बचपन की यादें पर निबंध | Essay on Childhood Memories | Hindi

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बचपन की यादें पर निबंध! Here is an essay on ‘Childhood Memories’ in Hindi language.

“ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी से लो, भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी,

मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ।”

सुदर्शन फाकीर ने इन पंक्तियों में बचपन की उन सुहावनी यादों को सँजो रखा है, जब वह देश-दुनिया के सारे झंझावातों से परे अपने ही संसार में मग्न रहा करते थे । आज वह कामना करते हैं कि उनके बचपन के सुहाने दिन पुन: लौट आएँ, भले ही इसके लिए उनकी सारी दौलत और ख्याति क्यों न से ली जाए, किन्तु यह कटु सत्य है कि बचपन लौटकर नहीं आता और रह जाती हैं केवल उसकी यादें ।

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इन यादों का भी जीवन की खुशियों से सीधा सम्बन्ध होता है । हम जीवनभर बचपन की यादों को ताजा करके खुश होने का मौका ढूंढते रहते हैं । मुझे भी अपना बचपन बहुत याद आता है ।

मेरा जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के एक छोटे-से गाँव बघड़ा में हुआ था । यह गाँव गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है । इसकी आबादी लगभग पाँच हजार है । इस गाँव में एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय एवं एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय है ।

मेरी शिक्षा इन्हीं विद्यालयों में हुई । पड़ोस के गाँवों की तुलना में इन विद्यालयों में पठन-पाठन की अच्छी व्यवस्था थी । यहाँ पढ़ने के दौरान कुछ सहपाठी मेरे घनिष्ठ मित्र बन गए थे । कक्षा में मैं उन मित्रों के साथ बैठता था । आवश्यकता पड़ने पर हम एक-दूसरे की मदद भी करते थे ।

पढ़ाई के बाद खाली समय में मैं अपने मित्रों के साथ खेलना पसन्द करता था । खेल में मुझे शतरंज बहुत प्रिय था । मैं प्रायः रविवार के दिन अपने किसी मित्र के साथ शतरंज की एक बाजी खेल ही लेता था । शतरंज के अतिरिक्त मैदान में खेले जाने वाले खेलों में मुझे कबड्डी खेलना अच्छा लगता था ।

कबड्डी के अतिरिक्त बचपन में मैं पिट्टो भी खेला करता था । पिट्टो एक प्रकार का खेल है, जिसमें गेंद से मैदान के बीच रखी गई गोटियों को मारना होता है । गोटियों के गिरने के बाद विपक्षी को गेंद से मारकर उसे आउट किया जाता है ।

विपक्षी को लगी गेंदों की संख्या के आधार पर हार-जीत का निर्णय होता था । पिट्टो के अतिरिक्त मैं अपने मित्रों के साथ लुका-छुपी का खेल भी खेलता था । विभिन्न प्रकार के खेल, खेलने के दौरान कई बार मित्रों से मेरी कहा-सुनी भी हो जाती थी ।

तत्पश्चात् वे मुझसे रूठ जाया करते थे, मगर मैं उन्हें मना लेता था । इस प्रकार हमारी मित्रता पुन: कायम हो ही जाती थी । थोड़ा बड़ा होने के बाद मैं अपने मित्रों के साथ क्रिकेट भी खेलने लगा, लेकिन पढ़ाई की व्यस्तता एवं समयाभाव के कारण मैं खेल-कूद पर कम ही समय दे पाता था ।

हाई स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते में खेल-कूद को पूर्णतः छोड़ चुका था । हालाँकि आठवीं कक्षा में मैं कुछ दिनों तक अपने विद्यालय में खो-खो भी खेला करता था, किन्तु नौवीं कक्षा के बाद यह खेल भी पढ़ाई की व्यस्तता की भेंट चढ़ गया ।

मुझे याद है, मैं बचपन में कभी-कभी पवित्र गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाता था । तब वहाँ लोगों को तैरते हुए देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य होता था । मैं भी तैरना सीखना चाहता था ।

एक दिन मेरे एक मित्र न मुझे तैरने के गुण सिखाए । मैंने उन्हें आजमाकर देखा, तो लगा कि मैं भी सरलतापूर्वक तैर सकता हूँ । इसके बाद तो हर रोज तैरने का अभ्यास मेरे लिए आवश्यक हो गया ।

तैरने के अतिरिक्त गंगा नदी जाने का मेरा दूसरा उद्देश्य नदी किनारे की सैर था । नदी किनारे रेत पर सैर करना मुझे अच्छा लगता था । बसन्त ऋतु में नदी तट पर अपने मित्रों के साथ बिताए हुए पल मुझे आज भी याद आते हैं ।

बचपन के दिन बेफिक्री के होते हैं । इस समय प्रायः पढ़ाई-लिखाई की चिन्ता नहीं होती । मुझे भी केवल अपना गृहकार्य पूरा करने से मतलब रहता था । स्कूल का काम खत्म करने के बाद मुझे पढ़ाई से कोई मतलब नहीं रहना था, किन्तु पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई के प्रति मेरा लगाव धीरे-धीरे बढ़ने लगा ।

उसके बाद मुझे पाठ्यक्रम की किताबों के अतिरिक्त समाचार-पत्र एवं बाल-पत्रिकाएँ पढ़ना भी अच्छा लगने लगा । बाल-पत्रिकाओं में ‘नन्दन’, ‘नन्हें सम्राट’ एवं ‘पराग’ मुझे प्रिय थीं । पत्रिकाओं के अतिरिक्त मैं मनोरंजन के लिए कॉमिक्स भी पढ़ा करता था ।

‘नागराज’, ‘सुपर कमाण्डो ध्रुव’, ‘भोकाल’, ‘चाचा चौधरी’ इत्यादि मेरे प्रिय कॉमिक्स पात्र थे । मैं पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स अपने मित्रों के साथ बाँटकर पड़ता था । मेरे पास जो पत्रिकाएं एवं कॉमिक्स होती थीं, उन्हें मैं अपने मित्रों को पढ़ने के लिए देता था ।

मेरे मित्र भी मुझे उनके बदले अपनी पत्रिकाएँ एवं कॉमिक्स पढ़ने के लिए दे दिया करते थे । ग्राम्य-जीवन का अपना एक अलग ही आनन्द है । अपने मित्रों के साथ मिलकर खेतों से मटर तोड़कर खाने में जो स्वाद आता था, वह अब तक मटर-पनीर में भी नहीं मिला है ।

