।

हालांकि, यह भी स्वीकार किया जाना चाहिए कि हमने अपनी संस्कृति के कुछ नकारात्मक पहलुओं को भी विरासत में मिला है। श्रम विभाजन के आधार पर समाज के विभाजन ने जाति व्यवस्था को जन्म दिया। जाति व्यवस्था ने लोगों के बीच एक खाड़ी बनायी, जिससे समाज में विवाद और संघर्ष हो। भारतीय समाज में बाल विवाह, सती, अस्पृश्यता, दहेज , मातृ दुःख और अन्य कई सामाजिक बुराइयों का जन्म हुआ। हमारे देश के कई हिस्सों में विधवाओं को जीवन दुख की निंदा की जाती है। राजा राममोहन राय , दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस देव, स्वामी विवेकानंद , रबींद्रनाथ टैगोर , महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू के दार्शनिक विचारों ने भारतीय संस्कृति से नकारात्मक तत्वों को खत्म करने के लिए बहुत योगदान दिया है।

आजादी के बाद से, भारतीय राष्ट्रीय पहचान और सांस्कृतिक एकता की भावना को बढ़ावा देने के लिए उत्सुक हैं। संस्कृति गतिशील है, अन्य संस्कृतियों के क्रॉस क्रिएट्स हमेशा किसी देश की संस्कृति को प्रभावित करते हैं। वर्तमान विश्व में यह इतना अधिक है, जहां सीमाएं अस्तित्व में हैं। आइए हम अपनी खिड़कियों और दरवाजों को अन्य संस्कृतियों और उनके स्वस्थ प्रभावों के लिए खोलें, लेकिन हमें लगातार खड़े रहना चाहिए और इसके हमले के खिलाफ अपने पैरों को दूर नहीं करना चाहिए।

हम आशा करेंगे कि आपको यह निबंध ( Indian Culture Essay in Hindi – भारतीय संस्कृति पर निबंध ) पसंद आएगा।

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Essay on Indian Culture in Hindi

हमारे भारत देश को पूरे विश्व में अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। हमारे भारत में बहुत सारे अलग-अलग प्रकार की संस्कृतियों को निभाया जाता है जो कि अलग-अलग धर्मों को स्थापित करती हैं। भारतीय संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व अच्छे शिष्टाचार तहजीब सभ्य संवाद धार्मिक संस्कार मान्यताएं एवं मूल आदि को माना जाता है। भारत में लोग अपनी परंपराओं के लिए लोगों के बीच में बहुत ज्यादा चर्चित रहते हैं भारत एक ऐसा देश है जहां पर इसकी संस्कृति इसके वातावरण को दर्शाती है। अपनी संस्कृति और परंपराओं के वजह से भारत आज विश्व का एकमात्र ऐसा देश बन चुका है जहां पर अनेक संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) के लोग एक साथ मिलजुल कर रहते हैं। अपनी परंपराओं का पालन करते हुए भारत अपने और अपने देश के लोगों के साथ बहुत आदर भाव से और शांतिपूर्वक तरीके से रहते है। आज पूरे विश्व में भारत की संस्कृति और परंपरा की बात की जाती है भारत एकमात्र ऐसा देश बन चुका है जहां की संस्कृति और परंपरा उसके वातावरण को दर्शाती है।

Table of Contents

भारतीय संस्कृति:-

भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है जिसे आज के समय में लगभग 50000 साल हो गए हैं। विश्व की सबसे पहली और महान संस्कृति के रूप में भारत की संस्कृति को ही देखा जाता है। विविधता में एकता का कथन यहां पर आम और अर्थात भारत एक विविधता पूर्वक देश है जहां विभिन्न धर्मों के लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ शांतिपूर्वक एक साथ मिलजुल कर रह सकते हैं। भारत देश में हर कोई अपने धर्म के अनुसार अपनी भाषा बोलने का तरीका, रीति रिवाज आदि हर एक चीज को अपने तरीके से अदा कर सकते हैं। पूरे विश्व में ही भारतीय संस्कृति इसीलिए बहुत प्रसिद्ध है क्योंकि यहां पर किसी भी धर्म के ऊपर किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। विश्व के बहुत रोचक और प्राचीन संस्कृति के रूप में भारत की इस महान सभ्यता को देखा जाता है। यहां पर अलग-अलग धर्मो, परंपराओं, भोजन, वस्त्र आदि से संबंधित लोग बिना किसी परेशानी के निवास कर सकते हैं। भारतीय संस्कृति के अंदर किसी भी प्रकार के धर्म का उल्लंघन नहीं होता है।

भारतीय संस्कृति का महत्व:-

किसी भी देश की अपनी अपनी संस्कृति होती है और उसका अपना अपना महत्व होता है परंतु भारत देश में अनेक धर्मों को स्थापित किया गया है। यहां हर धर्म के लोग आजादी से रह सकते हैं किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर किसी को एक बंधन में रहना पड़ेगा। अन्य देशों द्वारा इस चीज को माना गया है कि जहां संस्कृति नहीं है वहां पर लोगों को अपने धर्म को निभाने में बहुत ज्यादा असुविधा होती है। परंतु भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर किसी भी धर्म को अपने धर्म के लिए कभी भी रोका टोका नहीं गया और ना ही कभी उस पर दबाव डाला गया। भारतीय संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) की महत्वता को जानने के लिए भारतीय परंपराओं को निभाना पड़ता है भारतीय संस्कृति के अनुसार हर कोई अपने-अपने सीमा में रहते हैं। यह पुरुषों के लिए अलग सीमा निर्धारित की गई है और महिलाओं के लिए अलग सीमा निर्धारित है। जहां पुरुष बाहर के सारे काम करेंगे और लोगों के साथ मेलजोल रखेंगे वहीं घर की महिलाएं अपने परिवार को अच्छे से संभालेंगे और अपने बच्चों को सही संस्कार देंगी।

भारतीय संस्कृति और सभ्यता:-

हमारे भारतीय संस्कृति के अनुसार अलग परिवार जाति उपजाति और धार्मिक समुदाय में जन्म लेने वाले लोग एक साथ शक्ति पूर्वक रह सकते हैं। यहां किसी के ऊपर किसी प्रभाव का कोई स्रोत नहीं बनाया गया है। हर कोई अपने अपने अनुसार अपने जीवन को व्यतीत कर सकता है। यही कारण है कि भारतीय सभ्यता में बहुत सारे अलग-अलग धर्मों के लोग निवास करते हैं जहां हर धर्म में एक दूसरे का अलग-अलग संस्कृतिक वातावरण देखा जाता है। आमतौर पर भारतीय संस्कृति हर किसी के लिए एक समान है परंतु यदि कोई भारतीय संस्कृति की निंदा करता है तो उसके लिए भी हमारे न्यायालय द्वारा कई सारे कानून बनाए गए हैं। भारतीय संस्कृति और सभ्यता भारत के दो ऐसे मूल्यवान वस्तु है जो भारत को एक ऊंचाई तक ले जाने में बहुत ज्यादा सहायक करते है। वैसे तो हमेशा ही हमारे देश में एक दूसरे के साथ मिलकर रहने की सीख दी जाती है जिसका पालन करना हर किसी का कर्तव्य हो जाता है।

भारतीय संस्कृति ना हो तो:-

यह तो हम सब जानते हैं कि भारतीय संस्कृति इतनी ज्यादा प्रचलित और प्रसिद्ध हो गई है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर कोई एक दूसरे से खेल की भावना रखेंगे और घृणा करेंगे। वैसे तो आज के समय में भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है लोग दूसरी संस्कृतियों (Essay on Indian Culture in Hindi) को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति को छोड़ रहे हैं जहां दूसरे देशों से लोग भारतीय संस्कृति को देखने आते हैं वही हमारे देश के लोग इस देश को छोड़कर के दूसरे देश पर जा रहे हैं। भारतीय संस्कृति के अनुसार महिलाओं को सबसे ज्यादा सभ्य होना चाहिए परंतु आजकल की महिलाएं छोटे छोटे कपड़े पहनती हैं और वह सारे गलत काम करती है जो उन्हें नहीं करना चाहिए जो सभ्यता के खिलाफ है। वहीं पुरुष लोग हर किसी से छोटी-छोटी बातों पर लड़ पढ़ते हैं जो भाईचारा जैसे बड़े-बड़े नीतियों को तोड़ता है। भारतीय संस्कृति का होना बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है यह हम सब को एक साथ मिला जुला कर रखता है।

यह तो हम सब जानते हैं कि किसी भी देश के लिए उसकी संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) और सभ्यता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। परंतु यदि बाद भारत की बात कि जाए तो हम सब जानते हैं कि भारत केवल अपनी संस्कृति परंपरा वातावरण और सभ्यता के लिए ही लोगों के बीच में प्रकाशित हुआ है। कुछ यही कारण है कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता को इतना ज्यादा माना जाता है। लोगों को भी भारतीय संस्कृति को आदर सम्मान देना चाहिए और उसको अच्छे से पालन करना चाहिए। यदि हर कोई भारतीय संस्कृति को आदर के साथ निभाए तो भारत एक अच्छी और ऐसी ऊंचाइयों को छू लेगा जहां उसका पहुंचना बहुत ज्यादा नामुमकिन सा है अभी।

1. भारतीय संस्कृति को स्थापित हुए कितने वर्ष हुए हैं?

उत्तर:- भारतीय संस्कृति को स्थापित हुए आज से करीबन 50000 साल हो गए हैं।

2. भारतीय संस्कृति का क्या महत्व है?

उत्तर:- यहां हर धर्म के लोग आजादी से रह सकते हैं किसी प्रकार का रोक-टोक नहीं है। यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर किसी को एक बंधन में रहना पड़ेगा। अन्य देशों द्वारा इस चीज को माना गया है कि जहां संस्कृति नहीं है वहां पर लोगों को अपने धर्म को निभाने में बहुत ज्यादा असुविधा होती है।

3. भारतीय सभ्यता और संस्कृति ना हो तो क्या होगा?

उत्तर:- यदि भारतीय संस्कृति ना हो तो हर कोई एक दूसरे से खेल की भावना रखेंगे और घृणा करेंगे। वैसे तो आज के समय में भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है लोग दूसरी संस्कृतियों को अपना रहे हैं और भारतीय संस्कृति को छोड़ रहे हैं जहां दूसरे देशों से लोग भारतीय संस्कृति को देखने आते हैं वही हमारे देश के लोग इस देश को छोड़कर के दूसरे देश पर जा रहे हैं।

4. भारतीय संस्कृति का क्या मतलब है?

उत्तर:- भारतीय संस्कृति (Essay on Indian Culture in Hindi) का मतलब है भारत द्वारा पारंपरिक तरीकों से बनाई गई संस्कृति या जो आज के समय में अच्छी तरीके से निर्वाचित नहीं की जा रही है।

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Essay on Indian Culture | Hindi

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Essay on Indian Culture

Hindi essay # 1 भारतीय खंस्कृति | indian cultrure.

1. प्रस्तावना ।

2. संस्कृति का अर्थ ।

3. सभ्यता और संस्कृति ।

4. भारतीय संस्कृति और उसकी विशिष्टताएं ।

5. उपसंहार ।

यूनान मिश्र रोमां मिट गये जहां से । कुछ बात है कि मिटती नहीं हस्ती हमारी ।।

1. प्रस्तावना:

ADVERTISEMENTS:

किसी देश या समाज के परिष्कार की सुदीर्घ परम्परा होती है । उस परम्परा में प्रचलित उन्नत एवं उदात्त विचारों की भूखला ही किसी देश या समाज की संस्कृति कहलाती है, जो उस देश या समाज के जीवन को गति प्रदान करती है ।  संस्कृति में किसी देश, कालविशेष के आदर्श व उसकी जीवन पद्धति सम्मिलित होती है.। परम्परा से प्राप्त सभी विचार, शिल्प, वस्तु किसी देश की संस्कृति कहलाती है ।

2. संस्कृति का अर्थ:

संस्कृति शब्द संस्कार ने बना है । शाब्दिक अर्थ में संस्कृति का अर्थ है: सुधारने वाली या परिष्कार करने वाली । यजुर्वेद में संस्कृति को सृष्टि माना गया है । जो विश्व में वरण करने योग्य है, वही संस्कृति है ।

डॉ॰ नगेन्द्र ने लिखा है कि संस्कृति मानव जीवन की वह अवस्था है, जहां उसके प्राकृत राग द्वेषों का परिमार्जन हो जाता है । इस तरह जीवन को परिकृत एवं सम्पन्न करने के लिए मूल्यों, स्थापनाओं और मान्यताओं का समूह संस्कृति है ।

किसी भी देश की संस्कृति अपने आप में समग्र होती है । इससे उसका अत: एवं बाल स्वरूप स्पष्ट होता है । संस्कृति परिवर्तनशील है । यही कारण है कि एक काल के सांस्कृतिक रूपों की तुलना दूसरे काल से तथा दूसरे काल के सांस्कृतिक रूपों की अभिव्यक्तियों की तुलना नहीं करनी चाहिए, न ही एक दूसरे को निकृष्ट एवं श्रेष्ठ बताना चाहिए ।

एक मानव को सामाजिक प्राणी बनाने में जिन तत्त्वों का योगदान होता है, वही संस्कृति है । निष्कर्ष रूप में मानव कल्याण में सहायक सम्पूर्ण ज्ञानात्मक, क्रियात्मक, विचारात्मक गुण संस्कृति कहलाते हैं । संस्कृति में आदर्शवादिता एवं संक्रमणशीलता होती है ।

3. सभ्यता और संस्कृति:

सभ्यता को शरीर एवं संस्कृति को आत्मा कहा गया है; क्योंकि सभ्यता का अभिप्राय मानव के भौतिक विकास से है जिसके अन्तर्गत किसी परिकृत एवं सभ्य समाज की वे स्थूल वस्तुएं आती हैं, जो बाहर से दिखाई देती हैं, जिसके संचय द्वारा वह औरों से अधिक उन्नत एवं उच्च माना जाता है ।

उदाहरणार्थ, रेल, मोटर, सड़क, वायुयान, सुन्दर वेशभूषा, मोबाइल । संस्कृति के अन्तर्गत वे आन्तरिक गुण होते हैं, जो समाज के मूल्य व आदर्श होते हैं, जैसे-सज्जनता, सहृदयता, सहानुभूति, विनम्रता और सुशीलता । सभ्यता और संस्कृति का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है; क्योंकि जो भौतिक वस्तु मनुष्य बनाता है, वह पहले तो विचारों में जन्म लेती है ।

जब कलाकार चित्र बनाता है, तो वह उसकी संस्कृति होती है । सभ्यता और संस्कृति एक-दूसरे के पूरक हैं । संखातिविहीन सभ्यता की कल्पना नहीं की जा सकती है । जो सभ्य होगा, वह सुसंस्कृत होगा ही । सभ्यता और संस्कृति का कार्यक्षेत्र मानव समाज है ।

भारतीय संस्कृति गंगा की तरह बहती हुई धारा है, जो क्लवेद से प्रारम्भ होकर समय की भूमि का चक्कर लगाती हुई हम तक पहुंची है । जिस तरह गंगा के उद्‌गम स्त्रोत से लेकर समुद्र में प्रवेश होने वाली अनेक नदियां एवं धाराएं मिलकर उसमें समाहित हैं, उसी तरह हमारी संस्कृति भी है ।

हमारी संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है । अनेक प्रहारों को सहते हुए भी इसने अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखा है । हमारे देश में शक, हूण, यवन, मंगोल, मुगल, अंग्रेज कितनी ही जातियां एवं प्रजातियां आयीं, किन्तु सभी भारतीय संस्कृति में एकाकार हो गयीं ।

डॉ॰ गुलाबराय के विचारों में: ”भारतीय संस्कृति में एक संश्लिष्ट एकता है । इसमें सभी संस्कृतियों का रूप मिलकर गंगा में मिले हुए, नदी-नालों के जी की तरह (गांगेय) पवित्र रूप को प्राप्त करता है । भारतीय संस्कृति की अखण्ड धारा में ऐसी सरिताएं हैं, जिनका अस्तित्व कहीं नहीं दिखाई देता । इतना सम्मिश्रण होते हुए भी वह अपने मौलिक एवं अपरिवर्तित रूप में विद्यमान है ।”

4. भारतीय संस्कृति की विशिष्टताएं:

भारतीय संस्कृति कई विशिष्टताओं से युक्त है । जिन विशिष्टताओं के कारण वह जीवित है, उनमें प्रमुख हैं:

1. आध्यात्मिकता:

आध्यात्म भारतीय संस्कृति का प्राण है । आध्यात्मिकता ने भारतीय संस्कृति के किसी भी अंग को अछूता नहीं छोड़ा है । पुनर्जन्म एवं कर्मफल के सिद्धान्त में जीवन की निरन्तरता में भारतीयों का विश्वास दृढ़ किया है और अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के चार पुराषार्थो को महत्च दिया गया है ।

2. सहिष्णुता की भावना:

भारतीय संस्कृति की महत्पपूर्ण विशेषता है: उसकी सहिष्णुता की भावना । भारतीयों ने अनेक आक्रमणकारियों के अत्याचारों को सहन किया है । भारतीयों को सहिष्णुता की शिक्षा राम, बुद्ध. महावीर, कबीर, नानक, चैतन्य महात्मा गांधी आदि महापुरुषों ने दी है ।

3. कर्मवाद:

भारतीय संस्कृति में सर्वत्र करणीय कर्म करने की प्रेरणा दी गयी है । यहां तो परलोक को ही कर्मलोक कहा गया है । गीता में कर्मण्येवाधिकाररते मां फलेषु कदाचन पर बल दिया गया है । अथर्ववेद में कहा गया है-कर्मण्यता मेरे दायें हाथ में है, तो विजय निश्चित ही मेरे बायें हाथ में होगी ।

4. विश्वबसुत्च की भावना:

भारतीय संस्कृति सारे विश्व को एक कुटुम्ब मानते हुए समस्त प्राणियों के प्रति कल्याण, सुख एवं आरोग्य की कामना करती है । विश्व में किसी प्राणी को दुखी देखना उचित नहीं समझा गया है । सर्वे भद्राणी सुखिन: संतु सर्वे निरामया: । सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चित् दुःखमायुयात ।

5. समन्वयवादिता:

भारतीय संस्कृति की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता है समन्वयवादिता । यहां के रुषि, मनीषी, महर्षियों व समाज सुधारकों ने सदैव समन्वयवादिता पर बल दिया है । भारतीय संस्कृति की यह समन्वयवादिता बेजोड़ है । अनेकता में एकता होते हुए भी यहां अद्‌भुत समन्वय है । भोग में त्याग का समन्वय यहां की विशेषता है ।

6. जाति एवं वर्णाश्रम व्यवस्था:

भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम एवं जाति-व्यवस्था श्रम विभाजन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण थी । यह व्यवस्था गुण व कर्म पर आधारित थी, जन्म पर नहीं । 100 वर्ष के कल्पित जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास के अनुसार बांटा

गया । यह व्यवस्था समाज में सुख-शान्ति व सन्तोष की अभिवृद्धि में सहायक थी ।

7. संस्कार:

भारतीय संस्कृति में संस्कारों को विशेष महत्त्व दिया गया है । ये संस्कार समाज में शुद्धि की धार्मिक क्रियाओं से सम्बन्धित थे । इन अनुष्ठानों का महत्च व्यक्तियों के मूल्यों, प्रतिमानों एवं आदर्शों को अनुशासित व दीक्षित रखना होता है ।

8. गुरू की महत्ता:

भारतीय संस्कृति में गुरा को महत्त्व देते हुए उसे सिद्धिदाता, कल्याणकर्ता एवं मार्गदर्शक माना गया है । गुरा का अर्थ है: अन्धकार का नाश करने वाला ।

9. शिक्षा को महत्त्व:

भारतीय संस्कृति में शिक्षा को पवित्रतम प्रक्रिया माना गया है, जो बालकों का चारित्रिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक विकास करती है ।

10. राष्ट्रीयता की भावना:

भारतीय संस्कृति में राष्ट्रीयता की भावना को विशेष महत्त्व दिया गया है । जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी कहकर इसकी वन्दना की गयी है ।

11. आशावादिता:

भारतीय संस्कृति आशावादी है । वह निराशा का प्रतिवाद करती है ।

12. स्थायित्व:

यह भारतीय संस्कृति की महत्त्वपूर्ण विशेषता है । यूनान, मिश्र, रोम, बेबीलोनिया की संस्कृति अपनी चरम सीमा पर पहुंचकर नष्ट हो गयी है । भारतीय संस्कृति अनेक झंझावातों को सहकर आज भी जीवित है ।

13. अतिथिदेवोभव:

भारतीय संस्कृति में अतिथि को देव माना गया है । यदि शत्रु भी अतिथि बनकर आये, तो उसका सत्कार करना चाहिए ।

5. उपसंहार:

संस्कृति का निस्सन्देह मानव-जीवन में विशेष महत्त्व है । संस्कृति हमारा मस्तिष्क है, हमारी आत्मा है । संस्कृति में ही मनुष्य के संस्कार हस्तान्तरित होते हैं । संस्कृति वस्तुत: मानव द्वारा निर्मित आदर्शो और मूल्यों की व्यवस्था है, जो मानव की जीवनशैली में अभिव्यक्ति होती है । सभ्यता और संस्कृति एक दूसरे के पूरक हैं ।

भारतीय संस्कृति आज भी अपनी विशेषताओं के कारण विश्वविख्यात है । अपने आदर्शो पर कायम है । समन्वयवादिता इसका गुण है । चाहे धर्म हो या कला या भाषा, भारतीय संस्कृति ने सभी देशी-विदेशी संस्कृतियों को अपने में समाहित कर लिया । जिस तरह समुद्र अपने में विभिन्न नदियों के जल को एकाकार कर लेता है, भारतीय संस्कृति इसका एक श्रेष्ठ उदाहरण है ।

Hindi Essay # 2 भारतीय धर्मों का स्वरूप और उसकी विशेषताएं | The Nature and Characteristics of Indian Religions

2. धर्म क्या है?