मिट्टी-पत्थर के ढेले से तोड़े गए झड़बेरी के बेर में जो स्वाद मैंने बचपन में प्राप्त किया है, वह सेब-सन्तरे में भी दुर्लभ है; बेर और अमरूद की बात तो छोड़ ही दीजिए । गर्मी के दिनों में आम के बाग में सबसे छुप-छुपाकर तोड़े गए खट्टे आमों का स्वाद भी बम्बइया, माल्हह के मीठे आमों से कहीं बेहतर था ।

बरसात के मौसम में सबसे नजरें चुराकर भीगना एवं भीगते हुए कागज की नावों को रास्ते में पानी में बहाने का भी एक अलग ही आनन्द था । सभी मित्र अपनी-अपनी नावों के साथ नावों की दौड़ के लिए तैयार रहते थे ।

इस तरह, बरसात का मजा दोगुना हो जाता था । बरसात के मौसम में प्रायः मेरे गाँव में हर साल बाद आती थी । गाँव के लोग दुआएं करते थे कि इस साल बाढ़ न आए और हम सभी मित्रों की यह कामना होती थी कि बाढ़ आए तो जीने का मजा आ जाए, लेकिन अब सोचता हूँ कि उस समय मैं कितना गलत सोचा करता था ।

हालाँकि उस वक्त बाढ़ का सामना मेरे बालमन की खेल एवं आनन्द की भावनामात्र थी । वास्तव में, बाद अपने साथ विनाश ही लाती है । धीरे-धीरे मैं बड़ा होता गया और बचपन पीछे छूटता गया ।

बचपन के दिन जब बीतने लगे तो दीन-दुनिया की चिन्ता सताने लगी और अच्छे जीवन के लिए संघर्ष में बचपन कहाँ गुम हो गया, पता ही नहीं चला । ‘तू न सही तेरी याद सही’ की तरह बचपन की यादें भी कम खुशी नहीं देती ।

आज भी जब बचपन की याद आती है, तो सोचता हूँ, ‘कोई लौटा दे मेरे बचपन के वे खुशियों मरे दिन’ । कोई मेरे वे खूबसूरत दिन लौटा तो नहीं सकता, किन्तु जिन्दगी की भागदौड़ में भी बचपन को याद कर खुश हो लेने का मौका मैं कभी नहीं छोड़ता ।

बचपन के सम्बन्ध में टॉम स्टॉपर्ड ने बहुत ही अच्छी बात कही है- “यदि तुम अपने बचपन को सँजोकर रख सको, तो तुम कमी बूढ़े नहीं हो सकते ।”

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मेरे बचपन के अनुभव पर अनुच्छेद | Paragraph on My Childhood Memories in Hindi

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प्रस्तावना:

बचपन के दिन कितने सुहावने थे ? बचपन में मुझे सारा संसार उल्लासमय और आनन्ददायक लगता था । चिंता की कोई बात नहीं थी । जब कभी मैं चिल्ला पड़ता, कोई-न-कोई मुझे गोद में उठाकर पुचकार लेता । मैं किसी-न-किसी की गोद में होता था ।

मेरा जन्म बड़े अमीर और समृद्ध परिवार में नहीं हुआ था । इसलिए मेरी माँ ही सदा मेरी देखभाल किया करती थी । मुझे किसी नौकर या नर्स के सहारे नहीं छोड़ा गया ।

मेरा स्कूल , मेरे मित्र और अध्यापक:

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जब मैं छ: वर्ष का हुआ तो मुझे एक छोटे किन्तु अच्छे स्कूल में भर्ती करा दिया गया । जल्दी ही दो-तीन लड़कों से मेरी दोस्ती हो गई । आज तक मुझे बचपन के अपने दोस्तों तथा अध्यापको के चेहरे याद हैं । जब मैं छोटा था, तो मुझे अपने स्कूल के अध्यापक अच्छे नहीं लगते थे क्योंकि कभी-कभी वे मुझे पीट देते थे ।

यह बड़े हर्ष की बात है कि अब पीटने की क्या समाप्त हो गई है । हमें सवेरे ही स्कूल जाना पड़ता था । अन्य अधिकांश बच्चों की ही भांति प्रारभ में मुझे जल्दी उठना और स्कूल जाना अच्छा नहीं लगता था । मेरी मां बड़े प्यार-दुलार से और कभी-कभी डांट कर उठाती ।

मैं बड़े अनमने ढंग से स्कूल के लिए तैयार होता था । लेकिन जब मैं कुछ बड़ा हुआ और स्कूल में दोस्त बन गए तो पढ़ाई में मेरी रुचि बढ़ गई और मैं बड़ी प्रसन्नता से रकूल जाने लगा ।

मेरी शरारतें , सैर और देर से लौटना:

दोपहर के बाद हम सब बच्चे सड़क पर तरह-तरह के खेल खेलते और आपस में शरारतें और छेड़छाड़ किया करते थे । मैं बचपन में बहुत शरारती और उधमी था । जब मैं पगड़ी लगाये किसी व्यक्ति को सड़क से गुजरता देखता, तो मौका पाते ही पीछे से उसकी पगडी खींच कर भाग जाता ।

वह व्यक्ति गुस्से से गालियाँ देता । एक बार मैंने राह में बैलगाड़ी खड़ी देखी । गाडीवान गाड़ी से उतर कर कुछ काम से थोड़ी दूर चला गया । मैं गाड़ी पर चढ़ गया और बैलों की रस्सियाँ पकड़कर खींच दीं । बैलगाड़ी लेकर भाग पड़े । कुछ दूर निकला था कि गाड़ीवान चिल्लाता हुआ पीछे भागने लगा ।

मैं गाड़ी से कूद गलियों में भाग लिया । उस दिन मुझे बड़ा मजा आया । मैंने जब उस घटना को बड़े गर्व से अपनी मा को सुनाया, तो उन्होंने मुझे बहुत डांटा और ऐसी शरारतें करने से रोका । उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि मुझे कोई चोट नहीं आई ।

जब मैं केवल दस वर्ष का था, तो मैं पास के गाँव के एक बड़े तालाब पर दोस्तों के साथ निकल पड़ा । चूंकि हमारा यह कार्यक्रम एकाएक बना और दोपहर तक हमें लौट आना था, इसलिए मैंने अपने घर पर कोई सूचना नहीं दी । दैवयोग से हम लोग रात तक लौट पाये ।