3. भारतीय धर्मों का स्वरूप ।

4. उपसंहार ।

भारत एक धर्म प्रधान देश है । यहां की संस्कृति धर्म प्राण रही है । मानव जाति की समस्त मूलभूत अनुभूतियों का सुन्दर स्वरूप है धर्म । धर्म मानव जीवन का अपरिहार्य तत्त्व है । धर्म शब्द में असीम व्यापकत्व है ।

किसी वस्तु का वस्तुतत्त्व ही उसका धर्म है । जैसे-अग्नि का धर्म है जलाना । राजा का धर्म है प्रजा की सेवा करना । धर्म वह तत्त्व है, जो मनुष्य को पशुत्व से देवत्व की ओर ले जाता है ।

भारतीयों ने सदा ही अपने प्रारम्भिक जीवन से धर्म की खोज में अपरिमित आनन्द का अनुभव किया है । इसे मानव जीवन का सार माना गया है । भारतीय समाज में जो प्रमुख धर्म प्रचलित हैं, उनमें प्रमुख हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी एवं यहूदी धर्म ।

2. धर्म क्या है?:

धर्म शब्द धृ धातु से बना है, जिसका अर्थ है-धारण करना । किसी भी वस्तु का मूल तत्त्व है-उस वस्तु को धारण करना । इसीलिए वही उसका धर्म है । मानव अपने जीवन में गुण और क्षमताओं के अनुरूप आचरण करता है । वही उसका धर्म है । इस प्रकार आत्मा से आत्मा को देखना, आत्मा को आत्मा से जानना ।

आत्मा का आत्मा में स्थित होना ही धर्म है । ज्ञान, दर्शन, आनन्द, शक्ति का योग धर्म है । धर्म का अर्थ है: अज्ञात सत्ता की प्राप्ति । मानव का कल्याण, उचित-अनुचित का विवेक ही धर्म है ।

धर्म के जो प्रमुख लक्षण हैं , उनमें प्रमुख हैं:

1. वेद निर्धारित शास्त्र प्रेरित कर्म ही धर्म है ।

2. कल्याणकारी होना धर्म का प्रधान लक्षण है ।

3. धर्म की उत्पत्ति सत्य से होती है ।

4. दया और दान से इसमें वृद्धि होती है ।

5. क्षमा में वह निवास करता है ।

6. क्रोध से वह नष्ट होता है ।

7. धर्म विश्व का आधार है ।

8. जो धर्म दूसरों को कष्ट दे, वह धर्म नहीं है ।

9. पराये धर्म का त्याग ही कल्याणकारी है ।

10. धर्म ऐसा मित्र है, जो मरने के बाद मनुष्य के साथ जाता है ।

11. धर्म सुख-शान्ति का एकमात्र उपाय है ।

12. धर्म भारतीय धर्मो का स्वरूप है ।

3. भारतीय धर्मोका स्वरूप:

धर्म प्रधान भारतीय समाज की विभिन्नता ही उसकी प्रमुख विशेषता रही है । विश्व के प्रमुख सभी धर्म भारत में विद्यमान हैं । एम॰ए॰ श्रीनिवास के अनुसार: ”भारतीय जनगणना में दस विभिन्न धार्मिक समूह बताये गये हैं: हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी तथा अन्य जनजातियों के धर्म व गैर जनजातियों के अन्य धर्म ।

भारत की जनसंख्या में हिन्दू 82.64 प्रतिशत, तो मुसलमान 12 प्रतिशत, ईसाई 3 प्रतिशत, सिख 2 प्रतिशत, बौद्ध 0.81 प्रतिशत, जैन 0.50 प्रतिशत, पारसी 001 प्रतिशत हैं । शेष धर्मो के अनुयायियों का प्रतिशत कम है । यहां हम सर्वप्रथम हिन्दू धर्म की विशेषताओं को देखते हैं, तो ज्ञात होता है कि

(क) हिन्दू धर्म:

वास्तव में बहुत जटिल धर्म है । यह भारत का सबसे प्राचीन धर्म है । हिन्दू धर्म में किसी अन्य धर्म की भांति किसी धार्मिक एक गन्धों की तरह न एक पैगम्बर है न एक ईसा है ।

कुछ निश्चित धार्मिक विधियों एवं पूजन विधियों पर आधारित धार्मिक समुदाय का धर्म नहीं है । एक तरफ हिन्दू धर्म प्रकृति की प्रत्येक वस्तु की मौलिकता को प्रकट करता है, तो दूसरी ओर वह समाज और व्यक्ति तथा समूह की आचरण सभ्यता को प्रकट करता है ।

यह विस्मयकारी विविधताओं पर आधारित है । कहीं शाकाहारी हिन्दू है, तो कहीं मांसाहारी हिन्दू है । एक पत्नीव्रत आदर्श संहिता है, तो कहीं बहुपत्नी व्रत है । हिन्दू धर्म में अनेक मत-मतान्तर प्रचलित हैं, जिनका अपना अलग इतिहास है ।

उसके सरकार एवं विधि-विधान है । सबकी निजी, आर्थिक एवं सामाजिक विशेषताएं हैं । उनमें सर्वप्रथम है: वैष्णव धर्म, जिसमें शंकराचार्य रामानुज, माधवाचार्य, वल्लभाचार्य. चैतन्य, कबीर, राधास्वामी प्रचलित मत सम्प्रदाय हैं ।

दूसरा शैव धर्म है । इसमें 63 शैव सन्त हैं, शाक्त मत भी हैं । ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, आर्यसमाज, रामकृष्ण मिशन, अरविन्द योग, आचार्य रजनीश, आनन्द मूर्ति जैसे मत प्रचलित हैं । हिन्दू धर्म सहिष्णु धर्म है ।

(ख) इस्लाम धर्म:

यह भारत में अरब भूमि से आया । हजरत मोहम्मद ने 571-632 में अरब में इस्लाम धर्म का प्रतिपादन किया । ऐसी मान्यता है कि ईश्वरीय पुस्तक कुरान के मूल पाठ को सातवें स्वर्ग से अल्लाह के हुक्म से जब्रील ने उसे मोहम्मद साहब को सुनाया और उन्होंने उसे वर्तमान रूप में प्रचलित किया ।

भारत में इस्लाम का पदार्पण अरब सागर के मार्ग मुस्लिम व्यापारियों के माध्यम से आया । प्रारम्भ में लोगों के विरोध के बाद मोहम्मद साहब इसे मक्के से मदीने की ओर ले गये ।

जहां 24 सितम्बर 622 से हिजरी संवत् प्रारम्भ हुआ । भारत में 1526 में मुगल वंश के शासकों ने इसका प्रचार किया । इरलाम मूर्तिपूजा को नहीं मानता । अल्लाह के सिवा इनका कोई भगवान् नहीं, मोहम्मद साहब इसके पैगम्बर हैं ।

दिन में पांच बार मक्के की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ना, शुक्रवार को सार्वजनिक नमाज में भाग लेना, अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत दान करना, जीवन में एक बार हज करना, इसके प्रमुख नियम हैं ।

अब इस धर्म का भारतीयकरण हो चुका है । इस धर्म में अधिकांश लोग परम्परावादी धार्मिक सिद्धान्तों का अनुकरण करते हैं ।

(ग) ईसाई धर्म:

भारतीय समाज का तीसरा प्रमुख धर्म है ईसाई । इस धर्म के प्रवर्तक ईश्वर पुत्र ईसा मसीह थे । ईसा धनिकों के अत्याचार और अहंकार के विरोधी थे । प्रेम, सदाचार और दुखियों की सेवा ही इस धर्म का मुख्य सन्देश है ।

मानव-समता में उनका अदूट विश्वास है । अपने शत्रुओं को क्षमा कर बिना किसी भेदभाव के सबकी सेवा ये ईसा मसीह के मूलमन्त्र थे । उनके विचार से गरीब, सताये हुए, अनपढ़ लोग सौभाग्यशाली हैं; क्योंकि स्वर्ग का राज्य उनके लिए सुरक्षित है ।

अमीर और अत्याचारी अभागे हैं; क्योंकि पापों के कारण उन्हें नरक के दुःख भोगने पड़ेंगे । उनके सन्देश उस वक्त के यहूदी पुरोहितों को सहन नहीं हुए । अत: रोमन प्रशासक ने उन्हें कूस पर कीलों से जड़कर मारने का दण्ड दिया ।

कहा जाता है कि यीशु के 12 धर्माचारियों में से एक सेंट थामस भारत आये थे । उन्होंने इस धर्म का प्रचार किया । ईसाई धर्म विभिन्न मतों का एक संगठित धर्म

चर्च संगठन में धर्माधिकारियों के स्पष्ट पर सोपान है: ईसाई पादरियों और ननों ने वास्तव में समाज सेवा के बहुत कार्य किये । ईसाई धर्म कैथलिक तथा प्रोस्टैण्ट-दो सम्प्रदायों में विभक्त है । भारतीय सांस्कृतिक व राजनीतिक धारा के साथ जुड़कर इस समुदाय ने काफी योग दिया ।

(ध) सिक्स धर्म:

सिक्स धर्म भी भारतीय भूमि की उपज है । इस धर्म के संस्थापक गुरा नानक देव ही {1469-1539} हिन्दू खत्री परिवार में जन्मे थे । उन्होंने ओंकार परमेश्वर की सीख

दी । वे जाति-पाति के घोर विरोधी थे ।

आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों में उनका विश्वास् नहीं था । अनिश्चयों और निराशा से भरे हुए समय में उनकी सीधी-सच्ची वाणी जनभाषा थी, जिसमें शाश्वत मूल्यों का उद्‌घोष था ।

गुरुनानक के बाद 9 अन्य गुरुओं ने उनकी इस परम्परा को आगे बढ़ाया । वे गुरु हैं: अंगद, अमरदास, रामदास, अर्जुन, हरगोविन्द, हरराय, हरकिशन, गुरा तेगबहादुर एवं गुरा गोविन्द सिंह ।

इस धर्म ने पर्दाप्रथा, सतीप्रथा का विरोध किया । इनके धार्मिक कार्यो से तत्कालीन मुगल बादशाह रुष्ट हो गये । 605 में उन्हें यातनाएं देकर शहीद कर दिया । गुरा अर्जुन देव का ऐसा बलिदान सिक्स इतिहास में एक नया मोड़ था ।

गुरा हरगोविन्द ने सिक्सों को सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त कर सशस्त्र होने की सलाह

दी । उन्होंने कई सफल युद्ध किये । औरंगजेब ने नवें गुरु तेगबहादुर को 1675 में दिल्ली में शहीद कर दिया ।

उनके पुत्र एवं दसवें गुरु गोविन्द सिंह ने अधर्म के विरुद्ध सिक्स समुदाय को तैयार किया । 1699 में खालसा पंथ का उदय हुआ । पंचपियारों को खालसा में दीक्षित किया गया ।

तभी से पांच ककार धारण करने की प्रथा चली । प्रत्येक सिक्स के लिए केश, कंघा, कटार, कड़ा और कच्छा धारण करना अनिवार्य माना गया । गुरा गोविन्द सिंह ने धर्म के रक्षार्थ अपने चार पुत्रों का बलिदान दिया और किसी व्यक्ति को गुरा बनाने की परम्परा समाप्त की ।

उन्होंने गुरु ग्रन्ध साहब को गुरु मानते हुए शीश नवाने का आदेश दिया । वे अन्याय, अत्याचार व अनीति के विरोधी थे । सिक्स धर्म की प्रमुख शिक्षाएं हैं-निराकर ईश्वर की उपासना, उसी का नाम-जाप, सदाचारी जीवन, मानव सेवा ।

यह धर्म आत्मा की अमरता तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता है । सामूहिक प्रार्थना एवं सामूहिक भोज (लंगर) इसकी विशेषता है । इस धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय हैं: नानक पंथी, निरंकारी, निरंजनी, सेवा-पंथी ।

(ड.) बौद्ध धर्म:

बौद्ध धर्म पूर्वी एशिया व द॰ एशिया तक फैला । इसके प्रणेता गौतम बुद्ध शाक्य वंश के महाराजा शुद्धोधन के पुत्र थे । उनका कार्य ईसा से छह शताब्दी पूर्व है । उनका नाम सिद्धार्थ भी था ।

बचपन से ही उनका हृदय मानव दुःखों, जैसे-बुढ़ापा, बीमारी तथा मृत्यु के प्रति करुणा से भरा था । मानव मात्र को इन दुःखों से छुटकारा दिलाने के लिए वे अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल तथा राजसी वैभव को छोड़कर चल दिये । छह वर्षो के कठोर तप से उनका हृदय सत्य के प्रकाश से भर गया ।

महात्मा बुद्ध ब्राह्मणवाद के कर्मकाण्डों और पशुबलि के घोर विरोधी थे । वे मध्यममार्गीय थे । दुःखों का मूल उन्होंने तृष्णा या इच्छा को बताया । इच्छा का अन्त करना दुःखों से मुक्त होना है ।

उन्होंने सम्यक विचार, सम्यक वाणी और सम्यक आचरण को मुक्ति का द्वार

बताया । प्राणी मात्र पर दया, प्रेम, सेवा और क्षमा को मानव का सच्चा धर्म

धर्म प्रचार के लिए उन्होंने भिक्षुओं को संगठित किया, जिसे अशोक जैसे महान सम्राट ने स्वीकारा । नगरवधू आम्रपाली भी इसमें सम्मिलित हुई । सत्य, अहिंसा, प्राणी मात्र पर दया का सन्देश देते हुए 80 वर्ष की आयु में 488 ई॰ पूर्व उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।

निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों-महायान और हीनयान-में बंट गया । आज इस धर्म के अनुयायी लंका, वियतनाम, चीन, बर्मा, जापान, तिबत, कोरिया, मंगोलिया, कंपूचिया में हैं ।

आठवीं शताब्दी में आते-आते ही इस धर्म का लोप हो गया । इसके कई कारण हैं । आज भी यह धर्म अपने सिद्धान्तों और आदर्शो के कारण कायम है ।

(च) जैन धर्म:

इस धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीरजी वैशाली के क्षत्रिय राजवंश में पैदा हुए थे । वे गौतम बुद्ध के समकालीन और अवस्था में उनसे कुछ बड़े थे । उन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृहत्याग किया और वर्ष के कठोर तप के बाद सत्य का प्रकाश प्राप्त किया । तभी से वे जिन कहलाये ।

जैन धर्म के में तीर्थकर हो चुके हैं । महावीर 24वें तीर्थकर थे । इस धर्म के पहले तीर्थकर ऋषभदेव हैं । इस धर्म के अनुसार कैवल्य मोल प्राप्त करने के विविध मार्ग हैं, जिसे तीन रत्न कहा जाता है ।

सम्यक विचार, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण इस धर्म का सार है । “अपना कर्तव्य करो, जहां तक हो सके, मानवीय ढग से करो” । दिगम्बर और श्वेताम्बर दो सम्प्रदायों में बंटे हुए इस धर्म में दिगम्बर साधु दिशा को वस्त्र मानकर वस्त्र नहीं पहनते ।

श्वेताम्बर श्वेत वस्त्र धारण करते हैं । जीवों के रूप में और देवताओं के रूप में आत्मा जन्म-मरण के चक्र में फंसी हुई है । इससे छुटकारा पाना ही मोक्ष है ।

(छ) पारसी धर्म:

पारसी धर्म भी भारतभूमि पर बाहर से आया है । पारसियों का आगमन भारत में वीं सदी में हुआ था । ये ईरान के मूल निवासी हैं । जब ईरान पर मुसलमानों का कब्जा हो गया, तो अनेक पारसी भारत आ गये । इस धर्म के संस्थापक जरस्थूस्त्र हैं ।

यह धर्म वैदिक धर्म की भांति अति प्राचीन है । कुछ विद्वानों के अनुसार जरज्यूस्त्र ईसा से 5000 वर्ष पूर्व हुए थे । ऋग्वेद और इनकी धार्मिक पुस्तक अवेस्ता में अनेक बातों में समानता है ।

इस धर्म के अनुसार अहुर्मज्दा ही एकमात्र ईश्वर है । वही विश्व के सूष्टा हैं । जीवन नेकी तथा बदी, पुण्यात्मा तथा पापात्मा दो विरोधी शक्तियों के संघर्ष में विकसित होता है । अन्त में विजय पुण्यात्मा तत्त्व की होती है ।

अहुर्मज्दा पवित्र अग्नि का प्रतीक है, जो शुद्धता और उज्जलता का प्रतीक है । इसीलिए पारसी अग्नि की पूजा करते हैं और मन्दिर के रूप में अग्निगृह इआतश-बहराम का निर्माण करते हैं ।

इस धर्म के त्रिविध मार्ग-अच्छे विचार, अच्छे वचन, अच्छे कर्म-हैं । पारसी धर्म संन्यासी जीवन को नहीं मानता । भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा औद्योगिक विकास में इस धर्म का बड़ा हाथ रहा है ।

(ज) यहूदी धर्म:

यहूदी धर्म एक प्राचीन धर्म है । इनका विश्वास है कि इनके पैगम्बर मूसा थे, जो प्रथम धर्मवेत्ता माने जाते हैं । इनके प्रथम महापुरुष अब्राहम ने ईसा से 1000 पहले यहूदी कबीले के स्थान पर अपना मूल स्थान उर छोड़ दिया ।

उनके शक्तिशाली सम्राटों द्वारा गुलाम बनाये जाने पर हजरत मूसा ने ईश्वरीय आदेश के अनुसार उन्हें दासता से मुक्त कराया और दूध, शहद से भरपूर धरती पर

हजतर मूसा को ही जवोहा अथवा यवोहा सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहा जाता है । उन्हें दस आदेश प्राप्त हुए थे । यहूदियों का धार्मिक ग्रन्ध हिन्दू बाइबिल अथवा तौरत

29 पुस्तकों के इस संग्रह को पुराना अहमदनामा भी कहते हैं । यहूदी धर्म में नैतिक जीवन को विशेष महत्त्व दिया गया है । सत्याचरण वाला व्यक्ति ही स्वर्गारोहण का अधिकारी होता है । यहूदी धर्म संन्यास और आत्मपीड़ा के विरुद्ध है । जेरूसलम यहूदियों का पवित्र नगर है ।

4. उपसंहार:

इस प्रकार भारतभूमि पर विश्व के लगभग सभी धर्मो के समुदाय बसते हैं । समय के साथ-साथ उनका भारतीयकरण भी हुआ । सभी धर्मो में समान धार्मिक नियम, आपसी प्रेम, सदभाव, भाईचारे, सुविचार, सत्कर्म पर बल दिया गया है ।

धर्मनिरपेक्षता हमारी पहचान है । वर्तमान में कुछ संकीर्णतावादी विचारधारा के लोग सम्प्रदायवाद को बढ़ावा दे रहे हैं । हमें इनसे बचना है; क्योंकि सच्चा धर्म मानवता का है, जो हमें पतन से रोकता है ।

Hindi Essay # 3 भारत की महान दार्शनिक परम्पराएं | India’s Great Philosophical Traditions

2. दर्शन क्या है.