मेरे मां-बाप बड़े परेशान थे । दोपहर के बाद उन्होंने हर संभव जगह और गलियों में मेरी बड़ी तलाश की, किन्तु मैं नहीं मिला । अंत में वे बड़ी परेशानी की हालत में घर के दरवाजे पर खड़े सोचने लगे कि अब क्या किया जाये ।

साथ ही वे मेरी राह भी तक रहे थे । इतने में उन्होंने मुझे दूर से आते देख लिया । वे गुरुसे से लाल होकर मेरी ओर लपके और एक हाथ से मेरी दोनों बाँहें पकड़कर मुझे जोर से थप्पड़ मार दिया । मैं रोने लगा । उन्होंने दूसरा हाथ उठाया ही था कि दौड़ती हुई मेरी मां ने आकर पिताजी का उठा हाथ पकड़ लिया ।

मुझे बुरी तरह डांट-फटकार कर छोड़ दिया गया । मेरे पिता बड़े सरल स्वभाव के हैं, लेकिन कभी-कभी वे बड़े कठोर बन जाते हैं लेकिन मां हमेशा मेरे प्रति बड़ी सदय रहतीं हैं । इसीलिए मैं पिता के बजाय मां को अधिक प्यार करता हूँ ।

परेशानियों और चिन्ता का प्रारंभ:

जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ती गई, मुझे पढ़ाई की चिन्ता होने लगी तथा छोटे-छोटे सांसारिक मामलों में परेशानियाँ आने लगीं । अब मैं हाईस्कूल में पहुंच गया था । मुझे हाईस्कूल की परीक्षा की तैयारी करनी थी । साथ ही पन्द्रह वर्ष के किशोर के रूप में अब बाजार आदि से सामान वगैरह लाने में भी मुझे अपने पिता का हाथ बटाना पड़ता था । सुबह-सुबह सजिनशा लाने का काम तो मेरे जिसे ही था ।

बचपन चिन्ताओं से मुका होता है । बच्चे के कंधे पर न कोई जिम्मेदारी होती है और न उसे अपने कर्त्तव्य की परवाह होती है । बच्चे का काम खाना, पीना, सोना और खेलना होता है । रोटी खाते समय या दूध पीते समरा उन्से कभी यह ख्याल नहीं आता कि रोटी कैसे आई है या उसे लाने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है ।

केवल धर को कर्ता ही यह जानता है । घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर भी बच्चे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । बच्चा सदैव अज्ञान और निष्कपटता की दुनिया में जीता है । वर्डसवर्थ ने बिल्कुल ठीक कहा है कि हम अपना बचपन स्वर्गिक वातावरण में बिताते हैं । बीते दिनो की मधुर यादें अभी तक मुझे पुलकित कर देती हैं ।

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बचपन की यादें पर निबंध – Essay on Childhood Memories In Hindi

Essay on Childhood Memories In Hindi

Essay on Childhood Memories In Hindi :   इस लेख में 3 अलग-अलग प्रकार के बचपन की यादें पर निबंध  लिखे गए हैं। यह निबंध हिंदी भाषा में लिखा गया है और शब्द गणना के अनुसार व्यवस्थित किया गया है। आप नीचे दिए गए पैराग्राफ में 100 शब्दों, 200 शब्दों, 400 शब्दों, 500 और 1000 शब्दों और 1000 शब्दों तक के निबंध प्राप्त कर सकते हैं।

हमने अपने बचपन की यादें पर निबंध   के बारे में बहुत सी बातें तैयार की हैं। यह कक्षा 1, 2,3,4,5,6,7,8,9 से 10वीं तक के बच्चों को बचपन की यादें पर निबंध   लिखने में मददगार होगा।

बचपन की यादें पर निबंध (200 शब्द) – Essay on Childhood Memories In Hindi (200 words)

बचपन की यादें वो यादें होती हैं जिन्हें हम कभी नहीं भूल सकते। कुछ घटनाएं हमारे दिमाग में इतनी चमकीली होती हैं कि हम उसे बार-बार याद करते हैं। बचपन में हम सभी की ढेर सारी यादें जुड़ी होती हैं। ये यादें हमें अपने चरित्र और व्यक्तित्व के निर्माण में मदद करती हैं, इसलिए बचपन की यादें हमारे जीवन में बेहद महत्वपूर्ण हैं।

जब लोग इन स्मृतियों के बारे में सोचते या चर्चा करते हैं, तो उन्हें बहुत खुशी और आनंद का अनुभव होता है। इसलिए हमें इन यादों के बारे में सोचने और लिखने की जरूरत है। मेरे पास बचपन से कुछ वाकई अच्छी यादें हैं। मैंने ग्रामीण इलाकों में लंबा समय बिताया है।

मैंने अपना स्कूल एक गाँव के प्राथमिक विद्यालय से पूरा किया है। वह मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। वहां की कई घटनाएं मुझे याद हैं। मैं अपने पिता के साथ एक गाँव के मेले में गया और हमने मेरे और मेरे भाई-बहनों के लिए बहुत सारे खिलौने खरीदे।

मैं अभी भी ‘नागोर्डोला’, बहुत सारे लोगों, रंग-बिरंगी दुकानों और लाउडस्पीकर पर बजने वाले गानों को महसूस कर सकता हूं, जब मैं अपनी आंखें बंद करता हूं। ये भावनाएँ और यादें अनमोल हैं। काश मैं अपने अतीत में वापस जा पाता और बचपन को फिर से देख पाता, तो यह अद्भुत होता। लेकिन मैं जानता हूं कि यह मुमकिन नहीं है। मुझे अपना बचपन बहुत याद आता है।

बचपन की यादें पर निबंध (300 शब्द) – Essay on Childhood Memories In Hindi (300 words)

यादें हमारे मस्तिष्क पर कुछ विशेष दृश्य हैं जो हमें हमारे जीवन में घटी कुछ पिछली घटनाओं को याद करने में मदद करती हैं। यह भविष्य के लिए हमारे व्यक्तित्व को आकार देता है। कभी-कभी हमें अपनी बहुत पुरानी पुरानी यादें याद आती हैं और इससे हमें खुशी मिलती है।

बचपन की यादें इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं। हम सभी के पास बचपन की ढेर सारी यादें हैं और ये सुनहरी हैं। ये यादें हमारे जेहन में हमेशा ताजा रहती हैं। मुझे पता है कि कुछ यादें याद रखना मुश्किल हो सकता है लेकिन उनमें से ज्यादातर हमारे मस्तिष्क में ज्वलंत हैं।

मेरे बचपन की यादें:

मेरे पास इतनी यादें हैं कि मैं अब याद कर सकता हूं। उनमें से ज्यादातर मेरे परिवार, माता-पिता और भाई-बहनों से संबंधित हैं। क्योंकि मैंने अपने बचपन का ज्यादातर वक्त उन्हीं के साथ बिताया है। मेरे पिता तब एक सरकारी कर्मचारी थे और उनके पास अपने परिवार के साथ बिताने के लिए बहुत कम समय था।

लेकिन फिर भी, वह हमारे साथ बहुत समय बिताने में कामयाब रहे। मुझे उसकी गतिविधियाँ अच्छी लगीं। वह हमें पिकनिक के लिए अलग-अलग जगहों पर ले गया। मेरी माँ हमारे लिए बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाती थी। मुझे याद है, हम बिहार के एक गाँव में ठहरे हुए थे और वह एक चाचा का घर था। हम वहां से लॉन्ग ड्राइव पर गए।

सड़क पर एक अद्भुत साइड व्यू था। मुझे बिहार के गांव बहुत पसंद हैं। लोग मिलनसार थे। मैंने वहां अपने चचेरे भाई-बहनों के साथ एक अद्भुत समय बिताया। ये यादें मेरे दिमाग में बहुत उज्ज्वल हैं और मुझे उन सभी दिनों के बारे में सोचना अच्छा लगता है।

मुझे पता है कि आपके बचपन की यादें भी कमाल की होती हैं और आपको इन यादों के बारे में सोचना बहुत अच्छा लगता है। ये यादें हमें खुश करती हैं। मुझे इन अद्भुत दिनों के बारे में सोचना अच्छा लगता है।

Essay on Childhood Memories In Hindi

बचपन की यादें पर निबंध (500 शब्द) – Essay on Childhood Memories In Hindi (500 words)

हम सभी के जीवन में अतीत की ढेर सारी यादें जुड़ी होती हैं। लेकिन मुझे लगता है कि बचपन की यादें सबसे अच्छी यादें होती हैं जो हमें खुश और आनंदित करती हैं। आप इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि हम सभी की कुछ यादें होती हैं जो हमारे लिए बहुत खास होती हैं।

मेरे पास बचपन की कुछ यादें भी हैं जिन्हें मैं कभी नहीं भूल सकता। आज मैं यहां ऐसी ही कुछ यादों के बारे में बात करूंगा।

बचपन की यादों का महत्व:

क्या कुछ लोग सोचते हैं कि बचपन की यादें वास्तव में महत्वपूर्ण हैं? मुझे लगता है ऐसा है। क्‍योंकि ये यादें हमारे व्‍यक्तित्‍व और जीवनशैली पर बहुत बड़ा प्रभाव डालती हैं। यह हमें वह व्यक्ति बनने में मदद करता है जो हम बनना चाहते हैं।

हमें कभी भी अपनी पिछली यादों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये हमारे जीवन के बड़े सबक हैं। इसलिए मुझे लगता है कि इसका हमारे जीवन में बहुत महत्व है।

मेरी कुछ अद्भुत यादें हैं। उनमें से ज्यादातर मेरे परिवार, मेरे माता-पिता, मेरे भाई-बहन और मेरी दादी के साथ हैं। मेरे तीन भाई-बहन हैं और वे मेरे दिल के बहुत करीब हैं। हमने हमेशा साथ में अच्छा समय बिताया। मेरा पूरा बचपन दिल्ली के एक मोहल्ले में बीता है।

वहां मेरे बहुत सारे दोस्त थे। मैं अभी भी उनमें से कुछ के साथ जुड़ा हुआ हूं। हमने वास्तव में एक साथ अच्छा समय बिताया। मुझे दोपहर में क्रिकेट खेलना बहुत पसंद था। उनके साथ खेलने की मेरी काफी अच्छी यादें हैं। मुझे स्कूल का पहला दिन याद है।

यह मेरे लिए बहुत ही रोमांचक था। मैं हमेशा एक चौकस छात्र था और मैं कक्षा में अच्छे परिणाम देता था। इसके लिए मेरे शिक्षक मुझे बहुत प्यार करते थे। ये यादें बहुत प्यारी हैं और मेरी इच्छा है कि मैं वहां वापस जाऊं और फिर से वही अनुभव करूं।

मैं कभी-कभी अपने पैतृक गांव जाता था। वह मेरे लिए एक और रोमांचक यात्रा थी। मैंने वहां अपने चचेरे भाई-बहनों के साथ एक अद्भुत समय बिताया। हम पिकनिक के लिए गए और बहुत सी पागल चीजें कीं।

बचपन का एक भयानक अनुभव:

ढेर सारे अच्छे अनुभवों के साथ-साथ मेरे बचपन के कुछ भयानक अनुभव भी हैं। जब मैं पाँच साल का था, तो मुझे तैरना नहीं आता था। और उस समय मैं गांव में था। हम फुटबॉल खेल रहे थे और मैदान के पास एक तालाब था।

जब गेंद तालाब में गई तो किसी ने जाकर उसे उठा लिया। एक लड़के ने सोचा कि शायद मुझे तैरना आता है और उसने मुझे तालाब में धकेल दिया। जब मैं पानी से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था तो क्या वह हंस नहीं रहा था और सोच रहा था कि मैं मजाक कर रहा हूं।

लेकिन जब उसे होश आया तो उसने छलांग लगाई और मुझे पानी से नीचे उतार लिया। वह बहुत ही चौंकाने वाली याद थी जिसे मैं भूल नहीं सकता। यह और भी बुरा हो सकता था।

मुझे अपने बचपन की पुरानी यादों के बारे में सोचना अच्छा लगता है। ये यादें मेरे चेहरे पर एक व्यापक मुस्कान लाती हैं। मुझे पता है कि यह सभी के लिए समान है। ये यादें बहुत प्यारी और प्यारी हैं। यह गपशप का विषय भी हो सकता है। लोग अपने बचपन के बारे में बातें साझा करना पसंद करते हैं, मैं करता हूँ।

बचपन की यादें पर 10 लाइन निबंध – 10 Lines On Essay on Childhood Memories In Hindi 