3. दर्शन के विभिन्न स्वरूप ।

भारत एक विशाल देश है । इस धर्मप्रधान देश के समाज में दार्शनिकता का भाव विभिन्न रूपों में दिखाई पड़ता है । भारत में जितने धर्म प्रचलित हैं, उनका आधार आस्तिकता एवं, नास्तिकता है ।

भारतीय-धर्मों में दर्शन का प्रभाव अपने विशिष्ट स्वरूप में भी दिखाई पड़ता है । भारतीय दर्शन से उपजी संस्कृति अपना अद्वितीय स्थान रखती है ।

दर्शन शब्द की उत्पत्ति दृश धातु से हुई है, जिसका अर्थ होता है-देखा जाये, अर्थात् जिसके द्वारा संसार वस्तुजगत् का ज्ञान प्राप्त कर सके तथा जिसके द्वारा उस परम तत्त्व को देखा जाये, वही दर्शन है ।

एक प्रकार से दर्शन मानव मन की जिज्ञासा और आश्चर्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जिसके द्वारा क्यों, कब, कहां, कैसे ? इन प्रश्नों के तथ्यात्मक एवं बौद्धिक उत्तर जानना तथा उसके अन्तिम यथार्थ को जानने का प्रयास की दर्शन है ।

दर्शन आदर्शों से शासित होकर व्यक्ति जीवन, जगत् आदि के स्वरूप का अध्ययन करता है । बौद्धिकता से अनुशासित होने के कारण दर्शन और विज्ञान में तात्विक भेद नहीं है ।

वैज्ञानिकों के निष्कर्ष सर्वत्र समान होते हैं, जबकि जगत् के निरपेक्ष अपार्थिव स्वरूप में विवेचन में हम विमिन, दार्शनिक परिणामों में पहुंचते हैं । दर्शन मनुष्य की क्रियाओं की व्याख्या एवं श्लोकन करता है ।

डॉ॰ शम्यूनाथ पाण्डेय के अनुसार: ”धैर्य और सहिष्णुता गधे में ही है, किन्तु गधे में उक्त गुण स्वभाव एवं प्रकृति का अंग है । जबकि यति में यह गुण उसके जीवन दर्शन के कारण है । दर्शन एवं संस्कृति का घनिष्ठ सम्बन्ध है । दर्शन के बिना संस्कृति अंधी है । दर्शन मानव स्वभाव का निर्माता है ।”

3. दर्शन का स्वरूप:

भारतीय जीवन दर्शन का स्वरूप हमें जिन दार्शनिक परम्पराओं में मिलता है, उनमें प्रमुख हैं:

(क) वेद दर्शन:

भारतीय दर्शन का मूल आधार वेद है, जो आस्तिकतावादी दर्शन के अन्तर्गत सर्वमान्य एवं शाश्वत आधार है । वे मानव को प्रकृति का अंग मानते हैं । इसी आधार पर प्रकृति के विषय में हमारा जीवन दर्शन निर्धारित होता है ।

यदि ऐसा नहीं होता, तो हम न तो प्रकृति के रहस्यों को जान पाते और न ही पुनर्जन्म का विचार होता, न ही कर्म महत्त्वपूर्ण होता ।

(ख) उपनिषद दर्शन:

उपनिषदों में सत्य को परमब्रह्म कहा गया है । उसी की अभिव्यक्ति संसार है । वह अजन्मा और अमर है । उसका अस्तित्व शरीर से पृथक् है, जो कि नश्वर है । ज्ञान के प्रकाश में ही उसे समझा जा सकता है ।

(ग) स्मृति एवं गीता दर्शन:

स्मृतियों को हिन्दू समाज के सामाजिक विधि-विधानों का ग्रन्थ कहा जाता है । इसमें कर्म, पुनर्जन्म, पुरुषार्थ एवं संस्कारों का वर्णन है, जिनके द्वारा मानव जीवन पूर्णता को प्राप्त करता है । वर्णाश्रम व्यवस्था इसी दर्शन का अंग है ।

गीता दार्शनिक स्तर पर हिन्दुओं की चरम उपलब्धि है । परमात्मा रूपी कृष्ण तथा अर्जुन रूपी आत्मा को निष्काम कर्म के द्वारा मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं । गीता में स्पष्ट कहा गया है कि अनासक्त भाव या निष्काम भाव से कर्म करना ही मानव कल्याण है, जीवन की सार्थकता है ।

(घ) षडदर्शन:

भारतीय जीवन दर्शन में षडदर्शन का प्रमुख स्थान है । दर्शन 6 हैं: न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, पूर्वमीमांसा, उत्तर मीमांसा ।

{अ} न्याय दर्शन:

इसकी रचना 300 ईसा पूर्व गौतम ऋषि ने अपने न्याय सूत्र में की थी । उनके अनुसार-समस्त अध्ययन का आधार तर्क है । इसमें पुनर्जन्म की अवधारणा को मान्य किया गया है । ब्रह्म एव ईश्वर में विश्वास तथा मोक्ष के लिए ज्ञान आवश्यक माना गया है ।

{ब} वैशेषिक दर्शन:

इसकी रचना 300 ईसा पूर्व कणाद ऋषि ने की थी । उनके अनुसार जगत् की उत्पत्ति परमाणुओं की अन्त-क्रिया से होती है, जो कि शाश्वत एव अविनाशी है । परमाणु स्वयं उत्पन्न है । सारी संस्कृति और सारी प्रकृति परमाणु की विभिन्न अभिक्रियाओं से बनी है ।

यह जगत् परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न है, विकसित है और प्रलय से नष्ट होता है । बाद में यही प्रक्रिया चलती रहती है । परमाणु न तो उत्पन्न किये जाते हैं, न ही नष्ट किये जाते हैं । इसीलिए वैशेषिक क्रियाओं के द्वारा जगत् की प्रक्रियाओं को समझने के लिए किसी अलौकिक जीवों के अस्तित्व या विश्वास की आवश्यकता नहीं है ।

{स} मीमांसा दर्शन:

400 ईसा पूर्व जेमिनी ने मीमांसा दर्शन प्रतिपादित किया । यह एक व्यावहारिक दर्शन है । वेदों को प्रमाण मानते हुए उसके केन्द्र में कर्मकाण्ड, उपासना और अनुष्ठानों के स्वरूप और नियम हैं । यह पूर्व मीमांसा दर्शन है । इसमें देवताओं की उपासना के साथ-साथ परमसत्य का हल ढूँढने की चेष्टा नही है ।

उत्तर मीमांसा की रचना बादरायण ऋषि ने की थी । चार अध्यायों में विभक्त इस दर्शन के 555 सूत्र हैं । यह दर्शन अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष पर बल देता है । इसके चार अध्यायों में ब्रह्मा, प्रकृति, विश्व के साथ अन्य जीवा के सम्बन्ध, ब्रह्म विद्या से लाभ मृत्योपरान्त आत्मा का भविष्य बताया गया है ।

{द} वेदान्त दर्शन:

500 ईसा पूर्व पाणिनी ने इसका प्रतिपादन किया । इस प्रत्ययवादी दर्शन में समस्त सृष्टि को एक ही ब्रह्म की अभिव्यक्ति माना गया है । दृश्य जगत् उस ब्रह्म की प्रतिछाया मात्र है । इसके पांच समुदाय हैं, जिनके प्रर्वतक हैं: शंकर, रामानुज, मध्य, वल्लभ तथा निबार्क । शंकर का कार्ताकाल वीं-9वीऐ शताब्दी का है । उन्होंने अद्वैतवाद की स्थापना की ।

उनके अनुसार पर ब्रह्म से उत्पन्न संसार एक भ्रम है, मिथ्या है, अयथार्थ है, माया है, ब्रह्म ज्ञान मुक्ति का मार्ग है । नवीं सदी में रामानुज के दर्शन को विशिष्टाद्वैतवाद, वल्लभ के दर्शन को शुद्धाद्वैतवाद, माध्याचार्य के दर्शन को द्वैतदर्शन, निबार्क के दर्शन को द्वैताद्वैत दर्शन कहा गया । वेदान्त और मीमांसा दर्शन एक दूसरे के पर्याय हैं ।

(इ) जैन दर्शन:

ईश्वर की अपेक्षा न रखने वाले दर्शनों में जैन दर्शन आत्म तत्त्व को मानता है । जैन धर्म दुःखों की निवृति को परम सुख की प्राप्ति मानता है । जैन धर्म तीन रत्नों-सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान व सम्यक चरित्र के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति पर बल देता है ।

इसकी प्राप्ति के लिए पांच व्रतों का पालन-अहिंसा, असत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह-प्रमुख है । जैन धर्म कर्म के सिद्धान्त पर विश्वास करता है । गृहस्थ जीवन को महत्त्व देते हुए भी वह संन्यास को श्रेयस्कर समझता है ।

(ई) बौद्ध दर्शन:

बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का प्रतिपादन है-प्रथम, संसार दुःखमय है । द्वितीय दुःखों का कारण है । तृतीय, वह कारण है तृष्णा, काम-तृष्णा, भव-तृष्णा । चतुर्थ, यदि दुःखों का कारण है, तो उसका निरोध भी किया जा सकता है ।

बौद्ध दर्शन अति दुःखवाद, अति कठोरवाद, अति सुखवाद से अलग मध्यम मार्ग की स्थापना करता है । इस अष्टांगिक मध्यम मार्ग में सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प. सम्यक वचन, सम्यक कर्म, सम्यक आजीव, सम्यक प्रयत्न, सम्यक समाधि, सम्यक, स्मृति आते हैं । बौद्ध धर्म में स्त्रियों का प्रवेश सम्मिलित था ।

(ड.) चार्वाक या भौतिकतावादी दर्शन:

यह चार्वाक शब्द चव धातु से बना है, जिसका अर्थ है चबाना अर्थात् यह उन व्यक्तियों का दर्शन है, जो खाने-पीने, मौज उड़ाने में विश्वास रखते हैं । यह भौतिकतावादी दर्शन है, जो इन्द्रिय सुख या इन्द्रिय ज्ञान को सत्य मानता है ।

इसके अनुसार दृश्य जगत ही सत्य है । जीवन में भोग ही एकमात्र पुरुषार्थ है, अर्थात जब तक जीना है, सुखपूर्वक जीना है । ऋण लेकर भी घी पीना है । चिता में जला देने के बाद भी जीवन का पुनरागमन कैसे हो सकता है ? न कोई स्वर्ग है न कोई नरक है । ना कोई मोक्ष है । वेद मिथ्या है ।

भारत की दार्शनिक परम्पराओं में रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, दयानन्द, राजा राममोहन राय, टैगोर, अरविन्द योगी, साई बाबा, आचार्य रजनीश आदि के दर्शन प्रमुख हैं । इस तरह स्पष्ट है कि भारतीय दर्शन विश्व का विशिष्ट दर्शन है, जो जीव जगत्, ब्रह्म, संसार की व्याख्या तर्कपूर्ण ढग से प्रस्तुत करता है । मनुष्य अपनी समस्याओं का समाधान इसमें पा सकता है ।

Hindi Essay # 4 भरतीय कलाएं विकास एवं उनका स्वरूप |   Indian Art Development and their Nature

2. भारतीय कलाओं की विरासत एवं विकास ।

वास्तुकला ।

नाट्‌यकला ।

साहित्यकला ।

3. उपसंहार ।

कला मानव जीवन की अभिव्यक्ति है । यह मानव अभिवृतियों की रागात्मक वृत्ति है । भर्तृहरि ने नीति दशक में लिखा है:

साहित्य , संगीतकला, विहीन: साक्षाल्पशु: पुच्छविशाहीन: । तृणन्न खादान्नपि जीवमानस्तद् भागधेयं परमशूनाम: ।।

अर्थात ”जो मनुष्य साहित्य, संगीत व कला से विहीन हैं, वे पूंछ और सींग से विहीन पशु ही हैं । परन्तु वे घास न खाकर जीवित रहते हैं । यह उन पशुओं का परम सौभाग्य है ।”  कला किसी भी संस्कृति एवं विचारधारा ड्रा प्रतीक है, उसकी पहचान है । भारतीय संस्कृति में कला की समृद्ध विरासत रही है । वह सत्यम, शिवम, सुन्दरम के आदर्श पर आधारित है । भारतीय कला की अत्यन्त विपुल एवं व्यापक विरासत रही है, जो विश्व में बेजोड़ है ।

2. भारतीय कलाओं की विरासत एवं बिकास:

भारतीय कलाओं की विरासत संस्कृत की तरह प्राचीन है तथा विविधताओं से भरी  है । उनमें गतिशीलता है, लयबद्धता है । वह अनुपम है । भारतीय कलाओं के स्वरूप में वास्तुकला, मूर्तिकला, चित्रकला, संगीतकला, नृत्यकला एवं साहित्यकला प्रमुख वास्तुकला-किसी भी महान् संस्कृति की पहली कला स्थापत्य कला, अर्थात वास्तुकला है ।

वास्तुकला चाहे कोई झोपड़ी हो या राजप्रासाद, वह तो रभूल यथार्थ से सम्बन्धित है । भारत में वास्तुकला का इतिहास 700-800 ईसा पूर्व तक से सम्बन्धित है । मोहनजोदड़ो और हड़प्पा एक नगरीय विकसित सभ्यता थी ।

उसकी वास्तुकला सुस्पष्ट एवं उच्चस्तरीय थी । बड़े नगरों के दो मुख्य भाग में दुर्ग थे, जिसमें नगराधिकारी रहते थे । शहर के निवासियों के लिए जो भवन थे, उनमें पक्की ईटों का इस्तेमाल होता था । इसके साथ ही लकड़ी के भवनों का प्रचलन भी पाया जाता था ।

मौर्यकाल {324-187} में लकड़ी की इमारतों के स्थान पर पत्थर की इमारतों की शुराआत होती है । व्यवस्थित वास्तुकला का इतिहास मौर्यकाल का है । इसमें चट्टानों को काटकर कन्दराओं का निर्माण होता था । बौद्धकालीन वास्तुकला में २लूप प्रमुख थे । रतूपों में वैशाली, सांची, सारनाथ, नालन्दा आदर्श नमूने थे ।

इसमें बहुत की सुन्दर तराशे हुए चार द्वार व सुन्दर मन्दिर सांची के थे, जिसका मंच अर्द्धवृत्ताकर संरचना का है । जंगला का प्रयोग प्रकाश और वायु के लिए था । द्रविड शैली के मन्दिर आयताकार होते थे, जिनके शिखर पिरामिड के रूप में होते थे ।

यह क्रमश: बीच की ओर छोटा होता जाता है । शीर्ष भाग में एक गुम्बदाकार स्तूपिका होती थी, जिसमें बने गवाक्ष व गलियारे अदूभुत थे । कांचीपुरम एवं महाबलीपुरम के मन्दिर प्रसिद्ध थे । तंजौर का वृहदीश्वर मन्दिर द्रविड शिल्पकला की सर्वोत्तम कृति थे ।

बेसर शैली भारतीय वास्तुकला का सुन्दर मापदण्ड है । यह नागर और द्रविड शैली का मिश्रण है । दक्षिणापथ में मन्दिर इसी शैली में बने हैं । देवगढ़ का दशावतार मन्दिर, उदयगिरि का विष्णु मन्दिर इस शैली के प्रसिद्ध मन्दिर हैं ।

इस्लामी वास्तुकला:

अरबी, ईरानी शैली मिश्रित यह वास्तुकला 1191 से 1707 तक चरमोत्कर्ष पर थी । इसमें मस्जिद, मकबरों, मदरसों, मीनारों का निर्माण हुआ । फतेहपुर सीकरी का भवन, बुलन्द दरवाजा, सलीम चिश्ती की दरगाह, आगरे का लालकिला, आगरे का ताजमहल अद्‌भुत नमूने हैं ।

17वीं शताब्दी की इस वास्तुकला में यूरोपीय शैल । के गिरजाघर मिलते हैं । सिक्स वास्तुकला-सिक्स गुरुद्वारे इसका अद्‌भुत नमूना हैं । 1588-1601 में बना हरमन्दर साहब का प्रसिद्ध अमृतसर रचर्ण मन्दिर है ।  यह 150 वर्गफुट के पवित्र सरोवर की बीच बना तिमंजिला भवन है । प्रथम मंजिल में गुरुग्रंथ साहब हैं । द्वितीय मंजिल में शीशमहल है । तृतीय मंजिल में गुम्बद की छतरियां हैं । इसमें समकालीन वास्तुकला सम्मिलित है ।

भारतीय मूर्तिकला:

भारतीय मूर्तिकला पत्थर, धातु और लकड़ी की है, जिस पर मुद्रा एवं भाव मूर्तियों को सजीव बनाते हैं । इसमें कुछ प्ररत्तर मूर्तियां हैं । ये मूर्तियां गांधार शैली की हैं । इसमें अधिकांश मूर्तियां विष्णु, शिव, गणेश, सूर्य, शक्ति, जैन एवं बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं ।

मानवीय सौन्दर्य बोध की चरम अभिव्यक्ति चित्रकला में भी मिलती है । भारतीय संस्कृति में चित्रकला की इस समृद्ध परम्परा में महर्षि वात्सायन के प्रसिद्ध कामसूत्र में 64 कलाओं का वर्णन मिलता है । चित्रकला में रेखाओं और रंगों के प्रयोग द्वारा वस्त्र, लकड़ी, दीवार व कागज पर चित्र बनाये जाते थे ।

प्रागैतिहासिक काल में कई गुहा चित्र भी मिलते हैं, जिनमें भीमबेटका के मानव व पशु-पक्षी के लाल रंगों के चित्र हैं । द्वितीय चरण में गुप्तकाल के अजंता, एलोरा और बाघ गुफाओं के भित्तिचित्र मिलते हैं । यह विश्वकला की अनुपम चित्रशाला है ।

यहा प्राकृतिक सौन्दर्य पर आधारित वृक्ष, पुष्प, नदी एव झरनों के चित्र हैं । वहीं अप्सराओं, गन्धवों एव यक्षों के चित्र हैं । बुद्ध और उनके विभिन्न रूपों के जातक कथाओं के चित्र भी मिलते हैं जिसमें नीले, सफेद, हरे, लाल, भूरे रंगों का काल्पनिक रग संयोजन अदभुत सौन्दर्य को प्रकट करते हैं ।

इन चित्रों में करुणा, प्रेम, लज्जा, भय, मैत्री, हर्ष, उल्लास, घृणा, चिन्ता आदि सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण है । गुप्तोत्तर काल की चित्रकला में लघु चित्रकला शैली का विकास हुआ । यह पूर्वी और पश्चिमी सम्प्रदायों से मिश्रित राष्ट्रीय शैली थी । इस शैली के चित्रों में अनन्त विविधता है ।

बंगाल, बिहार, नेपाल गे 11 वीं एवं 21वीं शताब्दी में विकसित हुए इन चित्रों में वस्त्र एवं अलंकारों से प्रादेशिकता का प्रभाव झलकता है । मुगलकालीन चित्रकला में परशियन तथा भारतीय दोनों प्रभाव परिलक्षित होते है । अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ ने चित्रों के प्रति गहरा लगाव प्रस्तुत करते हुए पशु-पक्षियों आदि के चित्र बनवाये ।

इन चित्रों में भावहीन चेहरे और निश्चल पशु-पक्षियों के चेहरे देखने को मिलते हैं । राजस्थानी चित्रकला मुगल एवं पश्चिमी परम्परा से मिश्रित एक स्वतन्त्र कला है । हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ी आकृति, पृष्ठभूमि रेखा और रंग की दृष्टि से काफी विविधताएं हैं । इसमें कृष्ण लीलाओं तथा राग-रागनियों का मिश्रण है ।

कागड़ा शैली के बाद विकसित मराठा शैली की भी अपनी विशिष्ट पहचान है । चित्रकला में पटना एवं मधुबनी शैली भी उल्लेखनीय है । आधुनिक युग में यूरोपीय प्रभाव के कारण नयी शैली विकसित हुई । रवीन्द्रनाथ टैगोर, नन्दलाल बोस, जामिनी राय, अमृता शेरगिल, जतिन दास, मकबल फिदा हुसैन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं ।

भारतीय संगीतकला का जन्म वेदों से हुआ है । नाद, अर्थात् संगीत को ब्रह्म कहा गया है । इसीलिए उसकी तरंगें हृदय को छूती हैं । भारतीय संगीत सामवेद से जन्मा है । लोकगीतों तथा शास्त्रीय संगीत में विकसित एवं परिष्कृत भारतीय संगीत का आधार राग है ।

राग, रबर, माधुर्य की एक ऐसी योजना को कहते हैं, जिसमें स्वरों को परम्परागत नियमों में बांधा गया है । सात सुरों से प्रारम्भ हुए संगीत में उषाकाल, प्रभात, दोपहर, सच्चा, रात्रि और अर्द्धरात्रि के अनुसार रागों का विभाजन है ।

भारतीय संगीत में ताल का विधान अत्यन्त जटिल एवं विस्तृत है । इसमें विलम्बित, भव्य एवं दुत ताल प्रसिद्ध हैं । वर्गीकरण की दृष्टि से शास्त्रीय संगीत एवं सुगम संगीत दो पद्धतियां हैं । शास्त्रीय संगीत की मुख्य दो पद्धतियां हैं: हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत । हिन्दुस्तानी संगीत में ध्रुपद, ठुमरी, ख्याल, टप्पा प्रसिद्ध हैं । इससे सम्बन्धित घराना में ग्वालियर, आगरा, जयपुर, किराना घराना है ।

ग्वालियर घराने के प्रसिद्ध संगीतज्ञ बालकृष्ण दुआ, रहमत खां हैं । आगरा घराने से रस्थन खां, फैयाज खां, जयपुर खां, किराना घराना से अछल करीम खां, अकुल वालिद खां हैं । कर्नाटक संगीत शैली में तिल्लाना, थेवारम, पादम, जावली प्रमुख हैं । कर्नाटक संगीत कुण्डली पर आधारित है ।

इसमें लहर की भांति उच्चावचन नियमित हैं । इसके अतिरिक्त विभिन्न गायन शैलियों में धमार, तराना, गजल, दादरा, होरी भजन गीत, लोकगीत इत्यादि हैं । संगीत की प्रमुख राग-रागनियों में भैरवी, भूपाली, बागश्री, भैरव, देस, बिलावल, यमन, दीपक, विहाग, हिण्डोली, मेघ आदि हैं ।