1. हम सभी के पास अपने बचपन की ढेर सारी खूबसूरत यादें होती हैं जो हमें बेहद खुश करती हैं।

2. यह यादें अनमोल हैं और हर कोई उनके बारे में बात करना पसंद करता है।

3. मेरे पास अपने बचपन की कुछ रोमांचक यादें हैं।

4. जब मैं बच्चा था तब हम एक गाँव में रहते थे। मैंने अपना पूरा बचपन वहीं बिताया है।

5. मेरे लिए बहुत सी रोमांचक चीजों का अनुभव करना संभव था जो एक शहर का बच्चा नहीं कर सकता।

6. मैंने 5 साल की उम्र में तैरना सीखा था और मैं अपने बचपन के दोस्तों के साथ नजदीकी नदी में तैरता था।

7. मेरे माता-पिता को कुछ नियमों का पालन करना था और निश्चित रूप से, वे बेहद सख्त थे। लेकिन फिर भी, हम बहुत सी शरारती गतिविधियों को करने के लिए समय निकालने में कामयाब रहे।

8. मेरी ज्यादातर यादें मेरे भाई-बहनों और मेरे चचेरे भाई-बहनों के साथ हैं।

9. ये यादें अनमोल हैं और जब मैं इन सुनहरे दिनों के बारे में सोचता हूं तो मैं मुस्कुराता रहता हूं।

10. मुझे बचपन की ये सारी यादें बहुत प्यारी हैं और ये मेरे व्यक्तित्व का आधार हैं।

FAQ’s On  Essay on Childhood Memories

आप बचपन की यादों पर निबंध कैसे लिखते हैं?

बचपन की यादें लिखने के लिए आपको अपने बचपन को देखने की जरूरत है। यह स्कूल और कॉलेज के छात्रों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है। इस विषय पर लिखने से आपको अपनी पिछली यादों को देखने का अवसर मिलेगा। बचपन की यादों के बारे में लिखना मुश्किल नहीं है। आपको थोड़ा सोचने की जरूरत है और आप ढेर सारी खूबसूरत यादें लेकर आएंगे।

आप अपने बचपन की यादों का वर्णन कैसे करेंगे?

अपने बचपन की यादों का वर्णन करने के लिए, पहले आपको उन्हें लिखने की आवश्यकता है और फिर आप इसे अच्छा दिखाने के लिए कुछ संपादन कर सकते हैं। यहाँ बचपन की यादों पर कुछ वर्णित निबंध दिए गए हैं, जिनका उपयोग आप अपने अध्ययन के उद्देश्य के लिए कर सकते हैं।

बचपन की यादें क्यों जरूरी हैं?

बचपन की यादें हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं क्योंकि हमारी यादें हमें अपने व्यक्तित्व का निर्माण करने और हमें एक आदर्श इंसान बनाने में मदद करती हैं। यह हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा सबक है।

सभी के लिए एक सामान्य बचपन की स्मृति क्या हो सकती है?

‘स्कूल में पहला दिन’ सभी के लिए एक सामान्य स्मृति हो सकती है। कुछ यादें ऐसी होती हैं जो हमारे माता-पिता और भाई-बहनों से जुड़ी होती हैं, वो सभी के लिए कॉमन भी हो सकती हैं।

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मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi

मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi

इस लेख में आप मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi पढ़ेंगे। इसमें हमने बचपन की घटनाएँ, मेरा बचपन, बचपन की शरारत, मेरे बचपन का दोस्त, और अन्य जानकारी बताया है।

Table of Content

हम सभी बचपन में चाहते है कि हम जल्दी से बड़े हो जाएँ परन्तु जैसे ही हम बड़े हो जाते है तो उम्मीद करते हैं कि काश! हमारा बचपन दोबारा हमें मिल सके जो सम्भव नही होता। असल में देखा जाये तो बचपन का जो समय होता है, वो बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है।

बचपन के दिनों में इतना रोमांच भरा होता है कि हर कोई फिर से बचपन को जीना चाहता है। दोस्तों यह एक ऐसा समय होता है जहाँ एक बच्चा बिना किसी तनाव के, चिंता के अपना बचपन जीता है।

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हर किसी का बचपन बड़ा ही रोमांचक होता है, चलिए इसके बारे में बात करते हैं- 

मेरे बचपन की घटनाएँ Childhood Events

बचपन में कई ऐसी घटनाएँ घटित होती है। जिसके कारण हमारे माता-पिता हमारे बचपन को याद रखते है जैसे बचपन में धीरे-धीरे चलना, गिरना और फिर से उठकर दौड़ लगाना आदि। बचपन के समय में पिताजी के कंधे पर बैठकर मेला देखने का जो मजा आता है, वह अब नहीं आता है। 

मेरा बचपन में मिट्टी में खेलना और मिट्टी से छोटे-छोटे खिलौने बनाना और मिट्टी खाना आदि यह घटनाएँ याद रह जाती है। मेरे पिताजी बहुत सहनशील और ईमानदार व्यक्ति है और साथ ही वे मुझे बहुत प्यार करते है। मैं भी पिताजी से उतना ही प्रेम करता हूं। 

बचपन में पिता द्वारा डांटने पर मां के आंचल में जाकर छुपना, मां की लोरियां सुनकर नींद का आना, बड़ा ही आनंदायक समय था। परन्तु अब इस भागम-भाग जिंदगी में वह सुकून भरी नींद नसीब नहीं होती है। बचपन के वो सुनहरे दिन जब हम खेलते रहते थे तो पता ही नहीं चलता कब दिन होता और कब रात हो जाती थी।

मेरा बचपन My Childhood

मेरा बचपन बड़ा ही शानदार रहा। मेरा जन्म एक मध्यम वर्ग परिवार हुआ और मेरे पिता एक किसान है और मेरी माँ एक घरेलू महिला। मैं अपने माता पिता और दादा-दादी के साथ रहता था। दादी मुझे प्रतिदिन कहानियां सुनाया करती थीं। 

उन कहानियों को सुनकर मैं उन कहानियों में ऐसे खो जाता था जैसे उन कहानियों का राजा मै ही हूँ। अक्सर मैं अपने पिताजी के साथ खेत में भी जाया करता था जहां पर पिताजी मुझे फसलों के बारे में और वहां पर रहने वाले पशु-पक्षियों के बारे में बताते थे। 

माहौल बिल्कुल शांत होने के कारण वहां पर सिर्फ पक्षियों के चहचहाने की आवाज आती थी। मेरे पिता ने मुझे बिना डरे सच बोलना सिखाया, मेरे शिक्षकों ने मुझे बहुत प्यार और स्नेह दिया, उन्होंने जितना पढ़ाया, उन्होंने हमें सांसारिक और किताबी ज्ञान दोनों दिया।

मेरा बचपन गांव में ही व्यतीत हुआ। इस कारण मुझे अपना बचपन और याद आता है। बचपन में सुबह-सुबह उठकर दोस्तों के साथ खेत की तरफ जाना ट्यूबवैल के नीचे नहाना और हँसते दौड़ते घर वापिस आना, कुछ इस तरह हमारे दिन की शुरूआत होती थी। 

मुझे बचपन से ही मलाई बहुत पसंद है तो बचपन में रोज सुबह मलाई के साथ पराठे खाने का अलग ही मजा था। हमारे घर में एक टॉमी नाम का कुत्ता भी था जिसे हम बहुत प्यार करते थे।

वह भी हमारा ख्याल रखता था एक दिन हम खेलते-खेलते गांव से बाहर निकल गए और घर जाने का रास्ता भूल गए तब टॉमी ने ही हमें रास्ता दिखाया और हमें घर तक सुरक्षित पहुंचाया।

वह दिन मुझे आज भी बहुत याद आता है क्योंकि मैं रास्ता भूल जाने के कारण बहुत रोने लगा था। मुझे याद है बचपन में सावन के महीने में हम सभी पेड़ पर झूला डाल कर झूला-झूलते थे और ठंडी-ठंडी हवा का आनंद लेते थे। 

खेलने के साथ साथ मुझे ज्ञानवर्धक पुस्तकें और पत्रिकाएं पढ़ने का बड़ा ही शौक था जब भी मुझे समय मिलता मैं उनको पढने बैठ जाया करता था, क्योंकि मेरे दादा जी को भी बहुत शौक था किताबे पढने का। जिस कारण हमारे घर में नयी नयी किताबें आया करती थीं। 

इस कारण मैं बचपन में जितना चंचल था उतना ही पढ़ाई में होशियार भी था इस बजह से हमारे विद्यालय में , मैं हर बार अव्वल नंबरों से पास होता था।

अक्सर हम सभी बच्चे मिलकर पूरे विद्यालय में शोर मचाया करते थे साथ ही कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन-छुपाई और तेज दौड़ आदि में भाग भी लिया करते थे। 

बारिश के मौसम में बारिश में नहाना, इक्कठे हुए पानी में छप-छप करना, साइकिल चलाने की कोशिश करना और बार बार गिरना और फिर भी साइकिल चलाना बड़ा ही मज़ा आता था यह सब करने में। 

हमारे गांव में जब सावन के महीने में हर घर में पेड़ों पर झूले डाल दिए जाते है हमारे घर में भी एक नीम का पेड़ था जिस पर मेरे पिताजी हमारे झूलने के लिए झूला डालते थे। झूला-झूलना मुझे और मेरी छोटी बहन हम दोनों को बहुत पसंद था। जिस कारण हम दोनों में बहुत नोक-झोंक भी होती थी लेकिन माँ आकर सब कुछ ठीक कर देती थीं।

बचपन की शरारत Childhood Pranks

बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत में जाते, तो कभी बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते, तो कभी छोटे कुत्तों की पूंछ खिंचा करते, तो कभी गाय के बछड़ों को खोल देते जिसके कारण बछड़े गाय का दूध पी जाते थे। 

इस बजह से कई बार बचपन में डांट भी पड़ती थी परन्तु हम मस्ती करते रहते थे। बचपन में मैं और मेरी छोटी बहन बहुत लड़ते झगड़ते थे। छोटी-छोटी बातों को लेकर हमारे बीच लड़ाई हो जाया करती थी लेकिन आज बहन के साथ वह नोक-झोक भरी लड़ाइयां बहुत याद आती है। 

हम दोपहर तक खूब खेल खेलते थे, इससे हमारे कपड़े मिट्टी के भर जाते थे और हम इतने गंदे हो जाते थे कि हमारी शक्ल पहचान में नहीं आती थी, मैंने और मेरे दोस्तों ने अपने बचपन में बहुत मस्ती किये है।

मेरे बचपन का दोस्त My Childhood Friend

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जो खून का रिश्ता न होने के बावजूद अन्य रिश्तों जैसा भरोसेमंद होता है। यदि कोई सच्चे दोस्त को पा लेता है, तो वह बड़ा ही भाग्यशाली व्यक्ति होता है। 

उसी प्रकार मैं भी एक भाग्यशाली व्यक्ति हूँ, क्योंकि बचपन से ही हमारी दोस्ती हो गयी थी। मेरे दोस्त का नाम अमन है। मुझे याद है, हम दोनों बहुत ही छोटे थे और कक्षा 3 में पढ़ते थे तभी से मेरी दोस्ती उसके साथ हो गयी थी। 

हम दोनों ने आपस में खूब मस्ती की साथ साथ स्कूल में पढने जाते, साथ साथ एक ही ब्रेंच पर बैठते, एक ही टिफिन में खाना खाते, और साथ ही पढ़ते थे। बचपन में, मैं और मेरे दोस्त गर्मियों की छुट्टियों में बागों में आम तोड़ने चले जाते थे क्योंकि हमें आम बहुत पसंद थे, जिस कारण हम अपने आप को रोक नहीं पाते थे। 

बागों के माली लकड़ी लेकर हमें मारने को दौड़ते लेकिन हम तेजी से दौड़ कर घर में छुप जाते थे। हमारे घर के बाहर एक बड़ा चौक था जहां पर गांव के सभी बड़े बुजुर्ग शाम को बैठते थे और गांव और अन्य विषयों पर चर्चा करते थे। 

हम भी वहां पर खेलते रहते थे अक्सर हमें बुजुर्गों से शिक्षाप्रद कहानियां सुनने को भी मिलती थी। कक्षा में हम दोनों की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी। हम दोनों के पिता जी आपस में दोस्त थे, जिस कारण पिता जी का आना जाना लगा रहता था। 

उसके पिता जी भी मेरे घर आया करते थे, हम दोनों दोस्त पढ़ाई के अलावा भी कई अन्य एक्टिविटी में भाग लेते है। कुछ महीनों पहले हम दोनों ने अपना ग्रेजुएशन कम्पलीट किया है।