इसमें प्रयुक्त होने वाले वाद्य हैं: सारंगी, वायलिन, मृदंगम, नादस्वरम, गिटार, सरोद, संतूर, सितार, शहनाई, बांसुरी, तबला, वीणा, पखावज, हारमोनियम, जलतरंग आदि । प्रमुख वादकों में बाल मुरलीधरन, अमजद अली खां, शिवकुमार शर्मा, पण्डित रविशंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, जाकिर हुसैन, अल्लारखा खा, हरिप्रसाद चौरसिया, रघुनाथ सेठ हैं ।

प्रमुख गायकों में चण्डीदास, बैजू बावरा, तानसेन, विष्णु दिगम्बर पलुरकर, विष्णुप्रसाद भातखण्डे, एम॰एम॰ सुबुलक्ष्मी हैं । इस प्रकार भारतीय संगीत वेदों से प्रारम्भ होकर बौद्धकाल मौर्य तथा शुंग काल में काफी विकसित हुआ ।  किन्तु कुषाणकाल में कनिष्क तथा समुद्रगुप्त के शासनकाल में अत्यधिक विकसित हुआ ।

अश्वघोष नामक महान संगीतज्ञ इसी काल में हुए । मध्यकाल में संगीत का स्वरूप स्पष्ट दिखाई पड़ता है । इसमें गजल, ख्याल, ठुमरी, कब्बाली आदि है । आधुनिक युग में भारतीय संगीत में कुछ पश्चिमी प्रभाव भी दिखता है । आधुनिक चलचित्रों के विकास ने इसे अधिक लोकप्रिय बना दिया है ।

शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, लोकसंगीत के साथ-साथ पार्श्वगायन में नूरजहां, सुरैया, खुर्शीद, सहगल, लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर, मुकेश, मन्नाडे, आशा भोंसले विश्व प्रसिद्ध हैं । वहीं गजल के क्षेत्र में जगजीत सिंह, चित्रा सिंह, पंकज उधास, राजेन्द्र मेहता, नीना मेहता प्रसिद्ध हैं । भजन में पुरुषोत्तम दास जलोटा, अनूप जलोटा व शर्मा बसु प्रसिद्ध हैं ।

नृत्यकला भारतीय संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है । हरिवंश पुराण में उर्वशी, हेमा, रम्भा, तिलोत्तमा आदि देव नर्तकियों के नाम आते हैं । भारतीय नृत्यकला अति प्राचीन है । इसका समय ईसा की प्रथम शताब्दी के आसपास ही निर्धारित हो गया था ।

भारतीय नृत्यों में धर्म अभिव्यक्ति का प्रमुख आधार रहा है । इसमें सामाजिक जन-जीवन से जुड़े नृत्यों की परम्परा भी रही है । शास्त्रीय नृत्य में ताण्डव, भरतनाट्‌यम, कथक, कथकलि सम्मिलित हैं । भरतमुनि के नाट्‌यशास्त्र में संगीत, नृत्य एवं कविता का अद्‌भुत समन्वय मिलता है ।

इसका उद्देश्य मनुष्य में पवित्रता, सदाचार, मानव मूल्यों का संचार करना है । ये नृत्य कठिन साधना पर आधारित रहे हैं । इसके अतिरिक्त लोकनृत्यों में बिहू, नागा नृत्य, दोहाई, महारास, बसन्त रास, कुंज रास, उखल रास, सुआ ढाल, पंडवानी, डण्डा, करमा, कमा, लावणी, तमाशा, झाऊ, जात्रा, नौटंकी, यक्षगान, डांडिया, भांगड़ा, गिद्धा प्रमुख हैं ।

वैदिककाल में मेले में युवक-युवतियां नृत्य करते थे । नगरवधुएं अपने आमोद-प्रमोद के लिए नृत्य किया करती थीं । देवदासी के साथ-साथ सार्वजनिक नृत्यशालाएं प्रचलित थीं । मौर्य तथा कनिष्क के समय में नृत्यों का पुनर्जागरण हुआ ।

गुप्तकाल नृत्यकला का स्वर्ण युग था । मुगलकालीन नृत्यकला दरबारों तक सीमित शी । आधुनिक युग में पश्चिम के प्रभाव में डिस्को, कैबरे, ब्रेक डांस, बैले आदि का प्रभाव भारतीय नृत्यों में आ गया है । साथ ही फिल्मीकरण के कारण अश्लीलता और कामुकता आ गयी है । अर्द्धनग्न शैली में भोंडापन नृत्यों में दिखाई देता है ।

नृत्य की शास्त्रीय परम्परा को उदयशंकर, गोपीकृष्ण,बिरजू महाराज, उमा शर्मा, सितारा देवी, सोनल मानसिंह, वैजयन्ती माला जैसे नृत्य प्रेमी जीवित रखने का प्रयास करते रहे हैं । वहीं भारत सरकार एवं राज्य सरकारें भी इस प्रयास में शामिल हैं ।

नाट्‌यकला को ललित कला भी माना जाता है, जिसमें मनोरंजन तथा अभिनय व रस की सृष्टि की जाती है । भरत के नाट्‌यशास्त्र में 11 प्रकार के नष्टको का वर्णन है । पाणिनी और पतंजलि की व्याकरण सम्बन्धी रचनाओं में नाट्‌य सम्बन्धी सूत्र हैं ।

भरत के नाट्‌यशास्त्र में नाटक से सम्बन्धित विविध पक्षों, रंग, वस्तु, अभिनय, संगीत आदि का विशद निरूपण है । इसी प्रकार अश्वघोष, कालिदास, शुद्रक प्रसिद्ध नाटककार थे । कालिदास के नाटकों-अभिज्ञान शाकुंतलम, विक्रमोर्वशीय तथा शूद्रक का मृच्छकटिकम, विशाखदत्त का मुद्राराक्षस-प्रसिद्ध है ।

विशुद्ध नाटकों की परम्परा के साथ-साथ लोकनाट्‌य, नटों की कला, रामलीला, कृष्णलीला, कठपुतली, नौटंकी, स्वांग भारतीय जनजीवन को मनोरंजन के साथ-साथ संस्कृति का ज्ञान भी कराते हैं । 19वीं शताब्दी में नुक्कड़ नाटक, झफ्टा, {जनवादी नाट्‌य} प्रचलित हैं । आज नाट्‌यकला में अनेक नवाचारों का प्रयोग किया जा रहा है ।

भारतीय साहित्यकला:

भारतीय साहित्यकला की इतनी समृद्ध, गौरवशाली, विपुल तथा सशक्त विरासत है, जिस पर सभी को गर्व होगा । धार्मिक साहित्य में वेद, रामायण, महाभारत, पुराण, उपनिषद आते हैं । वैदिक साहित्य में शक्तिशाली देवताओं और दानवों के बीच संघर्ष का वर्णन है ।

वैदिककाल में 6 वेदांग हैं, इनमें शिक्षा, व्याकरण, कल्प, छन्द, ज्योतिष, निरुक्त हैं । प्राचीन भारतीय साहित्य में रामायण एवं महाभारत प्रसिद्ध पुस्तकें हैं । रामायण में जहां राम का आदर्श चरित्र है, वहीं महाभारत में कौरव और पाण्डव के बीच युद्ध की कथा है ।

जैनियों और बौद्धों के धार्मिक य-थ व्यक्तियों और घटनाओं पर आधारित हैं । जातक कथाएं पालि भाषा में हैं । जैन गन्धों की भाषा प्राकृत है । कौटिल्य का अर्थशास्त्र भारतीय राजतन्त्र एवं अर्थव्यवस्था के समन्वय का उदाहरण है ।

गुप्तकालीन साहित्य संगम साहित्य, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन की जानकारी देता है । भारतीय विद्वानों में आर्यभट को गणितीय क्षेत्र में, कोसाइन साईन, पाई तथा शून्य निर्माण क्रिया की परिकल्पन पद्धति के लिए जाना जाता है ।

ब्रह्मगुप्त ने गुरात्चाकर्षण, वराहमिहिर ने खगोल, भूगोल, नागार्जुन ने रसायनशास्त्र के क्षेत्र में, इस्पात बनाने, पक्के रंग तैयार करने, चरक और सुभूत की संहिताओं में कपाल छेदन, हाथ-पैर काटे जाने तथा मोतियाबिन्द जैसी जटिल शल्यक्रिया का वर्णन है ।

जयदेव, अलवार और नयनार सन्त कबीर, नानक, गुरा गोविन्द सिंह, कल्हण, सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, तुकाराम, नामदेव, ज्ञानेश्वर, बिहारी, घनानन्द, सेनापति, रसखान, प्रसिद्ध साहित्यकार रहे । आधुनिक युग में कविता, निबन्ध, नाटक, उपन्यास, एकाकी के साथ-साथ नयी विधाएं, रेखाचित्र, सस्मरण, आत्मकथा, जीवनी आदि प्रसिद्ध हुईं ।

प्रेमचन्द ने 300 कहानियां, 2 उपन्यास लिखकर कहानी व नाटक सम्राट का गौरव प्राप्त किया, वहीं प्रसाद ने ध्रुवरचामिनी, चन्द्रगुप्त, रकन्दगुप्त, अजातशत्रु आदि नाटक लिखकर नाटकसम्राट की उपाधि प्राप्त की । इस प्रकार साहित्य अपनी समृद्ध विरासत के साथ अपनी सृजन यात्रा में गतिशील है ।

इस प्रकार स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति कलाओं के माध्यम से भी व्यक्त होती है । केला का निर्माण, रूप, प्रक्रिया एवं उसके सौन्दर्य बोध में कला का आनन्द प्राप्त होता है । कला संस्कृति का अंग है । कलाओं के प्रोत्साहन से मानव दुष्प्रवृत्तियों का शमन होता है ।

Hindi Essay # 5 लोकसंस्कृति की समृद्ध विरासत | The Rich Heritage of Popular Culture

2. लोक साहित्य के विविध प्रकार ।

लोकगाथा । लोकगीत ।

लोककथा । लोकनाट्‌य ।

अन्य विधाएं ।

3. लोक संस्कृति ।

लोक साहित्य, अर्थात् लोक का साहित्य । लोक साहित्य लोक का साहित्य होता है और लोक का आशय रूढ़िगत तथा अर्द्धशिक्षित, अशिक्षित जनता से है । ऐसे साहित्य में तर्क के स्थान पर सहज विश्वास की प्रवृत्ति मिलती है ।

लोक साहित्य के पीछे लोक का मानस, विचार, पद्धति तथा आदिम अनुभूति होती है, जो अपने मूल रूप के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । लोक साहित्य की भाषा जीवित होती है, जिसमें शास्त्रीय नियम व व्याकरण नहीं देखे जाते । इसकी सहज, रोचक शैली में जीवन की विविध अनुभूतियां मौखिक परम्परा में प्राप्त होती हैं ।

2. लोक साहित्य के विविध प्रकार:

लोक साहित्य के विविध प्रकारों में प्रमुख हैं:

(अ) लोकगाथा:

लोकगाथा लोककथात्मक गेय काव्य है, जो किसी विशेष कवि द्वारा लिखी जाती है, जिसमें गीतात्मकता और कथात्मकता होती है । यह पीढी दर पीढी हस्तान्तरित होती है । लोकगाथा का जन्म लोककण्ठ से होता है, जिसमें विचारों की सहजता, सरलता और विशेष पहचान होती है । इसमें मुहावरे, कहावतों और सरल छन्द का प्रयोग होता है । यह छोटी और बडी भी होती है ।

(ब) लोकगीत:

लोकगीत लोक में प्रचलित गीत होते हैं, जिनमें लोक मानस की लयात्मक अभिव्यक्ति होती है । लोकगीतों में सहजता और मधुरता होती है । इनमें छन्द, अलंकार आदि का चमत्कार नहीं होता है, इनमें मिट्टी की गन्ध होती है ।

(स) लोककथा:

लोककथा प्राचीनकाल से चली आ रही है । लोककथाओं में ऐसी कथाएं होती हैं, जो धार्मिक तथा व्रतानुष्ठानों से जुड़ी होती हैं । जैसे- महाभारत की कथा, रामायण की कथा ।

लोककथा वस्तुत: धर्मगाथाएं और पुराण कथाओं के रूप मे होती हैं । इनमें नैतिक जीवन मूल्यों की शिक्षा होती है । हमारे यहा स्त्रियां विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा, प्रार्थना के विषय में विभिन्न प्रकार की लोककथाएं कहती हैं ।

लोककथाओं का दूसरा रूप लोक कहानी के रूप में सामने आता है । लोक कहानी मौखिक रूप से प्रचलित रहती है और तीसरी तथा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह लोक में प्रचलित होती है । उसमें कोई-न-कोई लोक विश्वास अवश्य ही रहता है । इसमें लोक संस्कृति की झलक भी मिलती है । अंग्रेजी मे ऐसे ‘फाक टेल’ प्रचलित हैं ।

(द) लोकनाट्‌य:

लोक साहित्य में लोकनाट्‌य का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एव गौरवशाली स्थान होता है । लोकनाट्‌य में विभिन्न पात्र पद्यात्मक शैली में अपने संवाद प्रस्तुत करके समूचे वातावरण को अत्यन्त ही मनोरंजक बना देते हैं ।

लोकनाट्‌य अत्यधिक लोकप्रिय एवं प्रभावोत्पादक सिद्ध होते है । इनमें गीत, नृत्य, संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित होती है । गांवों में जनता नाट्‌य देखकर जितना अनुभव करती है, उतना अन्य किसी अन्य विद्याओं में नहीं करती है । लोकनाट्‌य को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं । इनमें: (1) नृत्य प्रधान लोकनाट्‌य में (अ) विदेशिया, कीर्तनियां, कुरंवजि, गबरी, रास, नकाब और अंकिया, रास प्रमुख हैं ।

(2) संगीत प्रधान लोक प्रधान लोकनाट्‌य में स्वांग, अर्थात् नकल की प्रधानता रहती है । इसमें नकल, गम्मत, स्वांग, करियाल बहुरूपिया, भवाई, नट-नटिन प्रमुख है ।

(इ) अन्य विधाएं:

लोक साहित्य में लोकगाथा, लोकगीत, लोकनाट्‌य, लोककथा के अतिरिक्त भी अनेक विधाएं होती हैं । जैसे-मुहावरे, लोकोक्तियां, खेलगीत, लोरियां, पालने के गीत आदि । लोकोक्तियों में ग्रामीण जनता, पहेली, सूक्तियों का प्रयोग भी करती है । इन सभी में लोकजीवन का सार एवं मौखिक परम्परा सम्मिलित रहती है ।

3. लोक संस्कृति:

लोक संस्कृति का आशय लोकजीवन की संस्कृति से होता है । लोक संस्कृति अर्द्धशिक्षित, ग्राम्य जनसमूहों की उस संस्कृति का बोध कराती है, जो सीधे-सादे हैं । लोकजीवन में लोक का रहन-सहन, रीति-रिवाज, तीज, त्योहार, पर्व, खानपान, वेशभूषा, भाषा, धर्म, दर्शन, ज्ञान- विज्ञान, कला आदि विचार सम्मिलित होते हैं ।

लोक संस्कृति में वस्त्र सज्जा और मृगार प्रसाधनों का भी काफी उल्लेख मिलता है । घर में प्रयुक्त होने वाली दरी, बिछौन, रेशमी कलात्मक सामग्री के अलावा विशिष्ट परिधानों- चुनरी, धोती का उल्लेख मिलता है । लोक आभूषणों की सूची में महावर, केश विन्यास गुदाना, बिछिया, मुंदरी का भी वर्णन होता है ।

डोली, पालकी स्त्रियोचित वाहनों का प्रयोग होता है । लोक संस्कृति में पारिवारिक सम्बन्ध और समस्याएं, पारिवारिक जीवन की दिनचर्या, पारिवारिक जीवन के संस्कार, पारिवारिक सम्बन्ध निर्वाह, शिष्ट व्यवहार एवं आधार जो सौतिया डाह से लेकर देवर, ननद, भाभी के सम्बन्ध जैसे पारिवारिक संस्कारों का चित्रण मिलता है ।

लोक संस्कृति के सामाजिक पक्ष में त्योहार, रीति-रिवाजों, लोकप्रथाओं एवं मान्यताओं तथा सामाजिक मनोविनोद के साधनों, आश्रम व्यवस्था आदि का वर्णन मिलता है । चौसर, शतरंज, चिरई, उड़ान, कबूतर के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों का भी चित्रण मिलता है ।

लोक संस्कृति में लोक विश्वासों और मान्यताओं का बहुत अधिक महत्त्व होता है । जादू-टोना, टोटका, शगुन-अपशगुन होते हैं । इसमें कुछ धार्मिक विश्वास व मान्यता, तो कुछ लोक विश्वास की अद्‌भुत कथाएं होती हैं ।

लोकमंगल एवं लोककल्याण भारतीय संस्कृति का मूल स्वर है । लोकगीतों, लोककथा, लोकगाथा, लोकनाट्‌यों, लोक संस्कृति में भारतीय जनजीवन धड़कता है । लोक साहित्य एवं लोक संस्कृति की मौखिक एवं संपन्न विरासत हमारी भारतीयता की पहचान है । इसमें निहित लोकादर्श में मानवीय तत्त्व प्रमुख हैं । लोकजीवन में बसी लोक साहित्य एवं संस्कृति में मिट्टी की गन्ध है, लोकचेतना है ।

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Indian civilization and culture explanation in hindi : प्रत्येक पंक्ति का व्‍याख्‍या

November 1, 2021 by Nagendra 3 Comments

इस पोस्‍ट में हमलोग INDIAN CIVILIZATION AND CULTURE EXPLANATION IN HINDI (भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति) के प्रत्‍येक पंक्ति के व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे।

Indian civilization and culture explanation in hindi

INDIAN CIVILIZATION AND CULTURE ( भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति ) Mahatma Gandhi

MOHAN DAS KARAMCHAND GANDHI (1869-1948), popularly known as Bapu or the Father of the Nation, was more a spiritual leader than a politician. He successfully used truth and non-violence as the chief weapons against the British rule in India and helped India gain independence. From 1915 till 1948, he completely dominated Indian politics. He died at the hands of a fanatic on 30 January, 1948. His autobiography, My Experiments with Truth, and the numerous articles that he wrote for Young India and the speeches that he delivered on different occasions, reveal him not only as an original thinker but also as a great master of chaste, idiomatic English. In the following extract ‘Indian Civilization and Culture,’ Gandhiji talks about the sound foundation of Indian civilization which has successfully withstood the passage of time. The western civilization which has the tendency to privilege materiality cannot match the Indian civilization that elevates the moral being.

मोहन दास करमचंद गांधी (1869-1948), जिन्हें बापू या राष्ट्रपिता के नाम से जाना जाता है, एक राजनेता की तुलना में अधिक आध्यात्मिक नेता थे। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुख्य हथियार के रूप में सत्य और अहिंसा का सफलतापूर्वक उपयोग किया और भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद की। 1915 से 1948 तक वे पूरी तरह से भारतीय राजनीति पर हावी रहे। 30 जनवरी, 1948 को एक कट्टरपंथी के हाथों उनकी मृत्यु हो गई। उनकी आत्मकथा, माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ, और यंग इंडिया के लिए उन्होंने जो कई लेख लिखे और उनके द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिए गए भाषणों ने उन्हें न केवल एक मूल विचारक के रूप में प्रकट किया। लेकिन पवित्र, मुहावरेदार अंग्रेजी के एक महान गुरु के रूप में भी। निम्नलिखित उद्धरण ‘भारतीय सभ्यता और संस्कृति’ में, गांधीजी भारतीय सभ्यता की ठोस नींव के बारे में बात करते हैं, जिसने सफलतापूर्वक समय बीतने का सामना किया है। पश्चिमी सभ्यता जिसमें भौतिकता को विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति है, वह भारतीय सभ्यता से मेल नहीं खा सकती है जो नैतिक अस्तित्व को बढ़ाती है।

INDIAN CIVILIZATION AND CULT URE (भारतीय सभ्‍यता और संस्‍कृति)

1. I believe that the civilization India has devolved is not to be beaten in the world. Nothing can equal the seeds sown by our ancestors. Rome went, Greece shared the same fate, the might of the Pharaohs was broken, Japan has become westernized; of China nothing can be said, but India is still, somehow or other, sound at the foundation. The people of Europe learn their lessons from the writings of the men of Greece or Rome which exist no longer in their former glory. In trying to learn from them, the Europeans imagine that they will avoid the mistakes of Greece and Rome. Such is their pitiable condition.