इसके साथ ही हम दोनों ने नेशनल लेवल की प्रतियोगिता में भाग लिया और उसमे सफल भी रहे। यह सब मेरे उस दोस्त के कारण है, जो मुझे लगातार प्रोत्साहित करता रहता है। इस कारण आज भी हमारी दोस्ती कायम है। 

कुछ समय पहले एक कार से मेरा एक्सीडेंट हो गया था। जिसमे मुझे काफी चोट आयी और फ्रैक्चर भी, उस समय मैं करीब 15 दिन हॉस्पिटल में भर्ती रहा। 

उस समय मेरा दोस्त हॉस्पिटल में लगातार मेरे साथ रहा और मेरी परवाह की। भगवान ऐसा दोस्त सभी को दे, मैं ईश्वर से उसकी और हमारी दोस्ती की लंबी उम्र की कामना करता हूँ।   

निष्कर्ष Conclusion

मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है। जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हम तनाव मुक्त थे और खुश रहते थे । यह समय किसी के भी जीवन का सबसे मज़ेदार और यादगार समय होता है। काश! मैं एक बार फिर से बच्चा बन सकता और अपना बचपन दोबारा जी सकता। आशा

करते हैं आपको यह मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi अच्छा लगा होगा जिसमें मैंने अपने बचपन की कहानी को लघु रूप में आपको बताया।

1 thought on “मेरा बचपन पर निबंध Essay on My Childhood in Hindi”

Nice to essay,. ..

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मेरा बचपन पर निबंध

बचपन हमारे पूरे जीवन का वह खूबसूरत पल होता है, जिसको हम कभी जिंदगी भर नहीं भूल सकते। हम यहां पर मेरा बचपन निबंध हिंदी मे (My Childhood Essay in Hindi) शेयर कर रहे है।

इस निबंध में मेरा बचपन के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

My-Childhood-Essay-in-Hindi-

बचपन का माहौल बहुत ही सुनहरा होता है। बचपन के माहौल में जीना हर कोई व्यक्ति पसंद करता है। हर इंसान ने अपने जीवन में बचपन के पल को कैसे व्यतीत किया है, वह उसे पूरी जिंदगी याद रहता है।

यह भी पढ़े:   हिंदी के महत्वपूर्ण निबंध

मेरा बचपन पर निबंध (My Childhood Essay in Hindi)

मेरा बचपन पर निबंध 250 शब्द (mera bachpan essay in hindi).

हमारे बचपन में जब हम छोटे थे, तब यह सपने देखते थे कि हम जल्दी बड़े कब होंगे क्योंकि तब हमें बड़ों की लाइफ बहुत अच्छी लगती थी। उसके बाद जब बड़े हो गए, तब यह सोचने लगे कि हमारा बचपन ही कितना खूबसूरत हुआ करता था।

असल में सही मायनों में अगर देखा जाए तो बचपन वह खूबसूरत पल होता है, जो हम जिंदगी में कभी नहीं भुला सकते है। बचपन में खेल कूद, पढ़ाई और मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। बचपन में बच्चे बिना किसी तनाव के अपने बचपन को जी सकते हैं। उनके पास कोई समस्या नहीं होती है।

बचपन में सभी के साथ ऐसी घटनाएं घटित होती है, जिनको कभी भूलाया नहीं जाता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जिसके कारण हमारे माता-पिता हमारे बचपन को हमेशा याद दिलाते है कि किस तरह से हमने धीरे-धीरे चलना सीखा, फिर वापस गिरकर उठना सीखा और इसके साथ ही बड़े होकर दौड़ लगाना सीखा।

बचपन में जब हम पिताजी के कंधों पर बैठकर मेले देखने जाए करते थे तब बहुत मजा आता था। बस उन पलों को याद करके अपने आप से हंसी आती है क्योंकि बचपन के दिन बहुत ही सुनहरी यादों की तरह हम सबके जीवन में आते हैं।

मेरे बचपन में पिता के द्वारा डांटने पर हम अपनी मां के आंचल में जाकर छुप जाया करते थे। मां की लोरियां को सुनकर मुझे अच्छी नींद आती थी। वह समय बहुत ही खुशी देने वाला होता था।

आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में अच्छी नींद भी नसीब नहीं होती, जो बचपन में मां की लोरियां सुनकर आती थी। बचपन की वो खूबसूरत यादें हुआ करती है, उनमें पता ही नहीं चलता था कि कब दिन हो जाता और कब रात हो जाती।

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मेरा बचपन पर निबंध (1200 शब्द)

बच्चों का जीवन बहुत अच्छा होता है क्योंकि हमारे बचपन में बहुत चंचलता, थोड़ी शरारत और बहुत सी मिठास भरी होती है। हर कोई आदमी अपने बचपन को वापस से जीने की सोचता है।

बचपन में तोतली भाषा मे बोलना, धीरे-धीरे लड़खड़ा के चलना, गिरना, पढ़ना और भी हमारी कुछ मीठी मीठी शरारत सब की बहुत याद आती है।

अपनी दादी से कहानियां सुनना और अपने मां-बाप से छूपके दादा जी के साथ बाजार में जाकर चुपके से चीजें खरीद के खाना, सब बातें बहुत याद आती है। बचपन खूबसूरत सपने की तरह है। कब हम बड़े हो जाते है हमें पता ही नहीं चलता।

एक कवि की शायरी पर बचपन की दास्तान

एक बहुत बड़े कवि सुदर्शन फाकिर ने बचपन की यादों पर एक शायरी को लिखा। उसने कुछ लाइनों में हमारे बचपन की यादे झलकती हैं कि किस तरह हम देश दुनिया के झगड़ों से दूर बच्चे अपने बचपन में किस प्रकार से मगन हो जाते हैं।

इस शायरी में जो लेखक है, वह यही कामना करता है कि बच्चों के बचपन के वह दिन वापस से लौट आए। इसके लिए उनको सारी दौलत और शोहरत को ही क्यों ना वापस देना पड़े। वह सब कुछ दे देंगे पर उनका बचपन उनको उन्हें लौटा दे। शायर कि वह पंक्तियां –

”चाहे दौलत भी ले लो, चाहे शोहरत भी ले लो, चाहे छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो मेरा वह बचपन, वह कागज की कश्ती और वो बारिश का पानी।”