1. मेरा मानना ​​है कि भारत ने जो सभ्यता विकसित की है, उसे दुनिया में पिटना नहीं है। हमारे पूर्वजों द्वारा बोए गए बीजों की बराबरी कोई नहीं कर सकता। रोम चला गया, ग्रीस ने वही भाग्य साझा किया, फिरौन की ताकत टूट गई, जापान पश्चिमीकरण हो गया; चीन के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन भारत अभी भी, किसी न किसी तरह, नींव पर मजबूत है। यूरोप के लोग ग्रीस या रोम के लोगों के लेखन से अपना सबक सीखते हैं जो अब उनके पूर्व गौरव में मौजूद नहीं हैं। उनसे सीखने की कोशिश में, यूरोपीय लोग कल्पना करते हैं कि वे ग्रीस और रोम की गलतियों से बचेंगे। यह उनकी दयनीय स्थिति है।

2. In the midst of all this, India remains immovable and that is her glory. It is a charge against India that her people are so uncivilized, ignorant and stolid, that it is not possible to induce them to adopt any changes. It is a charge really against our merit. What we have tested and found true on the anvil of experience, we dare not change. Many thrust their advice upon India, and she remains steady. This is her beauty; it is the sheet anchor of our hope.

2. इन सबके बीच भारत अचल रहता है और यही उसकी महिमा है। यह भारत के खिलाफ आरोप है कि उसके लोग इतने असभ्य, अज्ञानी और अडिग हैं, कि उन्हें किसी भी बदलाव को अपनाने के लिए प्रेरित करना संभव नहीं है। यह वास्तव में हमारी योग्यता के खिलाफ आरोप है। हमने अनुभव के आधार पर जो परीक्षण किया है और सच पाया है, उसे बदलने की हिम्मत नहीं है। कई लोग अपनी सलाह भारत पर थोपते हैं, और वह स्थिर रहती है। यह उसकी सुंदरता है; यह हमारी आशा का चादर लंगर है।

3. Civilization is that mode of conduct which points out to man the path of duty. Performance of duty and observance of morality are convertible terms. To observe morality is to attain mastery over our minds and our passions. So doing, we know ourselves. The Gujarati equivalent for civilization means “good conduct”.

3. सभ्यता आचरण का वह तरीका है जो मनुष्य को कर्तव्य का मार्ग बताता है। कर्तव्य का पालन और नैतिकता का पालन परिवर्तनीय शब्द हैं। नैतिकता का पालन करना हमारे मन और हमारे जुनून पर महारत हासिल करना है। ऐसा करते हुए, हम खुद को जानते हैं। सभ्यता के लिए गुजराती समकक्ष का अर्थ है “अच्छे आचरण”।

4. If this definition be correct, then India, as so many writers have shown, has nothing to learn from anybody else, and this is as it should be.

4. यदि यह परिभाषा सही है, तो भारत, जैसा कि कई लेखकों ने दिखाया है, किसी और से सीखने के लिए कुछ नहीं है, और यह वैसा ही होना चाहिए जैसा होना चाहिए।

5. We notice that the mind is a restless bird, the more it gets the more it wants, and still remains unsatisfied. The more we indulge in our passions, the more unbridled they become. Our ancestors, therefore, set a limit to our indulgences. They saw that happiness was largely a mental condition.

5. हम देखते हैं कि मन एक बेचैन पक्षी है, जितना अधिक चाहता है उतना ही अधिक प्राप्त करता है, और फिर भी असंतुष्ट रहता है। जितना अधिक हम अपने जुनून में लिप्त होते हैं, वे उतने ही बेलगाम होते जाते हैं। इसलिए, हमारे पूर्वजों ने हमारे भोगों की एक सीमा निर्धारित की। उन्होंने देखा कि खुशी काफी हद तक एक मानसिक स्थिति थी।

Bihar board Class 12th English Chapter 1 Indian civilization and culture explanation in hindi

6. A man is not necessarily happy because he is rich, or unhappy because he is poor. The rich are often seen to be unhappy, the poor to be happy. Millions will always remain poor. Observing all this, our ancestors dissuaded us from luxuries and pleasures. We have managed with the same kind of plough as existed thousands of years ago. We have retained the same kind of cottages that we had in former times and our indigenous education remains the same as before. We have had no system of life corroding competition. Each followed his own occupation or trade and charged a regular wage. It was not that we did not know how to invent machinery, but our forefathers knew that, if we set our hearts after such things, we would become slaves and lose our moral fibre. They, therefore, after due deliberation decided that we should only do what we could with our hands and feet. They saw that our real happiness and health consisted in a proper use of our hands and feet.

एक आदमी जरूरी इसलिए खुश नहीं है क्योंकि वह अमीर है, या दुखी है क्योंकि वह गरीब है। अमीरों को अक्सर दुखी देखा जाता है, गरीबों को खुश देखा जाता है। लाखों हमेशा गरीब रहेंगे। यह सब देखकर हमारे पूर्वजों ने हमें विलासिता और सुखों से दूर किया। हम उसी तरह के हल से काम चला रहे हैं जो हजारों साल पहले हुआ करता था। हमने उसी तरह के कॉटेज को बरकरार रखा है जो हमारे पास पूर्व समय में थे और हमारी स्वदेशी शिक्षा पहले की तरह ही बनी हुई है। हमारे पास जीवन संक्षारक प्रतिस्पर्धा की कोई व्यवस्था नहीं है। प्रत्येक अपने स्वयं के व्यवसाय या व्यापार का पालन करता था और नियमित मजदूरी लेता था। ऐसा नहीं था कि हम मशीनरी का आविष्कार करना नहीं जानते थे, लेकिन हमारे पूर्वजों को पता था कि अगर हम इस तरह की चीजों के लिए अपना दिल लगाते हैं, तो हम गुलाम बन जाएंगे और अपना नैतिक फाइबर खो देंगे। इसलिए, उन्होंने विचार-विमर्श के बाद फैसला किया कि हमें केवल वही करना चाहिए जो हम अपने हाथों और पैरों से कर सकते हैं। उन्होंने देखा कि हमारा वास्तविक सुख और स्वास्थ्य हमारे हाथों और पैरों के उचित उपयोग में निहित है।

7. They further reasoned that large cities were a snare and a useless encumbrance and that people would not be happy in them, that there would be gangs of thieves and robbers, prostitution and vice flourishing in them and that poor men would be robbed by rich men. They were, therefore, satisfied with small villages.

उन्होंने आगे तर्क दिया कि बड़े शहर एक फंदा और एक बेकार बोझ थे और लोग उनमें खुश नहीं होंगे, कि चोरों और लुटेरों के गिरोह होंगे, वेश्यावृत्ति और बुराई फल-फूल रही होगी और अमीर लोगों द्वारा गरीब पुरुषों को लूट लिया जाएगा। इसलिए, वे छोटे गांवों से संतुष्ट थे।

8. They saw that kings and their swords were inferior to the sword of ethics, and they, therefore, held the sovereigns of the earth to be inferior to the Rishis and the Fakirs. A nation, with a constitution like this, is fitter to teach others than to learn from others. This nation had courts, lawyers and doctors, but they were all within bounds. Everybody knew that these professions were not particularly superior. Moreover, these Vakils and Vaids did not rob people; they were considered people’s dependents, not their masters. Justice was tolerably fair. The ordinary rule was to avoid courts. There were no touts to lure people into them. This evil too was noticeable only in and around capitals. The common people lived independently and followed their agricultural occupation. They enjoyed true Home Rule.

8. उन्होंने देखा कि राजा और उनकी तलवारें नैतिकता की तलवार से नीच हैं, और इसलिए, उन्होंने पृथ्वी के शासकों को ऋषियों और फकीरों से कमतर माना। इस तरह के संविधान वाला एक राष्ट्र दूसरों से सीखने की तुलना में दूसरों को सिखाने के लिए अधिक उपयुक्त है। इस देश में अदालतें, वकील और डॉक्टर थे, लेकिन वे सभी सीमा के भीतर थे। हर कोई जानता था कि ये पेशे विशेष रूप से श्रेष्ठ नहीं थे। इसके अलावा, इन वकीलों और वैद्यों ने लोगों को नहीं लूटा; उन्हें लोगों का आश्रित माना जाता था, उनका स्वामी नहीं। न्याय सहनीय रूप से निष्पक्ष था। सामान्य नियम अदालतों से बचना था। लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कोई दलाल नहीं थे। यह बुराई भी केवल राजधानियों और उसके आसपास ही ध्यान देने योग्य थी। आम लोग स्वतंत्र रूप से रहते थे और अपने कृषि व्यवसाय का पालन करते थे। उन्होंने सच्चे होम रूल का आनंद लिया।

9. The Indian civilization, as described by me, has been so described by its votaries. In no part of the world, and under no civilization, have all men attained perfection. The tendency of Indian civilizations is to elevate the moral being, that of the western civilization is to propagate immorality. The latter is godless; the former is based on a belief in God. So understanding and so believing, it behoves every lover of India to cling to the old Indian civilization even as a child clings to the mother’s breast.

मेरे द्वारा वर्णित भारतीय सभ्यता का वर्णन उसके समर्थकों द्वारा किया गया है। दुनिया के किसी भी हिस्से में, और किसी भी सभ्यता के तहत, सभी पुरुषों ने पूर्णता प्राप्त नहीं की है। भारतीय सभ्यताओं की प्रवृत्ति नैतिक सत्ता को ऊपर उठाने की है, पश्चिमी सभ्यता की प्रवृत्ति अनैतिकता का प्रचार करने की है। बाद वाला ईश्वरविहीन है; पूर्व भगवान में विश्वास पर आधारित है। इतना समझदार और इतना विश्वास करने वाला, यह भारत के हर प्रेमी को पुरानी भारतीय सभ्यता से चिपके रहने का व्यवहार करता है, जैसे कि एक बच्चा माँ के स्तन से चिपक जाता है।

10. I am no hater of the West. I am thankful to the West for many a thing I have learnt from Western literature. But I am thankful to modern civilization for teaching me that if I want India to rise to its fullest height, I must tell my countrymen frankly that, after years and years of experience of modern civilization, I have learnt one lesson from it and that is that we must shun it at all costs.

मुझे पश्चिम से कोई नफरत नहीं है। पश्चिमी साहित्य से मैंने जो कुछ सीखा है, उसके लिए मैं पश्चिम का शुक्रगुजार हूं। लेकिन मैं आधुनिक सभ्यता का शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे यह सिखाया कि अगर मैं चाहता हूं कि भारत अपनी पूरी ऊंचाई तक पहुंचे, तो मुझे अपने देशवासियों को स्पष्ट रूप से बताना होगा कि आधुनिक सभ्यता के वर्षों और वर्षों के अनुभव के बाद, मैंने इससे एक सबक सीखा है और वह है कि हमें इसका हर कीमत पर बहिष्कार करना चाहिए।

11. What is that modern civilization? It is the worship of the material, it is the worship of the brute in us, it is unadulterated materialism, and modern civilization is nothing if it does not think at every step of the triumph of material civilization.

वह आधुनिक सभ्यता क्या है? यह भौतिक की पूजा है, यह हम में पशु की पूजा है, यह शुद्ध भौतिकवाद है, और आधुनिक सभ्यता कुछ भी नहीं है अगर यह भौतिक सभ्यता की विजय के हर कदम पर नहीं सोचती है।

12. It is perhaps unnecessary, if not useless, to weigh the merits of the two civilizations. It is likely that the West has evolved a civilization suited to its climate and surroundings, and similarly, we have a civilization suited to our conditions, and both are good in their own respective spheres.

दो सभ्यताओं के गुणों को तौलना, यदि बेकार नहीं तो शायद अनावश्यक है। यह संभावना है कि पश्चिम ने अपनी जलवायु और परिवेश के अनुकूल सभ्यता विकसित की है, और इसी तरह, हमारे पास हमारी परिस्थितियों के अनुकूल सभ्यता है, और दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छे हैं।

13. The distinguishing characteristic of modern civilization is an indefinite multiplicity of human wants. The characteristic of ancient civilization is an imperative restriction upon, and a strict regulating of, these wants. The modern or western insatiableness arises really from want of living faith in a future state and therefore also in Divinity. The restraint of ancient or Eastern civilization arises from a belief, often in spite of ourselves, in a future state and the existence of a Divine Power.

आधुनिक सभ्यता की विशिष्ट विशेषता मानव आवश्यकताओं की अनिश्चित बहुलता है। प्राचीन सभ्यता की विशेषता इन आवश्यकताओं पर एक अनिवार्य प्रतिबंध और एक सख्त विनियमन है। आधुनिक या पश्चिमी अतृप्ति वास्तव में भविष्य की स्थिति में और इसलिए देवत्व में भी विश्वास की कमी से उत्पन्न होती है। प्राचीन या पूर्वी सभ्यता का संयम एक विश्वास से उत्पन्न होता है, अक्सर स्वयं के बावजूद, भविष्य की स्थिति में और एक दैवीय शक्ति के अस्तित्व में।

14. Some of the immediate and brilliant results of modern inventions are too maddening to resist. But I have no manner of doubt that the victory of man lies in that résistance. We are in danger of bartering away the permanent good for a momentary pleasure.

आधुनिक आविष्कारों के कुछ तात्कालिक और शानदार परिणाम विरोध करने के लिए बहुत परेशान हैं। लेकिन मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य की जीत उस प्रतिरोध में निहित है। हम क्षणिक सुख के लिए स्थायी अच्छाई को दूर करने के खतरे में हैं।

15. Just as in the West they have made wonderful discoveries in things material, similarly Hinduism has made still more marvellous discoveries in things of religion, of the spirit, of the soul.

जिस प्रकार पश्चिम में उन्होंने भौतिक वस्तुओं में अद्भुत खोज की है, उसी प्रकार हिंदू धर्म ने धर्म, आत्मा, आत्मा की चीजों में और भी अद्भुत खोज की है।

16. But we have no eye for these great and fine discoveries. We are dazzled by the material progress that Western science has made. I am not enamoured of that progress. In fact, it almost seems as though God in His wisdom has prevented India from progressing along those lines, so that it might fulfil its special mission of resisting the onrush of materialism.

. लेकिन इन महान और बेहतरीन खोजों पर हमारी कोई नजर नहीं है। पश्चिमी विज्ञान ने जो भौतिक प्रगति की है, उससे हम चकित हैं। मुझे उस प्रगति का मोह नहीं है। वास्तव में, ऐसा लगता है जैसे ईश्वर ने अपनी बुद्धि में भारत को उस दिशा में आगे बढ़ने से रोक दिया है, ताकि वह भौतिकवाद के हमले का विरोध करने के अपने विशेष मिशन को पूरा कर सके।

17. After all, there is something in Hinduism that has kept it alive up till now. It has witnessed the fall of Babylonian, Syrian, Persian and Egyptian civilizations. Cast a look around you. Where is Rome and where is Greece? Can you find today anywhere the Italy of Gibbon, or rather the ancient Rome, for Rome was Italy?

आखिर हिंदू धर्म में कुछ ऐसा है जिसने इसे अब तक जिंदा रखा है। इसने बेबीलोनियाई, सीरियाई, फारसी और मिस्र की सभ्यताओं का पतन देखा है। अपने चारों ओर एक नज़र डालें। रोम कहाँ है और ग्रीस कहाँ है? क्या आप आज कहीं भी गिब्बन का इटली या प्राचीन रोम ढूंढ सकते हैं, क्योंकि रोम इटली था?

18. Go to Greece. Where is the world-famous Attic civilization? Then coming to India, let one go through the most ancient records and then look around you and you would be constrained to say, “yes, I see here ancient India still living”.

ग्रीस जाओ। विश्व प्रसिद्ध अटारी सभ्यता कहाँ है? फिर भारत आकर, सबसे प्राचीन अभिलेखों को देखें और फिर अपने चारों ओर देखें और आप कहने के लिए विवश होंगे, “हाँ, मैं यहाँ प्राचीन भारत को अभी भी जीवित देख रहा हूँ”।

19. True, there were dungheaps, too, here and there, but there are rich treasures buried under them. And the reason why it has survived is that the end which Hinduism set before it was not development along material but spiritual lines.

सच है, कूड़ाकरकट भी इधर-उधर था, परन्तु उसके नीचे बहुत धन छिपा है। और इसके जीवित रहने का कारण यह है कि हिंदू धर्म ने जिस लक्ष्य को अपने सामने रखा है, वह भौतिक विकास नहीं बल्कि आध्यात्मिक आधार पर था।

20. Our civilization, our culture, our Swaraj depend not upon multiplying our wants self-indulgence, but upon restricting wants – self denial.

हमारी सभ्यता, हमारी संस्कृति, हमारा स्वराज हमारी इच्छाओं को बढ़ाने पर निर्भर नहीं करता है, बल्कि इच्छाओं को सीमित करने पर निर्भर करता है – आत्म इनकार।

21. European civilization is, no doubt, suited for the Europeans but it will mean ruin for India if we endeavour to copy it. This is not to say that we may not adopt and assimilate whatever may be good and capable of assimilation by us, as it does not also mean that even the Europeans will not have to part with whatever evil might have crept into it.

निस्संदेह, यूरोपीय सभ्यता यूरोपीय लोगों के लिए उपयुक्त है, लेकिन अगर हम इसकी नकल करने का प्रयास करते हैं तो इसका मतलब भारत के लिए बर्बादी होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि हम जो कुछ भी अच्छा और आत्मसात करने में सक्षम हो, उसे हम स्वीकार और आत्मसात नहीं कर सकते, क्योंकि इसका मतलब यह भी नहीं है कि यूरोपीय लोगों को भी इसमें शामिल होने वाली बुराई से अलग नहीं होना पड़ेगा।

22. The incessant search for material comforts and their multiplication is such an evil and I make bold to say that the Europeans themselves will have to remodel their outlook, if they are not to perish under the weight of the comforts to which they are becoming slaves. It may be that my reading is wrong, but I know that for India to run after the Golden Fleece is to court certain death. Let us engrave on our hearts the motto of a Western philosopher: “Plain living and high thinking”. Today it is certain that the millions cannot have high living and we the few, who profess to do the thinking for the masses, run the risk, in a vain search after high living, of missing high thinking.

भौतिक सुख-सुविधाओं की निरंतर खोज और उनका गुणन एक ऐसी बुराई है और मैं यह कहने का साहस करता हूं कि यूरोपीय लोगों को स्वयं अपने दृष्टिकोण को फिर से तैयार करना होगा, यदि वे उन सुख-सुविधाओं के बोझ के नीचे नष्ट नहीं होंगे, जिनके वे गुलाम बन रहे हैं। . हो सकता है कि मेरा पढ़ना गलत हो, लेकिन मैं जानता हूं कि भारत के लिए सोने की ऊन के पीछे दौड़ना निश्चित मौत है। आइए हम अपने दिलों पर एक पश्चिमी दार्शनिक के आदर्श वाक्य को उकेरें: “सादा जीवन और उच्च विचार”। आज यह निश्चित है कि लाखों लोगों के पास उच्च जीवन नहीं हो सकता है और हम कुछ, जो जनता के लिए सोचने का दावा करते हैं, उच्च जीवन की व्यर्थ खोज में, उच्च सोच को खोने का जोखिम उठाते हैं।

23. Civilization, in the real sense of the term, consists not in the multiplication, but in the deliberate and voluntary restriction of wants. This alone increases and promotes contentment, real happiness and capacity for service.

सभ्यता, शब्द के वास्तविक अर्थों में, गुणन में नहीं, बल्कि इच्छा के जानबूझकर और स्वैच्छिक प्रतिबंध में शामिल है। यह अकेले संतोष, वास्तविक खुशी और सेवा की क्षमता को बढ़ाता है और बढ़ावा देता है।

24. A certain degree of physical harmony and comfort is necessary but above a certain level it becomes a hindrance instead of help. Therefore, the ideal of creating an unlimited number of wants and satisfying them seems to be a delusion and a snare. The satisfaction of one’s physical needs, even the intellectual needs of one’s narrow self, must meet at a certain point a dead stop, before it degenerates into physical and intellectual voluptuousness. A man must arrange his physical and cultural circumstances so that they do not hinder him in his service of humanity on which all his energies should be concentrated.

कुछ हद तक शारीरिक सामंजस्य और आराम आवश्यक है लेकिन एक निश्चित स्तर से ऊपर यह मदद के बजाय एक बाधा बन जाता है। इसलिए असीमित संख्या में इच्छाएं पैदा करने और उन्हें संतुष्ट करने का आदर्श एक भ्रम और एक फंदा प्रतीत होता है। शारीरिक और बौद्धिक कामुकता में बदलने से पहले, किसी की शारीरिक जरूरतों की संतुष्टि, यहां तक ​​​​कि अपने संकीर्ण आत्म की बौद्धिक जरूरतों को भी, एक निश्चित बिंदु पर एक मृत पड़ाव मिलना चाहिए। एक व्यक्ति को अपनी भौतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को व्यवस्थित करना चाहिए ताकि वे उसे मानवता की सेवा में बाधा न डालें, जिस पर उसकी सारी ऊर्जा केंद्रित होनी चाहिए।

Rainbow part 2 English Chapter 1 Indian civilization and culture explanation in hindi

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Indian Civilization and Culture explain in Hindi class 12th

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indian culture and tradition essay in hindi

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Indian Culture and Tradition Essay for Students and Children

500+ words essay on indian culture and tradition.

India has a rich culture and that has become our identity. Be it in religion, art, intellectual achievements, or performing arts, it has made us a colorful, rich, and diverse nation. The Indian culture and tradition essay is a guideline to the vibrant cultures and traditions followed in India. 