कहने को यह दो पंक्तियां हैं लेकिन इनमें हमारे बचपन का बहुत बड़ा रहस्य सा छुपा है।

मेरे बचपन की कुछ खास यादें

मेरा बचपन मुझे बहुत अधिक प्रिय है क्योंकि मैं अपने घर में सबसे छोटा होने के कारण मुझे सभी लोगों का अधिक प्यार मिलता था। मैं घर में नटखट और शरारती हुआ करता था और सभी को मैं बहुत परेशान करता था।

लेकिन सभी मुझसे बहुत प्यार करते थे। इस कारण मेरी सभी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते थे। मेरे बचपन में मैं कभी अपनी दादी का चश्मा छुपा दिया करता, कभी दादा जी की धार्मिक किताबों को छुपा देता था। घर के सभी सदस्यों को किसी न किसी रूप से में बहुत परेशान किया करता था।

लेकिन छोटा था इसीलिए सभी लोग मुझे कुछ नहीं कहते थे। अब जब बड़ा हो गया हूं, तो वो सब बातें मुझे बहुत याद आती है। मैं किसी चीज से भी नहीं डरता था, बस स्कूल जाने के नाम पर मुझे बहुत डर लगता था।

जब मैं कोई भी शरारत करता तो घरवाले मुझे स्कूल में टीचर के पास भेजने की बात कहकर डांट दे देते, इसीलिए मैं टीचर्स की वजह से बहुत डर जाता था और इस प्रकार मैंने धीरे-धीरे घर के सभी लोगों को परेशान करना छोड़ दिया।

मेरे स्कूल के कुछ मीठी यादें

गांव में हमारा स्कूल मेरे घर से बहुत दूरी पर हुआ करता था। स्कूल जाने के लिए हम सभी दोस्त आपस में एक साथ मिलकर जाया करते थे।

स्कूल बहुत दूरी पर था तो रास्ते में हम और मस्ती करते हुए जाते थे, सड़क पर बहुत शोर मचाते हुए और बहुत मस्ती करते हुए जाते थे। उसके बाद हम स्कूल जाते हैं। स्कूल में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली -डंडा, छुपन-छुपाई, दौड़ लगाना और भी बहुत प्रकार के खेल हुआ करते थे।

इन सभी में पूरा टाइम कब निकल जाता था, हमें पता ही नहीं चलता था। स्कूल जाने पर भी हम ज्यादा मस्ती करते थे। क्योंकि स्कूल में सभी दोस्त मिल जाए करते थे।

मेरी क्लास में जो मेरे कक्षा टीचर है, वो मुझे बहुत अच्छे लगते थे। क्योंकि वह मुझे बहुत अच्छे से पढ़ाई करवा देते और किसी भी चीज में कोई परेशानी होने पर वह मुझे वापस से समझा देते थे।

मेरे बचपन का प्रिय खेल

मुझे बचपन में छोटे-छोटे जानवरों से बहुत लगाव होता था। उनमें सबसे प्रिय कुत्तों के बच्चे हुआ करते थे। उन छोटे पिल्लों के साथ मैं बहुत खेला करता था, साथ ही मुझे मिट्टी के खिलौने बनाकर उनसे खेलना भी बहुत पसंद था।

इन खेलों की वजह से मुझे घर में भी बहुत डांट पड़ती थी, लेकिन मैं क्या करूँ मुझे ये खेल बहुत ज्यादा अच्छे लगते थे। इनको मैं अकेले ही बिना किसी के साथ ही खेल लिया करता था।

वो बचपन के शरारत भरे दिन

बचपन में हम गांव में खेतों में चले जाया करते थे। वहां पर हम भैंस के ऊपर बैठकर बहुत मस्ती करते हैं, कभी बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते तो कभी कुत्तों की पूछ को खींचते और घर में जो गाय थी, उसके बछड़े को खोल देते हैं, जिससे वह बछड़ा गाय का दूध पी जाता था।

इस तरह से बचपन में बहुत मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। अपने दोस्तों के साथ बाहर मिट्टी में खूब खेलते, जिसके कारण हमारे कपड़े बहुत गंदे हो जाते इससे हमको अपनी मम्मी की बहुत डांट सुननी पड़ती थी।

क्योंकि कपड़ों के साथ-साथ हमारी चकले भी पहचान में नहीं आती थी, बहुत गंदी हो जाती थी। इस वजह से हमको घर वालों की सबसे ज्यादा मम्मी की डांट सुननी पड़ती थी।

मेरे बचपन के कुछ फेवरेट दोस्त

दोस्ती का रिश्ता एक वह खूबसूरत रिश्ता होता है, जो खून के रिश्ते से भी बढ़कर होता है। यदि किसी को सच्चा दोस्त मिल जाए तो उससे बड़ा कोई भाग्यशाली व्यक्ति नहीं होता।

मैं भी बहुत भाग्यशाली हूं क्योंकि बचपन में जिस लड़के के साथ मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी, उसका नाम पवन है। पवन के साथ मेरी दोस्ती कक्षा दो से हुई थी।

वह बहुत ही प्यारा और सीधा सा बच्चा हुआ करता था। हम दोनों मित्र एक साथ एक ही बेंच पर बैठते, अपना लंच शेयर करते तथा दोनों को पढ़ाई में किसी भी प्रकार के परेशानी होती तो हम आपस में एक दूसरे की समस्या को सुलझा लेते थे पढ़ाई से संबंधित।

एक बार मेरा एक्सीडेंट हो गया था। उस समय मेरे दोस्त ने मेरी बहुत मदद की। वो कहते हैं ना कि दोस्ती की सही पहचान मुसीबत में ही की जाती है तो मेरे दोस्त ने भी मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था तो मेरी बहुत मदद की थी। मैं उसकी दोस्ती को कभी नहीं भूल सकता।

मेरा बचपन बहुत ही खूबसूरत यादों के साथ में गुजरा मैं उसको कभी भी नहीं भूल सकता। बचपन का जो समय होता है, सभी लोगों के लिए बहुत ही यादगार और सुनहरा होता है। खूब कभी मिली बुलाए भुला जा सकता है।

सबका मन करता है कि काश मैं फिर से बचाव बन जाऊं और वापस अपने बचपन को जी लूँ। पर बचपन तो चला जाता है, रह जाती है तो सिर्फ यादें।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख मेरा बचपन निबंध (My Childhood Essay in Hindi) पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar

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