Indian Culture And Tradition Essay

India was home to many invasions and thus it only added to the present variety. Today, India stands as a powerful and multi-cultured society as it has absorbed many cultures and moved on. People here have followed various religion , traditions, and customs.

Although people are turning modern today, hold on to the moral values and celebrates the festivals according to customs. So, we are still living and learning epic lessons from Ramayana and Mahabharata. Also, people still throng Gurudwaras, temples, churches, and mosques. 

The culture in India is everything from people’s living, rituals, values, beliefs, habits, care, knowledge, etc. Also, India is considered as the oldest civilization where people still follows their old habits of care and humanity.

Additionally, culture is a way through which we behave with others, how softly we react to different things, our understanding of ethics, values, and beliefs.

People from the old generation pass their beliefs and cultures to the upcoming generation. Thus, every child that behaves well with others has already learned about their culture from grandparents and parents.

Also, here we can see culture in everything like fashion , music , dance , social norms, foods, etc. Thus, India is one big melting pot for having behaviors and beliefs which gave birth to different cultures. 

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Indian Culture and Religion

There are many religions that have found their origin in age-old methods that are five thousand years old. Also, it is considered because Hinduism was originated from Vedas.

Thus, all the Hindu scriptures that are considered holy have been scripted in the Sanskrit language. Also, it is believed that Jainism has ancient origin and existence in the Indus valley. Buddhism is the other religion that was originated in the country through the teachings of Gautam Buddha. 

There are many different eras that have come and gone but no era was very powerful to change the influence of the real culture. So, the culture of younger generations is still connected to the older generations. Also, our ethnic culture always teaches us to respect elders, behave well, care for helpless people, and help needy and poor people.

Additionally, there is a great culture in our country that we should always welcome guest like gods. That is why we have a famous saying like ‘Atithi Devo Bhava’. So, the basic roots in our culture are spiritual practices and humanity. 

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भारतीय संस्कृति पर निबंध (Essay on Indian culture in Hindi)

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भारतीय संस्कृति पर निबंध (indian culture essay in hindi) – मैं भारत की संस्कृति की सबसे अधिक प्रशंसक रही हूँ। ऐसा नहीं है कि मैं भारतीय हूँ इसलिए यह कह रही हूँ। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि भारत की संस्कृति में कुछ अलग है जो सभी लोगों को अपनी ओर खींचता है। बचपन में अपनी मम्मी और सभी औरतों को जब मैं माथे पर बिंदी लगाए देखती थी तो सोचती थी कि वह ऐसा क्यों करती हैं? बड़े होने पर जब मुझे खुद को भी बिंदी लगाने का शौक चढ़ा तो बात समझ में आई। बिंदी हमारे देश की पहचान है। और साथ ही साथ यह हमारी सुंदरता पे चार चांद लगाती है।

भारत की हर चीज खींचती है लोगों को अपनी ओर। ना जाने क्या जादू है इस धरती की मिट्टी में? इस देश में एक से बढ़कर एक आनंद देने वाली चीजें हैं। कुछ तो बात है असम की चाय में, कश्मीर की केसर में, दक्षिण भारत की कांचीपुरम सिल्क साड़ी में। जो भी यहां आता है वो यहां का ही हो कर रह जाता है। भारत में हर प्रकार के रंग देखने को मिल जाते हैं। यहां पर कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आपको सब देखने को मिल जाता है। सभी लोग यहां पर मिलजुल कर रहते हैं। इसी धरती पर हिंदू भी रहते हैं और सिख भी। हमारे देश की सभ्यता दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है। तो आज का हमारा विषय भारत की संस्कृति पर आधारित है। आज के इस निबंध के माध्यम से हम भारत की संस्कृति के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो आइए हम bhartiya sanskriti par nibandh पढ़ना शुरू करते हैं।

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हमारे भारत की संस्कृति की शोभा दुनियाभर के लोग करते हैं। लेकिन शायद हमें अपनी ही संस्कृति की थोड़ी सी शर्म भी आती है। यहां जितने लोग हैं उतनी ही अलग प्रकार की संस्कृतियां है यहां। ऊपर मैंने बिंदी पर अपने विचार व्यक्त किए थे। मगर एक चीज ही नहीं हमें अपनी ही संस्कृति का अनुसरण करने में बहुत शर्म महसूस होती है। मैंने अखबार में सुधा मूर्ति की एक दिलचस्प कहानी पढ़ी। सुधा मूर्ति ने बताया कि एक बार उनकी कोई यात्रा के दौरान एक महिला ने उन्हें बेहद ही साधारण सी औरत समझ लिया था। और वजह यह थी कि सुधा मूर्ति ने बड़ी ही सादगी से साड़ी पहनी हुई थी। बाद में जब उस महिला को पता चला कि सुधा मूर्ति कोई साधारण महिला नहीं बल्कि एक बड़ी इनवेस्टर (investor) है तो उस महिला को बड़ी शर्म महसूस हुई। क्या उस महिला का व्यवहार सही था? बिल्कुल भी नहीं। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। हमारी संस्कृति दुनिया की सबसे अच्छी संस्कृति मानी जाती है।

भारतीय संस्कृति का महत्व

यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि हमारी संस्कृति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है। यहां का खान पान, रहन-सहन, वेषभूषा आदि सब अपने आप में बहुत खास है। रामायण और महाभारत हमारी ही संस्कृति से जुड़े हुए हैं। हमारी संस्कृति हजारों वर्ष पुरानी है। तो आइए हम जानते हैं भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में –

1) भारत की संस्कृति दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृति में से एक मानी जाती है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण काशी है। काशी का इतिहास 8000-9000 वर्ष पुराना बताते है।

2) भारतीय संस्कृति इतनी महान है कि भारत जैसे देश में भगवान और महापुरुषों ने जन्म लिया। चाहे हम श्री कृष्ण कहे या फिर श्री रामचंद्र। यह भारत की ही मिट्टी पर जन्मे थे।

3) भारत की संस्कृति में कई वीर पुरुष शामिल है। इसी धरती ने हमें वीर शिवाजी, चन्द्रगुप्त मौर्य, चाणक्य, राणा सांगा, वीर अशोका जैसे महान पुरुष दिए।

4) भारत के लोग भले ही खूब पढ़ लिख लिए हो। भले ही वह अमेरिका या इंग्लैंड नौकरी करने के लिए जा रहे हो। पर इतना सबकुछ होने के वाबजूद उन्होंने अपने मूल्यों को नहीं खोया है। वह भारतीय संस्कृति को आज भी सहेजे हुए है।

5) पूरी दुनिया में हमारा ही देश एक ऐसा देश है जहां पर सभी लोग एक दूसरे के साथ सद्भावना से रहते हैं। भले ही हमारे देश के हर हिस्से की अलग वेषभूषा या खानपान अलग हो। पर सभी लोगों को यह अच्छे से पता है कि उनको एकता के साथ कैसे रहना है।

6) हमारे देश की संस्कृति में सबसे अधिक महत्व अगर किसी चीज को दिया जाता है तो वह है उदारता और दयालुता। हमारा देश उदार देशों में से एक गिना जाता है। हम सभी भारतीयों के मन में दया भाव सबसे ऊपर स्थान पर रहता है।

7) हमारे देश की संस्कृति की खास बात यह है कि हमारे देश में आध्यात्मिकता हर एक मनुष्य के दिल में बसती है। आध्यात्मिकता हमारे देश में हज़ारों वर्षों से चलती आ रही है।

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भारतीय संस्कृति का मुख्य आधार क्या है?

भारतीय संस्कृति को दुनिया की प्राचीन संस्कृतियों में से एक गिना जाता है। हमारी संस्कृति और सब से बहुत खास है। हमारी संस्कृति का मुख्य आधार यह है कि हम जिसके साथ भी रहे, हम एकदम घुल मिलकर और प्रेम के साथ रहें। हमारी संस्कृति में कोई भी तरह का दिखावा नहीं किया जाता है। हम भारतीयों में एक चीज खास यह है कि हम दूसरे देशों के लोगों की तरह दिखावा नहीं करते हैं।

हमारे अंदर अच्छा व्यवहार का एक बड़ा गुण होता है। हम किसी से भी भेदभाव नहीं करते हैं। हमें यह भी सिखाया जाता है कि अहिंसा करना बहुत गलत बात होती है। गौतम बुद्ध ने हमें यही सिखाया कि हमें अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए। हमारे संस्कृति में बड़ों को बहुत महत्व दिया जाता है। हमें बचपन से यह सिखाया जाता है कि हमें अपने बड़ों का सम्मान और आदर करना चाहिए। यह हमारी ही संस्कृति ही होती है जहां पर अपनो से बड़ों के पांव छूना अच्छा माना जाता है।

बड़ों के पांव छूने से हमारे कोई बिगड़े हुए काम भी बन जाते हैं। हमारी संस्कृति हमें यह भी सिखाती है कि हमें उदारता के साथ अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। दिल हमेशा बड़ा होना चाहिए। हम किसी के हित में कोई काम करे तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है। किसी से भी बैर और घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए। इन सभी चीजों का पालन करके ही एक इंसान सच्चे रूप में महान बन सकता है।

भारतीय संस्कृति में ज्ञान और वेद

हमारे संस्कृति में ज्ञान का बहुत बड़ा महत्व रहा है। हमारे देश में कितने ही महापुरुषों ने समय-समय पर हर प्रकार का ज्ञान दिया है। विद्या हमारे जीवन का एक जरूरी हिस्सा है। बिना ज्ञान के हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते हैं। हमारी संस्कृति को वेद के बिना अधूरा ही माना जाता है।

वेद हमारे संस्कृति के अभिन्न अंग है। वेद को हम एक हिसाब से भारत का सबसे पुराना साहित्य ही मान सकते हैं। वेद का अर्थ क्या होता है। जब हमें किसी विषय के बारे में गहराई से जानना होता है तो हमें उस विषय पर ज्ञान होना जरूरी होता है। हमारी भारतीय में धार्मिक ज्ञान को जानना बहुत अच्छा माना जाता है। वेद का अर्थ होता है ज्ञान।

भारतीय संस्कृति में कितने वेद हैं?

जब एक मनुष्य को किसी चीज का गहरा ज्ञान होता है तो वह वेद कहलाया जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने ही वेद तैयार किए थे। वेद भारत के साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। कहा जाता है भगवान विष्णु ने चार महर्षियों जिनके नाम – अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा था, उनकी आत्माओं को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया।

यह ज्ञान बाद में इनके द्वारा ब्रम्हा जी को कहा गया । क्योंकि इस ज्ञान को सुना गया था इसीलिए इसका नाम श्रुति भी पड़ा। इस ज्ञान को सुनकर ही भगवान ब्रह्मा ने लिखा। वेद को चार भागों मैं बांटा जा सकता है। यह चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। सब वेदों में ज्ञान को मन्त्रों मैं लिखा गया है।

इन वेदों में सबसे पुरानी ऋग्वेद है। इसे स्तुति का ज्ञान कहा जा सकता है। इसमें मन्त्रों की संख्या लगभग 10552 है। दस मंडल (अध्याय) है। इसमें इसमें देवताओं की प्रशंसा में मंत्र लिखे हुए हैं।

यजुः अर्थात्‌ पूजा, तो यजुर्वेद का अर्थ पूजा का ज्ञान कहा जा सकता है। इसमे 40 अध्याय है और 1975 मंत्र है। इसमें यज्ञ और अनुष्ठानों के बारे में ज्ञान है।

सामवेद को हम गीतों का ज्ञान कह सकते हैं। यह मंत्रों का भंडार है। हालांकि इसमे लिखे गए 75 मंत्र को छोडकर सारे मंत्र ऋग्वेद के ही है। इसमे 6 अध्याय हैं और 1875 मंत्र हैं।

चौथा वेद अथर्ववेद संपूर्ण ज्ञान का भंडार है। इसमे 20 अध्याय है और 5977 मंत्र। इसमें देवताओं की प्रशंसा में लिखे गए मंत्र के साथ-साथ, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन, और दैनिक अनुष्ठान जैसे – विवाह और अंत्येष्टि में दीक्षा आदि के भी मन्त्र शामिल है।

भारतीय संस्कृति का खान-पान

भारत का जो खानपान होता है वह कहीं और नहीं होता है। भारतीय थाली बहुत ही स्वादिष्ट और पोष्टिक होती है। भारतीय पकवान में मिर्च मसाले बहुत अच्छी मात्रा में डाले जाते हैं। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक मिर्च मसालों का बेहतरीन तरीके से उपयोग किया जाता है। हमारे देश में अधिकतर लोग शाकाहारी होते हैं।

भारत में कम ही लोग मांसाहारी होते हैं। हमारे देश में इडली, डोसा, करी, गुलाबजामुन, खिचड़ी आदि बड़े ही चाव से खाए जाते हैं। भारत में समोसा और कचौड़ी भी बड़ी ही पसंद से खाए जाते हैं। दुनियाभर के लोग भी भारतीय व्यंजनों के मुरीद होते हैं। विदेशी लोग भारतीय खाने को पूरे मन से खाते हैं। भारतीय व्यंजन थोड़ा तीखा ही होता है। पर ऐसा नहीं है कि भारतीय व्यंजन हमेशा तीखा होता है, वह मीठा भी होता है।

हम अपनी संस्कृति को कैसे बचा सकते हैं?

हमारी संस्कृति दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्कृतियों में से एक गिनी जाती है। यह हर जगह हमारी शोभा बढ़ाती है। आज हम अपनी संस्कृति की वजह से ही अस्तित्व में है। पर आज के समय में संकट आ गया है हमारी संस्कृति को बचाने का। तो आइए हम जानते हैं कि हम अपनी संस्कृति कैसे बचा सकते हैं-

1) अपनी भाषा को सहेजकर – आज के समय में यह बहुत ही जरूरी हो गया है कि हम अपनी भाषा को लेकर गर्व महसूस करे। आज के समय में हम हिंदी को हीन भावना की नजरों से देखते हैं। हम अंग्रेज़ी को ज्यादा महत्व देते हैं। बल्कि होना यह चाहिए कि हमें हिंदी भाषा को सम्मान की नजरों से देखना चाहिए।

2) हमारी पारंपरिक वेशभूषा- हमें इज्जत और पहचान अपनी वेषभूषा की वजह से ही मिलती है। आज के समय में इस बात को लेकर लोग जागरुक नहीं रहे हैं। आप आज हर किसी को पारंपरिक वेशभूषा यानि कि साड़ी और कुर्ता पाजामे में नहीं देखते। लोग इन परिधानों को पहन कर शर्मिंदगी महसूस करते हैं। पर हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि साड़ी या फिर कुर्ता-पायजामा पहनने से हमारा रुतबा कम नहीं होगा।

3) भारतीय खानपान- आजकल के बच्चों को ना जाने क्या हो गया है कि वह मैगी और चाऊमीन को लेकर ज्यादा उत्साहित रहते हैं। वह अपनी पारंपरिक थाली को मानो भूल ही गए हैं। पर हमें अपने आने वाली पीढ़ी को भारतीय खानपान से ज्यादा जुड़ाव करवाना होगा। भारतीय खानपान हमारी संस्कृति की शान है।

भारत की संस्कृति पर निबंध 200 शब्दों में

हमारा देश दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है। इस देश की जनसंख्या चीन से भी आगे निकल चुकी है। तब भी हमारा देश दूसरे देशों की तुलना में आज भी बहुत अच्छा माना जाता है। हमारे देश की संस्कृति महान संस्कृतियों में से एक मानी जाती है। हमारे देश का इतिहास 6000-7000 वर्ष पुराना है।

यह देश महान ऋषि मुनियों का देश है। यहां पर तुलसीदास, कालिदास, मीराबाई जैसे महान लोगों ने जन्म लिया था। इस देश में 22 प्रकार की भाषाएँ बोली जाती है। इस देश का खानपान और पहनावा बहुत ही अच्छा होता है। इस देश में अलग अलग जाति पंथ के लोग निवास करते हैं। जैसे सिख, ईसाई, हिंदू और मुसलमान। यह सभी लोग मिलजुलकर प्रेम से रहते हैं। हमारे देश में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे होली, दिवाली, क्रिसमस और ईद।

यह सभी त्यौहार रंग बिरंगे होते हैं। देश की सबसे पहली सभ्यता सिंधु घाटी मानी जाती है। इसके अलावा नर्मदा घाटी सभ्यता, महानदी सभ्यता, दक्षिण भारत की सभ्यता और गंगा सभ्यता भी हमारी पुरानी सभ्यताएं है। हमारे देश पर कई विदेशी आक्रमणकारियों ने राज किया है। हमारी वास्तुकला भी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला मानी जाती है। हमारे देश में लोग अपने बड़ों का सम्मान करते हैं। जब भी कोई लोग हमारे देश में मेहमान बनकर आते हैं तो उन मेहमानों को अतिथि माना जाता है। यहां मेहमानों को अतिथि देवो भव की संज्ञा दी जाती है।

भारत की संस्कृति पर 10 लाइन

1) हमारे देश की सभ्यताओं को दुनिया की पुरानी सभ्यताओं में से एक माना जाता है।

2) हमारे देश में अनेकों त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे होली, दिवाली, जन्माष्टमी, ईद, क्रिसमस आदि।

3) हमारे देश की राजभाषा हिंदी को मानी जाती है। हिंदी बहुत प्यारी भाषा है।

4) देश में अलग जाति धर्म के लोग रहते हैं। जैसे हिंदू, ईसाई, सिख और मुस्लिम।

5) हमारा देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था।

6) हमारे देश में अलग प्रकार का खानपान और विभिन्न तरह की वेषभूषा होती है।

7) हमारे देश में मेहमानों को अतिथि देवो भव की संज्ञा दी जाती है।

8) हमारे देश में अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया। जैसे महाराणा प्रताप, महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह आदि।

9) हमारे देश में सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय थे जैसे कि नालंदा विश्वविद्यालय और तक्षशिला विश्वविद्यालय।

10) हमारे देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी है।

भले ही हम भारतीयों की वेशभूषा और खानपान कितना ही अलग हो पर हम सभी के दिल एक ही होते हैं। तो आज के इस निबंध के माध्यम से हमने जाना कि हमारी भारतीय संस्कृति आखिर कैसी होती है। हमने इसी निबंध के माध्यम से भारतीय संस्कृति के चार प्रकार के वेदों के बारे में भी जाना। हम यह आशा करते हैं कि आपको हमारे द्वारा लिखा गया यह निबंध पसंद आया होगा।

FAQ’S

A1. भारत की पारंपरिक पोशाक साड़ी होती है। यह सदियों से चली आ रही एक लोकप्रिय पोशाक है।

A2. हमारी संस्कृति और सब से बहुत खास है। हमारी संस्कृति का मुख्य आधार यह है कि हम जिसके साथ भी रहे, हम एकदम घुल मिलकर और प्रेम के साथ रहें। हमारी संस्कृति में कोई भी तरह का दिखावा नहीं किया जाता है। हम भारतीयों में एक चीज खास यह है कि हम दूसरे देशों के लोगों की तरह दिखावा नहीं करते हैं। हमारे अंदर अच्छा व्यवहार का एक बड़ा गुण होता है।

A3. वेद का अर्थ होता है ज्ञान। मतलब जब एक मनुष्य को किसी चीज का गहरा ज्ञान होता है तो वह वेद कहलाया जाता है। हमारे ऋषि मुनियों ने ही वेद तैयार किए थे। वेद भारत की साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ हैं।

A4. भारत का मैसूर जो कि कर्नाटक में स्थित है वह शहर हर तरह की संस्कृति में समृद्ध है।

A5. गुजरात राज्य में गरबा खेला जाता है।

A6. बिहार एक ऐसा राज्य है जो बिहू को लोक नृत्य के रूप में मनाता है।

A7. राजा रवि वर्मा एक शानदार और महान पेंटर था। उसने हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रन्थों के ऊपर खूब शानदार चित्र बनाए।

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  • Indian Culture and Tradition Essay

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Essay on Indian Culture and Tradition

As students grow older, it is important for them to improve their understanding and hold over the language. This can be done only through consistent reading and writing. Writing an essay is a task that involves cooperation and coordination of both the mind and body. Students must be able to think as well reproduce their thoughts effectively without any confusion. This is important when it comes to writing answers and other important documents as ones go to higher classes. The art of writing effectively and efficiently can be improved by students through writing essays. To help students in this domain, Vedantu provides students with numerous essays. Students can go through the same and learn the correct manner of writing the essay. 

Indian Culture and Tradition

India enjoys a wide variety of cultural and traditional presence amongst the 28 states. Indian origin religions Hinduism, Jainism and Buddhism are all based on dharma and karma. Even, India is a blessed holy place which is also a native place for most of the religions. Recently, Muslim and Christianity also practised working amongst the whole India population. The pledge also added the line, ‘India is my country, and I am proud of its rich and varied heritage.’  

Indians are great with cooking; their spices are special for medicinal purposes, so visitors are difficult to adjust to with such heavy spices. The cricketers touring Indian pitches are out due to such food. Frequently, it's been observed that the sportsperson arrived in India either with cooking skills or with a cook. Spices such as cumin, turmeric and cardamom have been used for a long period, to make the dishes more delicious and nutritional. Wheat, rice and pulses help to complete the meal. The majority of the population is a vegetarian one due to their religious aspects.

Talking about the language, India is blessed with a wide range of languages used. Each state has its own language. A major part of the state is unable to speak other languages than the native one. Gujrathi, Malayalam, Marathi, Tamil, Punjabi, Telugu and many more are the representative languages of the respective state. It's easy to recognize the person with the language he spoke. There are 15 regional languages but almost all of them Hindi is the national language of the country. Sanskrit is considered an ancient and respected language. And most of the legendary holy texts are found in Sanskrit only. Along with these, most of the people are aware of plenty of foreign languages. 

Indian clothing is adorable to most of the foreigners. Woman wearing a sari is the pride of a nation. These create a pleasant effect and she looks so beautiful that a majority of foreign country’s female want to be like her. The origin of the sari is from the temple dancers in ancient times. Sari allows them to maintain modesty and freedom of movement. On the other hand, men traditionally wear a dhoti and kurta. Actually, Dhoti is a type of cloth without any further attached work done on it. The great Mahatma Gandhi was very fond of it and in their dignity, most of the people used to wear the same. 

Apart from all the above facts, Indians are legends with arts and studious material. Shah-rukh Khan, Sachin Tendulkar, Dhirubhai Ambani, Amitabh Bachchan Rajnikant, Sundar Pichai are many more faces of India who are shining and representing India on a global scale. There are 20-30 grand festivals celebrated every year in which every festival pops up with history and respect to the respective religion. Even in terms of business, India is not behind. Agriculture is the best occupation of 70% of people in India. It’s our duty to protect the wonderful culture that we have. 

Indian culture is one of the oldest and most unique cultures known across the globe. It has various kinds of traditional values, religion, dance, festivals, music, and cloth, which varies from each state or town even. Indian art, cuisine, religion, Literature, Education, Heritage, Clothes etc has a huge impact on the whole world where everyone admires and follows it. It is known as the land of cultural diversity.  India thrives on a variety of languages, religions, and cultures due to the diverse race of people living in the country. It can be referred to as one of the world’s most culturally enriched countries. When one thinks of India, they picture colors, smiling faces of children running in the streets, bangle vendors, street food, music, religious festivals etc. 

Religion 

India is a land where different religious beliefs are followed. It is the land of many religions such as Hinduism, Islam, Christianity, Sikhism, Jainism and Buddhism.  Four Indian religions namely Hinduism, Sikhism, Jainism, and Buddhism were born in India while others are not of Indian origin but have people following those faiths. The people of India keep a solid belief in religion as they believe that following a faith adds meaning and purpose to their lives as it is the way of life. The religions here are not only confined to beliefs but also include ethics, rituals, ceremonies, life philosophies and many more.

Families 

Family plays a vital role in every Indian household. Indians are known to live together as a joint family with their grandparents, uncles and aunts, and the next generation of offspring as well. The house gets passed down from family to family throughout the generations. But with the new modern age, nuclear families are starting to become more common as children go out of town into cities for work or studies and get settled there, also everyone now prefers to have their own private life without any interference. But still, the concept of family get together and family gatherings are not lost as everyone does come together frequently. 

Indian Festivals

India is well known for its traditional festivals all over the world. As it is a secular country with diversity in religions, every month some festival celebration happens. These festivals can be religious, seasonal or are of national importance. Every festival is celebrated uniquely in different ways according to their ritual as each of them has its unique importance. National festivals such as Gandhi Jayanti, Independence Day and Republic Day are celebrated by the people of India across the entire nation. Religious festivals include Diwali, Dussehra, Eid-ul-Fitr, Eid-ul-Zuha, Christmas, Ganesh Chaturthi, etc. All the seasonal festivals such as Baisakhi, Onam, Pongal, Bihu etc are celebrated to mark the season of harvest during two harvesting seasons, Rabi and Kharif. 

Festivals bring love, bond, cross-cultural exchange and moments of happiness among people.

Indian cuisine is known for a variety of spicy dishes, curry, rice items, sweets etc. Each cuisine includes a wide range of dishes and cooking techniques as it varies from region to region. Each region of India cooks different types of dishes using different ingredients, also food varies from every festival and culture as well. Hindus eat mostly vegetarian food items such as pulao, vegetables, daal, rajma etc whereas people from Islamic cultural backgrounds eat meat, kebabs, haleem etc. In the southernmost part of India, you will find people use a lot of coconut oil for cooking purposes, they eat a lot of rice items such as Dosa, Idli, Appam etc with Coconut chutney, sambhar.

Indian Clothing is considered to be the epitome of modesty and every style is very different in each region and state. But the two pieces of clothing that represent Indian culture are dhoti for men and saree for women. Women adorn themselves with a lot of bangles and Payal that goes around their ankles. Even clothing styles varied from different religions to regions to cultures. Muslim women preferred to wear salwar kameez whereas Christian women preferred gowns. Men mostly stuck to dhoti, lungi, shalwar and kurta.In modern days, people have changed their sense of style, men and women now wear more modern western clothes. Indian clothes are still valued but are now in more trendy and fashionable styles. 

There is no single language that is spoken all over India; however , Hindi is one common language most Indians know and can speak or understand. Every region has a different language or dialect. As per the official language act, Hindi and English are the official languages in India. Other regions or state wise languages include- Gujarati, Marathi, Bangla, Malayalam, Tamil, Telugu, Kannada, Kashmiri, Punjabi etc. 

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FAQs on Indian Culture and Tradition Essay

1. What are the Popular Spices in India?

Popular spices in India include - Haldi(Turmeric), Chakri Phool(Star Anise), Til (Sesame seeds/ Gingili seeds), Saunf(Fennel Seeds), Kesar(Saffron), Laal Mirch(Red chilli), Khas(Poppy seeds), Jayphal(Nutmeg), Kalonji(Nigella Seeds), Rai/Sarson(Mustard Seeds), Pudina(Mint), Javitri(Mace), Patthar ke Phool​(Kalpasi), Kala Namak/ Sanchal/ Sanchar powder(Black salt/ Himalayan rock salt/ Pink salt), Sonth(Dry ginger powder), Methi dana(Fenugreek seeds), Suva Bhaji/ Sua Saag(Dill)

Kadi Patta(Curry Leaves), Sukha dhania(Coriander seeds), Laung(Cloves), Dalchini(Cinnamon), Sabza(Chia seeds), Chironji(Charoli), Ajwain(Carom seeds, thymol or celery seeds), Elaichi(Cardamom), Kali Mirch(Black Pepper (or White Pepper), Tej Patta(Bay Leaf), Hing(Asafoetida), Anardana(Pomegranate seeds), Amchoor(Dry mango powder)

2. What is the Language Diversity Available in India?

The Indian constitution has 22 officially recognized languages. Apart from it, there are around 60 languages that are recognized as smother tongue with more than one million speakers. India also has around 28 minor languages spoken by over one hundred thousand and one million people. Apart from these, there are numerous dialects spoken by a various sect of people based on their region of origin. 

3. Who are Some of the Most Famous Indian Celebrities Popular Across the Globe? 

India has people excelling in all aspects of art and activities. Few prominent celebrities to garner global fame include - Sudha Murthy, Amitabh Bacchan, Virat Kohli, Saina Nehwal, Sania Mirza, Priyanka Chopra, MS Dhoni, Sachin Tendulkar, Mohanlal, A R Rehman, Mukesh Ambani, Ratan Tata, Narayana Murthy, Kiran Majumdar Shah, Narendra Modi, Amith Shah. all these people have received great accolades in their respective area of expertise globally and getting recognition to India on a global level. 

4. How to Improve Writing and Reading Skills for Producing Good Essays?

Writing an essay becomes a tedious task when the mind and hand do not coordinate. It is important for you to be able to harness your mental ability to think clearly and reproduce the same on paper for a good essay. Always remember the first few thoughts that you get as soon as you see an essay topic is your best and purest thoughts. Ensure to note them down. Later you can develop your essay around these points. Make sure your essay has an introduction, body and the final conclusion. This will make the reader understand the topic clearly along with your ability to convey the any information without any hesitation or mistake. 

5. How many religions are there in India? 

As of now, there are a total of 9 major religions in India with Hinduism being the majority. The remaining religion includes- Islam, Christianity, Buddhism, Sikhism, Jainism, Zoroastrianism, Judaism and the Baha'i Faith. 

6. Which is the oldest language in India? 

Indian classical oldest language is Sanskrit, it belongs to the Indo- Aryan branch of Indo- European languages. 

7. What are the few famous folk dances of India? 

Folk dances are the representation of a particular culture from where they are known to originate. Eight famous classical dances are- Bharatnatyam from Tamil Nadu, Kathakali from Kerala, Kathak from North, West and Central India, Mohiniyattam from Kerala, Kuchipudi from Andhra Pradesh, Odissi from Odisha, Manipuri from Manipur, Sattriya from Assam. 

8. How many languages are spoken in India? 

Other than Hindi and English there are 22 languages recognised by the constitution of India. However, more than 400 languages and dialects in India are still not known as they change after every town. Over the years, about 190 languages have become endangered due to very few surviving speakers. 

9. Describe the Indian Culture. 

Indian culture is very diverse and the people of India are very warm and welcoming. They have a strong sense of family and firmly believe in unity in diversity. In India, there's a saying saying 'Atithi Devo Bhava'  means 'the guest is equivalent to god'. So if one visits India, they will never feel unwanted.

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What to Know About Holi, India’s Most Colorful Tradition

The ancient festival has Hindu roots, but growing numbers worldwide are taking part in the celebration, which features bonfires, singing, dancing, prayer, feasting and clouds of pigmented powder.

Celebrants are covered in red and pink hues outside a temple.

By John Yoon and Hari Kumar

A rainbow haze swirls through India, where raucous laughter rings out as friends and strangers douse one another with fists full of pigmented powder. It is time for the ancient Hindu tradition of Holi, an annual celebration of spring.

In 2024, crimson, emerald, indigo and saffron clouds will hover over the country on March 25 for one of its most vibrant, joyful and colorful festivals.

“Playing Holi,” as Indians say, has spread far beyond India’s borders.

The revelry starts at sundown.

Holi (pronounced “holy”), also known as the “festival of colors,” starts on the evening of the full moon during the Hindu calendar month of Phalguna, which falls around February or March.

It begins with the kindling of bonfires. People gather around the flames to sing, dance and pray for an evening ritual called Holika Dahan, which re-enacts the demise of a Hindu demoness, Holika.

All sorts of things are thrown into the fires, like wood, leaves and food, in a symbolic purge of evil and triumph of good.

From Delhi, Archie Singhal, 24, visits her family in Gujarat the day before Holi, when the fire is lit in the evening. The next morning, she prepares for the bursts of powder, called gulal, by applying oil on her body so the colors don’t stick to her skin. She puts on old clothes she doesn’t mind tossing.

Why the colors?

Holi’s roots are in Hinduism. The god Krishna, cursed by a demon with blue skin, complained to his mother, asking why his love interest Radha is fair while he is not. His mother, Yashoda, playfully suggests that he paint Radha’s face with any colors he wishes. So Krishna smears color on her so they look alike.

Holi is in part a celebration of the love between Krishna and Radha that looks past differences. Today, some of the gulal used during Holi is synthetic. But the colors traditionally come from natural ingredients, such as dried flowers, turmeric, dried leaves, grapes, berries, beetroot and tea.

“There is an environment of freedom,” Ms. Singhal said, adding that she doesn’t hesitate to throw colors on her younger brother, parents, aunts, uncles and neighbors.

Everyone takes part.

The ancient Hindu festival eschews the religious, societal, caste and political divisions that underpin India’s often sectarian society . Hindu or not, anybody can be splashed with brightly colored dust, or even eggs and beer.

Some partake in worship, called puja, offering prayers to the gods. For others, Holi is a celebration of community. The festival gets everyone involved — including innocent passers-by.

“People forget their misunderstandings or enmity during this occasion and again become friends,” said Ratikanta Singh, 63, who writes, sometimes about Holi, in Assam, in northeastern India.

There’s a feast.

When not throwing around gulal, friends, families and neighbors partake in a buffet of traditional dishes and drinks. They include gujiya, dumpling-like fried sweets filled with dried fruits and nuts; dahi vada, deep-fried lentil fritters served with yogurt; and kanji, a traditional drink made by fermenting carrots in water and spices.

Some celebrate Holi with thandai, a light green concoction of milk, rose petals, cardamom, almonds, fennel seeds and other ingredients. For thousands of years, the drink has sometimes been laced with bhang, or crushed marijuana leaves, which add to the mood of revelry.

Holi has ancient roots.

Holi has been documented for centuries in Hindu texts. The tradition is observed by people young and old, particularly in Northern India and Nepal, where the stories behind the festival originated.

Holi also marks the harvesting of crops with the arrival of spring in India, where more than half of the population lives in rural areas.

Traditions vary across India.

Holi celebrations are as diverse as the Indian subcontinent. They are particularly wild in North India, considered the birthplace of the Hindu god Krishna, where celebrations can last more than a week.

In Mathura, a northern city where Krishna is said to have been born, people recreate a Hindu story in which Krishna visits Radha to romance her, and her cowherd friends, taking offense at his advances, drive him out with sticks.

In the eastern state of Odisha, people hold a dayslong festival called Dola Purnima . Grand processions of people shouldering richly decorated carriages with idols of Hindu gods are a large part of the festivities there. The processions are full of drumbeats, songs, colorful powder and flower petals thrown into the air.

In southern India, where Holi is not celebrated as widely, many temples carry out religious rites. In the Kudumbi tribal community, in the southwest, temples cut areca palms and transport their trunks to the shrine in a ritual that symbolizes the victory good over evil.

It’s not just in India.

Holi is celebrated around the world, wherever the Indian diaspora has gone. More than 32 million Indians and people of Indian origin are overseas, most in the United States, where 4.4 million reside, according to the Indian government.

It is also widely enjoyed in countries as varied as Fiji, Mauritius, South Africa, Britain and other parts of Europe.

Holi is known as Phagwah in the Indian communities of the Caribbean, including in Guyana , Suriname and Trinidad and Tobago.

The festival has also been used by the Indian government to project soft power and reshape its image as part of its “ Incredible India ” tourism campaign.

On Holi, “the world is a global village,” said Shubham Sachdeva, 29, from an eastern Delhi suburb, who added that his friends in the United States were celebrating Holi with their roommates whether they were Indian or not. “All this brings the world close to each other.”

An earlier version of a picture caption with this article misstated the location of a Holika Dahan celebration. It was in Durban, South Africa, not India.

How we handle corrections

John Yoon is a Times reporter based in Seoul who covers breaking and trending news. More about John Yoon

Hari Kumar covers India, based out of New Delhi. He has been a journalist for more than two decades. More about Hari Kumar

भारतीय संस्कृति पर निबंध | Essay On Indian Culture In Hindi

नमस्कार दोस्तों आज का निबंध भारतीय संस्कृति पर निबंध Essay On Indian Culture In Hindi पर दिया गया हैं.

यहाँ हम जानेगे कि भारत की संस्कृति कल्चर के आधार स्तम्भ, मूल तत्व, विशेषताएं और इंडियन कल्चर पर प्रभाव आदि बिन्दुओं को सरल भाषा में इस आसान निबंध में जानेगे.

भारतीय संस्कृति पर निबंध Essay On Indian Culture In Hindi

भारतीय संस्कृति पर निबंध Essay On Indian Culture In Hindi

भारतीय संस्कृति पर निबंध

संसार के विभिन्न देशों और विभिन्न जातियों के विकासक्रम में उनके द्वारा अपने अनुभवों का संचय जो रीती रिवाज एवं सिद्धांत अपनाएँ गये है.

उन्हें संस्कृति कहते है. संस्कृति शब्द की व्युत्पति के अनुसार इसका आशय मानव की उस श्रेष्ट चिष्टाओं और अभिव्यक्तियों से है.

जैसे हमारे सामाजिक जीवन की भौतिक एवं आध्यात्मिक विशेषता व्यक्त होती है. विभिन्न विद्वानों ने संस्कृति की जो परिभाषा दी है तदुनुसार संस्कृति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी जाति देश व समाज का भव्य व्यक्तित्व निर्मित होता है.

और जिससे उसकी जीवन पद्दति रीती रिवाज एवं आचार विचार आदि विशेषताओं की अलग पहचान बनती है. इस तरह भारतीय समाज में प्राचीन काल से जातियां संस्कारों का जो चयन किया गया है. वही हमारी संस्कृति है.

संस्कृति और सभ्यता (Culture and civilization)

संस्कृति शब्द अत्यंत व्यापक अर्थ में लिया जाता है. किसी भी देश अथवा जाति की जो सनातन परम्परा चली आ रही है उसके अनुसार जो राजनितिक धार्मिक साहित्यिक कलागत आध्यात्मिक एवं रीती रिवाजो के महनीय सिद्धांत बौद्धिक विचार के साथ प्रासंगिक है.

अथवा जो मान्यताएं स्थापित है वे सब संस्कृति की परिचायक है. इस तरह संस्कृति के अंतर्गत सामाजिक चेतना का चेतना का विकास जातीय इतिहास धर्म दर्शन कला आचरण चिन्तन साहित्य लोक प्रशासन आदि सभी के परिष्कृत मूल्यों की गरिमा का समावेश होता है.

संस्कृति का निर्माण अतीत की अनेक पीढ़ियों के पीढ़ियों के चिंतन से होता रहता है और इसके मूल्य स्थायी होते है.

सभ्यता और संस्कृति को कभी कभी एक दुसरे का पर्याय मान लिया जाता है. परन्तु इन दोनों का पृथक अस्तित्व है. संस्कृति का बाह्य पक्ष अर्थात रहन सहन तथा भौतिक विकास और शिष्ट आचरण आदि की प्रवृति सभ्यता के अंतर्गत आता है.

अतः संस्कृति आत्मा है और सभ्यता उसका अंग है. संस्कृति में परिवर्तन की गति अत्यंत मंद होती है तथा वह अपने मौलिक रूप को सहसा नही छोड़ पाती है.

भारतीय संस्कृति की मौलिकता इसका प्रमाण है शताब्दियों तक विदेशी एवं विजातीय शासन रहने पर भी यहाँ की संस्कृति अपने रूप में आज भी अपरिवर्तित है.

भारतीय संस्कृति की विशेषताएं

भारतीय संस्कृति विश्व की अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा अत्यधिक गरिमामयी एवं मौलिक है भारतीय संस्कृति के विविध मूल तत्व माने गये है.

इन मूल तत्वों में धार्मिक कट्टरता की अपेक्षा सहिष्णुता, सर्वधर्म सद्भाव, अध्यात्म भावना, समन्वय की प्रवृति, कर्मवाद, अहिंसावाद, पुनर्जन्मवाद, नैतिक मूल्य, मानवीय संस्कार, विश्व बन्धुत्व, मानवतावाद, प्रकृति प्रेम, गवेषणात्मक प्रवृति एवं उच्चादर्शों की गणना की जाती है.

भारतीय संस्कृति की परम विशेषता वर्णाश्रम व्यवस्था है. इसमे वर्णाश्रम व्यवस्था के सामाजिक स्वरूप को व्यवस्थित किया गया और प्रत्येक वर्ण का निर्धारण प्रारम्भ में उसके कर्म के अनुसार माना गया. परवर्तीकाल में इसमे कुछ परिवर्तन हुआ है.

आश्रम व्यवस्था के अंतर्गत हमारे जीवन को ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास इन चार भागों में विभाजित कर प्रत्येक आश्रमकाल के करणीय कर्तव्यों का भी निर्धारण किया गया है.

भारतीय संस्कृति का श्रेष्ट गुण है रहस्यवादी भावना और समन्वय की प्रवृति. रहस्यवादी भावना के कारण आत्मा परमात्मा आदि के सूक्ष्म चिन्तन को लेकर भारतीय दर्शन शास्त्र की अनेक शाखाओं का प्रचार हुआ.

समन्वयात्मक प्रवृति के कारण भारतीय जीवन में ज्ञान, भक्ति, कर्म और धर्म का शील, सत्य एवं सदाचार का ऐसा समन्वय हुआ कि विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और मतवादों के प्रचलित होने पर भी यहाँ के जीवन में वैमनस्य की स्थति नही आई.

यहाँ तक की विदेशी आक्रांता जातियाँ भी यहाँ आकर भारतीय संस्कारों को अपनाने लगी. भारतीय संस्कृति में एकेश्वरवाद, ब्रहावाद तथा अवतारवाद के साथ धार्मिक आस्था एवं आस्तिक भावना का जो समावेश हुआ है.

वह अन्यत्र दुर्लभ है. इन सभी विशेषताओं से भारतीय संस्कृति अत्यंत गौरवशाली एवं गरिमामयी मानी जाती है.

भारतीय संस्कृति का प्रभाव (Influence of Indian Culture)

भारतीय संस्कृति के विभिन्न तत्वों का प्रभाव यहाँ के जन-जीवन पर प्राचीनकाल से स्पष्ट्या रहा है. साथ ही अन्य देशों पर इसका प्रभाव देखा जा सकता है.

बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ भारतीय संस्कृति के अनेक तत्व अन्य देशों एवं जातियों सहर्ष अपनाएँ है. इस कारण आज भी भारतीय संस्कृति के कई समुदाय विश्व में दिखाई देते है.

हमारी संस्कृति के प्रभावशाली स्वरूप को देखकर कहा जा सकता है. कि यह प्रागैतिहासिक अज्ञात युग से लेकर आज तक सदैव गतिशील एवं जीवंत रही है.

संक्षिप्त में यह संस्कृति अतीव गरिमामयी और अनेक विशेषताओं से मंडित है. यदि हम अपना अपने देश और समाज का हित चाहते है और विश्व बन्धुत्व एवं मानवता तो हमे इस संस्कृति के आदर्शों एवं मूल्यों को अपने जीवन में उतारना होगा. वस्तुतः मानव संस्कारों के प्रचार के लिए इस संस्कृति का योगदान अप्रतिम कहा जा सकता है.

भारतीय संस्कृति पर निबंध Indian Culture Essay In Hindi

हमार देश प्राचीनतम देश है और भारतीय संस्कृति भी अत्यन्त प्राचीन है|जहां प्राचीन संस्कृति होती है वहां जीवन के कुछ मानवीय मूल्य होते है,कुछ जाचें-परखे मूल्य होते है जिन्हें एकाएक बदला नहीं जा सकता|

हमारा आज का समय कठिनाइयो से भरा है तथा हमारे सामने अनेक चुनौतियाँ है किन्तु इन सबके बावजूद हमारी भारतीय संस्कृति के कुछ आधारभूत तत्व ऐसे है जिनके यह देश महान परम्पराओं का देश कहलाता है|

आज जब चारों तरफ हिंसा -प्रतिहिंसा तथा द्वेष का वातावरण है, ऐसे में अहिंसा भारतीय संस्कृति को दुनिया के सामने विशिष्ट रूप में प्रस्तुत करती है| महात्मा बुध्द महावीर स्वामी ,महात्मा गांधी तथा अन्य परवर्ती चिन्तको ने देश और दुनिया में अहिंसा का प्रसार किया|

यघपि संस्कृति की कोई एक परिभाषा सम्भव नहीं है क्योकि संस्कृति भी विकास के विभिन्न रूपों का समन्वयकारी द्रष्टकोंण ही है| जैसे किसी एक व्यक्ति विशेष को जानने के लिए उसके रूप, रंग, आकार, बोलचाल, विचार, खान -पान, आचरण आदि को जानना जरुरी होता है.

वैसे ही किसी जाति की, देश की संस्कृति को जानने के लिए उसके विकास की सभी दिशाओं को जानना आवश्यक है| किसी मनुष्य -समूह अथवा देश की संस्कृति को जानने के लिए उसके साहित्य, कला, दर्शन के साथ उसके प्रत्येक व्यक्ति का साधारण शिष्टिचार भी जानना आवश्यक है|

हमारे देश में अतिथि देवो भव; की संस्कृति है जिसे जयशंकर प्रसाद ने लिखा है कि -अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहां पहुच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा अर्थात भारत में आने वाले हर दुसरे देश के निवासी का पूरा सम्मान किया जाता रहा है|

वसुधैव कुटुम्बकम तथा विश्व बन्धुत्व का भाव हमारी संस्कृति के मूल तत्व है| हम घर परिवार में भी अतिथि-सत्कार को विशेष महत्व देते है| संस्कृति का निर्माण किसी भी देश में उपलब्धि पर भी निर्भर करता है

क्योकि संस्कृति का खान -पान आचरण तथा व्यवहार से गहरा सम्बन्ध है| संस्कृति ऐसी बहती नदी के सम्मान होती है जिसमे आने वाला हर नया व्यक्ति अपने को निर्मल करता है तथा नदी स्वय भी अपने बहाव के साथ अपने में एकत्रित हुई गन्दगी रूपी कमियों को बहाकर साफ कर देती है|

दुनिया की बहुत सी संस्कृतियाँ इसलिए आज लुप्त हो गईं, क्युकि उनके मूल तत्वों में कुछ दोष समाएं गये. भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्वों में विविधता तथा विविधता में एकता सबसे महत्वपूर्ण हैं.

भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीनतम स्वरूप आज भी विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ हैं. अनेक पंथो और मतों के अनुयायी होने के बावजूद भक्तिकाल में अनेक संतो और भक्तो ने अपनी भक्ति की विभिन्न धाराओ के माध्यम से राष्ट्रिय समन्वय की स्थापना की.

ज्ञान और कर्म के दो विभिन्न क्षेत्र क्षेत्र भी जीवन की साधना के ही दो मार्ग लेकिन मंजिल एक दिखाई देती हैं.

अहिंसा हमारे सभी धार्मिक और वैष्णव मतों का आधार रहा है किन्तु यह अहिंसा हमारी दुर्बलता कभी नहीं रही है.

करुणा भी भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों में से एक है|हम एक -दुसरे के सुख -दुख में सहयोग और सदभाव रखते रहे है|स्त्री का सम्मान, संकट के समय साहस न खोना, उदारता तथा अनेक विचारो के आदान-प्रदान के साथ हमारी समन्वयात्मक द्रष्टि आदि ऐसे तत्व हैं. जिन्हें हम अपने दैनिक व्यवहार में अपनाते हैं.

भारतीय संस्कृति में देश की सीमाओं को केवल भूभाग नही माना बल्कि अपनी माता से भी बढ़कर माना हैं. ‘माता भूमि: पुत्रोह प्रथ्विया अर्थात भूमि माता हैं तथा मै पृथ्वी का पुत्र हु.

हमारे वेद पुराण, शास्त्र, धर्मग्रन्थ भी भारतीय संस्कृति के तत्वों के पोषक और प्रसारक रहे हैं. जिनमे जीवन की चेतना के विभिन्न स्त्रोत समाहित हैं. हमारे साहित्य में भी भारतीय जीवन दर्शन के तत्व समाहित हैं.

अत: निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि माता-पिता, गुरु, अतिथि आदि का सम्मान, दुखी व्यक्ति के प्रति करुना का भाव, अहिंसा,प्रकृति की रक्षा, समन्वयकारी द्रष्टि तथा विविधता में एकता आदि भारतीय संस्कृति के मूल तत्व हैं.

सभ्यता और संस्कृति में अंतर निबंध अनुच्छेद

सभ्यता और संस्कृति ये दो शब्द है और इनके अर्थ भी अलग अलग है. सभ्यता मनुष्य का वह गुण है. जिससे वह अपनी बाहर तरक्की करता है. संस्कृति वह गुण है.

जिससे वह अपनी भीतरी उन्नति करता है. करुना प्रेम और परोपकार सीखता है. आज रेलगाड़ी और मोटर, हवाई जहाज लम्बी चौड़ी सड़के और बड़े बड़े मकान अच्छा भोजन और अच्छी पोछाक, ये किसी सभ्यता की पहचान है.

जिस देश में इन साधनों की जितनी अधिक व्यापकता है. उस देश को हम उतना ही अधिक सभ्य मानते है. मगर संस्कृति उन सबसे अधिक बारीक चीज है. वह मोटर नही मोटर बनाने की कला है. मकान नही मकान बनाने की रूचि है. संस्कृति धन नही गुण है.

संस्कृति ठाठ बाट नही विनय और विनम्रता है. एक कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है. लेकिन संस्कृति वह गुण जो हममे छुपा हुआ है.

हमारे पास घर होता है, कपड़े लते होते है, मगर ये सारी चीजे हमारी सभ्यता के सबूत है. जबकि संस्कृति इतने मोटे तौर पर दिखाई नही देती है., वह बहुत ही सूक्ष्म और महान चीज है. और हमारी हर पसंद , हर आदत में छिपी रहती है.

मकान बनाना सभ्यता का काम है, लेकिन हम मकान का कौनसा नक्शा पसंद करते है. – यह हमारी सभ्यता बताती है आदमी के भीतर काम क्रोध, लोभ, मंद, मोह और मत्सर ये छ विकार प्रकृति लिए हुए है.

मगर ये विकास बेरोक छोड़ दिया जाए तो आदमी इतना गिर जाए कि उसमे और जानवर में कोई भेद नही रहता है.

इसलिए आदमी इन विकारों पर रोक लगाता है. इन दुर्गुणों पर जो आदमी जितना ज्यादा काबू पाता है उसकी संस्कृति भी उतनी ही ऊँची मानी जाती है. संस्कृति का सवभाव है कि वह आदान प्रदान से बढ़ती है,

दो देशों या जातियों के लोग आपस में मिलते है तब उन दोनों की संस्कृतिय एक दुसरे से प्रभावित होती है. इसलिए संस्कृति की द्रष्टि से वह जाती या वह देश बहुत ही धनी माना जाता है.

जिसने ज्यादा से ज्यादा देशों या जातियों की संस्कृति से लाभ उठाकर अपनी संस्कृति का विकास किया हो.

इस आधार पर सभ्यता और संस्कृति में निम्न सूक्ष्म भेद किये जा सकते है.

  • सभ्यता का मापन किया जा सकता है. कि कोई जाति विशेष या देश कितना सभ्य या असभ्य है. जबकि संस्कृति उन मानवीय
  • नैतिकता और आदर्शो का पुलिंदा है. जिसका मात्रात्मक मापन संभव नही होता हैं.
  • सस्कृति का जन्म कई हजारों वर्षो में निरंतर और छोटे छोटे बदलाव से होता है मगर सभ्यता का जन्म कम समय में संभव है.
  • एक दर्शनिक के अनुसार सभ्यता कहती है हमारे पास क्या है. यानि उस सभी भौतिक साधनों को सभ्यता का हिस्सा माना जा सकता है. दूसरी तरफ संस्कृति में हम क्या है इस सवालों का जवाब ढूंढा जा सकता है.

  • जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन
  • बौद्ध धर्म की भारतीय संस्कृति को देन
  • भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव
  • भारतीय संस्कृति पर भाषण

उम्मीद करता हूँ दोस्तों भारतीय संस्कृति पर निबंध Essay On Indian Culture In Hindi का यह निबंध पसंद आया होगा, यदि आपकों भारतीय संस्कृति पर दिया गया निबंध पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करें.

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Indian Culture Essay

Culture of India reflects the beliefs, social structure and religious inclinations of the people of India. India is culturally diverse country with every region with its own distinct culture, reflected in the language, clothes and traditions of the people. People of one state are completely different on cultural grounds, from the people of other state; nevertheless, they follow one rule of law.

Culture also acts as the window of India to the outside world. By looking at the various cultures of India one gets to admire its diversity and also gets to know the religious beliefs of the people and their glorious past. For Indian people, culture is a way of life, it is something that is deeply ingrained in their soul. It is a way of life, a rule book which defines their conduct, society, festivals etc.

Long and Short Essay on Indian Culture in English

India is a country of rich culture where people of more than one religious cultures live together.

Hello students, we have provided some simple and easily worded Essay on Indian Culture.

Let yourself involve in the essay writing competition in your school by choosing anyone of the following Indian Culture essay.

You can also use the essays in various debates and speech giving competitions or during general discussions with family and friends.

Indian Culture Essay 1 (100 words)

India is a famous country all over the world for its culture and tradition. It is the land of various culture and tradition. It is the country of oldest civilizations in the world. The vital components of the Indian culture are good manners, etiquette, civilized communication, rituals, beliefs, values, etc. Even after the life styles of everyone has been modernized, Indian people have not changed their traditions and values. The property of togetherness among people of various cultures and traditions has made India, a unique country. People here live peacefully in India by following their own culture and traditions.

Indian Culture

Indian Culture Essay 2 (150 words)

The culture of India is the oldest culture of the world around 5,000 years. Indian culture is considered as the first and supreme culture of the world. There is a common saying about India that “Unity in Diversity” means India is a diverse country where people of many religions live together peacefully with their own separate cultures. People of various religions differ in their language, food tradition, rituals, etc however they live with unity.

The national language of India is Hindi however there are almost 22 official languages and 400 other languages are spoken daily in India in its various states and territories. According to the history, India has been recognized as the birthplace of the religions like Hinduism and Buddhism. Huge population of the India belongs to the Hindu religion. Other variations of the Hinduism are Shaiva, Shakteya, Vaishnava and Smarta.

Indian Culture Essay 3 (200 words)

The Indian culture has gained lots of popularity all over the world. Indian culture is considered as the oldest and very interesting culture of the world. People living here belong to different religions, traditions, foods, dress, etc. People of different cultures and traditions living here are socially interdependent that’s why there is an existence of strong bond unity in the diversity of religions.

People take birth in different families, castes, sub-castes and religious communities live peacefully and conjointly in a group. Social bonds of the people here are long lasting. Everyone has good feeling about their hierarchy and feeling of honour, respect and rights to each other. People in India are highly devoted to their culture and know the good etiquettes to maintain the social relationships. People of various religions in India have their own culture and tradition. They have own festival and fairs and celebrate according to their own rituals.

People follow variety of food culture like beaten rice, bonda, bread omlette, banana chips, poha, aloo papad, puffed rice, upma, dosa, edli, Chinese, etc. People of other religions have some different food cultures like sevaiyan, biryani, tanduri, mathi, etc.

Indian Culture Essay 4 (250 words)

India is a rich country of cultures where people live in their culture. We respect and honour our Indian culture a lot. The culture is everything like the way of behaving with other, ideas, customs we follow, arts, handicrafts, religions, food habits, fairs, festivals, music and dance are parts of the culture. India is a big country with high population where people of various religions with unique culture live together. Some of the major religions of country are Hinduism, Christianity, Islam, Buddhism, Jainism, Shikhism, and Zoroastrianism. India is a country where various languages are spoken in different parts of the country. People here are generally used of varieties in costume, social beliefs, customs and food-habits.

People beliefs and follow various customs and traditions according to their own religions. We celebrate our festivals according to our own rituals, keep fast, take bath in holy water of Gange, worship and pray to God, sing ritual songs, dance, eat delicious dinner, wear colourful dresses and other lots of activities. We also celebrate some National festivals by getting together such as Republic Day, Independence Day, Gandhi Jayanti, including various social events. People of different religions celebrate their festivals in various parts of the country with great zeal and enthusiasm without interfering each other.

Some events like birthday of Gautama Buddha (Buddha Purnima), Lord Mahavir birthday (Mahavir Jayanti), Guru Nanak Jayanti (Guruparv), etc is celebrated conjointly by people of many religions. India is a famous country for its various cultural dances like classical (Bharat Natyam, Kathak, Kathakli, Kuchipudi) and folk according to the regions. Punjabis enjoy dancing Bhangra, Gugaratis enjoy doing Garba, Rajasthanis enjoy Ghumar, Assamese enjoy Bihu whereas Maharashtrian enjoy Lavoni.

Indian Culture Essay 5 (300 words)

India is a land of rich culture and heritage where people have humanity, tolerance, unity, secularism, strong social bond and other good qualities. Indians are always famous for their mild and gentle behaviour, in spite of lots of aggressive activities by the people of other religions. Indian people are always praises for their caring and calm nature without any change in their principles and ideals. India is a land of great legends where great people took birth and do lots of social works. They are still inspiring personality to us.

India is a land where Mahatma Gandhi took birth and had given a great culture of Ahimsa. He always told us that does not fight with other instead talk them politely if you really want to get change in something. He told us that every people on this earth are hungry for love, respect, care and honour; if you give them all, definitely they will follow you.

Gandhi Ji always believed in the Ahimsa and really he became successful a day in getting freedom for India from the British rule. He told Indians that show your power of unity and gentleness and then see the change. India is not a country of men and women, castes and religions, etc separately however it is a country of unity where people of all the castes and creeds live together conjointly.

People in India are modern and follow all the changes according to the modern era however they still in touch with their traditional and cultural values. India is a spiritual country where people believe in spiritualism. People here believe in Yoga, meditation and other spiritual activities. Social system of the India is great where people still leaves in big joint family with grandparents, uncle, aunt, chacha, tau, cousins, brothers, sister, etc. So, people here learn about their culture and tradition from birth.

Indian Culture Essay 6 (400 words)

The culture in India is everything such as inherited ideas, way of people’s living, beliefs, rituals, values, habits, care, gentleness, knowledge, etc. India is an oldest civilization of the world where people still follow their old culture of humanity and care. Culture is the way we behave to others, how softly we react to things, our understanding towards values, ethics, principles, and beliefs.

People of old generations pass their cultures and beliefs to their next generations so, every child here behaves well to others as he/she already learned about culture from parents and grandparents. We can see culture here in everything like dance, fashion, artistry, music, behavior, social norms, food, architecture, dressing sense, etc. India is a big melting pot having various beliefs and behaviors which gave birth to different cultures here.

Various religions here have their origin from very old age almost five thousand years. It is considered as Hinduism was originated here from Vedas. All the holy Hindu scriptures have been scripted in the sacred Sanskrit language. It is also believed that Jainism has ancient origin and their existence was in the Indus Valley. Buddhism is another religion which was originated in the country after the teachings of Lord Gautama Buddha. Christianity was brought here later by the French and Britishers who ruled here for almost two centuries long time. In this way various religions were originated in ancient time or brought to this country by any means. However, People of each religion live here peacefully by getting together without affecting their rituals and beliefs.

Variety of eras came and gone but no one was so powerful to change the influence of our real culture. The culture of younger generations is still connected to older generations through umbilical cord. Our ethnic culture always teaches us to behave well, respect elders, care helpless people and always help the needy and poor people. It is our religious culture that we should keep fast, do worship, offer Gange Jal, do Surya Namaskar, touch feet of elder in family, do yoga and meditation on daily basis, give food and water to the hungry and disabled people. There is great culture of our nation that we should always welcome our guests like a God very happily, that’s why India is famous for a common saying like “Atithi Devo Bhava”. The basic roots of our great culture are humanity and spiritual practices.

==================================

Indian culture is a topic of great importance for all the people living in India. In order to aware students about Indian culture, this topic is commonly assigned to the students to write essay on Indian culture. All the above Indian culture essay are written very simply worded to fulfill the student’s need and requirement. You can get other related essays under the same category such as:

Speech on Indian Culture

Unity in Diversity Essay

Essay on Ek Bharat Shreshtha Bharat

Essay on Indian Flag

India’s Independence Day

Essay on Indian Heritage

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IN PHOTOS: Indians celebrate Easter with devotion, tradition and festive fervour

indian culture and tradition essay in hindi

Easter is a Christian holiday that celebrates the resurrection of Jesus Christ. The day is celebrated by visiting the church, hunting easter eggs and decorating them, fasting throughout the Lenten season before Easter and sharing joyous meals with loved ones. Check out how India celebrated easter on Sunday 

Photo Courtesy: AFP

Photo Courtesy: AFP

A child looks at the decorative Easter eggs on display at Ao Baptist Church on the occasion of Easter, in Dimapur on Sunday. Photo Courtesy: ANI

A child looks at the decorative Easter eggs on display at Ao Baptist Church on the occasion of Easter, in Dimapur on Sunday. Photo Courtesy: ANI

Devotees holding candles offer prayers on the occasion of Easter, at Kurji Church, in Patna on Sunday. Photo Courtesy: ANI 

Devotees holding candles offer prayers on the occasion of Easter, at Kurji Church, in Patna on Sunday. Photo Courtesy: ANI 

Christians participate in a procession on Easter, in Kolkata. Photo Courtesy: PTI

Christians participate in a procession on Easter, in Kolkata. Photo Courtesy: PTI

Devotees attend the Easter Vigil Mass at Roman Catholic Church on the eve of Easter, in Ranchi on Saturday. Photo Courtesy: ANI 

Devotees attend the Easter Vigil Mass at Roman Catholic Church on the eve of Easter, in Ranchi on Saturday. Photo Courtesy: ANI 

Children take part in a program on Easter Sunday, in Moradabad. Photo Courtesy: PTI

Children take part in a program on Easter Sunday, in Moradabad. Photo Courtesy: PTI

Decorative Easter Eggs are displayed at Ao Baptist Church in Dimapur, Nagaland. Photo Courtesy: PTI

Decorative Easter Eggs are displayed at Ao Baptist Church in Dimapur, Nagaland. Photo Courtesy: PTI

Christian devotees offer prayers at The Epiphany Church on the occasion of Easter, in Gurugram. Photo Courtesy: PTI 

Christian devotees offer prayers at The Epiphany Church on the occasion of Easter, in Gurugram. Photo Courtesy: PTI 

Christian devotees receive communion after a solemn mass on the occasion of Easter Sunday at ST Joseph Cathedral, in Prayagraj. Photo Courtesy: PTI

Christian devotees receive communion after a solemn mass on the occasion of Easter Sunday at ST Joseph Cathedral, in Prayagraj. Photo Courtesy: PTI

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  2. भारतीय संस्कृति पर निबंध

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  3. Essay On Indian Culture In Hindi

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  5. An Essay On Indian Culture

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  1. Introduction to Indian Cultural Heritage –Indian Culture and Tradition

  2. Indian culture essay in english || How to write an essay on Indian culture

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COMMENTS

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